भारतीय परिवेश और परंपरा में वस्त्रों के रंग और पहनावे की विभिन्न शैलियां ही नहीं है अपितु वस्त्रों के धागे, वह किस तंतु से निर्मित हैं, और किस अवस्था में किस ऋतु में कौन से धागे या तंतु के कपड़े पहने हैं यह भी एक महत्वपूर्ण विषय है। जैसे गर्मी के समय में रेशमी वस्त्रों को धारण नहीं किया जाता। कपास से निर्मित वस्त्रों और ऊनी वस्त्रों को प्रयोग में नहीं लाते, वहीं सर्दियों में नेट के वस्त्र नहीं पहने जा सकते।
प्रत्येक मनुष्य के जीवन में तीन चीजों की महती आवश्यकता है रोटी, कपड़ा और मकान। उदर पोषण हेतु रोटी, शरीर ढकने के लिए वस्त्र और स्थायित्व के साथ जीवन यापन के लिए मकान। किंतु यदि हम इन तीनों में से विशेष रूप से देखें तो दृष्टिगोचर होगा कि मकान नहीं तो व्यक्ति किसी भी तरह खानाबदोश जीवन यापन कर सकता है। रोटी ना हो तो दो-चार दिन भूखा भी रह सकता है, किंतु तन ढकने के लिए वस्त्र ना हो तो कोई भी भारतीय लज्जा से मर ही जाएगा। भारतीय परंपरा में वस्त्रों की अहम भूमिका है। यहां प्रत्येक उत्सव, पूजा पद्धति, सामाजिक कार्यक्रम, जीवन- मरण, ठाकुर सेवा, देवी देवताओं के लिए अलग-अलग रंग अलग-अलग कपड़े और अलग-अलग बनावट की वस्तुओं का उपयोग किया जाता है। भारतीय परंपरा में यदि कोई उत्सव है तो गहरे रंग जैसे लाल, पीले, नीले, गुलाबी, सुनहरी एवं पारंपरिक वस्त्र जिनमें पुरुषों द्वारा कुर्ता पजामा, धोती कुर्ता, सूट आदि पहने जाते हैं। वहीं महिलाएं साड़ी, लहंगा- चुनरी, सलवार कुर्ती, आदि पहनती हैं। यहां अवसरानुकूल वस्त्र पहने जाते हैं। मृत्यु के अवसर पर सफेद रंग के वस्त्र पहने जाते हैं, जबकि उत्सव में गहरे रंगों का प्रचलन है। ठाकुर सेवा, देवी-देवताओं के वस्त्र भी गहरे रंगों से और विशिष्ट प्रकार के गोटा पट्टी, लेस, मोती, सितारे आदि से सुसज्जित कर तैयार किए जाते हैं। ठाकुर जी के वस्त्रों को इस प्रकार भव्य बनाया जाता है कि वह देखने में आकर्षक लगें। भारतीय परिवेश और परंपरा में वस्त्रों के रंग और पहनावे की विभिन्न शैलियां ही नहीं है अपितु वस्त्रों के धागे, वह किस तंतु से निर्मित हैं, और किस अवस्था में किस ऋतु में कौन से धागे या तंतु के कपड़े पहने हैं यह भी एक महत्वपूर्ण विषय है। जैसे गर्मी के समय में रेशमी वस्त्रों को धारण नहीं किया जाता। कपास से निर्मित वस्त्रों और ऊनी वस्त्रों को प्रयोग में नहीं लाते, वहीं सर्दियों में नेट के वस्त्र नहीं पहने जा सकते। ठाकुर जी के वस्त्र बनाते समय साटन के कपड़े का अधिक प्रयोग करते हैं, नेता, अधिकारी सूती वस्त्र का उपयोग करते हैं। महिलाओं की साड़ियां सिल्क, बनारसी, एवं सिंथेटिक आदि प्रकार के कपड़े से निर्मित होती हैं। अतः स्पष्ट होता है की पहनावे और रंग के अतिरिक्त कपड़ों के प्रकार का अवलोकन करना भी आवश्यक है- स्रोतों के अनुसार कपड़ों को हम कई भागों में विभाजित कर सकते हैं जैसे कपास, प्राकृतिक रेशम, ऊन यह प्राकृतिक फाइबर हैं।
