नमामि गंगा परियोजना

भारतीय प्रत्येक नदी को गंगा मानता है। वह प्राकृतिक संसाधनों को समाज की थाती मानता है। इसलिए एक बार अगर भारतीय मानस गंगा के प्रति सजग और चैतन्य हो गया तो वह देश की सभी नदियों के प्रति आस्थावान और संवेदनशील हो जाएगा। नमामि गंगा परियोजना का यह दूरगामी लाभ है।

यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि धरती के अस्तित्व के साथ अस्तित्व में आई गंगा अब अपना अस्तित्व खोज रही है। गंगा युगों-युगों से भारत की पवित्रता का प्रतीक रही है। उत्तर भारत का उपजाऊ मैदानी क्षेत्र गंगा की पवित्र मिट्टी से निर्मित है। भारत की सभ्यता-संस्कृति का विकास गंगा और सहायक नदियों के ईर्द-गिर्द हुआ है। गंगा और उसकी पारिवारिक सहायक नदियां; और सहायक की सहायक नदियों से मिलकर बनता है ‘गंगा परिवार’। गंगा परिवार में लगभग 1000 छोटी-बड़ी नदियां शामिल हैं। गोदा यानि गोदावरी को तो गंगा का ही एक दूसरा रूप ‘दक्षिण गंगा’ कहा जाता है। नर्मदा, कृष्णा, कावेरी उसकी बहनें हैं। ब्रह्मपुत्र गंगा का भाई है। ‘छत्तीसगढ़ की गंगा’- महानदी; गंगा की सहेली है। जैसे गंगा की माया अपरम्पार है, वैसे ही हिमालय पुत्री गंगा को लेकर चिंताएं भी अपार हैं। राज और समाज की चिंता का सामूहिक उद्घोष है – नमामि गंगा परियोजना। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि नदियों के विकास और कायाकल्प के लिए एक अलग मंत्रालय शुरू किया गया है। केन्द्र की भाजपानीत नरेंद्र मोदी सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को आश्वस्त किया है कि गंगा नदी की सफाई सरकार के इसी कार्यकाल यें 2018 तक पूरी हो जाएगी। केन्द्र सरकार के अनुसार, गंगा नदी के किनारे बसे 30 शहरों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की योजना है, ताकि गंदे पानी को नदी में जाने से रोका जा सके। इस समय 24 प्लांट कार्य कर रहे हैं जबकि 31 का निर्माण किया किया जा रहा है। 2500 किलोमीटर लंबी गंगा की सफाई के लिए नदी के तट पर बसे 118 नगरपालिकाओं की शिनाख्त की गई है जहां वेस्ट वॉटर ट्रीटमेंट और सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट सहित पूरी साफ सफाई का लक्ष्य हासिल किया जाएगा। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल एनजीटी ने यमुना में पूजा और निर्माण सामग्री तथा अन्य कचरा डाले जाने पर 50 हजार रूपये तक का जुर्माना लगाने का निर्देश दिया है। एनजीटी ने कड़े निर्देश देते हुए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से औद्योगिक इकाइयों को नदी में कचरा बहाने की इजाजत नहीं देने को कहा है। नरेन्द्र मोदी सरकार के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने वर्ष 2014-15 के बजट में पवित्र गंगा नदी को स्वच्छ और निर्मल बनाने के लिए ‘नमामि गंगे मिशन’ के तहत 2037 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। इसके अलावा गंगा के लिए प्रवासी भारतीय निधि बनाने का तथा इलाहाबाद से हल्दिया तक वाणिज्यिक नौवहन शुरू करने का प्रस्ताव रखा गया है। केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने कहा ‘गंगा सिर्फ धार्मिक नदी नहीं है, बल्कि करीब 50 करोड़ लोग इस पर निर्भर हैं। देश की अर्थव्यवसस्था को मजबूत करने के लिए इसे रोटी और रोजगार से जोड़ा जाना चाहिए।’ उन्होंने कहा कि गंगा की उत्पत्ति उत्तराखंड में होती है और राज्य को हर्बल राज्य में बदला जा सकता है, क्योंकि यहां समृद्ध जैव विविधता है। सुश्री भारती ने कहा, ‘मैं बांध के खिलाफ नहीं हूं, लेकिन कुछ खास डिजाइनों के खिलाफ हूं, जो गंगा के लिए नुकसानदायक है।’

