हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
सेवाव्रती  मनसुखभाई

सेवाव्रती मनसुखभाई

by हिंदी विवेक
in मई-२०१२, व्यक्तित्व
0

जन सेवा के विभिन्न कार्यों से जुड़े मनसुखभाई गगलाणी उर्फ बिस्कुट काका वनवासी कन्याओं के सामूहिक विवाह भी करवाते हैं।

मनसुखभाई कहते हैं, ‘समृध्द लोगों को गरीबों की सहायता करनी चाहिए तथा समाज के कमजोर तबकों के लिए कुछ न कुछ अवश्य करना चाहिए। इस दिशा में मुझ से जो बन सकता है वे सारे यत्न मैं करता हूं।’

मनसुखभाई 80 साल के हो चुके हैं, लेकिन विविध सामाजिक कार्यों में उनका उत्साह देखते ही बनता है। पिछले 25 वर्षों से वे इस कार्य में जुटे हैं। वे वृध्दाश्रमों की सहायता तो करते ही हैं, वनवासी कन्याओं के सामूहिक विवाह भी करवाते हैं। उन्होंने जनसेवा का व्रत ही ले लिया है। वे केवल बातें ही नहीं करते, प्रत्यक्ष कार्य में पूरी लगन से लगे रहते हैं। वे दुर्बल और गरीब लोगों में बिस्कुट बांटते रहे हैं इसलिए लोग उन्हें ‘बिस्कुटवाले काका’ के नाम से जानते हैं।

मनसुखभाई का कहना है कि लोग ज्यादा पढ़लिखकर नौकरी करते हैं, जबकि कम पढ़े‡लखे लोग धंधा करते हैं। वे बताते हैं, ‘जब मैं मुंबई आया तब बड़े भाई के खेतवाड़ी स्थित मोमबत्ती बनाने के कारखाने में काम करने लगा। 1971 में अपना कारखाना शुरू किया। अब मेरा बेटा इस व्यवसाय को सम्हालता है। साकीनाका इलाके में हमारा मोमबत्ती कारखाना है। इसके अलावा मालाड़ में इमिटेशन ज्वेलरी की दुकान भी है। कभी मन हुआ तो दुकान पर जाता हूं। वैसे मेरा सारा समय लोकसेवा में व्यतीत होता है। यही मेरा संतोष और यही मेरा सुख है।’

समाज सेवा कार्य में कैसे और कब से जुड़े इस प्रश्न पर मनसुखभाई कहते हैं, ‘शुरू में मैं वसई, विरार, नालासोपारा में जाकर गरीबों को हर संक्रांति पर तिलगुड के लड्डू, कुरमुरे के लड्डू, बिस्कुट और चॉकलेट बांटता था। इसमें मुझे खुशी और संतोष मिलता। धीरे‡धीरे लोग मेरे कार्य को जानने लगे। दाता और सेवा करने के इच्छुक मेरे साथ जुड़ते गए। काम का विस्तार बढ़ता गया। पिछले 25 सालों से यह सेवाकार्य मैं कर रहा हूं। लेने वाला हो या देने वाला किसी से किंचित भी कोई अपेक्षा नहीं रखता। मैं अपने काम से मतलब रखता हूं। मुझे किसी से कुछ भी नहीं चाहिए। मेरे पास भगवान का दिया पर्याप्त है। बस एक ही इच्छा है कि मेरे काम से समाज में जागृति आए। जिनका नाम है, जिनके पास पैसा है वे आगे आए। यदि वे गरीब और दुर्बलों की सहायता करेंगे तो मैं अपने लक्ष्य में सफल रहा ऐसा समझूंगा।’

