हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
पश्चिम घाट और पर्यावरण

पश्चिम घाट और पर्यावरण

by सुधीर जोशी
in पर्यावरण, फरवरी २०१३, सामाजिक
0

पश्चिम घाट का उल्लेख करते ही पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील कहे जाने वाले 39 स्थानों का क्षेत्र नेत्रों के समक्ष आ जाता हैं। महाराष्ट्र, गोवा, गुजरात, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु इस राज्यों में फैला हुआ पश्चिम घाट जैव विविधताओं से परिपूर्ण है। पर्यावरण की दृष्टि से भी यह कम महत्त्वपूर्ण नहीं है, पर यह क्षेत्र संवेदनशील भी है। यूनेस्को ने पश्चिम घाट के अंतर्गत आने वाले सभी 39 स्थानों की विश्व संपदा घोषित किया है। पश्चिम घाट के अंतर्गत महाराष्ट्र के पठार, चांदोली अभ्यारण्य, कोयना अभ्यारण्य, राधानगरी अभ्यारण्य शामिल है।

पश्चिम घाट के संदर्भ में वरिष्ठ पर्यावरण विशेषज्ञ माधव गाडगिल समिति द्वारा प्रस्तुत की गई रिपोर्ट का हवाला देते हुए जो कुछ कहा गया है, वह पर्यावयण की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है और अब इस बारे में विश्व स्तर पर चर्चा भी होने लगी हैं। केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की ओर से उपलब्ध जानकारी के अनुसार वरिष्ठ पर्यावरण विशेषज्ञ माधव गाडगिल की अध्यक्षता में समिति ने पश्चिम घाट की जैव विविधता और पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील परिसरों की जानकारी एकत्र की।

समिति ने अनेक स्थानों का प्रत्यक्ष दौरा करके वहां के नागरिकों, विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों, स्थानीय स्वराज्य संस्था, संबंधित राज्यों के मंत्रियों आयुक्त आदि ने पश्चिम घाट क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से क्या क्या कदम उठाए जा सकते हैं, इत्यादि संदर्भों को ध्यान में रखकर अपनी रिपोर्ट बनायी। 30 अगस्त, 2011 को इस रिपोर्ट को वन तथा पर्यावरण मंत्रालय के पास भेजा गया।

पश्चिम घाट और पर्यावरण के मसले पर माधव गाडगिल समिति के अध्यक्ष माधव गाडगिल ने इस क्षेत्र की जैव विविधता की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए बताया कि प्राकृतिक रुप से सबसे सुंदर क्षेत्र हिमालय इस में म्यानमार (बर्मा, भूटान, बांग्लादेश की सीमा क्षेत्र प्रमुखता से आते हैं) जैव विविधता का प्रमाण और प्रजातियों की संख्या यहा बहुत ज्यादा है। अंदमान-निकोबार का क्षेत्र भी बहुत समृद्ध है। हिमालय के पूर्वी क्षेत्र में भले ही जैविक विविधता हो, पर वह सिर्फ भारत तक ही सीमित नही है। इससे सटे नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, म्यानमार (बर्मा), चीन जैसे देशों का भी इसमें समावेश है। इसके अलावा भारत में सह्याद्रि में प्राप्त होनेवाली अनेक प्रजाति विशेष रूप से वहीं की हैं।
यहां की एक और विशेषता यह है कि काली मिर्च, इलायची जैसे मसाला बनाने में उपयोग में लाए जाने वाले पदार्थ भी यहां आसानी से प्राप्त होते है, इतना ही नहीं यहां फलों का राजा कहे जाने वाले आम का उत्पादन भी भारी मात्रा में होता है। साथ ही कटहल की खेती भी अच्छी मात्रा में होती हैं। इस तरह अगर यह कहा जाए की यह क्षेत्र वनस्पति उत्पादन में अग्रणी है, तो कुछ गलत नहीं होगा।

माधव गाडगिल के अनुसार पश्चिम घाट के संदर्भ में किसी भी राज्य सरकार अथवा केंद्र सरकार ने उन्हें रिपोर्ट के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं दी है। 30 अगस्त, 2011 को रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद केंद्र सरकार से उन्होंने कहा था कि केंद्र सरकार अथवा राज्य सरकार को इस रिपोर्ट के बारे में कुछ प्रश्न रखने हों तो उसके उत्तर देने के लिए हम तैयार हैं। महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री से जब माधव गाडगिल ने मुलाकात की तो उन्होंने भी इस मसले पर कुछ चर्चा करने की बात कही थी, पर बाद में न जाने क्या हुआ, इस मुद्दे पर किसी भी स्तर पर बातचीत नहीं हुई, किसी को चर्चा के लिए आमंत्रित नहीं किया

