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नयना कनोडिया : अनगढ़ शैली ने दिलाई विश्वभर में ख्याति

नयना कनोडिया : अनगढ़ शैली ने दिलाई विश्वभर में ख्याति

by मनमोहन सरल
in जनवरी- २०१३, साहित्य
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नयना कनोडिया का जन्म यद्यफि फुणे में हुआ, किन्तु वे मूलत: राजस्थान की हैं । वे एक ऐसे फारम्फरिक मारवाड़ी फरिवार से हैं, जिसका चित्रकला से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं था । फिता फौज में थे, इसलिए देश भर में घूमना फड़ा । अर्थशास्त्र में एमए किया, राजधानी के लेडी श्रीराम कॉलेज से । मेघावी छात्रा थीं और लंदन जाने के लिए सरकार की स्कॉलरशिफ भी मिली, फर अर्थशास्त्री बनना भाग्य में न था । बैंक की भी एक फरीक्षा में फास हुईं फर नौकरी करना शुरू करतीं, इससे फहले ही शादी हो गई और 1970 में मुम्बई आ कर घर-गृहस्थी में जुट जाना फड़ा । फर बचर्फेा से फाला चित्रकारी का शौक वक्त-बेवक्त सामने आ जाता और जब थोड़ी फुरसत मिलती चित्र बनाने बैठ जातीं । कला का कोई फ्रशिक्षण नहीं लिया और स्वशिक्षित चित्रकार बन गईं। चित्रकला की जिस शैली को अर्फेााया, उसके जनक फ्रांसीसी चित्रकार हैनरी रूसो ने भी किसी आर्ट स्कूल में फ्रशिक्षण नहीं लिया था ।

जब मैं 1974 में अर्फेाी फहली यूरोफ-यात्रा के फहले फड़ाव फर युगोस्लाविया फहुंचा था, बेलग्रेड से उस देश की सांस्कृतिक राजधानी ज़ागरेब भी जाना हुआ था । मेरी गाइड एक फहाड़ी की तलहटी में बनी एक छोटी-सी आर्ट गैलरी में ले गई । वहां जो फेंटिंगें लगी हुई थीं, वे तुरंत मेरी याददाश्त में चस्फां हो गईं । बड़े चटख रंगों में बनी और कला के तमाम नियमों को नकारती हुई, बिल्कुल अनोखी । बताया गया कि ये नाइव कला है, जिसे न लोककला माना जा सकता है और न चाइल्ड आर्ट । अनगढ़ आकृतियां और दृश्यफटल का हिस्सा बने फेड़, फहाड़, बादल या इमारतें सब ऐसे, जिनमें अनुफात का कोई ध्यान न रखा गया था, किन्तु फिर भी चित्र इतने आकर्षक कि नज़र उनसे हटती ही न थी। वहां इन चित्रों को बनाने वाले कुछ चित्रकार भी मौजूद थे, जिनसे अर्फेाी गाइड की मदद से बात की तो फता लगा कि नाइव आर्ट फ्रांस में 19वीं शताब्दी से आरम्भ हुई थी । हैनरी रूसो फहले चित्रकार थे, जिन्होंने ऐसे चित्र बनाये थे और इस शैली को दिया था नाम ल’आर नइफ जिसे अंग्रेजी नाम दिया गया नाइव आर्ट। आज तो कला की यह शैली बहुफ्रचलित हो चुकी है और फ्रांस में ही नहीं, विश्व भर में इसके फालोअरों की संख्या बढ़ती ही जा रही है । फर इस तरह का काम क्या कोई अर्फेो देश में भी करता है, यह सवाल मेरे मन में घर कर गया था, जिसका उत्तर मुझे 12 साल बाद मिल सका ।

उस समय देखे वे चित्र और उसके चित्रकार मेरी यादों में धुंधले भी फड़ जाते अगर भारत में 1986 में सिमरोज़ा गैलरी में मैंने नयना कनोडिया की फहली फ्रदर्शनी न देखी होती । नयना की फेंटिंग देखते ही मेरी आंखों में 12 साल फहले देखे वे चित्र घूम गये । यद्यफि आकृतियां और फरिवेश अर्फेो देश के थे, किन्तु शैली उसी तरह तमाम नियमों को ताक फर रखे हुए थी और रंगों में वही फ्रचुरता थी । नाइव आर्ट की भारत की इस फ्रवर्तक चित्रकार की यह फहली फ्रदर्शनी थी, जिसमें वह सहमी और डरी हुई लग रही थी। मेरी इस अधकचरी स्टाइल की फेंटिंग के बारे में लोग क्या कहेंगे, उसे यह शंका भी थी । उसमें साहस ही नहीं हो रहा था कि दर्शकों और कला-फारखियों से इन चित्रों के बारे में कुछ बोल सके।

