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पाकिस्तान में अमरीकी दबाव से आ पाएगी स्थिरता

पाकिस्तान में अमरीकी दबाव से आ पाएगी स्थिरता

by ब्रिगेडियर (नि) हेमंत महाजन
in नवम्बर- २०१२, सामाजिक
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और अमरीका के सामरिक संबंधों में पिछले छह दशकों में आया उतार-चढ़ाव हम लोगों को देखने को मिला है। अमरीका से भारत का सामरिक संबंध राष्ट्रपति बराक ओबामा से मुलाकात के बाद निश्चित रूप से सुधरे हैं। पाकिस्तान में अमरीकी राजनीतिक दबाव के कारण स्थिरता आ सकी, जबकि भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में बदलाव होगा क्या? इस गंभीर सवाल के साथ-साथ अमरीका-पाकिस्तान के सामरिक संबंधों में भी दक्षिण एशिया के बीच राजनीतिक परिस्थिति में परिवर्तन के लिए जिम्मेदार बताए जा रहे हैं। शीतयुद्ध के कालखंड में अमरीका-भारत के संबंधों में तनाव था। सन् 1998 के आण्विक जांच के बाद भी भारत का मुक्त अर्थव्यवस्था का ध्यान में रखकर की। सन् 2006 में नागरी अणु प्रस्ताव को सिद्धांततः मान्यता दी गई। इस कारण अणु ऊर्जा परियोजना, आण्विक ईंधन तथा संवेदनशील तकनीक भारत को मिलने में मदद हुई। इस अणु ऊर्जा परियोजना प्रस्ताव पर सन् 2008 में हस्ताक्षर किए गए और इसी के साथ भारत अमरीका के बीच नई सामरिक संबंधों की शुरुवात हुई। अमरीका ने विगत एक दशक में एक तरफ भारत से सामरिक करार किया, तो दूसरी ओर पाकिस्तान को सैनिक मदद देने से इंकार नहीं किया। आतंकवाद के खिलाफ युद्ध मुहिम तथा अफगानिस्तान-इराक में आतंकवादियों को नेस्तनाबूद करने के लिए अमरीका ने पाकिस्तान को आर्थिक तथा सैनिक मदद दी है, इस कारण अमरीका की दक्षिण एशिया विषयक नीति तथा भूमिका को लेकर अलग-अलग तरह से प्रश्न खड़े होते हैं। एक तरफ अमरीका ने एशिया महाद्वीप में चीन की सैनिक शक्ति के खिलाफ भारत से मदद ली तो दूसरी ओर पाकिस्तान द्वारा मुस्लिम राष्ट्रों की मदद तथा सहानुभूति अर्जित कर पश्चिम एशिया के सामरिक साधन साम्रज्ञी खासकर कच्चे तेल की प्राप्ति की ओर विशेष ध्यान दिया। अमरीका ने इरान की बढ़ती आण्विक शक्ति को बढ़ावा देने के लिए पाकिस्तान का उपयोग किया।

बराक ओबामा ने भारत दौरे के समय आतंकवाद के मुद्दे पर कहा था कि पाकिस्तान में कौन अशांति तथा अस्थिरता फैला रहा है, इस ओर ओबामा ने ध्यान नहीं दिया। जहां तक कश्मीर मसले का प्रश्न है, अमरीका इस मुद्दे पर मध्यस्तता नहीं करेगा। दोनों देशों के बीच संबंध अच्छे रहें, इसके लिए कटिबद्ध रहने संबंधी ओबामा का बयान अमरीका की दोहरी नीति की ओर इशारा करता है। अमरीका को भारत की मुक्त व्यापार को अपने हाथ से जाने नहीं देना है। इसके अलावा अमरीका की कोशिश यह होगी कि विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक राष्ट्र भारत के निरंतर हो रहे आर्थिक विकास के मद्देनजर भारत के साथ वह अपने सामरिक संबंधों को और मजबूत बनाए। ओबामा ने भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाने का आश्वासन भी दिया है, लेकिन पाकिस्तान भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य न बन पाए, इसकी भरसक कोशिश कर रहा है। पाकिस्तान को इसके लिए चीन की मदद मिल रही है। विगत 62 वर्षों से भारत के साथ कटुता का संबंध रखने वाले पाकिस्तान के साथ भारत के संबंध अच्छे होंगे, यह सवाल सर्वत्र उठाया जा रहा है। अनेक मामलों में बदले की कारर्वाई, युद्व, आतंकवादी कार्रवाई तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक विवाद पहुंचने के बाद यह सवाल उठना तो स्वाभाविक ही है कि क्या भारत-पाकिस्तान के बीच के रिश्ते कभी मधुर हो सकते हैं? देश का विभाजन होने के बाद कश्मीर पर हुए आक्रमण, 1962, सन् 1965 तथा 1971 के युद्व, 1999के करगिल युद्व को भुलाया नहीं जा सकता।