गंगा का मामला सिर्फ पैसे के खर्च और लेन-देन का ही नहीं, बल्कि हमारे अपने अस्तित्व का भी है। भला कौन सोच सकता था कि जो गंगा, माता के रूप यें मुक्तिदायिनी हैं, वही स्वयं की मुक्ति के लिए आर्तनाद कर रही हैं। शोषण और प्रदूषण से गंगा छलनी हैं। जिस गंगा का पानी बरसों रखने के बाद भी शुद्ध और स्वच्छ रहता था, वह आज दुनिया की सर्वाधिक गंदी और प्रदूषित नदियों में शुमार है। दरअसल गंगा में 70-75 प्रतिशत प्रदूषण नगरीय और शहरी निकायों का गैर-उपचारित सीवेज छोड़े जाने के कारण है। किंतु गंगा की स्वच्छता के लिए सीवेज नियंत्रण, अपशिष्ट उपचार और औद्योगिक प्रदूषण रोकने के अलावा नदी के जल-ग्रहण क्षेत्र का उपचार, बाढ़ क्षेत्र के संरक्षण और खेतों से नदी में आने वाले गैर-घुलनशील कीटनाशकों को भी रोकने की जरूरत है। सच्चाई ये है कि गंगा का संकट मानव-निर्मित है। नगरीय समाज ज्यादा से ज्यादा अनागरिक कामों में लगा हुआ है। मल-जल और औद्योगिक कचरा और जल नदियों के हालात बद से बदत्तर कर रहा है। मुद्दा सिर्फ राशि के उपयोग भर का नहीं, उससे ज्यादा संकल्प और विकल्प का है। गंगा के प्रति आस्था, श्रद्धा और समर्पण को बनाए और बचाये रखने का है। गंगा सरकारी न हो जाए, बल्कि हमारी थी, हमारी ही बनी रहे। भारत में नदियां और अन्य प्राकृतिक जल स्रोत सिर्फ आस्था या पूजा का विषय नहीं रहे हैं, बल्कि यह सम्पूर्ण जीवन शैली से जुडे रहे हैं। मैदानी क्षेत्रों के लिए नदियां जीवन-रेखा हैं। विकास का हर पहलू इनसे जुड़ा होता है।

नदियों की सफाई के बारे में उदासीनता और अज्ञानता ऊपर से नीचे तक है। प्रधान मंत्री की अध्यक्षता में नेशनल रिवर कंजरवेशन अथॉरिटी (एनआरसीए) का गठन 1995 में हुआ था और इसकी अंतिम बैठक 2003 में तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में हुई थी। यूपीए शासन के दौरान तय किया गया था कि हर वर्ष प्रधान मंत्री की अध्यक्षता में एनआरसीए की बैठक होगी, लेकिन मनमोहन सिंह के नेतृत्व में एक भी बैठक नहीं हुई। न केवल एनआरसीए की बैठक नहीं हुई वरन इसकी स्टीयरिंग कमेटी की बैठक भी 2007 के बाद से नहीं हुई। स्टीयरिंग कमेटी का प्रमुख मंत्रालय का सचिव होता है और इसकी हर तीन महीने में बैठक करना अनिवार्य था। गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी का 2009 में गठन किया गया था, लेकिन इसके द्वारा एक भी ठोस फैसला नहीं किया गया। हालांकि भाजपानीत एनडीए सरकार ने प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुआई में पहल की है। लेकिन केन्द्र और राज्यों में अलग-अगल दलों के शासन के कारण भी गंगा सफाई अभियान में की अडचनें ह््ैं।

अडचन सिर्फ परस्पर विरोधी दलों की सरकारों के कारण ही नहीं है। इसके अलावा भी कई अडचनें हैं। भाजपा के भीतर भी पानी और नदी को लेकर कई सैद्धांतिक मतभेद हैं। यद्यपि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भाजपा की नदी संरक्षण पहल से सहमत है, लेकिन सरकार की सोच और तौर-तरीकों को लेकर वह अपनी असहमति भी जता चुका है। लेकिन नमामि गंगा परियोजना के लिए सबसे बड़ी चुनौति इसे जनमानस का अभियान बनाने को लेकर है। जबतक यह सरकारी परियोजना के रूप में रहेगी इसकी सफलता संदिग्ध है। आवश्यकता इस बात की है कि गंगा के मुद्दे पर सरकार और समाज का मन एक बनें। चुंकि नदियों के पुनर्जीवन में विदेशी संगठनों की रूचि भी है। विश्व बैंक से लेकर जापान और अन्य देशों की अनेक संस्थानों ने गंगा स्वच्छता में अपनी भूमिका के लिए रूचि प्रदर्शित की है, जरूरी नहीं उनकी रूचि, तौर-तरीकों और शर्तों को भारत का समाज स्वीकार करे। समाज के लिए नदियां तीर्थ हैं, सरकार इसे पर्यटन में तब्दील करना चाहती है। गंगा सहित तमाम नदियां विकास को अपनी शर्तों पर स्वीकार करती रही हैं, पता नहीं गंगा सरकार या व्यापारियों की शर्तों को स्वीकार करेंगी या नहीं। ये स्थितियां वर्तमान सरकार की चुनौतियां हैं। इन विरोधाभासी परिस्थितियों में सतत प्रयास को सरकार का दुस्साहस भी कहा जा सकता है। मोदी और भारती के प्रयासों को इसलिए दुस्साहसी कहा जा सकता है कि पूर्व की सरकारों ने भी गंगा सफाई के लिए कई सफल प्रयास किए। राजीव गांधी ने प्रधान मंत्री पद पर आसीन होते ही राष्ट्र के नाम अपने पहले संबोधन में 6 जनवरी, 1985 को गंगा को निर्मल करने संबंधी एक प्रमुख कार्यक्रम की घोषणा की थी। फरवरी, 2009 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किया था। साथ ही, अपनी अध्यक्षता में नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी (एनजीआरबीए) के गठन की घोषणा की थी। इसमें उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के मुख्य मंत्रियों के अलावा प्रसिद्ध कार्यकर्ताओं और पेशेवरों को शामिल किया गया।

