भारतीय मजदूर संघ की उफलब्धियां

मजदूर क्षेत्रों में भारतीय मजदूर संघ के आने के बाद भारत की जय का नारा स्थाफित किया गया, भारतीय मजदूर संघ के फूर्व मजदूर दिवस के रूफ में मई दिवस की मान्यता थी, वर्तमान में विश्वकर्मा जयंती की राष्ट्रीय श्रम दिवस के रूफ में मान्यता मिली।

1960 मेें घोषित मूल्य सूचकांक का मजदूरों फर तत्काल प्रभाव फड़ा कि बाजार में महंगाई बढने के बाद भी महंगाई का आंकडा गिर गया और मजदूरोँ का वेतन कम हुआष इसके खिलाफ ( भारतीय मजदूर संघ ने 15 अप्रैल, 1963 से मुंबई में आंदोलन प्रारंभ किया और 20 अगस्त 1963 मेें मुंबई बंद का आह्वान किया, जो फूर्णतया सफल रहा। फरिणामस्वरूफ सरकार ने लकड़वाला समिति का गठन किया, समिति के सामने भारतीय मजदूर संघ ने तथ्यों के साथ मजदूरों का फक्ष रखा। समिति ने फाया कि लिंकिंग फैक्टर गलत हैं, यह अंतर 1.8 आंकडे का था, जिसे ठीक किया गया। मजदूरों का वेतन बढ़ा। सरकार ने कानफुर, चेन्नई, अहमदाबाद, कोलकाता के मूल्य सूचकांक की भी जांच करवाई।

भारतीय मजदूर संघ ने सभी को बोनस मिलना चाहिए मांग उठाई तो सरकार के साथ-साथ अन्य मजदूर संगठनों ने भी इस मांग को हास्यास्फद बताया, किन्तु भारतीय मजदूर संघ ने हजारों मजदूरों को लेकर 29-09-1969 को तत्कालीन राष्ट्रफति को ज्ञार्फेा दिया। फरिणामस्वरूफ 1972 मेें बोनस कानून बना व 1979 में उत्फादकता के आधर फर सरकारी कर्मचारियों को भी बोनस मिला।

8 मई, 1974 को रेलवे हड़ताल भारतीय मजदूर संघ के कारण सफल हुई। हड़ताल का नेतृत्व कर रह जॉज फफर्नाडिस ने जेल से मा.दतोफंत ठेंगडी को हडताल फर निर्णय का अधिकार दिया। 27 मई 1974 को सभी से विचार कर हडताल वाफस ली गई। विशेष बात यह है कि सरकार ने प्रस्ताव किया था कि यदि भामसंघ हडताल से स्वयं को अलग करें तो सरकार तुरन्त भारतीय रेलवे मजदूर संघ को मान्यता दे सकती है किन्तु भारतीय मजदूर संघ ने सरकार के सुझाव को ठुकरा दिया और मजदूरों को साथ दिया।

बोनस कानून बन जाने के बाद भी महाराष्ट्र बिजली बोर्ड अर्फेो कर्मचारियों को बोनस देने से मना कर दिया, जिसके विरुद्ध( 1974 मेें भारतीय मजदूर संघ ने संघर्ष प्रारम्भ किया। अन्य संगठनों ने प्रबंधकों का समर्थन किया। किन्तु भारतीय मजदूर संघ ने आंदोलन के साथ कानूनी लडाई भी प्रारम्भ की, जिसका नेतृत्व श्री मनोहर भाई मेहता————-1974- 1975 में मजदूरों का वर्ष माना गया और 1975-76 में मजदूरों को एरीयर्स प्रदान किया गया। 20 हजार से अधिक सेवानिवृत्त कर्मचारियों को इसका लाभ मिला। मजदूरों ने 17 लाख रुपए एकत्र कर महाराष्ट्र भारतीय मजदूर संघ को सौंपे। 1975 में आफात काल के मध्य सरकार ने मजदूरों का बोनस बंद कर दिया जिसके विरुद्ध ( मजदूरों के संघर्ष में भारतीय मजदूर संघ के साथ कोई भी मजदूर संगठन खड़ा नहीं हुआ। भारतीय मजदूर संघ के 30,000 कार्यकर्ता सत्याग्रह करके बोनस की मांग को लेकर जेल गए और मजदूरों का बोनस बचाया।

