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घर खरीदते समय बरतें सावधानियां

घर खरीदते समय बरतें सावधानियां

by डॉ. रविराज अहिरराव
in सामाजिक, सितंबर- २०१२
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हम सबके मन में इच्छा होती है कि अपना एक सुंदर घर हो। अपने जीवन में अनेक कष्ट सहन करके भी हम अपने बच्चों के सुखमय भविष्य के लिए घर खरीदते हैं। कभी-कभी इसमें ही पूरी पूंजी लग जाती है। अपनी पसंद से खूब सोच-विचार करके घर खरीदने पर भी, बहुत बार चूक हो जाती है, इसलिए घर खरीदते समय कुछ सावधानियां बरतनी आवश्यक होती हैं। इनमें से कुछ यहां पर दी जा रही है-

पिछले कुछ वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं में अत्यंत मनमोहक आवासीय परिसर के आकर्षक विज्ञापन खूब प्रकाशित किये जा रहे हैं। ये आवासीय परिसर बहुत बड़े-बड़े होते हैंं, इनके विज्ञापन आपका मन मोहने वाले शब्दों से भरे होते हैं। वर्णन ऐसा किया जाता है कि एक बार जाकर प्रत्यक्ष रूप से देखने की इच्छा होती है, वहां जाकर कई बार आप शब्द जाल में फंस जाते हैं, इससे सावधान रहना चाहिए।

प्राचीन भारतीय वास्तुशास्त्र आज पूरे विश्व में मान्यता प्राप्त कर रहा है। इस वास्तुशास्त्र के अनुरूप भवन नहीं बन रहा होता है तो घर खरीदने के उपरांत और कभी-कभी पहले ही अपना घर होने का स्वप्न भंग हो जाना निश्चित है, इसलिए उसी घर को खरीदने का निश्चय कीजिए,जो वास्तुशास्त्र के अनुरूप बन रहा हो।

अब यही देखिये! भवन परिसर बड़ा हो या छोटा हो, यदि उसके दक्षिण, आग्नेय, नैऋत्य, पश्चिम और वायव्य दिशा में कोई नदी, नाला, जलाशय जैसा जल प्रवाह हो, तो उसमें सावधानी से शामिल हों, क्योंकि ऐसा होना आप और आपके परिवार के लिए घातक होता है, ऐसे प्रकल्प के बीच में ही रुकने या ध्वस्त होने का भय रहता है।

भवन परिसर चाहे जैसा भी हो, वहां पर भूमिगत पानी की टंकी और तरणताल (स्वीमिंग पूल) यदि ऊपर दी गई दिशा में आते हों, तो ऐसा मकान लेने का निर्णय टाल देना चाहिए। परिवार और रिश्तेदारों के लिए यही सुखदायी होगा। विज्ञापनों में आज अनेक प्रकल्प ‘मेगा प्रकल्प’ के रूप में प्रचार किए जाते हैं। इन मेगा प्रकल्पों की शुरुआत यदि उत्तर, पूर्व अथवा ईशान्य भाग से की जाती है, तो वह प्रकल्प कभी-भी समय पर पूरा नहीं होगा। वास्तुशास्त्र के अनुसार ऐसे भवन कच्छप गति से पूरे होते हैं। जिस भवन में घर खरीदने की इच्छा हो उसको समय निकालकर स्वयं जाकर देख लेना चाहिए, उस भवन के पास पहुंचकर आपके मन में प्रसन्नता एवं आह्लाद उत्पन्न होना चाहिए। यदि मन में प्रसन्नता नहीं उत्पन्न होती और वहां से तुरंत चले जाने का मन होता है, तो वह घर चाहे जितना आकर्षक एवं मनभावन हो, उसे खरीदने की इच्छा त्याग देनी चाहिए, क्योंकि ऐसे घर में कभी भी पारिवारिक सुख और समृद्धि नहीं मिल सकती है, इसलिए ऐसे प्रकल्प के विषय में स्वयं अच्छी तरह गंभीरता से विचार करना चाहिए।

आजकल इमारत के विषय में एक नया फैशन दिखायी देने लगा है। ये इमारतें आड़ी-तिरछी अलग-अलग ढंग एवं डिजाइन की होती हैं। आधुनिक भाषा एवं शब्दों के मोहजाल में इन्हें ‘एलिवेशन’ कहा जाता है। इमारत की डिजाइन जितनी टेड़ी-मेढ़ी होती है, उसमें वास्तुदोष उतना ही अधिक होता है। यद्यपि इस तरह की इमारत की प्रशंसा की जाती है। भवन के कलात्मक होने की अपेक्षा उसका वास्तुशास्त्र की दृष्टि से निर्दोष होना महत्वपूर्ण है।