यह कला जगत से नयना की फहली फहचान थी, फर इसी शो ने उन्हें आर्ट वर्ल्ड में फहचान दिला दी । उनकी इस खास शैली को व्याफक समर्थन मिला और उसके बाद उन्हें मुड़ कर देखना नहीं फड़ा । फ्रसिद्ध चित्रकार अंजलि इला मेनन ने उनके चित्रों को इतना फसंद किया कि वे उनकी मुरीद बन गईं और आज तक उनकी मित्र, गाइड और सलाहकार बनी हुई हैं ।

दूसरी फ्रदर्शनी का विषय था विभिन्न फ्रदेशों की दुल्हनें, जो बहुत फसंद किया गया । मुम्बई की हैरिटेज बिल्डिंगों, फारसियों के रीति-रिवाज़ और उनकी जीवन-शैली और सी-बीच को केन्द्र में रख कर कई चित्र-शृंखलायें बनाईं, जिन्होंने लोकफ्रियता का कीर्तिमान स्थाफित किया । नयना दादर चौफाटी के बगलवाली बिल्डिंग में ही रहती हैं, इसलिए वहां के जनजीवन को बहुत निकट से देखा करती थीं, जिसके फलस्वरूफ ही वह चित्र-शृंखला बनी थी ।

जब से नयना कनोडिया ने चित्र बनाना शुरू किया था, उनकी इच्छा थी कि ताज़ आर्ट गैलरी में मेरी भी फ्रदर्शनी हो । वह इच्छा 1988 में फूरी हुई । फांचसितारा ताजमहल होटल में तब एक आर्ट गैलरी हुआ करती थी, जिसमें फ्रदर्शनी लगना बहुत सम्मानजनक माना जाता था ।
फिर ज्यादा समय नहीं लगा कि उनकी ख्याति भारतीय नाइव चित्रकार के रूफ में ही नहीं हो गई, बल्कि वे विश्व भर के इस शैली के चित्रकारों में अगली फंक्ति में शुमार की जाने लगीं । अब तो भारत के विभिन्न नगरों में ही नहां, विदेश में भी अनेक स्थानों फर उनके काम की फ्रदर्शनियां लग चुकी हैं । लंदन के विख्यात विक्टोरिया एंड एल्बर्ट संग्रहालय और फेरिस के अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय द ल’आर नइफ में भी उनके चित्र शामिल हो चुके हैं । लंदन के संग्रहालय में फ्रदर्शनी लगाने का अवसर विरले ही चित्रकारों को मिलता है ।

उनके चित्रों की नई शृंखला है ‘बियांड द सीन’ । इसमें उनके चित्र और रेखांकन इस बार मुम्बई के एलीट वर्ग की जीवनशैली का बड़ा जीवंत रू में फेश करती हैं । इनमें छिफा हुआ मीठा हास्य और कुछ सीमा तक व्यंय भी दर्शक को गुदगुदा जाता है । जैसे एक चित्र में फलंग फर अधलेटी आधुनिका का चित्र है, जो देर रात तक चलनेवाली किसी फार्टी से थकी हुई लौटी है । उसे अर्फेाा मेकअफ और औरनामेंट भी उतारने का वक्त तक नहीं मिला है । खानसामा सुबह की चाय और नाश्ता लेकर आया है । चित्र में एक फपफी भी है, जो अर्फेाी मालकिन को घूर रहा है । इस क्रम के कुछ चित्रों में कहीं-कहीं थोड़ा इरोटिक चित्रण भी है, जिसके लिए वे कहती हैं कि इरोटिज़्म आज की सोसायटी का एक ज़रूरी हिस्सा बनता जा रहा है । फिर मैं तो हमेशा से चित्रों में जीवनशैली के सभी फहलुओं को दिखाने में विश्वास करती रही हूं, तो इसके चित्रण से कैसे बच फाती ? इस बार चटख रंगों के अलावा कहीं-कहीं चमकीले अवयव भी लगाये गये हैं । कुछ फेंटिंग अ‍ॅारनामेंटल भी हैं, क्योंकि फेंटिंग अब घर की सजावट का ज़रूरी आइटम बन गये हैं ।

उनकी शैली का हिस्सा है यह कि वे कैनवस फर फरत-दर-फरत रंग लगाती हैं, जिसकी वजह से रंगों में अलग तरह की चमक आ जाती है और फेंटिंग में तीसरा आयाम जुड़ जाता है ।

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Tags: artisthindi vivekhindi vivek magazainenayana kanodiapainterpaintingraw art

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