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अमेरिका में गणेशोत्सव

अमेरिका में गणेशोत्सव

by आबासाहेब पटवारी
in अक्टूबर-२०१२, सामाजिक
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दुनिया भर के सभी देशों में भारत से गये हुये हिन्दू बसे हैं। वे जहाँ भी हैं, वहाँ देवी-देवताओं के मन्दिरों के साथ गणेश भगवान का मन्दिर अवश्य पाया जाता है। गणेश जी सबके घरों में प्रथम देव के रूप पूजे जाते हैं। अमेरिका के प्राय: सभी बड़े शहरों में श्री गणेश जी के मन्दिर बने हुए हैं, जहाँ वे भक्तों की पूजा स्वीकार करके उन्हें अनुग्रहित करते हैं।

अमेरिका में बना सर्वप्रथम मन्दिर भगवान श्री गणेश जी का है। उसके उपरांत धीरे-धीरे पूरा अमेरिका मन्दिरमय हो गया। वहाँ हिन्दू मन्दिरों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। यह संख्या पिछले दस वर्षों में दोगुनी हो गयी है। उदाहरण के लिए ह्यूश्टन शहर में हिन्दुस्तान के जितने भी सम्प्रदाय हैं, सबके मन्दिर बने हैं। तेरापंथी जैनों से लेकर चिन्मय मिशन तक और वर्तमान के स्वामी नारायण तक सबके मन्दिर हैं। वहाँ बड़ी उत्तम व्यवस्था है। भव्य, सुन्दर और सम्पन्न मन्दिर भक्तों से परिपूर्ण रहते हैं। त्योहारों पर भीड़ बढ़ जाती है। पिछली दीपावली के दिन स्वामीनारायण मन्दिर में लगभग ग्यारह हजार भारतीय एकत्र हुये थे। सबने पूजा, आरती और प्रार्थना के साथ ही सावधान की मुद्रा में खड़े होकर भारत का राष्ट्रगीत गाया था।

प्लशिंग नगर में अमेरिका में पहला हिन्दू मन्दिर बनवाया था। जो गणेश जी का मन्दिर है। दक्षिणी शैली में बना मन्दिर बहुत प्रसिद्ध है। ‘हिन्दू टेम्पल सोसाइटी ऑफ नार्थ अमेरिका’ संस्था द्वारा उसका रख-रखाव किया जाता है। सन् 1977 में वहाँ पहली बार गणेशोत्सव मनाया गया था। इस समय सबसे बड़े पैमाने पर गणेशोत्सव वहीं मनाया जाता है। यहाँ भारत में हम लोग केवल आरती करते हैं, जबकि वहाँ पर पचास हजार ‘लड्डू, मोदक, अन्न से परिपूर्ण पात्र’ तैयार किये जाते हैं। सैकड़ों किलो मोदक और मिठाई, हजारों लीटर गुलाबी रंग का स्वादिष्ट दूध और अन्य कई प्रकार के प्रसाद चढ़ाये जाते हैं। उत्सव के नौ दिनों में पच्चीस हजार से अधिक भक्त दर्शन का पुण्य प्राप्त करते हैं। प्रात: और सायंकाल की आरती के समय सबका उत्साह देखते बनता है। श्री गणेश के मूलमंत्र का चार लाख बार जाप किया जाता है। बच्चों के लिए पूजा का विशेष प्रबन्ध अलग सत्र में किया जाता है। श्री गणेश जी विराजित सुसज्जित रथ वहाँ के रास्तों पर भक्तों द्वारा खींचा जाता है। गाजे-बाजे के साथ पूरी भक्त मण्डली नृत्य-गान करती हुई मग्न हो जाती है। व्यवसायी गण अपने धर्म का पालन करते हुये पूरी आर्थिक सहायता करते हैं। भक्तों के लिए जल, खाद्य पदार्थ, सुवास्य पेय इत्यादि की उत्साहपूर्वक व्यवस्था करते हैं। मार्ग के दोनों तरफ दर्शनार्थियों की भीड़ जमा रहती है। हिन्दुओं के अलावा भी अन्य लोग, विशेषकर कोकेशियन समुदाय के लोग दर्शन करने के लिए आते हैं और मंत्र जाप तथा आरती में सहभागी होते हैं।

श्री गणेश जी की मूर्ति के समुद्र में विसर्जन का अमेरिका के भारतीयों का चिन्तन व तर्क ध्यान देने योग्य है। मिट्टी का मूर्ति को पानी में गलाकर घोलने के उपरान्त मूर्ति की ऊर्जा से पूर्ण उस पानी को समुद्र के जल में मिला देने पर वह जल बहता हुआ दुनिया भर में जायेगा और सम्पर्क में आने वाले प्राणियों का आशीर्वाद से कल्याण करेगा। कुछ स्थानों पर पर्यावरण की रक्षा को ध्यान में रखकर प्लास्टिक के कृत्रिम तालाब में मूर्ति का विसर्जन किया जाता है, बाद में वह जल प्रवाहित कर दिया जाता है। उत्सव के आयोजन में सक्रिय और उत्तरी अमेरिका की मन्दिर सोसाइटी के पूर्व अध्यक्ष डॉ. उमा म्हैसपुरकर का कथन उल्लेखनीय है। उन्होंने कहा कि हवा-पानी की परवाह न करते हुये लोग दूर-दूर से आये हुये लोग स्वयं को भूलकर इस उत्सव में सहभागी होते हैं। भारत की तरह अमेरिका के मन्दिर केवल पूजा-स्थल ही नहीं होते, अपितु ये समाज को इकट्ठा करने का माध्यम होते हैं। वे मन्दिर को अलग दृष्टिकोण से देखते हैं।

