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प्रणब मुखर्जी बने 13 वें राष्ट्रपति

प्रणब मुखर्जी बने 13 वें राष्ट्रपति

by विशेष प्रतिनिधि
in सामाजिक, सितंबर- २०१२
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संवैधानिक रूप से देश के सर्वोच्च पद, राष्ट्रपति के चुनाव का यज्ञ जुलाई माह में पूरा हो गया । लगभग चार दशक की सक्रिय राजनीति के बाद प्रणब मुखर्जी भारत के 13वें राष्ट्रपति बन गये। उन्होंने 25 जुलाई को शपथ ग्रहण करने के साथ ही अपना कार्यभार संभाल लिया। वैसे तो संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) द्वारा प्रणब मुखर्जी का नाम राष्ट्रपति पद के लिए घोषित करने के साथ ही उनकी जीत सुनिश्चित हो गयी थी, उनके विरोध में पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पी. ए. संगमा आदिवासी अस्मिता के नाम पर चुनाव मैदान में उतरे थे, उन्हें भारतीय जनता पार्टी का समर्थन प्राप्त था।

यद्यपि जानकार यह पहले से ही मानकर चल रहे थे कि प्रणब मुखर्जी को 65 प्रतिशत मत प्राप्त होंगे, जबकि जीत के लिए 51 प्रतिशत मतों की जरूरत थी। चुनाव में प्रणब मुखर्जी को 69 प्रतिशत तथा पी. ए. संगमा को 31 प्रतिशत मत मिले। कुल 10, 47, 971 मतों में से प्रणब मुखर्जी को 7, 13, 763 और पी. ए. संगमा को 3, 15, 987 मत मिले। 81 मत अमान्य करार दिये गये। इनमें समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव का रद्द किया गया मत शामिल नहीं है। इस तरह कुल मान्य 4,578 मतों का मूल्य अप्रत्यक्ष समानुपातिक प्रतिनिधित्व के अंतर्गत एकल हस्तांतरणीय मत प्रणाली के अनुसार 10, 47, 971 था।

इस बार राष्ट्रपति का चुनाव कई मामलों में दिलचस्प रहा। संयुक्त, प्रगतिशील गठबंधन और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन दोनों में ही दरारें साफ तौर पर दिखायी दीं। जहां संप्रग के सहयोगी अंतिम समय तक प्रणब मुखर्जी की उम्मीदवारी को लेकर उहापोह की स्थिति में रहे, यही राजग से अलग होकर जनता दल (यूनाइटेड) और शिवसेना ने संप्रग उम्मीदवार का समर्थन किया। प्रणब मुखर्जी की जीत पहले से ही तय मानी जा रही थी। भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह कहते हैं कि भले ही प्रणब मुखर्जी की जीत तय हो गयी थी, किंतु मैदान खली छोड़ना ठीक नहीं था। इसलिए पी. ए. संगमा का समर्थन किया गया। प्रणब मुखर्जी की जीत पर पी. ए. संगमा ने उन्हें बधाई दी है, किन्तु उन्होंने चुनावी प्रक्रिया पर सवाल भी खड़े किये। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति के चुनाव में भी आचार संहिता लागू होनी चाहिए। इस चुनाव के दौरान राज्यों को जिस तरफ ‘पैकज’ दिये गये, वह गलत है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था।

राष्ट्रपति और उनके कार्यकाल

1) डा. राजेन्द्र प्रसाद (24.1.1950-15.5.1962)
2) डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (15.5.1962-12.5.1967)
3) डा. जाकिर हुसैन (13.5.1967-3.5.1969)
4) वाराह गिरी वेंकट गिरि (28.8.1969-24.8.1974)
5) फखरुद्दीन अली अहमद (24.8.1974-11.2.1974)
6) नीलम संजीव रेड्डी (25.7.1977-25.7.1982)
7) ज्ञानी जैल सिंह (25.7.1982-25.7.1987)
8) रामास्वामी वेंकट रामण (25.7.1987-25.8.1992)
9) डा. शंकर दयाल शर्मा (25.7.1992-25.7.1997)
10) के. आर. नारायणन (25.7.1997-25.7.2002)
11) डा. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम (25.7.2002-23.7.2007)
12) श्रीमती प्रतिभा पाटील (25.7.2007-25.7.2012)
13) प्रणब मुखर्जी (25.7.2012 को कार्यभार संभाला)

भारत में राष्ट्रपति का पद शोभा का माना जाता रहा है। संविधान के अनुसार मंत्रिमंडल की सलाह पर राष्ट्रपति कार्य करते हैं। वे मंत्रिमंडल के निर्णय से बंधे हुए होते हैं। किन्तु यदि राष्ट्रपति मंत्रिमंडल के किसी निर्णय से सहमत नहीं हों, तो वे विचारार्थ उसे वापस मंत्रिमंडल के पास भेज सकते हैंं, या उस पर सरकार द्वारा स्पष्टीकरण मांग सकते हैं। दोनों ही स्थितियां सरकार के लिए मुश्किल होती है। ज्ञानी जैल सिंह ने राजीव गांधी के डाक विधेयक को पुनर्विचार के लिए वापस भेज दिया था। इसी तरह से यह भी परंपरा रही है कि राष्ट्रपति हमेशा राष्ट्रपति भवन में रहते हुए ही अपने कर्तव्यों और दायित्वों का पालन करते हैं। डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम इसके अपवाद रहे हैं, वे अपने पूरे कार्यकाल में देश भर में भ्रमण करते हुए युवाओं और बच्चों से भेंट करते रहे। अनेक संस्थाओं के कार्यक्रमों में शामिल होते रहे। अब देखना यह है कि प्रणब मुखर्जी किस भूमिका में रहते हैं। वे ‘रबर स्टैंप’ ही बने रहे थे या देश के सर्वोच्च पद की गरिमा की अनुरूप अपने कर्तव्य का पालन करेंगे।

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यहां संसदीय प्रणाली अपनायी गयी है। शासन की सारी शक्तियां मंत्रि परिषद में ही निहित हैं। उसका निर्णय ही अंतिम होता है। किन्तु जब देश में संवैधानिक संकट खड़ा हो जाए तो राष्ट्रपति को अपने विवेक से काम करना होता है। पूर्व राष्ट्रपति वेंकट रमण ने कहा था कि राष्ट्रपति ‘इमरजेंसी लाइट’ की तरह होता है। वह संकट काल में सक्रिय होता है। केन्द्र सरकार में रहते हुए प्रणब मुखर्जी संप्रग के संकटमोचक की भूमिका में थे। राष्ट्रपति के रूप में वे अपने कर्तव्य का पालन दल गत भावना से ऊपर उठकर करें, यही देश के लिए हितकर होगा।

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