‘मेरा कार्य यहीं तक सीमित नहीं है’, मनसुखभाई कहते हैं, ‘1980 से मैं मुंबई के वसई, विरार के निकट स्थित विक्रमगढृ, मोखाड़ा और वाड़ा जैसे गांवों में जाता रहता हूं। यहां के आश्रमों व आश्रमवासियों के लिए काम करना मुझे अच्छा लगता है। मैं उनसे मिलने लगातार जाता रहता हूं। उनसे बातचीत करता हूं और पता लगाने की कोशिश करता हूं कि उन्हें क्या परेशानी है। मेरे पास हमेशा 200 पन्ने की कॉपी रहती है। उसमें मैं वहां के बच्चों की आवश्यकताओं और दिक्कतों को नोट करता हूं। बाद में मुझ से जो संभव हो वह सहायता देने का प्रयास करता हूं।’

‘वहां पर कुंआ खुदवाने से लेकर गरीब बच्चों को स्कूली वर्दी देने, उन्हें पेंसिल, रबर, बस्ता आदि शिक्षा साहित्य मुहैया करने और जहां कंप्यूटर की आवश्यकता हो वहां कंप्यूटर की व्यवस्था करने का काम करता हूं। इससे बच्चे खुश होते हैं, संतुष्ट होते हैं। लोगों को मेरे काम का पता चलता है और दान देने वाले खुद सामने आ जाते हैं। मैं उनको साथ चलने को कहता हूं। थोक भाव से चीजें खरीदता हूं, उसकी पक्की रसीद लेता हूं और सबूत के रूप में फोटो भी खिंचवाता हूं। नतीजा यह है कि दानदाताओं का मुझ पर इतना विश्वास हो गया है कि वे बिना मांगे ही मेरे पास आकर दान दे जाते हैं।’

मनसुखभाई की खास विशेषता यह है कि पिछले पांच वर्षों से वे वनवासी इलाके में वनवासी कन्याओं के सामूहिक विवाह का आयोजन करते हैं। इस अवसर पर दम्पतियों को घर की जरूरी वस्तुएं दी जाती है। इसके लिए उनके मित्र सहायता करते हैं। इस कार्य में कांदिवली के डॉ. पंकज शाह का भरपूर सहयोग मिलता है।

उन्होंने पहला ऐसा सामूहिक विवाह समारोह 5 मई 2011 को नायगांव के पास जूचंद्र गांव में स्थित चंडिका माता के मंदिर में आयोजित किया था। सामूहिक विवाह के दिन नवदम्पतियों को गृहोपयोगी 85 वस्तुएं भेंट में दी जाती हैं।

यह पूछने पर कि इस तरह के सामूहिक विवाह का विचार उनके मन में कैसे आया, मनसुखभाई ने बताया, ‘1987 में मैंने अपने दशा सारेठिया समाज में सामूहिक विवाह का आयोजन करना शुरू किया। इस तरह के पांच सामूहिक विवाह समारोह आयोजित किए। ऐसे विवाह करवाना बड़ी जिम्मेदारी और दौड़धूप वाला काम है। पैसे इकट्ठे करने होते हैं, दाताओं को मनाना पड़ता है, उपहार वस्तुएं लानी होती हैं। समाज में कुछ लोगों से कटु अनुभव भी मिले हैं। इसलिए मैंने यह काम करना बंद कर दिया है।’

बाद में 2006 से यही काम उन्होंने वनवासी गरीब परिवारों के लिए आरंभ किया। वनवासी परिवार गरीब होते हैं और उनके पास बेटी के विवाह के लिए पैसे नहीं होते। पिछले पांच वर्षों में प्रथम चार सामूहिक विवाहों में 99 कन्याओं के विवाह हुए हैं। इस बार वे 40 लड़कियों का एकसाथ कन्यादान करने वाले हैं। इस बार भोजन का खर्च बोरिवली के अंबाजी मंदिर के महंत बाबूजी महाराज उठा रहे हैं। यह समारोह 16 मई 2011 को आयोजित किया जा रहा है।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: hindi vivekhindi vivek magazinepersonapersonal growthpersonal trainingpersonalize

हिंदी विवेक

Next Post
भटके बच्चों की सेवा का यज्ञ

भटके बच्चों की सेवा का यज्ञ

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0