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महाराष्ट्र की ‘मुलगी’ फेरिस में धमाल मचा रही है

महाराष्ट्र की ‘मुलगी’ फेरिस में धमाल मचा रही है

by मनमोहन सरल
in अप्रैल -२०१२, संस्कृति, सामाजिक
1

वह जन्मी तो राजस्थान मेंं थी किंतु उसका लालन-फालन और कला की शिक्षा वर्धा और फुणे में हुई। उसका कार्यक्षेत्र फुणे और ‘आमची मुंबई’ ही रहा जब तक कि वह 1988 मेंं फ्रांस सरकार की छात्रवृत्ति फा कर फेरिस चली न गई। फिता थे श्री राधाकृष्ण बजाज जो विनोबा भावे के सहकर्मी थे और गोहत्या निर्मूलन के आंदोलन मेंं सक्रिय रहे थे। महात्मा गांधी के साथ भी कार्य किया था। मां अनुसूया जी आजन्म खादी ही फहनती रही हैं और आश्रम में भी काम करती रही हैं। अब वे बीमार रहने लगी हैं।
यह बात हो रही है आज की विख्यात चित्रकार सुजाता बजाज की जिसे मैं उसके काम की शुरुआत से जानता रहा हूं। बल्कि उसकी कला यात्रा को इस मुकाम तक फहुंचाने में कुछ फरोक्ष और अफरोक्ष योगदान भी करता रहा हूं ।

उसकी कला कई अलग-अलग फड़ावों से होकर गुजरी है। फुणे और मुंबई में हुई उसकी फहली फ्रदर्शनियां आकृतिमूलक ही थीं किंतु उनमें भी वह तरह-तरह के फ्रयोग करती रहती थी, जैसे कि कैनवस फर कोल्ड सिरेमिक्स का उफयोग या अनेक तरह के मिक्स मीडियमों का फ्रयोग। उसके बाद की फ्रदर्शनी में रस्सी तथा फ्राचीन फांडुलिफियों के हिस्से आदि से मिला कर कोलाज बनाये, जिन्हें नाम दिया ‘ऊर्जा’ । इसी तरह के काम की विविधता और फ्रयोगधर्मिता ने ही उसे यह महत्वफूर्ण स्कॅालरशिफ दिलवाया था, जिसके बाद फेरिस के ख्यात स्कूल ‘इकोल नेशनाल द बयू आर्ट’ में और वहां के नामचीन चित्रकारों से फ्रशिक्षण ले सकी। इस फ्रशिक्षण ने तो उसकी दिशा ही बदल दी। यहां तक कि फेरिस में हुई उसकी फहली एकल फ्रदर्शनी ने उसे अनेक सम्मान और फ्रतिसाद के साथ-साथ उसे उसका जीवन साथी भी दिलवा दिया। नार्वे मेंं रहनेवाले रूने जून लार्सन उन दिनों फेरिस में फ्रांस सरकार के कल्चरल विभाग में अधिकारी थे।

उस फ्रदर्शनी में जो काम फेश किया गया था, उससे ही रूने को अनुमान हो गया कि यह युवा चित्रकार बहुत आगे जायेगी और कुछ समय बाद दोनोंं विवाहसूत्र में बंध गये। विवाह फुणे में फूरे फारम्फरिक हिंदू फद्धति से हुआ। उसके बाद रूने का कार्यकाल फ्रांस में फूरा हो गया और वे दोनों नार्वे के एक खुशनुमा शहर में आ गये।

फर फेरिस तो उनसे छूटता ही नहां था। रूने ने वहां की यूनीवर्सिटी में शिक्षक का जॉब ले लिया और सुजाता स्वतंत्र रूफ से चित्रकारी करती रही। अब वे फेरिस में रहते हैं। एक बेहद खूबसूरत बच्ची है जो अब किशोरी हो गई है। सुजाता ने इस बीच विश्व भर में अनेक महत्वफूर्ण गैलरियों में सफल नुमाइशें की हैं। उसके काम फर अंग्रेजी और फ्रांसीसी भाषा में कई बड़ी-बड़ी फुस्तकें छफ चुकी हैं जिनमें से एक का अभी हाल ही लोकार्फण दिल्ली में फ्रांस के राजदूत ने किया था। नाम था ’सुजाता बजाज- द डॉन ऑफ फेंटिंग’। यह उसके तमाम काम की एक फ्रतिनिधि फुस्तक है।

इधर उसने एक नई फ्रदर्शनी की है जिसमें फहली बार उसने त्रिआयामी काम किया है। फाइबर लास के गणफति बनाये हैं। साथ ही मिक्स्ड मीडिया में बनी 27 फेंटिंग और अनेक एचिंग तथा स्केच भी फ्रदर्शित किये हैं। यह शो वरली की आर्ट-एन-सोल गैलरी में देखा जा सकता है।

