हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
मजदुरों के विषय में सरकार उदासीन -उदय पटवर्धन

मजदुरों के विषय में सरकार उदासीन -उदय पटवर्धन

by डॉ. दिनेश प्रताप सिंह
in जुलाई -२०१२, साक्षात्कार
0

(भारतीय मजदूर संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री उदयराव पटवर्धन अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन- आई.एस.ओ.की वार्षिक महासभा में भाग लेकर जेनेवा से लौटे हैं। भारतीय मजदूरों के प्रतिनिधि के रूप में उन्होंने विश्वमंच पर देश के मजदूरों के विभिन्न मुद्दों को उठाया हैं। देश के मजदूरों की समस्याओं, सरकारी नीतियों और भारतीय मजदूर संघ के कार्यों पर उनसे विस्तार से की गयी दिनेश प्रताप सिंह की बातचीत)

हाल ही में आप जेनेवा (स्वीरजरलैण्ड) में आयोजित आई.एस.वो. की 101 वीं अन्तरराष्ट्रीय श्रम परिषद मे भाग लेकर लौटे हैं। वहाँ आपके साथ और कौन लोग गये थे?

भारत के मजदूरों का प्रतिनिधित्व करने के लिए मेरे नेतृत्व में नौ सदस्यीय दल जेनेवा गया था। मैं उसका डेलीगेट (प्रतिनिधि) तथा अन्य आठ सलाहकार थें, जिनमें भारतीय मजदूर संघ के राष्ट्रीय सचिव श्री वृजेश कुमार इंटक के अध्यक्ष, डॉ. जी. संजीव रेड्डी, इंटक के उपाध्यक्ष श्री एन. एम. अदयन्थैया, आयटक के महामंत्री श्री कनम राजेन्द्रन, हिन्द मजदूर सभा के उपाध्यक्ष श्री थम्पन थामस, सीटू की राष्ट्रीय सचिव श्रीमती कांडीकुप्पा हेमलता, एआईयूटीयूसी के महामंत्री श्री पी.शंकर शहा और लेबर प्रोग्रेसिव फेडेरेशन के महामंत्री श्री एम. षडमुगम थे। यह सम्मेलन 29 मई से 14 जून, 2012 तक आयोजित किया गया था।

इस अन्तरराष्ट्रीय परिषद में किन मुद्दों पर विशेष रूप से चर्चां हुयी और भारतीय मजदूरों के प्रतिनिधि के रूप में आपने कौन से मुद्दे वहाँ पर उठाया?

विषय की द़ृष्टि से यह सम्मेलन बहुत महत्वपूर्ण रहा। अपने भाषण के द्वारा मैंने देश के ठेका मजदूरों, घरेलू मजदूरों की समस्याओं की ओर सबका ध्यान आकर्षित किया। ठेका मजदूरों द्वारा 12 घण्टे तक काम कराना और बहुत कम सुविधाएं और न्यूनतम मजदूरी देना विचार करने का विषय है। भारतीय मजदूर संघ द्वारा दुनिया में सर्व प्रथम वर्ष 1965 में घरेलू कामगारों की यूनियन खड़ी की गयी, यह गर्व की बात रही। दक्षिण एशिया के अफगानिस्तान, लंका मे अशान्ति का प्रभाव भारतीय मजदूरों पर पड़ रहा है, इसे भी उठाया। देश के 510 मिलियम मजदूरों के लिए बने कानून को लागू कराने हेतु आईएलओ से अपील भी की है।

ऐसे मुद्दों को भारतीय मजदूर संघ ने देश की सरकार के सामने भी उठाया होगा। तो सरकार का कैसा रवैया रहता है?
सबसे बडी समस्या यह है कि मजदूरों के मामले में इस सरकार का रवैया बहुत उपेक्षापूर्ण और लाचारी का है। अपने कथन को स्पष्ट करने के लिए एक उदाहरण देना चाहूँगा। वर्ष 2006 में केन्द्रीय श्रम संगठनों के प्रतिनिधियों ने प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से भेंट करके कुछ विषय उठाये थे। उसके बाद त्रिदलीय उच्च अधिकार प्राप्त समिति का गठन किया गया। समिति ने अपनी रिपोर्ट वर्ष 2008 में सरकार को सौंप दिया। किन्तु उसके आधार पर अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है। देश के मजदूर अभी भी प्रतीक्षा कर रहे हैं।

क्या आप सरकार के लम्बित कुछ माँगों का उल्लेख करेंगे?