अमेरिका अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग संस्थाओं द्वारा गणेशोत्सव का आयोजन किया जाता है, इसलिए उनमें विविधता दिखायी देती है। अनेक मन्दिरों में हिन्दू स्वयंसेवक संघ का उल्लेखनीय योगदान रहता है। इसी तरह से तेलुगु बालाजी मन्दिर के गणेशोत्सव में तेलुगु समाज बड़ी संख्या में शामिल होता है। वहां का ‘फिलाडेल्फिया गणेश फेस्टिवल (पीजीएफ) खूब प्रसिद्ध है। यह संस्था पूर्णत: चन्दे द्वारा संचालित है। गणेशोत्सव वहां का सबसे बड़ा हिन्दू त्योहार है। अमेरिका के पेन्सिलवानिया में 2005 से गणेश उत्सव आयोजित किया जाता है। दस दिन तक चलने वाले इस समारोह में गीत-भजन, हिन्दी आर्केस्ट्रा, मराठी समाज के कार्यक्रम, साथ ही गुर्जर, तमिल, तेलुगु, उत्तर भारतीय, बंगाली समाज के कार्यक्रम होते हैं।

ओहियो के सिनसिनाटी में आयोजित गणेशोत्सव में मराठी स्वरूप झलकता है। वहाँ लेजिम, ढ़ोल, मजीरा, तुरही जैसे वाद्ययन्त्रों द्वारा नाच-गाना किया जाता है। महाराष्ट्र की तरह मंगला गौरी का खेल, स्पर्धा, बच्चों के कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। दक्षिण कैलीफोर्निया के लांस एन्जिल्स में एक दिन के गणेश की स्थापना मिलिकन हाईस्कूल परिसर में की जाती है। शाम के समय सागर तट पर विसर्जन किया जाता है।

मराठी लोग अमेरिका के न्यूजर्सी में बड़ी संख्या में हैं। वहॉ पाँच हजार से अधिक मराठी बन्धुओं की बस्ती है। लगभग पचास वर्ष पूर्व डॉ. घाणेकर दम्पति द्वारा वहाँ गणेशोत्सव शुरू किया गया था। इस उत्सव के पारम्परिक स्वरूप को बनाये रखते हुए चन्दे के रूप में जमा धन द्वारा साज-सज्जा, प्रसाद, आरती इत्यादि की व्यवस्था की जाती है। बची हुयी धनराशि उत्सव के अंत में किसी सामाजिक संस्था को दान कर दी जाती है। पिछले तीन-चार वर्षों से खर्च बचाने के उद्देश्य से मंडल के लोग स्वयं सजावट करते हैं, लड्डू और मोदक तैयार करते हैं। कई जगहों पर भारतीय ईसाई, मुस्लिम, बौद्ध, सिख इत्यादि धर्मावलम्बी लोग भी समारोह की तैयारी में सहयोग करते हैं। वहाँ के कार्यकर्ता दम्पति मनीषा और महेश आप्टे ने बताया कि वे प्रतिवर्ष मूर्ति का विसर्जन नहीं करते, अपितु पूजा के गणेश के रूप में रखी सुपारी का ही विसर्जन करते हैं। सारे कार्यों को सम्पन्न करने के उपरान्त बचे हुए एक हजार से अधिक डालर वे रोगियों, असहायों की मदद के लिए किसी संस्था को दान करते हैं।

सार्वजनिक मंडलों की तरह बहुत से मराठी परिवार अपने घरों में गणेश जी की स्थापना डेढ़ दिन, पाँच दिन, सात दिन के लिए करते है। कुछ घरों में गणेश जी के साथ ही गौरी को भी लाया जाता है। गौरी को अलंकृत करते समय महिलायें स्वयं के गहनों व प्रसाधनों का उपयोग करती हैं। भिन्न-भिन्न प्रकार के मराठी व्यञ्जन तैयार करने में कोई कमीं नहीं रखी जाती।

यद्यपि अमेरिका में भारत के अलग-अलग राज्यों की अनेक सामाजिक संस्थायें, जैसे-तेलुगु इण्टरनेशनल, तमिल इण्टरनेशनल हैं और वे अपने-अपने समाज के समारोह आयोजित करते हैं। किन्तु मन्दिरों के माध्यम से किये जाने वाले कार्यक्रमों में सभी समाज के लोग शामिल होते हैं। स्वामी विवेकानन्द के कथनानुसार भारत की आत्मा धर्म और अध्यात्म में रहती है। देर-सवेर पूरे विश्वा में यह बात मान्य होती जा रही है। इसी के माध्यम से सुख-शान्ति भी प्राप्त होगी। लगभग सवा सौ वर्ष कहे गये उनके शब्द भक्ति के प्रसाद के रूप में आज पूरी दुनिया में स्वीकार किये जा रहे हैं। इसमें अब देर नहीं है, जब भारत एक बार फिर विश्व का आध्यात्मिक नेतृत्व करेगा।
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