खुदरा बाजार में विदेशी निवेश


खुदरा बाजार में प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश का मामला जल्दी सुलझने वाला नहीं है। फिर भी यदि निकट भविष्य में इस पर पुन: चर्चा हो तो इसका ध्यान रखा जाए कि भारतीय खुदरा बाजार को कोई हानि न पहुंचे।

भारत सरकार द्वारा जनवरी, 2012 के दूसरे सप्ताह में 100 प्रतिशत विदेशी निवेश की अनुमति दे दी गयी। यह अनुभति एकल ब्रान्ड की वस्तुओं के लिए इस शर्त के साथ दी गयी है कि वे 30 प्रतिशत खरीदारी लघु स्तर की उत्पादक इकाइयों से करेंगे। सरकार के इस कदम से यह संकेत मिलता है कि वह अपनी आर्थिक नीति को आगे बढ़ाने के लिए कृत संकल्प है। केन्द्र सरकार द्वारा घोषित खुदरा बाजार में विदेशी निवेश नीति गहरे राजनीतिक और आर्थिक निहितार्थ हैं। इस घोषणा पर उद्योग जगत की मिली-जुली प्रतिक्रिया आयी है। उनकी मान्यता है कि 30 प्रतिशत खरीदारी की शर्त लगाने से ऐसी स्थिति बनेगी कि ‘निवेश के लिए स्वागत तो है, किन्तु आप निवेश कर नहीं सकते।’

खुदरा बाजार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति का मुद्दा देश में काफी दिनों से गरमागरम बहस का मुद्दा बना हुआ है। यद्यपि कई क्षेत्रों में भारत सरकार द्वारा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति पहले से ही दी गयी है। किन्तु खुदरा बाजार में इसकी अनुमति देने से छोटे व्यवसायियों सहित कई वर्गों पर सीधा प्रभाव पड़ेगा।

भारत में खुदरा बाजार का देश की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान है। इसका भविष्य बहुत उज्ज्वल है। एक विश्वविख्यात अन्तरराष्ट्रीय प्रबन्धन सलाहकारी संस्था कियर्नी (खहाब्) के अनुसार दुनिया के 30 चिन्हित खुदरा बाजार की सम्भावना के रूप में भारत दूसरे स्थान पर है। इसलिए भारत विश्व की बड़ी खुदरा विक्रेता कम्पनियों के लिए सबसे पसंदीदा बाजार बन गया है। देश के सकल उत्पाद में 14 प्रतिशत योगदान और 7 प्रतिशत कार्यशील जनता के साथ खुदरा बाजार का निश्चित ही एक मजबूत आर्थिक स्तम्भ है।

खुदरा बाजार संगठित और असंगठित-दो भागों में विभाजित है। संगठित बाजार में लाइसेन्स प्राप्त विक्रेता आते हैं। ये वे विक्रेता हैं जो बिक्री कर, आय कर इत्यादि जमा करते हैं। इनमें बड़े औद्योगिक-व्यावसायिक घरानों की दूकानों की और शृंखला निजी तौर पर चलायी जा रही दूकानें शामिल हैं। असंगठित बाजार परम्परागत दूकानों, सस्ते दर की फुटकर दूकानें, किराना स्टोर्स, जनरल स्टोर्स, पान-बीड़ी शाप, रेहड़ी, हाथ गाड़ी (ठेला), सड़क की पटरी पर बैठने वाले, गुमटी लगाने वाले इत्यादि शामिल हैं। देश के खुदरा बाजार का लगभग 96 प्रतिशत व्यापार असंगठित बाजार में होता है, जबकि संगठित बाजार में केवल 4 प्रतिशत खुदरा वस्तुओं का व्यापार होता है।

खाद्य पदार्थों के व्यवसाय का देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान है। चूंकि इसमें रोजगार की बड़ी सम्भावनाएं हैं, इसलिए इस व्यवसाय पर सबकी नजर है। इस व्यवसाय का ग्रामीण भागों में विस्तार होने की प्रबल सम्भावना है। रोजगार की दृष्टि से भी यह महत्वपूर्ण है। इसलिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के बिना भी इस क्षेत्र में कार्यरत व्यापारिक संस्थाएं- होटल, रेस्टोरेन्ट आदि, वाजिब दर पर खाद्य पदार्थों कों ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंचाने के लिए प्रयत्नशील हैं। इसलिए प्रश्न यह उठता है कि जब इस व्यवसाय में बड़े धन की आवश्यकता नहीं है तो इसमें प्रत्यक्ष विदेशी निवेश क्यों जरूरी हैं? यह भी नहीं है कि भारतीय खुदरा बाजार को किसी विशेष तकनीक की जरुरत है, जो प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के द्वारा ही प्राप्त हो सकती है।
जहां तक खुदरा बाजार में रोजगार की बात है तो यह स्पष्ट हो चुका है कि भारत के संगठित खुदरा बाजार में केवल 5 लाख लोग कार्यरत हैं, जबकि असंगठित क्षेत्र में लगभग 3.95 करोड़ लोग लगे हैं। इसके अलावा एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि असंगठित क्षेत्र में देश के युवाओं को स्वरोजगार का पूरा अवसर मिलता है। भारत की जन सांख्यकीय संरचना और युवाओं की बहुलता के कारण अन्य देशों की अपेक्षा भारत में खुदरा बाजार अधिक लाभदायी है। कृषि क्षेत्र में मजदूरों की बहुलता और निर्माण क्षेत्र में कमी तथा दोनों क्षेत्रों में मेहनतकश कार्य और कम मजदूरी के कारण करोड़ों युवकों ने सेवा क्षेत्र (सर्विस सेक्टर) को अपनाया है। इसमें लाखों प्रकार के अवसर उपलब्ध हैं। अपनी कुशलता और आर्थिक क्षमता के अनुसार स्त्री-पुरुष दोनों ने इस क्षेत्र में स्वरोजगार शुरू किया है।