पाकिस्तान का भू-राजनीतिक महत्व सिर्फ अमरीका तक ही सीमित न रहकर वह पूरे विश्व के लिए लाभदायक है, ऐसी भूमिका अमरीका ने बनाई है। भारत- पाकिस्तान संबंधों के बीच आने वाले छोट-छोटे कारणों पर भी विचार किया जाना जरूरी है। अमरीकी सेना जुलाई 2012 से अफगानिस्तान से हटा ली गई, लेकिन अफगानिस्तान में पारंपरिक शासन व्यवस्था का अभाव, अविकसित प्रशासकीय सेवा के कारण अनेकानेक परेशानियां खड़ी होती रही हैं, ये परेशानियां आने वाले कई वर्षों तक यथावत रहेंगी। इसी तरह पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान में राजनीतिक कोशिशों से ही शांति स्थापित की जा सकेगी, ऐसी आशा भी ओबामा को है। आतंकवाद के विरोध में लड़ने के लिए पाकिस्तान अमरीका का सामरिक सहयोगी है, जबकि आर्थिक विकास, वैश्विक शांति तथा सुरक्षा के मु्द्दे पर अमरीका भारत के सहयोग का आकांक्षी रहता है। अमरीका की बदलती भूमिका के आधार पर ही दोनों देश अपनी भूमिका बनाएंगे, यह निश्चित है।

मुक्त व्यापार, यातायात सहयोग का एक नया प्रयोग

दोनों देश एक-दूसरे से व्यापारिक दृष्टि से करीब आएं, इसलिए मोस्ट फेवर्ड नेशन के तहत मुक्त व्यापार तथा यातायात सहयोग का एक अभिनव प्रयोग किया जा रहा है। इसके तहत पाकिस्तान तथा भारत के प्रधानमंत्री, रक्षामंत्री, पाकिस्तान के राजदूत, व्यापारिक संगठन के पदाधिकारियोंं की मदद से मुक्त व्यापार को चालना दी जा रही है। दोनों देशों के बीच वर्तमान में 27 बिलियन डॉलर का व्यापार हो रहा है। पेट्रोल का भाव बढ़ने के कारण देश की जनता की चिंता बहुत बढ़ गई है, पर सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही है, उसका पूरा ध्यान पड़ोसी राष्ट्र पाकिस्तान पर लगा हुआ है। भारत से पेट्रोल, डीजल, जेट लाईन तथा लिक्वीफाइड नेचुरल गैस पाकिस्तान लेने वाला है।

भारत पाकिस्तान पड़ोसी, साथ-साथ रहना है।
जो हम पर गुजरी, बच्चों के संग न होने देंगे।
जंग न होने देंगे, जंग न होने देंगे ।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की यह कविता। जिस जगह पाकिस्तान की मांग की गई, वहां मिनार-3 पाकिस्तान को वाजपेयी ने भेंट दी, वहां पर यह कविता उल्लिखित की गई है। वाजपेयी ने आगे लिखते हैं कि मैंं मिनार में गया, इसका अर्थ कुछ लोग इस तरह लगाएंगे कि यह मुलाकात पाकिस्तान को दी गई अधिकृत मान्यता ही है। पाकिस्तान की एक अलग छवि वाला अस्तित्व आज हम सबके सामने है। भारत की एकता तथा विकास पाकिस्तान की एकता तथा विकास पर अवलंबित है। अटल बिहारी वाजपेयी के ये शब्द इतने आवश्यक तथा भारत-पाक संबंधों को नया आयाम देने वाले थे कि पाकिस्तान की सामान्य जनता ने वाजपेयी की। इस नीति का जोरदार स्वागत किया, पर मूलतत्ववादी तथा सेना ने ऐसा न होने देने में पूरी शक्ति लगा दी। अटल बिहारी पाकिस्तान से वापस आए और उसके  बाद करगिल युद्व हुआ। पिछले कई वर्षों में ऐसा कई बार लगा कि भारत-पाकिस्तान के बीच संबंध सुधरेंगे, लेकिन दोनों देशों के बीच संबंध सुधारने के अभियान के बीच तनाव का वातावरण बनता रहा है। कारगिल युद्ध के बाद अटल जी ने आगरा में पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल परवेज मुर्शरफ को बुलाकर शिखर परिषद की। ऐसा बताया जाता है कि कश्मीर के साथ अनेक विषयों पर करार हुआ था, इन करारों पर सिर्फ हस्ताक्षर होने बाकी थे, लेकिन मुर्शरफ का पत्रकार परिषद में दिया गया विवादित बयान तथा पहले का हिसाब चुकाने के लिए दोनों देशों के कुछ अधिकारियों की रणनीति के कारण आगरा करार पर हस्ताक्षर नहीं हो सके।

