श्योर शॉट

किसी भी उत्पाद को लोगों तक पहुनचांने में विज्ञापनों का बहुत बड़ा योगदान होता है। प्रतियोगिता के इस दौर में तो इस बात की होड लगी है कि किस उत्पाद का विज्ञापन कितना प्रभावशाली है। पेपर का कोई कोना, टीवी के कुछ सेकंड या राह चलते दिखनेवाले होर्डिंग्स कभी-कभी बरबस ही आपका ध्यान आकर्षित कर जाते है। उत्पाद की जानकारी, उससे होनेवाले लाभ, अन्य उत्पादों से तुलना आदि सभी का उल्लेख इतने कम समय और जगह में करना भी एक कला है। यह कला अब धीरे-धीरे व्यवसाय का रुप ले चुकी है। अन्य उद्योगो की तरह की इसमें भी विभिन्न स्तर पर लोग कार्यरत हैं। लोगों के सामने इसका सबसे परिचित रुप है विज्ञापन एजेंसियां। यह एजेंसियां उत्पादकों को उनके उत्पाद को लोगों तक पहुंचाने का माध्यम बनती हैं। आकर्षक ग्राफिक्स और प्रभावपूर्ण के माध्यम से ये उत्पादों का लेखा जोखा बयान करती हैं। इसी तरह की एक विज्ञापन एजेंसी है श्योर शॉट। नवी मुंबई स्थित यह एजेंसी अपने नाम के अनुरुप ही यह अपने ग्राहकों को प्रभावशाली विज्ञापन उपयुक्त मूल्य पर प्रदान करती है।

सन् 1984 में स्व. रमन देसाई में इसकी स्थापना की थी। सन 1986 में नीलेश वोरा ने इसे संभाला मसाले एवं गृहोपयोगी वस्तुओं को बेचने का पारिवारिक व्यवसाय था।

ऐसे में विज्ञापन एजेंसी को संभालना और आगे बढ़ाना उनके लिये चुनौती पूर्ण कार्य था। दो दशकों के अपने प्रवास में ‘श्योर शॉट’ ने विभिन्न क्षेत्रों जैसे-एफ.एम.सी.जी, ऑटोमोबाइल, फार्मा, कंस्ट्रक्शन आदि में अपनी पैठ जमाई। पब्लिक सेक्टर में काम करने वाले उद्यमों का भी इन्हे भरपूर सहयोग मिला।

कुछ अन्य कंपनियां और ब्राण्ड जिन्होंने कामयाबी की सीढ़ियों ‘श्योर शॉट’ के साथ चढ़ी वे इस प्रकार है। 1) बिल्स फार्मासिटिकल्स, टुडे कान्ट्रासेपटिव, पीतांबरी साडी इत्यादि। इनमें से टुडे कान्ट्रासेपटिव और पीतांबरी तो पिछले 10 वर्षों से ‘श्योर शॉट’ के साथ कार्यरत है। इनके अन्य ग्राहकों में भूमिराज बिल्डर, ई. जी. कांतावाला प्रा. लि., ओरिजन बिल्डर, साई डेव्हलपर्स, शेठ इंटरप्राइजेज, ग्लोवुड इंटरप्राइजेज इत्यादि शामिल है। जे. पी. मोरगनपेस के लिये ‘श्योर शॉट’ ने बडे पैमान पर इन. हाउस विज्ञापन बनाये है। और एक. आर. आर. शेयर और सिक्युरिटीज लिमिटेड भी इनके ग्राहक हैं।

एजेंसी का प्रयत्न सदैव अपने ग्राहकों के पूर्ण संतुष्ट करने की ओर रहता है। नीलेश वोरा का कहना है कि ‘श्योर शॉट’ अपने ग्राहकों को पूर्ण सेवायें देता है। अखबारों टी. वी., रेडियो, बैनर, होर्डिंग के अलावा प्रदर्शनिया और स्टाल लगाकर मार्केटिंग करने में भी हम सिद्धहस्त हैं। ऑन-ग्राउण्ड एक्टिवेशन्स में भी हमने कई स्थानों पर भाग लिया है।’’ नीलेश कहते हैं कि, ‘‘हर व्यवसाय की तरह ही इसमें भी प्रतियोगिताएं बढ़ रही हैं।’’ वे स्वस्थ प्रतियोगिता के पक्षधर हैं, परंतु आज बाजार में अपना व्यवसाय बढ़ाने के लिये ग्राहकों को जो प्रलोभन दिये जाते हैं उनके खिलाफ हैं। उनका मानना है कि विज्ञापन बनाना दिल से किया जानेवाला कार्य है। अपने ‘क्रियेटिव आइडिया’ के बल पर लोगों को आकर्षित करने के लिये कई बातें सोचनी पडती हैं। जब से इसे व्यवसाय का रुप दिया गया है, तब से दिल की जगह दिमाग का उपयोग होने लगा है। नीलेश की सदैव यह कोशिश रहती है कि वे अपने ग्राहकों को पूर्ण रुप से संतुष्ट कर पायें। नये ग्राहकों को जोडने के संबंध में भी वे उन्हे किसी व्यावसायिक प्रलोभन की अपेक्षा अपना कार्य दिखाकर जोडने में विश्वास रखते हैं।

मध्यम स्तर की विज्ञापन कंपनियों की सबसे बड़ी चुनौती वे मानते हैं प्रतिभा संपन्न लोगों को ढूंढना। ऐसे लोग जो नये-नये विचारों को मूर्त रुप दे सकें, आज बाजार में उपलब्धता हैं परंतु अनुभव के अनुरुप ही उनका मानधन भी अधिक होता है। ऐसे में इस तरह के 5-6 लोगों को भी अपने साथ रखने के लिये काफी बडी रकम अदा करनी होती है।

नीलेश डिजिटल क्षेत्र में अपनी तकनीकों विकसित करने की ओर ज्यादा ध्यान दे रहे है। उनके अनुसार प्रिंट मीडिया और विज्ञापन आने वाले वर्षों में न्यूनतम होते जायेंगे और डिजिटल का प्रभाव बढ़ेगा। पेपर कम नष्ट होने की वजह से यह पर्यावरण के लिये भी अनुकूल है। और पेपर की तुलना में अधिक सुविधाजनक होगा। आज और आनेवाली पीढ़ी भी डिजिटल विज्ञापनों की ओर ही आकर्षित होगी।

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