गया। माधव गाडगिल का कहना है कि उसकी ओर सरकार ने गंभीरता से ध्यान ही नहीं दिया इस रिपोर्ट के बारे में तरह-तरह के तर्क करके रिपोर्ट की सिफारिशों को नकार दिया गया।

गाडगिल का कहना है कि हमें कार्य ही यह सौंपा गया था कि पश्चिम घाट के किन-किन परिसर में पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल कार्य करने की जरुरत है। कैसे इन क्षेत्रों में पर्यावरण के अनुकूल कार्य हो सकते हैं, इसके बारे मैं विस्तृत रिपोर्ट तैयार की जाए। इस मौके पर हमें बताया गया था कि एक छोटा से विशेषज्ञों का दल इस छोटी सी रिपोर्ट पर इतनी जल्दी क्या प्रतिक्रिया दे सकता है। नंदूरबार के भिल्ल समाज के लोगों की क्या स्थिति है। केरल की जैवविविधता की स्थिति क्या है, इस तरह की छोटी-छोटी बातों के बारे में जानकारी एकत्र की गई। रिपोर्ट में दिए गए सुझावों को जैसे के तैसे अमल में लाया जाए, यह रिपोर्ट तैयार करने वालों की इच्छा नहीं थी, पर उन्हें उतना भरोसा जरूर था कि रिपोर्ट में दी गई जो बातें, सुझाव अहम नजर आ रहे हैं, उसे स्वीकार जरूर किया जाएगा।

गाडगिल का कहना है कि पर्यावरण संरक्षण के कई अच्छे कानून अपने देश में हैं, पर उसे कभी-भी अमल में नहीं लाया जाता, हमने अपनी रिपोर्ट में उदाहरण के साथ अपनी बात कही है, यह भी बताया कि कौन सा कानून कब लागू हो सकता है, रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा किया गया है कि कैसे कानून को धता बताकर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। हमारे विचार से पर्यावरण संरक्षण विषयक जो नियम कानून बने हैं, उसको सही ढंग से अमल में लाया जाए। अगर रिपोर्ट में सुझाई गई बातों पर अमल किया गया तो उद्योग, विविध झीलों की परियोजनाएं, संभावित जलविद्युत प्रकल्प, खानें, गृहनिर्माण आदि योजनाओं पर आसानी से कार्य करना संभव हो पाएगा। बताया यह जा रहा है कि उन रिपोर्ट के खिलाफ ऐसा वातावरण तैयार किया जा रहा है कि उन रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया गया तो इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। गाडगिल का कहना है कि अगर गैर कानूनी तरीके से खनन चलता रहा तो इससे जो प्रदूषण फैलेगा, उसके खिलाफ आंदोलन होना स्वाभाविक ही है।

गाडगिल ने बताया कि उन्होंने जो रिपोर्ट तैयार की है, तालाबों बांधो का निर्माण गांव से जिला स्तर तक के लोगों से बातचीत के बाद ही तय किया जा सकता है। लोगों को विश्वास में लिए बगैर तालाबों का निर्माण करना ठीक नहीं हैं। बांधों का निर्माण ही ऐसा कही भी नहीं कहा है। प्रदूषण फैलाने वाले कारखानों को बंद करने से कई लोगों को रोजगार से हाथ धोना पड़ेगा, इन कारखानों के कारण यहां 11000 लोगों को रोजगार मिला है। इस तरफ की बात रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग की रिपोर्ट में कही गयी हैं। बताया ही भी जा रहा है कि प्रदूषण फैलाने वाले कारखानों के कारण दाभोल की खाड़ी के 2000 मछुआरे बेरोजगार हो गए।