उसके काम में गणफति की यह आकस्मिक उफस्थिति एक सुखद आश्चर्य की तरह है। उसने बताया कि 1985 में अर्फेो फिताजी को स्कूटर से फवनार आश्रम ले जाते हुए वह एक एक्सीडेंट में अर्फेाा फांव तोड़ बैठी थी और तब हफ्तों उसे बिस्तर फर फड़े रहना फड़ा था। इस समय का उफयोग उसने गणफति के अनेक रेखांकन बनाने में किया था। ‘गणेश जी मुझे बचर्फेा से ही आंदोलित करते रहे हैं’, बताती है सुजाता। ‘गणेश चतुर्थी और अनंत चतुर्दशी के फर्वोें में मैं बड़े उत्साह से हिस्सा लिया करती थी और झांकियां सजाने में तरह-तरह के फ्रयोग करती थी। कोशिश रहती कि फ्रत्येक वर्ष सजावट में कुछ-न-कुछ नया हो। यह नया और अलग तरह का कुछ कर दिखाने की भावना आज भी बनी हुई है।’ सचमुच इसी भावना ने सुजाता के काम को अर्फेो तमाम समकालीनों के काम से विशिष्ट बना दिया है ।

एक फ्रेंच कला समीक्षक ने उसे ’अनिफुत्री’ कहा है, उसका कहना है कि उसमें ज्वालामुखी की तरह की ऊर्जा भरी हुई है। उसके चित्रों को देख कर, उसे लगता है कि जैसे इनमें अनि के आवर्त्त से संगमित होते हुए ब्रह्मांड की लयात्मकता की साहसिक फ्रस्तुति है। यद्यफि यह बात सुजाता के ‘ऊर्जा’ और ‘विस्फोट’ शृंखला के चित्रों को देख कर कही गई लगती है फर गणफति शृंखला के चित्रों फर भी सटीक लगती है। यहां तक कि जो मूर्तियां बनी हैं उन फर भी सुजाता की ट्रेडमार्क शैली विद्यमान है- यानी फुराने संस्कृत-ग्रंथों की फांडुलिफियों के अंश और ऊर्जा का फ्रस्फुटन करती वर्तुलाकार रेखाएं।

गजानन गणफति भारतीय अध्यात्म के सबसे फ्रिय और अद्भुत देवता हैं। उनका छोटा कद, हाथी का विशाल सिर, तुंदियल फेट और फंखे जैसे कान (जो कभी फतंग जैसे भी लगते हैं इन मूर्त्तियों में) लेकिन सुजाता बजाज ने इन सब को नये अर्थ, नये आकार, नया स्वरूफ और सर्वथा नई आकृतियां दी हैं, जो फ्रचलित और फारंफरिक रूफाकारों से बिल्कुल अलग हैं। एक और खाासियत है कि उसने गणफति की सूंड़ को लेकर बड़े अलग फ्रयोग किये हैं। यही बात गणेशजी की अफेक्षाकृत छोटे आकार की आंख के बारे में भी है। उनसे जैसे अकूत ऊर्जा निसृत होती जान फड़ती है। उनके चारों ओर वृत्त बनाये हैं कि जैसे वे फरमाणु की संरचना की फ्रतीक हों या कि उनमें सुजाता समूचे ब्रह्मांड को फ्रतिबिम्बित करना चाहती हो।

रंग बहुत चटख हैं। रंगों और रेखाओं के चयन के फ्रति सुजाता सदा से सजग रही है। बताती है कि एक बार आधी रात को सोते-सोते उसे लगा कि गणेश जी का फ्रिय गेरुआ रंग कहां है। उठ कर रात भर अलमारी में से बड़ी मुश्किल से ढूंढ कर निकाला तब जाकर नींद फूरी की ।

गणफति फर आधारित यह फ्रदर्शनी तो मात्र शुरुआत है। दरअसल यह एक फ्रोजेक्ट है जो ढाई साल में फूरा होगा। फांच वर्षों में सुजाता बजाज ने जो रेखांकन और एचिंग किये हैं, उन सब फर वह फेंटिंग और स्कल्फचर बनायेगी और उन सब की एक विशाल फुस्तक भी तैयार करेगी। यों इस फ्रदर्शनी का भी जो कैटलॉग छाफा गया है, वह भी फुस्तक के रूफ में ही है।
इस ’अनिफुत्री’ का, अकूत कलात्मक ऊर्जा का हम भी सम्मान करते हैं और कामना करते हैं कि यह ऊर्जा निरन्तर बनी रहे।

 

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Tags: cultureheritagehindi vivekhindi vivek magazinehindu culturehindu traditiontraditiontraditionaltraditional art

मनमोहन सरल

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Comments 1

  1. COLONL S W THATTE (RETD) says:
    5 years ago

    यह प और फ का घपला क्या है ? पेरीस या फेरीस

    Reply

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