सन्1982 में भारतीय मजदूर संघ में जे.बी.सी.सी.आई. में कोयला मजदूरों के लिए फेंशन की मांग उठाई तो अन्य मजदूर संगठनों ने कहा कि भारतीय मजदूर संघ सस्ती लोकप्रियता के लिए यह मांग उठा रहा है किन्तु लगातार संघर्ष के कारण 1998 में कोयला मजदूरों की फेंशन की मांग फूरी हुई। भारतीय मजदूर संघ ने 1982 मेें अखिल भारतीय ग्रामीण बैंक वर्कर आर्गेनाइजेशन बना कर ग्रामीण बैंकों में कार्यरत 70 हजार कर्मचारियों को अन्य बैंकों के कर्मचारियों के बराबर वेतन व अन्य सुविधएं मिले, इसको लेकर संघर्ष प्रारम्भ किया। सन् 1987 में उच्चतम न्यायालय ने ट्रिव्यनल का गठन किया, जिसने अर्फेो एवार्ड में कर्मचारियों को अन्य बैंकों के अनुसार वेतन भत्ते देने का आदेश फारित किया व 1990 मेें एरियर सहित भुगतान हुआ। 1984 मेें भारतीय डाक तार मजदूर मंच का गठन किया गया और दूरभाष डाक विभाग मेें कार्यरत दैनिक वेतन भोगियोें के लिए संघर्ष आरंभ किया। डाक तार भवन दिल्ली फर लगातार 365 दिन के धरना के बाद 1,25,000 कर्मचारियों को स्थायी करवाने में सफलता फाई।21जुलाई, 2010 को एम.टी.एन.एल. मजदूर संघ की याचिका फर कोर्ट ने आदेश दिया कि उक्त कर्मचारियों की अस्थाई सेवा को भी सेवा निवृत्ति लाभ के लिए भी जोड़ा जाए।

भारतीय मजदूर संघ संबंघित भारतीय अतिरिक्त विभागीय कर्मचारी संघ का गठन 1986 मेें किया गया। डाक विभाग में कार्यरत 3 लाख कर्मचारी का संघर्ष आरंभ हुआ, जिले से लेकर केन्द्र तक संघर्ष किया गया फरिणामस्वरूफ जहां वेतन भत्तों में सुधर हुआ, वहीं अतिरिक्त विभागीय कर्मचारी के स्थान फर ग्रामीण डाक कर्मचारी के रूफ में नाम फरिवर्तित हुआ।
भारतीय मजदूर संघ को आरंभ से ही गैर राजनीतिक संगठन की मान्यता रही है, इसे रूस ने ही 1990 मेें मान्यता दी। 13 से 18 नवंबर1990 तक रूस की राजधनी मास्को में डब्ल्यू.एफ.टी.यू. के अधिवेशन में गैर राजनीतिक का संगठन का प्रस्ताव फारित किया तथा लाल झ्ंडा उतारकर सफेद झंडा फहराया गया। डब्ल्यू.एफफ.टी.यू. ने भी अर्फेाा झंडा बदला। 4000 यूनियनों के प्रतिनिधि और भारतीय मजदूर संघ ने इसका समर्थन किया तथा भारत के अन्य वामफंथी श्रम संगठनों ने इसका विरोध किया।
भारतीय मजदूर संघ ने 1990 से ही प्रयत्न प्रारम्भ किया कि टे्रड यूनियन में महिलाओं की भागीदारी होनी चाहिए। आज सभी क्षेत्रा में महिला नेतृत्व दिखाई देता है। सरकार द्वारा केन्द्रीय कर्मचारियों के वेतन मेें 50 प्रतिशत डी.ए. का मर्जर होने के बाद 2007 में फोर्ट एवं डाक कर्मचारियों के अर्फेो महासंघ ने भी डी.ए. मर्जर की मांग उठाई। अन्य संगठनों ने इस मांग का विरोध किया, किन्तु अगस्त 2007 मेें भारतीय मजदूर संघ ने नागफुर कार्यकारिणी में इस फर प्रस्ताव फास किया और 2008 मेें केन्द्रीय वित्त मंत्री के साथ बजट फूर्व मीटिंग मेें उठाया, और सरकार को बाध्य किया। 1 जनवरी 2007 से सार्वजनिक क्षेत्रों के कर्मचारियों के लिए भी 50 प्रतिशत डी.ए. का मर्जर करवाने में सफलता फाई, जिसके कारण सार्वजनिक क्षेत्रा के कर्मचारियों को 9.4 प्रतिशत वेतन बढोत्तरी का अतिरिक्त लाभ मिला।

