सरोद को समर्पित ‘सरोदरानी’

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सरोद जैसे मरदाने वाद्य को बजाकर ‘सरोदरानी’ के नाम से प्रसिद्ध हुई शरणरानी बाकलीवाल का जन्म 9 अप्रैल , 1929 को दिल्ली में लाला पन्नूलाल और श्रीमती नंद रानी के घर में हुआ था। घर में ग्रामोफोन पर श्रीकृष्ण भक्ति के गीत बजते तो थे; पर संगीत की विधिवत परम्परा…

एक कलाकार की पानी पर पहल

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दुनिया के हर हिस्से में, शहरों से लेकर गांवों की दीवारों और पानी की टंकियों पर ‘जल ही जीवन है’ का नारा लिखा हुआ है। लेकिन क्या वह नारा जन-जीवन पर असर कर रहा है? क्या उसने कभी दशा और दिशा दी है?

प्रकृति का कोई राग ही है रंजना पोहनकर की कला

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वह संगीतकारों के परिवार में पैदा हुईं। उनके पिता श्री कृष्णराव मजुमदार देवास दरबार के प्रसिद्ध गायक उस्ताद रजब अली साहब के शिष्य थे। घर में शास्त्रीय संगीत का वातावरण बचपन से ही मिला और विवाह भी अजय पोहनकर परिवार में हुआ जो आज भी शास्त्रीय गायन में प्रमुख स्थान रखता है।

गांवों को समर्फित चित्रकार दत्तात्रय फाडेकर

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लगभग नाटे कद का व्यक्ति, खद्दर का सफेद कुर्ता-फाजामा फहने, जिसके कंधे फर लटका होगा खद्दर का ही झोला आफको जहांगीर आर्ट गैलरी की सीढ़ियां चढ़ता अक्सर दिखायी फड़ जायेगा ।

पूनम अगरवाल : चित्रों के बहाने रूपांतरण और आत्मपरीक्षण

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कला एक ज़रिया बन सकती है खुद को बदलने और आत्मचिन्तन का, मानती हैं युवा चित्रकार पूनम अगरवाल। हम समाज को, दुनिया को तो नहीं बदल सकते । चारों तरफ फैले भ्रष्टाचार और गंदी राजनीति में बदलाव नहीं ला सकते, लेकिन अर्फेो स्व का रूपांतरण तो कर सकते हैं ।

नयना कनोडिया : अनगढ़ शैली ने दिलाई विश्वभर में ख्याति

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नयना कनोडिया का जन्म यद्यफि फुणे में हुआ, किन्तु वे मूलत: राजस्थान की हैं । वे एक ऐसे फारम्फरिक मारवाड़ी फरिवार से हैं, जिसका चित्रकला से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं था । फिता फौज में थे, इसलिए देश भर में घूमना फड़ा ।

कंचन चन्द्र स्त्री-विमर्श की चित्रकार हैं

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राजधानी की बहुचर्चित चित्रकार कंचन चन्द्र का कहना है कि ‘कला सामाजिक स्थितियों से उत्पन्न होती है। कला का सर्जक और उसकी कृति-दोनों समाज की शक्तियों से बंधे होते हैं, जो कि कला का स्वरूप गढ़ने के लिए उत्तरदायी होती है। मुझ पर भी यही नियम लागू होता है।’

पी.डी.झा की रेखाओं और रंगो में उतरे कालिदास

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भारत के प्राचीन महानतम संस्कृत के महाकवि साहित्यकार कालिदास मध्यप्रदेश की उज्जयनी नगरी से जुड़े और सर्वकालिक श्रेष्ठतम रचनाओं की सृजित किया, महाकवि कालिदास को अपने अनुपम साहित्य की कई अनोखी विशेषताओं में से एक अर्थात् उपमा के लिये संपूर्ण विश्व में सर्वोच्च स्थान पर प्रतिष्ठित किया गया है।

अनश्वर फक्षी के फ्रतीक-चित्रों के बहाने

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यद्यफि शुक्ला चौधुरी शान्तिनिकेतन में अर्फेाा स्नातक की फढाई फूरी नहीं कर फाईं, किन्तु वहां उन्हें कला के तमाम महत्वफूर्ण गुर सीखने का अवसर मिला ।

जलरंगों को समर्फित चित्रकार : समीर मंडल

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आमिर खान की फिल्म ’तारे ज़मीन फर’ याद होगी । उसमें मंदबुद्धि बालक को ड्राइंग सिखाता है एक चित्रकार, जो शायद फृष्ठभूमि में है किंतु वह कला जगत में फृष्ठभूमि में नहां है बल्कि चित्रकारों की फहली फायदान फर है ।

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