देश भर में फैले ठेका (कांट्रैक्ट) मजदूरों के कुछ मुद्दों और विषयों पर सरकार, उद्योगपति (ठेकेदार) और मजदूर संगठन-तीनों एक मत बना था, जो ठेका मजदूरों को कुछ सहूलतें ढेने से जुड़ा था। जिन मुद्दों पर सहमति बन गयी थी, दो वर्ष से ऊपर हो गये, सरकार की ओर से कोई कदम नहीं उठाया गया। ऐसे ही अन्य उद्योग के मजदूरों के मामले में भी सरकार का व्यवहार रहता है।

भारतीय मजदूर संघ आर्थिक विषय से जुड़ी समस्यायों अन्य माध्यमों से भी उठा सकता है।
शासन द्वारा उपलब्ध कराये गये हर मंच से हम अपनी बात उठाते हैं। सरकार उचित मंचों को तो पहले उपलब्ध ही नहीं कराती, यदि हमने अपने मुद्दे उठाये भी तो सरकार उसे गम्भीरता से लेती नहीं। हमने कोयला मजदूरों के लिए एक नियामक प्राधिकरण (रेग्यूलेटरी अथार्टी) का गठन करने की माँग की, कुछ नहीं हुआ। इसी तरह चीनी, कागज, कपड़ा उद्योग, परिवहन, इंजीनियरिंग मजदूरों के लिए नियमित वेतन बोर्ड बनाने की मांग की, वह भी नहीं किया गया। पत्रकारों और अन्य के लिए ‘मजीठिया आयोग’ बनाया गया। उसकी संस्तुतियों को मानने के बाद भी लागू नहीं किया जाया। वस्तुत: सरकारी मंच मजदूरों को सुविधायें प्रदान करने के बजाय उनकों उत्पीड़ित करने के माध्यम बन गये हैं।

देेश के मजदूरों की समस्याओं को लेकर भारतीय मजदूर संघ ने दिल्ली में 23 नवम्बर, 2011 को विशाल प्रदर्शन किया था और इस साल 28 फरवरी को औद्योगिक हड़ताल की थी। उसमें प्रमुख मांगे क्या थीं?

23 नवम्बर, 2011 की रैली संगठित और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की 14 मांगों को लेकर की गयी थी। आज संगठित क्षेत्र की प्रमुख समस्या बड़े पैमाने पर संगठित क्षेत्र के काम को असंगठित क्षेत्र में स्थानान्तरित करने की है। वहाँ नी अधिकांश कार्य ठेकेदारों से कराया जाने लगा हैं। सन 1991 में उदारीकरण से पूर्व देश 8% संगठित और 92% असंगठित मजदूर थे। बीस वर्षों मे पश्चात संगठित क्षेत्र में केवल 6% और असंगठित क्षेत्र में 94% मजदूर है। यह जो 2% प्रतिशत संगठित मजदूरों की संख्या घटी है, यह चौंकाने वाली स्थिति है। इसका अर्थ हुआ लगभग दो करोड़ सरकारी और अन्य संगठित क्षेत्र की नौकरियाँ ठेकेदारों के हाथ में चली गयीं। संगठित क्षेत्र की एक और बड़ी समस्या है, सरकार द्वारा श्रम कानूनों को लागू, न किया जाना। इससे बड़ा नुकसान हो रहा है।

असंगठित क्षेत्र की अलग समस्यायें है। सामाजिक सुरक्षा कानून सन् 2008 में पारित हुआ, किन्तु सरकार ने अब तक उसे ठंडे बस्ते में डाल रखा है। परिणामस्वरूप देश के 43 करोड़ असंगठित मजदूर इस कानून से होनेवाले लाभ से वंचित है। सन् 1948 वास्तविक वेतन समिति गठित की गयी थी। उसका सुझाव था कि पूरे देश में न्यूनतम् वेतन के स्थान पर वास्तविक वेतन दिया जाना चाहिए, किन्तु लगभग 64 वर्ष बीत जाने पर यह कानून पूरी तरह से लागू नहीं किया जा सका। भारतीय मजदूर संघ अपनी स्थापना के समय से ही इस मुद्दे को उठाता रहा है। यदि सरकार कान में तेल डालकर बैठी है तो हमारी जिम्मेदारी है कि समय-समय पर उसे झकझोरते रहें।

28 फरवरी की राष्ट्रीय स्तर पर औद्योगिक हड़ताल अपनी मांगों को लेकर शुरू होने वाली लम्बी लड़ाई का एक संकेत था। इसे शुरुआत भी कह सकते हैं।

जलगाँव के अधिवेशन में भारतीय मजदूर संघ ने ‘चलो गाँव की ओर’ का नारा दिया है। इसका क्या आशय है?

