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नवरात्र : अध्यात्म एवं उत्सव का संगम

नवरात्र : अध्यात्म एवं उत्सव का संगम

by अशोक शुक्ल ‘भारत’
in अक्टूबर-२०१२, ट्रेंडींग, विशेष, संस्कृति
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Navratri


भारत भर में दुर्गा पूजा का उत्सव बड़ी सज-धज एवं उत्साह के साथ मनाया जाता है। नौ दिन तक चलने वाले समारोह में विविध प्रकार की सुन्दर झांकियों और शक्ति की अधिष्ठात्री देवी दुर्गा की जीवन्त मूर्तियों के दर्शन होते हैं। दुर्गा पूजा का यह समारोह आश्विन (क्वार) माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। नौ दिन के इस कालखण्ड को ‘नवरात्र’ कहा जाता है। यद्यपि नवरात्र पूरे वर्ष में चार बार- चैत्र, आषाढ़, आश्विन तथा माघ में आते हैं, किन्तु इन चारों में चैत्र और आश्विन माह के नवरात्र को विशेष महत्ता प्राप्त है। आश्विन माह में पड़ने वाला नवरात्र शरद ऋतु में पड़ता है, अतः इसे ‘शारदीय नवरात्र’ भी कहा जाता है। इसे ही ‘बोहान’ तथा ‘अहोरात्र’ भी कहते हैं।

नवरात्र दो शब्दों के योग से बना है- ‘नव’ और ‘रात्र’। नव शब्द संख्या वाचक है जबकि रात्र से काल का बोध होता है। इस तरह नवरात्र का तात्पर्य काल का समूह है। व्याकरण के अनुसार इसकी व्याख्या- ‘नवानां रात्रीणां समाहार: नवरात्रम्’ की जाती है। शक्ति संगम तन्त्र में की गयी दूसरी व्याख्या के अनुसार मां भगवती पार्वती द्वारा नवरात्र के विषय में पूछने पर भगवान शिव ने बताया, ‘‘नव शक्तिभि: संयुक्तं नवरात्रं तदुच्यते। एकैव देव-देवेशि, नवधा परितिष्ठा॥’’ अर्थात् नवरात्र नव अलग-अलग शक्तियों से युक्त नौ रात्रियों का समूह है। इन नव-रात्रियों में प्रत्येक तिथि को अलग-अलग शक्ति की पूजा का विधान है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार प्रथम से नौवें दिन तक नौ शक्तियों की पूजा की जाती है-

‘‘प्रथम शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।

तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।

पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।

सप्तम् कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता॥’’


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अर्थात् सर्वप्रथम दिन शैलपुत्री, दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन चन्द्रघण्टा, चौथे दिन कूष्माण्डा, पांचवें दिन स्कन्दमाता, छठवें दिन कात्यायनी, सातवें दिन कालरात्रि, आठवें दिन महागौरी और नौवें दिन सिद्धिदात्री की पूजा होती है। स्कन्द पुराण के ‘काशी खण्ड’ में इन देवियों की चर्चा- 1) शतनेत्रा, 2) सहस्त्रास्या, 3) अयुतभुजा, 4) अश्वारूढ़ा 5) गणास्या, 6) त्वरिता, 7) शववाहिनी, 8) विश्वा तथा 9) सौभाग्य गौरी नाम से की गयी है।

दक्षिण भारत में इन देवी शक्तियों को वन दुर्गा, शूलिनी, जातवेदा, शान्ति, ज्वाला देवी, लवणा, आसुरी तथा दीप दुर्गा के नाम से जाना जाता है।

आदिकाल से समूचे जगत में शक्ति साधना एवं उपासना प्रचलित रही है। शक्ति परमेश्वर भी है और परमेश्वरी भी। वह अजन्मा और अस्वरूपा होते हुए भी विभिन्न रूपों में प्रकट होती है।

‘तंत्र चूणामणि’ एव ‘ज्ञानार्णव’ के अनुसार दक्ष प्रजापति के यज्ञ में जब उनकी पुत्री सती ने अपने पति शिव का अपमान होते देखा, तो वे हवनकुण्ड में कूद गयीं और कुपित शिव उनका शव लेकर उद्भ्रान्त के समान घूमने लगे। अनिष्ट की आशंका से देवताओं की स्तुति पर विष्णु ने सती के शव को सुदर्शन से खण्ड- खण्ड कर दिये। फलस्वरूप कटे अंग और उनमें पहने गये आभूषण देश के 51 स्थानों पर गिरे, जो 51 शक्तिपीठ (42 वर्तमान भारत में तथा 9 नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश में) कहलाये। बाद में ‘देवी भागवत’ में इनकी संख्या 108 तक बतायी गयी। देवी दुर्गा के रूप में शक्ति की उपासना भारतीय संस्कृति की आधार-पीठिका है। अपने आध्यात्मिक आधार तथा विपुल आगम शास्त्र भण्डार के कारण यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। उपासना के पंच समुदायों- शैव, वैष्णव, शाक्त, सौर तथा गाणपत्य में क्रमश: शिव, विष्णु, देवी दुर्गा, सूर्य और गणपति की पूजा की जाती है। इनमें सबसे प्रमुख शक्ति की पूजा मानी जाती है।

शिव पुराण के अनुसार शिवजी के अवतारों में उनके साथ महाशक्ति भी थीं। वे इस प्रकार हैं-1) महाकाली अवतार में-महाकाली के रूप में, 2) तारकेश्वर अवतार में-तारा के रूप में, 3) भुवनेश्वर अवतार में- भुवनेश्वरी के रूप में, 4) षोडस अवतार में- षोडसी के रूप में, 5) भैरव अवतार में- भैरवी के रूप में, 6) छिन्न मस्तके अवतार में- छिन्नमाता के रूप में, 7) धूम्रपान अवतार में-धूमावती के रूप में, 8) बंगलामुख अवतार में- बगलामुखी के रूप में, 9) मतंग अवतार में-मातंगी के रूप में। महामाया के ये नौर रूप नौ ‘महाविद्या’ भी हैं।



