शहीदों की याद का एक खास दिन

देश की आजादी में अहम भूमिका अदा करने वाले क्रांतिकारियों की सूची बड़ी लंबी है, इसी सूची में एक नाम है बारहठ केसरी सिंह। राजस्थान की भूमि के इस सपूत ने देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। क्रांतिकारी बारहठ केसरी सिंह का जन्म 21 नवम्बर,1872 में शाहपुरा के निकट स्थित गांव देवपुरी में हुआ था। बारहठ के जन्म के सिर्फ एक माह बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया। सात वर्ष की आयु से ही वे पिता के आग्रह पर स्वामी दयानंद, महान क्रांतिकारी श्याम जी कृष्ण वर्मा, अरविंद और लोकमान्य तिलक के सानिध्य में रहे।

उदयपुर में शिक्षा के दौरान बारहठ केसरी सिंह ने संस्कृत और अंग्रेजी की शिक्षा ग्रहण की। विवाह के पश्चात भी उनका देशप्रेम का सिलसिला जारी रहा। देश को अंग्रेजों के हाथ से कैसे मुक्त कराना है, इसके लिये वे सदैव तत्पर रहते थे, इसलिए उन्होंने कई भाषाओं जैसे संस्कृत, पाली के अलावा राजस्थानी, बंगाली, मराठी, गुजराती भाषा के साहित्यिक ग्रंथों का अध्ययन किया। दर्शन, राजनीति, ज्योतिष और वेदांत का भी इन्होंने गहन अध्ययन किया।

महाराष्ट्र और बंगाल में जब क्रांतिकारी दल संगठित हो रहे थे, तब उत्तर भारत में महाविपलवी नायक राम बिहारी बोस के नेतृत्व में सशस्त्र क्रांति का आयोजन हो रहा था। राजस्थान में इस क्रांति को संचालित करने का दायित्व केसरी सिंह को सौंपा गया था। खरबा के ठाकुर गोपाल सिंह, अर्जुन लाल सेठी तथा व्यावर के दामोदर दास राठी के सहयोग से राजस्थान में अभिनव भारत समिति की स्थापना की गई। इस समिति ने बंगाल के क्रांतिकारियों के साथ संबंध स्थापित किए, इसी दौरान केसरी सिंह का रास बिहारी बोस से सम्पर्क हुआ और राजस्थान में वे क्रांति के लिए संगठन करने में जुट गए। केसरी सिंह पहले युवकों को अपनी समिति में स्थान देते थे, उन्हें प्रशिक्षण के लिए अर्जुन लाल सेठी के विद्यालय में भेजते थे, जहां उनमें देशभक्ति की भावना और क्रांति के लिए अभिरुचि उत्पन्न की जाती थी। इन क्रांतिकारी युवकों में से कुछ चुनिंदा युवकों को दिल्ली में रास बिहारी बोस के प्रमुख सहायक मास्टर अमीरचंद्र के पास भेजा जाता था। केसरी सिंह ने अपने भाई जोरावर सिंह, पुत्र प्रताप सिंह और जामाता ईश्वरदान आसिया को मास्टर के अमीरचंद्र के पास क्रांतिकारी कार्यों का प्रशिक्षण लेने के लिए भेजा था।

देश की आजादी में अहम भूमिका अदा करने वाले राजस्थानी सपूत केसरी सिंह के बलिदान की जानकारी वर्तमान तथा आने वाली पीढ़ी को हो, इस मूल उद्देश्य को सामने रखकर कुछ स्थानीय युवाओं ने 40 वर्ष पूर्व यह संकल्प लिया था कि राजस्थान के इस सपूत का स्मारक बने। इस स्मारक के निर्माण के लिए श्री केसरी सिंह बारहठ स्मारक समिति का गठन किया गया और 21 नवंबर,1972 को त्रिमूर्ति स्माारक शिलान्यास समारोह का आयोजन किया गया। इस समारोह में राजस्थान की माटी के सपूत वीर जोराश्वर सिंह, प्रतापसिंह बारहठ तथा अमर शहीद कुंवर प्रताप सिंह द्वारा देश की आजादी के लिए दिए गए योगदान को याद किया गया। इस त्रिमूर्ति स्मारक का शिलान्यास 26 अप्रैल, 1976 को तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी ने किया। यहां प्रतिवर्ष 23 दिसम्बर को शहीद मेले का आयोजन किया जाता है। उल्लेखनीय है कि 23 दिसम्बर, 1912 को दिल्ली में वायसराय लार्ड हार्डिंग पर क्रांतिकारी

वसंत विश्वास ने बम फेंका था, इस कारण वायसराय घायल हो गए थे। इस घटना के कारण ब्रिटिश हुकुमत में हड़कंप मच गया था। इस घटना के बाद क्रांतिकारी ज्योतिन्द्रनाथ मुखर्जी और सचीन्द्रनाथ सान्याल से वसंत विश्वास ने मुलाकात की और आगे की रणनीति बनाई। राजस्थानी माटी के क्रांतिकारियों द्वारा जिस तिथि को ब्रिटिश हुकुमत को हिलाकर रख दिया गया था, उसकी स्मृति को ताजा रखने के लिए हर साल 23 दिसम्बर को शहीद मेले का आयोजन किया जाता है, इस वर्ष भी 23 दिसम्बर से शाहपुरा (भीलवाडा) राजस्थान में शहीद मेले का आयोजन किया गया, इस मौके पर वहां की देश प्रेमी जनता ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। अंग्रेजों के शासन काल में वायसराय की ब्रिटिश सरकार का भारत में प्रमुख प्रतिनिधि के तौर पर नियुक्ति की गई थी। भारत में वायसराय को सर्वशक्तिमान ब्रिटिश अधिकारी माना जाता था। यह वायसराय जब दिल्ली में प्रवेश कर रहा था, उसके साथ लोगों की विशाल शोभायात्रा भी थी। वायसराय की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया जा रहा था। इस शोभायात्रा के समय किसी तरह की अप्रिय घटना न हो, इसकी निगरानी करने के लिए दिसम्बर माह शुरू होते ही दिल्ली की गली-गली में पुलिस की विशेष टुकड़ी की गस्त बढ़ा दी गई थी, इसके बावजूद वायसराय पर हमला किए जाने से ब्रिटिश हुकुमत की नींव ही डगमगा गई। भारतीय इतिहास के इस उज्ज्वल पृष्ठ को सदा ताजा रखने के लिए श्री केसरी सिंह बारहठ स्मारक समिति की ओर से आयोजित किया जाने वाला यह कार्य बहुत अच्छा है, ऐसे आयोजन से जहां एक ओर देशप्रेम का जज्बा पैदा होता है, वहीं दूसरी ओर नई पीढ़ी को यह पता चलता है कि हमारी भूमि पर कितने शूरवीरों ने जन्म लिया था।
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