देश में बदलती आर्थिक और औद्योगिक नीति के कारण रोजगार के अवसर ग्रामीण भाग में बढ़ रहे हैं। शहरी मजदूर अब गाँव की लौट रहा है। मनरेगा, आशा, शिक्षामित्र, गाँवमित्र, आंगनबाड़ी, मिड डे मिल, सफाई कर्मचारी भवन निर्माण में लगे मजदूर इत्यादि की बहुत बड़ी संख्या अब गाँवों में है। इनके अलावा विश्वकर्मा सेक्टर-लोहार, बढ़ई, ठठेर, बुनकर, कालीन बुनकर, जुलाहा, रंगरेज, धोबी, नाई, बाबर्ची, मोची, दुकानों में काम करने वाले, घरेलू मजदूर, दर्जी, रेहड़ी लगाने वाले, खेतिहर मजदूर, आरामशीन पर काम करने वाले, मस्टर रोल पर ठेकेदारों के यहाँ काम करने वाले पहले से ही वहाँ विद्यमान हैं। इतनी बड़ी संख्या में होने के बावजूद इनका कोई व्यवस्थित संगठन नहीं है। ये मजदूर कानूनी और सरकारी सुविधाओं से वंचित है। ग्राम प्रधान, सेक्रेटरी से लेकर ऊपर तक सभी इनका शोषण कर रहे हैं। भारतीय मजदूर संघ ने इन्हीं के बीच में जाकर, इनका मजबूत संगठन खड़ा करके, उन्हें उनका अधिकार दिलाने के लिए गाँव की ओर बढ़ने का नारा दिया है। हम पूरे देश में जल्दी ही बड़ा अखिल भारतीय महासंघ खड़ा कर लेंगे।

भारतीय मजदूर संघ एक करोड से अधिक सदस्य संख्या के साथ देश का सबसे बड़ा मजदूर संगठन है जिस राष्ट्रवादी विचारधारा को लेकर उसकी स्थापना की गई थी; भारतीय मजदूर आन्दोलन उसका कितना प्रभाव पडा है?

आज देश का हर मजदूर, वह चाहे जिस संगठन से जुड़ा हुआ हो, राष्ट्र भावना से ओत-प्रोत है। पहले मजदूर संगठनों में समाजवादियों का बोलबाला था। वे इंकलाब की बातें करते थे। क्रान्ति की बाते करते थे। पिछले दो दशक से उनके विचारों और कार्यों में बदलाव नजर आने लगा है। बड़े भाई के समय में जिस भारत माता की जय के उद्घोष को लेकर समाजवादियों मे विभाजन तक हो गया था, वे संयुक्त मंच स्वयं ‘भारतमाता की जय’ का नारा लगाते हैं। अब उनकी सोच में भी देश के प्रति समर्पण की भावना जागने लगी। यह एक बड़ा वैचारिक बदलाव है। दूसरे पहले मजदूर संगठन केवल मजदूरों के वेतन-भत्ते, सुविधा के लिए आन्दोलन करते थे, अब वे भारतीय मजदूर संघ् के नेतृत्व में मंहगाई, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, नक्सलवाद, काला धन जैसे सामाजीक मुद्दों पर भी आन्दोलन में शामिल होने लगे। ‘विश्वकर्मा जयन्ती का कार्यक्रम सभी क्षेत्रों में मनाया जाने लगा है, वहाँ यूनियन चाहे जिसकी हो। यह तब परिवर्तन भारतीय मजदूर संघ के कारण ही आया है।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: hindi vivekhindi vivek magazinenational organization of bank workersNOBW

डॉ. दिनेश प्रताप सिंह

Next Post
भामसंघ- महाराष्ट्र प्रदेश का व्हिजन डाक्युमेंट

भामसंघ- महाराष्ट्र प्रदेश का व्हिजन डाक्युमेंट

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0