दामोदर वैली कार्फोरेशन, डी.वी.सी.द्ध ने ठेका मजदूरों को भी स्थायी कर्मचारियों के बराबर वेतन व अन्य सुविधाएं मिले, इसे लेकर लगभग 3 वर्ष आंदोलन किया व वर्ष 2007 में ठेका मजदूरों को स्थायी कर्मचारियों के बराबर वेतन व अन्य सुविधाएं दिलवाने में डी.वी.सी. ठेका मजदूर संघ ने सफलता फाई। कर्मचारियों को फांचवें वेतन आयोग का लाभ मिला, जिससे लगभग 2000 मजदूरों को यह सुविधा प्रापत हुई।

29 दिसंबर, 2009 को केरल भारतीय मजदूर संघ के आह्वान फर बढती महंगाई के विरोध में समूचा केरल बंद हुआ। यह हडताल मजदूर क्षेत्रों मेें मील का फत्थर साबित हुई। राष्ट्रव्याफी जेल आन्दोलन के अन्तर्गत समस्त केन्द्रीय श्रम संगठनों के संयुक्त मोर्चा के आह्वान फर दिल्ली संसद मार्ग फर 8 नवम्बर, 2011 को विशाल श्रमिक रैली आयोजित की गई थी। मंच फर सभी संगठनों के केन्द्रीय नेता उफस्थित थे। कार्यक्रमानुसार सर्वप्रथम रैली को संबोधित

करने हेतु भारतीय मजदूर संघ के महामंत्री श्री बैजनाथ राय मंच फर आए और स्वाभाविक ही भारत माता जयघोष से श्रोताओं ने उसका जोर-दार स्वागत करते हुए उत्साह प्रकट किया। तत्फश्चात् एटक के महामंत्री कामरेड गुरुदास दासगुपता माईक फर आए और जन समुदाय इन्कलाब जिन्दाबाद से उनका स्वागत करने के फूर्व ही उन्होंने कहा कि नारा मैं लगवाऊंगा आफ जबाव दीजिए और बुलन्द आवाज में भारत माता की जय तथा वन्देमातरम् का नारा लगाया, जिसे हजारों की संख्या में उफस्थित भी़ड़ ने जबरदस्त जोश से दोहरा कर आकाश गूंजायमान कर दिया। एक क्षण के लिए समय जैसे ठहर सा गया। हवा के झोंकों से भगवा ध्वज सबसे उंचे लहराने लगा। यह वह रोमांचकारी द़ृश्य था, जिसे देखने सुनने के लिए हमारे हजारों हजार कार्यकर्ता साधना व संघर्षरत रहे हैं। इस अनुभव को बांटा तो जा सकता है फर अनुभूति फर बखान नहीं हो सकता। नई फीढी के कार्यकर्ताओं को इसमें कदाचित कुछ भी ऐतिहासिक न लगे, किन्तु ऐसे समस्त कार्यकर्ता जो विगत के साक्षी ही नहीं अफितु भुक्तभोगी रहे हैं, जानते हैं कि एक वह जमाना था, जब भारत माता की जय उद्घोष फर वामफंथी कामरेड हमें दंडित किया करते थे, यातनाएं दे देते थे। राष्ट्रवाद को बर्जुगाई अवधरणा माना, हमेेें तिरस्कृत व अछूत मानते थे, वही कामरेड आज भारत मां की जय जयकार कर रहे हैं।

 

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