हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
खादी: ग्रामोद्योग से  वैश्विक उद्योग

खादी: ग्रामोद्योग से वैश्विक उद्योग

by प्रवीण दत्त शर्मा
in उद्योग, दीपावली विशेषांक नवम्बर २०२०
0

आज खादी देश से निकलकर दुनिया के बाजार में छाने को तैयार है। खादी को वैश्विक स्तर पर उभारने को लेकर सरकार प्रयासरत है। भारत सरकार ने खादी कपड़ों की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिये ‘जीरो डिफेक्ट, जीरो इफेक्ट योजना’ को शुरू किया है। इससे खादी उत्पादों को वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाने में मदद मिलेगी। सरकार खादी को एक नए रूप में पेश करने की योजना बना रही है।

महात्मा गांधी मानते थे कि देश का सम्पूर्ण विकास गांव आधारित अर्थव्यवस्था में है। जितने मजबूत होंगे गांव, उतनी ही मजबूत होगी हमारी अर्थव्यवस्था। इसलिए उन्होंने ग्रामोद्योग और ग्राम स्वराज की वकालत की थी। उनकी कल्पना थी कि सभी को काम मिले, ताकि आर्थिकी सुदृढ रहे। भारत जैसे देश की अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी की सेंध ना लगे, इसके लिये कोई अभेद्य कवच की वह खोज कर रहे थे। काफी विचार, अनुसंधान के बाद उन्होंने खादी को अर्थव्यवस्था के सुरक्षा कवच के रूप में चुना। खादी, म. गांधी के लिए एक जीवन रक्षक सूत्र थी, जिसने न सिर्फ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को नयी दिशा दी, बल्कि भारत को उस वक्त राष्ट्रीय एकता के बंधन में बांधा। धीरे-धीरे ही सही खादी आज भारत में उल्लेखनीय विस्तार पा चुकी है, और वैश्विक स्तर पर भी अपने पांव पसार रही है। आने वाले समय में खादी निःसंदेह पूरे संसार में अपनी श्रेष्ठता साबित कर सरकार के लोकल टू ग्लोबल के सपने को साकार करेगी।

हाथ से वस्त्र बनाने की कला भारत में  बहुत  पुरानी है। अट्ठारहवीं  शताब्दी में लिखे इतिहास में इसका उल्लेख मिलता है। कार्ल मार्कस् के ‘दास कैपिटल’ में  भी हथकरघा का जिक्र है। संत कबीर और उनका करघा तो हमारी संस्कृति की अनमोल विरासत है। बुनकरी का पेशा तो हजारों वर्षों तक समाज में रोजगार का प्रमुख साधन रहा। बाद में हथकरघा की जगह मशीनों ने ले ली। मशीनीकरण से कपड़ा उद्योग में क्रांतिकारी परिवर्तन आया। परफेक्ट बुने हुए कपड़े, कम श्रम, अधिक उत्पादन। मगर यह परिवर्तन हजारों लोगों के रोजगार को निगल गया। मशीनें लोगों के रोजगार पर कहर बनकर टूटी। मशीनों के उपयोग की वजह से रोजगार के अवसर घटे और बेरोजगारी बढी।

एक ओर जहां दुनिया के उद्योगों में मशीनीकरण बढ़ रहा था, वहीं म. गांधी जी बढते मशीनीकरण के विरोधी थे। हालांकि वे प्रगति और यंत्र के विरोधी नहीं थे, लेकिन वे अत्यधिक औद्योगिकीकरण और मशीनों पर निर्भरता के विरोधी थे। उनके विचार में यंत्रों का उपयोग निषेध न हो, लेकिन उसके कारण बेरोजगारी न बढ़े, इसका ध्यान रखना जरूरी है। आखिरकार मनुष्य के लिए मशीन है, मशीन के लिए मनुष्य नहीं।

19वीं शताब्दी में इंग्लैंड के मैनचेस्टर की कपड़ा मिलें बडी प्रसिद्ध हुईं। अधिकांश विश्व का पहनावा इन्हीं मिलों में बनता था। इन मिलों का बहुत खतरनाक प्रभाव भारतीय जनजीवन पर पड़ा। लोग आत्मनिर्भर की जगह विदेशी मिलों और उनके दमनकारी नियमों में फंस गये। पहले लोग स्वयं हाथ से बुनते थे और अपने मालिक स्वयं होते थे। लेकिन मिल की मशीनों ने उन्हें राजनीतिक के साथ आर्थिक गुलाम भी बना दिया। 1811-12 में भारत से होने वाले निर्यात में सूती कपड़े की हिस्सेदारी 33% थी जो 1850 – 51 आते आते मात्र 3% रह गई।