ऋग्वेद के वाक सूक्त (जिसे कुछ विद्वान देवी सूक्त भी कहते हैं) में महर्षि अम्भृण की ‘वाक’ नाम की कन्या कहती है कि वही अर्थात् शक्ति ही सम्पूर्ण जगत को उत्पन्न करने वाली, पालन करने वाली तथा धारण करने वाली है। वही विश्व की तमाम रचनाओं में दिखाई देती है। वही इन्द्र, वरुण, अग्नि को धारण करने वाली है। आठ वसुओं और बारह आदित्यों के रूप में वही भासमान होती है। वही त्वण्टा, पूषा और भग (ऐश्वर्य) को धारण करती है। वही समस्त जगत की ईश्वरी, धन प्राप्त करने वाली, खोज करने वाली, ज्ञान से सम्पन्न ब्रह्म को जानने वाली है।

दुर्गा सप्तशती के पांचवें अध्याय में कहा गया है कि शक्ति ही विष्णुमाया के रूप में समस्त जगत में व्याप्त है। विद्या, निद्रा, लज्जा, तृष्णा, श्रद्धा, क्षुधा, शान्ति, कान्ति, वृत्ति, स्मृति, लक्ष्मी, दया, तुष्टि इत्यादि रूपों में विराजमान है। इन सभी शक्तियों का समारोहपूर्वक प्रतीक रूप पूजन शारदीय नवरात्र में किया जाता है।

पौराणिक कथा के अनुसार आदि काल में मां भगवती ने इन्हीं दिनों महादानव महिषासुर का संहार करके देवताओं की रक्षा की थी। महिषासुर पर देवी दुर्गा के विजय का उत्सव ही नवरात्र-पूजन है। आध्यात्मिक दृष्टि से समस्त आसुरी प्रवृत्तियों को समूल नष्ट करके उन पर सात्विक वृत्तियों के विजय का समारोह नवरात्र है। इन नौ दिनों में मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए अर्चना की जाती है। व्रत का श्रीगणेश आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारम्भ होकर नवमी के यज्ञ अनुष्ठान के साथ इसकी इति होती है। दसवें दिन मां दुर्गा की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है। पूजन का शुभारम्भ दीप प्रज्ज्वलन के साथ किया जाता है, जिसकी निरन्तर जलती ज्योति को प्रसन्नतादायक माना जाता है। पूजन के समय उपवास, जप, होम, पाठ, बलिदान तथा कुमारी पूजन किया जाता है। अष्टमी की रात को ‘महारात्रि’ कहा जाता है। इस रात्रि में हवन-पूजन का विशेष महत्त्व है।

इन नवरात्रों में विशेष आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति संचय करने के लिए सभी प्रकार के उपासक ध्यान, व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, साधना आदि करते हैं। नवरात्र में देश के सभी 51 शक्तिपीठों पर बड़े उत्साह से शक्ति की उपासना हेतु अपार जन-समुदाय एकत्रित होता है। जो भक्त शक्तिपीठों पर नहीं एकत्रित हो पाते वे अपने घरों पर ही शक्ति का आह्वान करते हैं।

धार्मिक ग्रन्थों में नवरात्र की विशेष महत्ता बताई गयी है। देवी भागवत के अनुसार इस धरा पर नवरात्र के समान कोई भी व्रत नहीं है। यह जनकल्याण कारक तथा सर्व सुखदायी है। जो भी इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करते हैं, उन्हें सुख, सम्पदा, आनन्द तथा अन्त में मोक्ष की प्राप्त होती है। लंका पर चढ़ाई से पूर्व भगवान श्रीराम ने शारदीय नवरात्र का व्रत किया था। देवी के आशीर्वाद से उन्हें रावण पर विजय प्राप हुई। व्यापकता, लोकप्रियता तथा उपयोगिता की दृष्टि से शक्ति की पूजा का दिनादिन प्रचलन बढ़ता जा रहा है।

भारतवर्ष के सभी राज्यों में शारदीय नवरात्र उल्लास के साथ मनाया जाता है। उत्तर भारत के राज्यों में तो यह विशेष पर्व बन जाता है। नौ दिनों तक विशाल पाण्डाल में मां दुर्गा की शक्तिरूप मूर्ति की स्थापना करके पूजा की जाती है। पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, दिल्ली, उत्तर प्रदेश के बड़े नगरों से ग्रामीण बाजारों तक में सैकड़ों मूर्तियां स्थापित की जाती हैं। लोकनृत्य, मूर्ति कला, शृंगार, लोकगीत की प्रस्तुति के साथ ही प्राचीन भारतीय परम्पराओं की अभिव्यक्ति का एक माध्यम होता है यह आयोजन ब्रज क्षेत्र में पूरे नौ दिन रासलीला होती है। बिहार तथा उत्तर प्रदेश में दुर्गा पूजा के साथ-साथ रामलीला का मंचन होता है। गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान में गरबा नृत्य की धूम होती है। पश्चिम बंगाल में तो जैसे पूरा जन-जीवन ही दुर्गा पूजा के रूप में एकीकृत हो जाता है। दक्षिण भारत के राज्यों-कर्नाटक तथा आन्ध्रप्रदेश में दुर्गा पूजा का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। इस तरह यदि देखा जाय तो नवरात्र आध्यात्म एवं उत्सव का एक अद्भुत संगम बन जाता है।

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