शाखा बन्दर


शाखा बन्दर को अंग्रेजी में ‘हूलाक गिब्बन बाइनोपाइथेकस हूलाक’ कहा जाता है। असम और बांग्लादेश में बहुत अधिक संख्या में पाये जाने वाले शखा बन्दर को असमिया में ‘होलोयू बन्दर’ और बांग्ला में ‘उलूक’ अथवा ‘उलूमन’ कहते हैं। हिंदी में यह ‘उल्लूक’ के नाम से जाना जाता है। ‘महाभारत’ में शाखा बन्दर का उल्लेख ‘शाखा मृग’ नाम से किया गया है। ‘कल्पद्रु’ शब्दकोश में इसका वर्णन ‘उत्ताल शाखा मृग’ नाम से मिलता है। उत्ताल का अर्थ है गम्भीर आवाज वाला।

नररूप बन्दर के रूप में ‘शाखा मृग’ भारत में पायी जाने वाली एक मात्र प्रजाति है। सामने प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देने के बजाय शाखा बन्दर मादा बन्दर को अपनी आवाज के द्वारा आकर्षित करता है। नर बन्दर का पूरा शरीर काले रंग का होता है, जबकि उसकी आंखों के ऊपर की भौंह चांदी के जैसे सफेद रंग की होती है। तरुण मादा बन्दर नर बन्दर की तरह दिखाई देती है। प्रौढ़ मादा बन्दर का शरीर सुनहरे गुलाबी रंग का होता है। नवजात शिशु का रंग कालापन लिए हुए पीले रंग का होता है। एक-दो सप्ताह के उपरान्त उसका रंग भी काला होने लगता है।

दुबला-पतला होने के कारण शाखा बन्दर की पूंछ नहीं होती है। उसकी आगे की लम्बी भुजाएं पीछे के पैरों की अपेक्षा दो गुनी होती हैं।

उत्तर-पूर्व भारत में घने जंगल पाये जाते हैं। इसी तरह ब्रह्मपुत्र और लोहित नदियों के दक्षिण-पूर्ण में भी घने वन आच्छादित हैं। बांग्ला देश के पूर्वी भाग में भी सघन वन मिलते हैं। पहाड़ों पर सदाबहार तथा अर्ध सदाबहार बन पाये जाते हैं। आर्द्र मानसूनी वन भी बहुत सघन होते हैं। इन सभी घने वनों में शाखा बन्दर खूब पाये जाते हैं। कुछ विशेष क्षेत्रों में ये बन्दर छोटे-छोटे समूहों में रहते हैं। शाखा बन्दर का परिवार छोटा होता है। परिवार में बच्चों सहित दो-चार बन्दरों का समावेश होता है। शाखा बन्दर दिन में बड़ी चंचलता से आहार-विहार करते हैं। रात्रि के समय घने जंगल के सुरक्षित भाग में अपने निवास में विश्राम करते हैं। सबेरे खूब तड़के से ही पहाड़ की ऊँचाई वाले जंगलों में जाकर वृक्षों से फल तथा कोमल पत्तो को तोड़कर आहार करते हैं। सुबह से शाम तक पूरे दिन भर शाखा बन्दर आहार-विहार करते हैं। ऊँचे वृक्षों की डालियों से होकर आने-जाने में उन्हें बड़ी सुविधा रहती है। उनके आहार में वृक्षों के कोमल पत्ते, फल, फूल, और फलों के बीज शामिल होते हैं।
नर शाखा बन्दर एक ही मादा के साथ जोड़ा बनाता है और जीवनभर उसी के साथ सुखपूर्वक रहता है। वर्षा ऋतु उनके समागम का समय होता है। दिसम्बर से लेकर मार्च महीने के बीच मादा बच्चों को जन्म देती है।

घने वनों में रहने वाले शाखा बन्दरों का प्राकृतिक निवास धीरे-धीरे नष्ट किया जा रहा है। इसलिए प्रतिवर्ष उनकी संख्या में भी कमीं होती जा रही है। उस क्षेत्र के वनवासियों द्वारा पैसे के लालच में शाखा बन्दरों को अवैध रूप से मारा जा रहा है। वर्ष 1971-72 में शाखा बन्दरों की गणना की गयी थी। उस समय भारत के असम, मेघालय और मिजोरम राज्यों में उनकी कुल संख्या 78, 700 थी। 1978 से 1983 में पुन: किये गये अनुमान के अनुसार देश में शाखा बन्दरों की संख्या में दिनोंदिन कमीं होती जा रही है।

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