महाराष्ट्र में इन दिनों हिल स्टेशन बनाकर उसमें गृह संकुल तैयार करने और घरों को ऊँची दर पर बेचने का नया चलन शुरू हो गया है। जहां कहीं भी पहाड़ी या पर्वतीय भाग है, वहां ऐसे हिल स्टेशन बनाये जा रहे हैं, ऐसे प्रकल्पों मे अधिकांशत: चारों ओर पहाड़ी और मध्य में बड़ा जलाशय देखने को मिलता है। ऐसे प्रकल्प विवाद उत्पन्न करने वाले होते हैं।

एक बात अवश्य ध्यान में रखें कि ऐसे अनेक उदाहरण हमें महाभारत काल से ही मिलते हैं। ऐसे भवन निर्माता और उसके खरीददार दोनों को ही बड़े संकट का सामना करना पड़ता है। ऐसे प्रकल्पों में बड़े वाद-विवाद और बखेड़े खड़े हो जाते हैं और उनका समाधान आसानी से नहीं हो पाता है। अनेक प्रकार के प्रलोभन और सब्जबाग दिखाने के बावजूद इनसे दूर रहना चाहिए। पसंद किये गये घर के पास यदि श्मशान, बड़ा अस्पताल, कारखाना, पुरानी बिल्डिंग या बहुत दिनों से बंद पड़ा घर हो तो उस घर को खरीदते समय बार-बार विचार करना चाहिए।

बहुत से भवन परिसरों में चारों ओर ऊँची-ऊँची इमारतें होती हैं और बीच में तरण-ताल की व्यवस्था होती है। प्रकल्प का मध्य भाग ब्रह्मस्थान होता है। ब्रह्मस्थान पर पानी होना गंभीर वास्तु दोष माना जाता है। चूंकि ऐसा प्रकल्प किसी एक व्यक्ति का नहीं होता है, इसलिए वहां पर निवास करने वाले सभी लोगों को भयंकर कष्ट होता है।

दो ऊँची इमारतों के बीच छोटी इमारत में अथवा गृह संकुल के उत्तर या पूर्व में स्थित इमारत में यदि घर ले रहे हों तो, उस पर कई बार विचार करें, क्योंकि ऐसी जगह पर घर लेना अच्छा परिणामदायक नहीं होता।

आजकल के विज्ञापनों में बताया जाता है कि नवनिर्मित ग्रह संकुल पूरी तरह से वास्तुशास्त्र के अनुरूप तैयार किये जा रहे हैं, ऐसी जगह पर जाकर पूछताछ करनी चाहिए कि इसका वास्तुशास्त्रज्ञ कौन है? उस वास्तुशास्त्री से भेंट करके पूरी तरह से संतुष्ट हो जाना चाहिए। यदि उस विशेषज्ञ से उल्टा-पल्टा या टाल-मटोल वाला उत्तर मिलता है या वह व्यक्ति संदेहास्पद लगता है, तो आप-हमसे कभी भी और कहीं भी संपर्क करके अपनी शंका का समाधान कर सकते हैं।

बहुत दिनों से ग्रह संकुलों के विज्ञापनों में गुप्त में टीवी, फर्नीचर, सोना-चांदी अथवा कार का आकर्षक प्रलोभन दिखाया जाता है। किंतु एक जगह भी ऐसा नहीं कहा जाता कि बिना कोई तोड़-फोड़ किये पूरी तरह से वास्तु मार्गदर्शन की सुविधा प्रदान की जायेगी।

किसी भी घर का चयन करते समय वास्तुशास्त्र की दृष्टि से नौ प्रमुख बिंदुओं पर ध्यान देना आवश्यक है। प्रवेश द्वार, सोने का कमरा, रसोईघर, बैठक, शौचालय, स्नानघर, मध्यभाग, पूजाघर और भंडार गृह। जिस घर में ये सब वास्तुशास्त्र के अनुरूप बने हों, उस घर को आंख मूंदकर ले लेना उत्तम होता है। वास्तु रविराज की ओर से अनेक निर्माण कार्यों के लिए बिना तोड़-फोड़ किये वास्तु दोष निवारण हेतु उपाय योजना सुझायी जाती है और ‘‘वास्तु रविराज वास्तुशास्त्र प्रमाण पत्र’’ दिये जाते हैंं, इसके लिए हमारे कार्यालय से किसी भी समय जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

जिन गृह संकुलों का आरेखन-नियोजन पूर्णत: वास्तु रविराज द्वारा किया जाता है, उन्हें भी ऐसा प्रमाण-पत्र दिया जाता है। यदि किसी ने पहले ही घर खरीद लिया है और इन वास्तुशास्त्रीय विशेषताओं की जानकारी उन्हें बाद में हुई, उन्हें चिंतित होने की जरूरत नहीं है। बिना किसी तोड़-फोड़ के वास्तुदोष निवारण की योजना से 95 प्रतिशत सकारात्मक परिवर्तन व लाभ हो सकता है।
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Tags: apartmentbuildinghindi vivekhindi vivek magazinehomehousereal estaterealty

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