सियाचीन विश्व की सबसे ऊंची युद्धभूमि

विश्व की सबसे ऊंची युद्धभूमि सियाचीन है, यहां अप्रैल में पाकिस्तान के 139 सैनिकों ने प्राकृतिक आपत्ति के कारण अपनी जान गंवाई। इसी पार्श्वभूमि में पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कयानी ने सियाचीन परिसर को सेना मुक्त करने की बात कही थी। इस बारे में भारत- पाकिस्तान के सुरक्षा सचिवों में चर्चा भी हुई थी। जब तक पाकिस्तान 26-11 की घटना के आतंकवादियों सजा नहीं सुनाता। कश्मीर समस्या पर अपनी भूमिका स्षष्ट नहीं करता,तब तक दोनों राष्ट्रों के संबंध प्रगाढ़ नहीं होंगे। व्यापार के लिए अनुकूल देश गैस, पाइपलाइन, ऊर्जा खरीदी, व्यापारिक सम्मेलन जैसे बातें विशुद्ध रूप से व्यावहारिक हैं। इसका अर्थ यह नहीं होता कि पाकिस्तान भारत का मित्र हो गया है। पाकिस्तान को भारत का सबसे बड़ा प्रतिस्पर्धी तथा शत्रु राष्ट्र चीन का समर्थन प्राप्त है। सियाचीन में संभवतः पाकिस्तान के मुकाबले चीन को ज्यादा रुचि होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। अगर भविष्य में गलती से प्रदेश का कब्जा उस देश का हो गया, तो यह भू-भाग फिर वापस मिलना मुश्किल हो जाएगा।

भारत-अमरीका संबंध

ओबामा ने भारत तथा पाकिस्तान का दौरा एक साथ नहीं किया। वे ये ऐसे पहले अमरीकी राष्ट्रपति हैं,जिन्होंने भारत तथा पाकिस्तान दोनों देशों की ओर देखने की पृथक-पृथक रणनीति अपनाई है। अमरीका भारत की ओर देखते समय पाकिस्तान की ओर न देखे, ऐसी भारत की ओर से लगातार मांग की जा रही थी। भारत के अंतर्राष्ट्रीय एजेंडे के सबसे महत्वपूर्ण मुद्दे का समर्थन करके ओबामा ने भारत की इच्छा को पूरा किया।

आतंकवाद विरोधी ल़ड़ाई में अमरीका भारत के साथ

पाकिस्तान की समस्या पूरी तरह से भारत की ही समस्या है, उन्हें अन्य किसी भी देश की मदद की उपेक्षा न करके भारत को ही सुलझानी चाहिए। एक तरफ कश्मीर समस्या पर भारत को अमरीकी हस्तक्षेप नहीं चाहिए, ऐसा कहा जा रहा है, तो दूसरी ओर पाकिस्तान पर अंकुश लगाने के लिए उसे अमेरीकी मदद की भी अपेक्षा है, लेकिन अब ऐसी विचारधारा रखना ठीक न होगा। अमरीका को पाकिस्तान के प्रेम नहीं है, लेकिन अमरीका की वैश्विक राजनीति में पाक एक महत्वपूर्ण प्यादा है। यही बात चीन के मामले में भी है। अमरीका-चीन संबंध एक-दूसरे ैमें उलझे हुए हैं, ऐसे में भारत-चीन को एक साथ बैठकर अपनी-अपनी समस्याओं का निराकरण करना होगा। ओबामा ने भारत को क्या दिया । पाकिस्तान अमेरिका का पुराना मित्र है,जबकि अमरीका-भारत की मित्रता सन् 1999 के बाद की है। आतंकवादियों की शरणस्थली पाकिस्तान है, यह बात भारत ने अमेरिका के साथ-साथ पूरे विश्व को चिल्ला- चिल्ला कर बताया है, इसके बावजूद अमेरिका भारत की बात सुनने के लिए सन् 2000 तक तैयार नहीं था। वर्ष 2001 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में हुए आतंकवादी हमले के बाद अमरीका की आंखें खुलीं। इस घटना के बाद अमरीका को पहली बार एहसास हुआ कि उसे अब पाकिस्तान के बारे अपनी सोच बदलनी चाहिए और आज स्थिति यह है कि अमरीका आतंकवाद विरोधी मुहिम में भारत के साथ खड़ा है।
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