ब्रिटेन के निर्माताओं के दबाव के कारण सरकार ने ब्रिटेन में इंपोर्ट ड्यूटी लगा दी ताकि इंगलैंड में सिर्फ वहां बनने वाली वस्तुएं ही बिकें। ईस्ट इंडिया कम्पनी पर भी इस बात के लिए दबाव डाला गया कि वह ब्रिटेन में बनी चीजों को भारत के बाजारों में बेचे। अठारहवीं सदी के अंत तक भारत में सूती कपड़ों का आयात न के बराबर था। लेकिन 1850 आते-आते कुल आयात में 31% हिस्सा सूती कपड़े का था। 1870 के दशक तक यह हिस्सेदारी बढ़कर 70% हो गई।

भारत में हाथ से बने सूती कपड़ों की तुलना में मैनचेस्टर की मशीन से बने हुए कपड़े अधिक सस्ते थे। इसलिये बुनकरों का मार्केट शेअर गिर गया। 1850 का दशक आते आते भारत के सूती कपड़े के अधिकांश केंद्रों में भारी गिरावट आ गई।

1860 के दशक में संयुक्त राज्य अमेरिका में गृह युद्ध शुरु हो चुका था। इसलिए वहां से ब्रिटेन को मिलने वाले कपास की सप्लाई बंद हो चुकी थी। इसके परिणामस्वरूप ब्रिटेन को भारत की ओर मुंह करना पड़ा। अब भारत से कपास ब्रिटेन को निर्यात होने लगा। इससे भारत के बुनकरों के लिए कच्चे कपास की भारी कमी हो गई।

उन्नीसवीं सदी के अंत तक भारत में भी सूती कपड़े के कारखाने खुलने लगे। भारत के पारंपरिक सूती कपड़ा उद्योग के लिए यह किसी आखिरी आघात से कम न था।

मैनचेस्टर की तर्ज पर अहमदाबाद और मुम्बई में  भी कपड़ा मिलें खुली। ये कपड़ा मिलें शोषण का केंद्र थीं। जहां मजदूरों से अत्यधिक श्रम करवाया जाता था। कम पैसा दिया जाता था। मिल मालिक अमीर हुए जाते थे और श्रमिक गरीब। मशीनों के खतरे को भांपते हुए, महात्मा गांधी ने पुस्तक लिखी-हिंद स्वराज। इस पुस्तक में उन्होंने कड़े शब्दों में अंधाधुंध विकास और मशीनीकरण का विरोध किया। म. गांधी जी ने कहा, यंत्रों के कारण शहर बनते हैं, पर शहर खड़ा करना बेकार की झंझट है। उसमें लोग सुखी नहीं होंगे। गरीब अमीरों से लूटे जाएंगे। हिंद स्वराज में ही वह लिखते हैं कि-चरखे के जरिए ही कंगालियत मिट सकती है।

खादी का जन्म- म. गांधी जी ने हालांकि हिंद स्वराज में  चरखे का जिक्र किया था। लेकिन उन्होंने 1915 तक चरखे के दर्शन नहीं किये थे। म. गांधी स्वदेशी कपड़े का जल्द उत्पादन चाहते थे। इसके पीछे उनके दो मकसद थे। एक इसके जरिए वे अंग्रेज सरकार को राजनीतिक संदेश देना चाहते थे और दूसरा वे भारतीयों को आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे। काफी मशक्कत से करघा ढूंढा गया और आश्रम में कपड़ा बनाने का काम आरंभ किया गया। लेकिन करघे से कपड़ा बनाने में अनेक कठिनाइयां थीं। देशी मिल का सूत आसानी से मिलता नहीं था। इन कठिनाइयों से निजात पाने के लिए चरखे की खोज प्रारंभ हुई। अंततः गुजरात की एक समाजसेविका गंगा बहन के माध्यम से चरखा मिला और म. गांधी जी के आश्रम में इसका प्रवेश हुआ। आश्रम में स्वदेशी वस्त्र के रूप में खादी का जन्म हुआ।

म. गांधी युग के बाद खादी ने अनेक उतार चढ़ाव देखे। देश में  अनेक खादी संघों के माध्यम से खादी लोगों तक पहुंची। आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य पाने के लिए वर्तमान समय में खादी महत्वपूर्ण कदम है। खादी अनेक गुणों से युक्त वस्त्र है। आज पूरी दुनिया पर्यावरण प्रदूषण से परेशान है। इस प्रदूषण के मुख्य कारकों में एक है-कपडा मिलों से निकलने वाला अपशिष्ट। यह अपशिष्ट जमीनों को बंजर व नदियों के पानी को जहरीला बना रहा है। लेकिन खादी की निर्माण प्रक्रिया सर्वथा पर्यावरण अनुकूल है। यह हर मौसम में  पहने जाने वाला इको फ्रेंडली वस्त्र है। मिल में बने कॉटन के वस्त्र की अपेक्षा  यह अधिक आरामदायक व पसीने को सोखने वाला है।