वहीं कुछ सिंथेटिक फाइबर जैसे नायलॉन, एक्रेलिक, रेयान, डेक्रान, सिंथेटिक फाइबर, पॉलिस्टर आदि। यह सभी प्राकृतिक और सिंथेटिक फाइबर कैसे और कहां से प्राप्त होते हैं इन्हें भी जान लेना चाहिए। कपास के पौधे से सूती कपड़ा,अलसी के पौधे से लिनन, रेशम के कीड़े से रेशम या सिल्क प्राप्त होता है। कई प्रकार के कपड़े जैसे कैलिको, डेनिम, टेरी टेरी टोवलिंग, पॉपलिन, वेलवेट आदि कॉटन से बनाए जाते हैं। कॉटन में अन्य फैब्रिक मिलाकर कॉटन, लिनन कॉटन, कॉटन साटन, कॉटन जर्स आदि भी तैयार किए जाते हैं। वहीं सिल्क या रेशम से शिफॉन, जॉर्जेट, ऑर्गेनजा, क्रेप आदि का निर्माण किया जाता है। सिंथेटिक फाइबर केमिकल्स के उपयोग से फैक्ट्री में निर्मित किया जाता है, जिसमें बदलाव भी होता रहता है। जैसे रेयान, नायलॉन, पॉलिस्टर यह केमिकल्स के परिवर्तन से बनते हैं। इन कपड़ों में लाइक्रा इलास्टिन नामक मेटेरियल से बना होता है जो कृत्रिम फाइबर है। इस कपड़े से स्पोर्ट्सवेयर, स्विमवियर, अंडरगारमेंट्स आदि बनाए जाते हैं।
पॉलिस्टर– पॉलिस्टर में प्लास्टिक के रेशे और अन्य केमिकल्स होते हैं जिसके कारण यह कपड़ा मजबूत होता है किंतु शरीर के लिए अधिक सुरक्षित नहीं। रेयान सैल्यूलोस फाइबर से बनता है जो लकड़ी में पाया जाता है। यह किसी दूसरे रेशे के साथ बुना जाता है।
वेलवेट- वेलवेट किसी रेशे विशेष से नहीं बनता अपितु यह कपड़ा बनाने का एक विशेष तरीका है। इसे कॉटन, लिनन, रेशम या कृत्रिम फाइबर से बनाया जाता है। अलग-अलग रेशे से निर्मित होने के कारण इसमें मार्बल वेलवेट, प्लश, कॉटन वेलवेट, वेलवेट ब्रोकेड जैसी विविधता भी पाई जाती है।
पालीकॉटन– इसे प्राकृतिक सूत, तथा सिंथेटिक पॉलिस्टर यार्न को मिलाकर बनाया जाता है। जर्जर यह नायलान और पॉलिस्टर को मिलाकर बनाया जाता है।
शिफॉन– पहले शिफॉन सिल्क से बनाया जाता था अब इसे नायलॉन तथा पॉलिस्टर से भी बनाया जाता है। इसके साथ यदि भारतीय पारंपरिक वेशभूषा की बात करें तो कुछ विशिष्ट परिधानों का प्रयोग किया जाता है। जिनके कपड़े बनावट और शैलियों में राज्यानुकूल नामों का वैशिष्ट्य भी देखने को मिलता है। इन के कुछ उदाहरण दृष्टव्य हैं-
साड़ी– साड़ी पूरे भारतीय समाज का एक ऐसा परिधान है जिसे सामान्य, निम्न और उच्च सभी वर्ग की महिलाएं धारण करती हैं। भारत के प्रत्येक क्षेत्र की अपनी अनूठी साड़ी शैली है, जिसमें कपड़े और बुनाई शैलियों के मामले में अंतर है। उदाहरणार्थ राजस्थान में और गुजरात में बंधनी साड़ी प्रसिद्ध है। बनारस की खास पहचान बनारसी साड़ी है। कांजीवरम तमिलनाडु की बेहतरीन सिल्क साड़ी है इनके अलावा पश्चिम बंगाल में कॉटन प्रिंटेड और हैंडलूम साड़ी जैसे- जामदानी और बालू चरी प्रसिद्ध है। इन साड़ियों में जॉर्जेट, शिफॉन, क्रेप आदि तत्वों का प्रयोग किया जाता है। केरल में महिला और पुरुषों द्वारा मुंडन नेरियाथूम साड़ी प्राचीनता का अवशेष है। वहीं असम में मेखला चादर है जो दो टुकड़ों में होती है। जिसमें एक को विशिष्ट प्रकार से लपेटा जाता है और दूसरे भाग को आकर्षक ढंग से ऊपरी हिस्से पर उड़ा जाता है।
सलवार कमीज यह एक पंजाबी पहनावा है और इसमें कुर्ती पजामा और चुनरी तीन वस्त्रों का समन्वय है जो विभिन्न प्रकार के फाइबर या वस्तुओं से निर्मित कपड़ों से तैयार किए जाते हैं। लहंगा-चोली यह राजस्थान की मूल पारंपरिक पोशाक है, जो कि उत्सवों पार्टियों में पहनी जाती है।
इन परिधानों को भी तैयार करने में विभिन्न प्रकार के कपड़े, कारीगरी, गोटा पट्टी का काम, जरी का काम, कांच व अन्य विशिष्ट धागों और नगों का प्रयोग किया जाता है।
धोती यह भारत की विशिष्ट पोशाक है लगभग 4 से 6 फीट तक होती है। यह पुरुषों द्वारा पहनी जाती है। इसमें भी बॉर्डर आदि का काम होता है। इस प्रकार पारंपरिक भारतीय वेशभूषा में न केवल कपड़ों की बनावट की शैलियों की विविधता है अपितु यह वेशभूषा संस्कृति को भी सुशोभित करती है।