फरवरी, 2009 और मार्च 2014 के बीच एनजीआरबीए ने क्लीन गंगा मिशन क्रियान्वित किया। इसका मुख्य उद्देश्य 2020 तक सुनिश्चित करना था कि नगर निकायों का गैर-उपचारित सीवेज या औद्योगिक अपशिष्ट नदी में नहीं बहाया जाए। इस मिशन के दो लक्ष्य थे-निर्मल धारा और अविरल धारा। दोनों उद्देश्यों को पूरा करने के लिए एनजीआरबीए ने पांच दूरगामी फैसले किए। पहला यह कि इसने उत्तर प्रदेश में सीवेज नियंत्रण और उपचार के लिए 2,700 करोड़ रुपए की 81 परियोजनाओं को मंजूरी दी। बिहार के लिए 1,400 करोड़ रुपए, प. बंगाल के लिए 1,200 करोड़ रुपए, उत्तराखंड के लिए 250 करोड़ रुपए तथा झारखंड के लिए 100 करोड़ रुपए की मंजूरी दी गई। यह प्रयास नदी के 3,600 किमी. से ज्यादा लंबे हिस्से के लिए सीवेज नेटवर्क बनाने तथा प्रतिदिन 700 मिलियन लीटर सीवेज उपचार की क्षमता का विकास करने के मद्देनजर किया गया था। वाराणसी के लिए अलग से 500 करोड़ रुपए की परियोजना मंजूर की गई। दूसरे फैसले के तहत एनजीआरबीए के लिए आईआईटी-कानपुर के मार्गदर्शन में आईआईटी संकाय स्थापित किया गया। इसे समग्र गंगा रिवर बेसिन मैनेजमेंट प्लान तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई। तीसरा फैसला यह किया गया कि गांगेय डॉल्फिन को राष्ट्रीय जलीय जीव माना गया ताकि नदी को पुनः स्वच्छ बनाने का यह प्रतीक बन सके। चौथे निर्णय के तहत केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने पहली बार अनेक प्रदूषणकारी उद्योगों को नोटिस जारी किया। पांचवें फैसले के अंतर्गत भागीरथी के ऊपरी तरफ तीन पनबिजली परियोजनाओं लोहारिनाग पाला, पाला-मनेरी तथा भैरोंघाटी को परिस्थितिकीय कारणों से रोक दिया गया। साथ ही, गोमुख से उत्तरकाशी तक के 100 किमी. लंबे हिस्से को नियमित परिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील क्षेत्र घोषित कर दिया गया। निर्मल और अविरल गंगा के लक्ष्य की ओर ये कुछ शुरूआती प्रयास हैं।

अगर सच में हम भारते के अस्तित्व को बचाए रखने के आग्रही हैं तो हमें गंगा को हर हाल में निर्मल और अविरल करना ही होगा। गंगा की अविरलता, उसे निर्मल रखने की पहली शर्त है। भारत में गंगा नदियों की प्रतीक है, प्रतिनिधि हैं। गंगा के प्रति आस्था हो, और अन्य नदियों के प्रति अनास्था यह सम्भव नहीं। भारतीय प्रत्येक नदी को गंगा मानता है। वह प्राकृतिक संसाधनों को समाज की थाती मानता है। यहां का मानस विश्वास करता है कि ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा।’ इसलिए एक बार अगर भारतीय मानस गंगा के प्रति सजग और चैतन्य हो गया तो वह देश की सभी नदियों के प्रति आस्थावान और संवेदनशील हो जाएगा।
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