खादी विश्व पटल पर- आज खादी देश से निकलकर दुनिया के बाजार मे छाने को तैयार है। खादी को वैश्विक स्तर पर उभारने को लेकर सरकार प्रयासरत है। भारत सरकार ने खादी कपड़ों की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिये ‘जीरो डिफेक्ट, जीरो इफेक्ट योजना’ को शुरू किया है। इससे खादी उत्पादों को वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाने में मदद मिलेगी। सरकार खादी को एक नए रूप में पेश करने की योजना बना रही है। इसका मकसद खादी को एक अंतरराष्ट्रीय ब्रांड की तरह पेश करना है। सरकार अब खादी को ’हरित वस्त्र’ के नाम से पहचान दिलाएगी।

सूक्ष्म लघु और मध्यम उद्यम राज्य मंत्री गिरिराज सिंह ने योजना से संबंधित एक प्रस्ताव प्रधानमंत्री को भेजा है। इसके मुताबिक सरकार खादी के उत्पादन और उसकी मार्केटिंग के लिए प्राइवेट टेक्सटाइल मिल्स से साझेदारी करेगी। इसके लिए कुछ कंपनियों से बातचीत भी की गई है। अगले एक महीने के अंदर इस पर रिपोर्ट आ जाएगी। अरविंद मिल्स और LEVI’S पहले से ही खादी का इस्तेमाल जीन्स बनाने के लिए कर रहे हैं।

मंत्रालय के मुताबिक उनका मकसद इस योजना के जरिए विदेशों में रह रहे तकरीबन 2.5 करोड़ भारतीयों को लुभाना है। इसके अलावा देश भर के 7000 से ज्यादा खादी दुकानों को रिवैंप करने की भी योजना है। कई मार्केट रिसर्च से यह सामने आ चुका है कि अकेले भारत में ही खादी के उत्पाद 40 हजार करोड़ रुपये का बाजार खड़ा कर सकते हैं। इस सर्वे में बताया गया है कि अगर स्कूल यूनिफॉर्म, रेलवे होटल आदि में खादी का उपयोग हो तो यह आंकड़ा छूना संभव है।

इसके अतिरिक्त कोविड की महामारी के मद्देनजर खादी के मास्क विदेशों में भेजने की तैयारी सरकार कर रही है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा सभी प्रकार के गैर-चिकित्सा/ गैर-सर्जिकल मास्क के निर्यात पर प्रतिबंध हटा लिए जाने के बाद, खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) अब विदेशों में खादी, कॉटन और रेशम फेस मास्क के निर्यात की संभावनाओं का पता लगा रहा है। विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) की ओर से इस संदर्भ में 16 मई को अधिसूचना जारी कर दी गई है।

केवीआईसी की योजना दुबई, अमेरिका, मॉरीशस और कई यूरोपीय और मध्य पूर्व देशों में खादी फेस मास्क की आपूर्ति करने की है, जहां पर पिछले कुछ वर्षों में खादी की लोकप्रियता काफी बढ़ी है। केवीआईसी की योजना इन देशों में भारतीय दूतावासों के माध्यम से खादी फेस मास्क बिक्री करने की है।

केवीआईसी के चेयरमैन श्री विनय कुमार सक्सेना ने कहा कि खादी “फेस मास्क का निर्यात, ‘स्थानीय से वैश्विक’ होने का सबसे बढ़िया उदाहरण है।” सक्सेना ने कहा, “प्रधानमंत्री की अपील के बाद हाल के वर्षों में खादी के कपड़े और अन्य उत्पादों की लोकप्रियता पूरी दुनिया में काफी बढ़ी है। खादी फेस मास्क के निर्यात से उत्पादन में गतिशीलता आएगी और अंतत: भारत में कारीगरों के लिए बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर उत्पन्न होंगे।”

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भी पिछले दिनों फिक्की के एक कार्यक्रम में कहा था, ”वर्तमान में 75,000 करोड़ रुपये से अगले पांच वर्षों में खादी और ग्रामोद्योग के कारोबार को 2 ट्रिलियन रुपये तक ले जाने की योजना बनाई गई है।”

सरकार के ये प्रयास यदि सिरे चढ़े, तो आगामी समय मे खादी अंतरराष्ट्रीय जगत में भारतीय वस्त्र के रूप में स्थापित होगी और भारत को गौरवान्वित करेगी।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: businessbusiness ownerbusinesscoachbusinesslifebusinessmanbusinesswomenhindi vivekhindi vivek magazinemsme

प्रवीण दत्त शर्मा

Next Post
RSS: 11-12 नवंबर को गुरुग्राम में कार्यकारी मंडल बैठक

RSS: 11-12 नवंबर को गुरुग्राम में कार्यकारी मंडल बैठक

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0