ऐसी परिस्थिति में खुदरा बाजार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का मुद्दा बहुत ही संवेदनशील विषय बन गया है। इसके समर्थन और विरोध दोनों में ही तर्क दिये जा रहे हैं। यह बात जरूर है कि खुदरा बाजार में बड़ी विदेशी कम्पनियों के प्रवेश से विदेशी वस्तुएं सहजता से उपलब्ध होने से जीवनयापन के स्तर में सुधार होगा। अर्थव्यवस्था पर दीर्घकालीन सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। विश्व बाजार के साथ सीधा जुड़ाव हो जाएगा। इसके पक्षकारों का कहना यह भी है कि इससे सामान सस्ते हो जाएंगे और वस्तुओं के चयन की सुविधा बढ़ जाएगी। उनका कहना यह भी है इसके कारण उपभोग की वस्तुओं की विक्री भी बढ़ जाएगी।
खुदरा बाजार में प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश के विरोध में जो सबसे गम्भीर विरोध दर्ज किया जाता है कि इससे आधुनिक दूकानदारी को बढ़ावा मिलेगा और पारम्परिक बाजार खत्म हो जाएगा। यही नहीं इससे खुदरा बाजार में काम कर रहे लोगों की रोजी-रोटी भी छिन जाएगी। यद्यपि इस समय हम निर्माण क्षेत्र में सबसे अधिक रोजगार सृजन कर रहे हैं, फिर भी प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश को अनुमति दिए जाने से खुदरा बाजार से रोजगार के अवसर खतम हो जाएंगे।

इसलिए यह आवश्यक है कि खुदरा बाजार में प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश की अनुमति देने से पूर्व केन्द्र सरकार सभी सम्बन्धित वर्गों को विश्वास में लेकर अनुकूल वातावरण निर्माण करे और भविष्य में इससे उत्पन्न होने वाली कठिनाइयों को दूर करने के लिए पहले ही उचित कदम उठाए। कुछ शर्तें तय करना भी इसमें शामिल हो सकता है। इसके लिए एक आयोग गठित किया जा सकता है जो खुदरा बाजार में प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश से जुड़े सभी मुद्दों का अध्ययन करे और जो भी देश के हित में वह सुझाव दे। आयोग यह भी सुझाव दे कि विदेशी कम्पनियां माल कहां से खरीदें, उनके रख-रखाव की व्यवस्था करें, बाजार में उन्हें किस प्रकार के सामान रखने की अनुमति दी जाए, भण्डार गृहों का स्वरूप कैसा हो, दूकानों में भारतीय और विदेशी वस्तुओं का अनुपात क्या हो, उनमें कार्यरत कर्मचारियों की स्थिति कैसी हो, मूल्य पर नियंत्रण की प्रणाली क्या हो, दूकान के सामने निजी वाहन खड़े करने हेतु उनकी व्यवस्था क्या हो इत्यादि। एक विशेष बात और हो कि दूकान पर कार्यरत कर्मचारियों का सामाजिक स्तर सुधारने, उनके स्वास्थ्य, रोजगार की सुनिश्चितता पर पहले ही नियम बना लिए जाएं। वे जिन किसानों से माल खरीदेंगे उनका भविष्य भी अच्छा बना रहे यह भी ध्यान रखा जाए।

यह तो पक्की बात है कि खुदरा बाजार में प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश का मामला जल्दी सुलझने वाला नहीं है। राज्य सरकारों और भारतीय समाज तथा व्यापारियों के विरोध के आगे यह कार्य आसान नहीं लगता। फिर भी यदि निकट भविष्य में इस पर पुन: चर्चा हो तो इसका ध्यान रखा जाए कि भारतीय खुदरा बाजार को कोई हानि न पहुंचे।
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