पर्यावरण के मुद्दे को लेकर बेरोजगार हुए 2000 बेरोजगारों की बकाया राशि का भुगतान करने के मुद्दे पर आंदोलन करने वाले मजदूरों के कारण बेरोजगार का मामला दिन ब दिन बढ़ता जा रहा हैं। दरअसल ऐसा नहीं है। सरकार सत्यता न प्रस्तुत कर जनता का गुमराह कर रही है। पर्यावरण के मुद्दे को लेकर स्थानीय जनता आंदोलन कर रही है, अगर सरकार का ऐसा कहना है तो वह समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट को लेकर जनता के सामने क्यों नहीं जाती? उसके समक्ष वह रिपोर्ट क्यों नहीं प्रस्तुत करती। यह सब हमें नहीं चाहिए, ऐसा जब तक वहां की जनता नहीं कहती तब तक रिपोर्ट में की गई सिफारिशे जनहित वाली ही कही जाएंगी। इस क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण आर्थिक विकास और रोजगार को लेकर जो भ्रम की स्थिति पैदा की जा रही है वह रिपोर्ट को अस्वीकार न करने की साजिश है। लोगों को जैसा विकास चाहिए, अगर वैसा विकास हो गया तो उसे आश्चर्य ही माना जाएगा। गाडगिल का कहना है कि कई बातें ऐसी हैं, जो लोगों को स्वीकार्य नही हैं, फिर उन पर उसे स्वीकार करने का जो दबाव डाला जा रहा है, वह समस्या का मूल कारण है।

सच तो यह है कि लोगों में पर्यावरण के बारे में जागृति न होने के कई कारण हैं। इसमे सबसे प्रमुख कारण यह है कि लोगों को सच्चाई का पता ही नहीं हैं। रिपोर्ट के माध्यम से लोगों को जैव विविधता के बारे में जानकारी मिल सकेगी। गाडगिल का कहना है कि यह रिपोर्ट सरकारी खर्च से तैयार की गई है। इस बारे में विस्तृत अध्ययन कराने के बाद तैयार की गई, इस रिपोर्ट की ओर गंभीरता से ध्यान न देना ही सबसे बड़ी जरूरत है। यह रिपोर्ट जनता तक पहुंचनी ही चाहिए, तभी यह ज्ञात होगा कि रिपोर्ट का सच क्या है? लोगों के बीच जनजागरण कर इसके बारे में निर्णय लेने के लिए उनको ही सक्षम करना होगा, उनको अंधकार में रखना ठीक नहीं है।

पर्यावरण के बारे में नियम-कानून को अमल में लाकर पर्यावरण के संवर्धन के लिए विविध उपक्रम किए जा सकते हैं। लोगों को इसमें सहभागी करने की बात पर्यावरण से जुड़े अनेक नियमों में कही गई है। दुर्भाग्य से इनमें से एक भी नियम कानून को अमल में नहीं लाया जा रहा। यूनेस्को की ओर से 39 स्थानों को विश्वस्तरीय धरोहरों में शामिल किया गया, उसका संबंध समिति की रिपोर्ट से जोड़े जाने के विषय में गाडगिल का कहना है कि यूनेस्को की ओर से पश्चिम घाट के 39 स्थानों को विश्वस्तरीय धरोहरों में स्थान देने का हमसे कोई लेन-देन नहीं था, जिन लोगों ने इस बारे में सर्वेक्षण किया था, उनसे हमने इस मसले पर चर्चा करने की अपील कि थी। उनसे यह भी कहा गया था कि आपको उपयोगी पड़ने वाली बहुत सी जानकारी हमारे पास है, बावजूद इसके सर्वेक्षण करने वालों ने हमारी बात नहीं सुनी।

युनेस्को स्थानीय लोगों से विचार-विमर्श नहीं किया। यूनेस्को को सलाह देने वाली समिति आई.यू.सी.एन. ने अपने प्रस्ताव में कहा है कि इस सर्वेक्षण में स्थानीय लोगों से जब चर्चा ही नहीं की गई तो फिर उसे विश्वस्तरीय दर्जा कैसे दिया जा सकता है? कोयना और सातारा में एक बैठक आयोजित की गई थी, इसका आशय यह नहीं होता कि स्थानीय लोगों से अनुमति ली गई। इसी बैठक को आधार बनाकर रिपोर्ट बनाई गई।

गाडगिल का कहना है कि अमरीका ने पर्यावरण के मुद्दे को अकार अंतर्राष्ट्रीय व्यूहरचना का हिस्सा बनाया है। लेकिन इने केवल अंतर्राष्ट्रीय बनाकर काम नहीं चलेगा। राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण संरक्षण की एक विशद योजना तैयार करनी होगी। एक राष्ट्रीय व्यूह रचना तैयार पर्यावरण संरक्षण कैसे सफलतापूर्वक किया जा सकता है, इसके बारे में एक व्यापक रणनीति बनानी होगी। उल्लेखनीय है कि जो महत्त्व खनिज संपत्ति का है, वही महत्त्व वनस्पति और वनप्राणियों की भी हैं। इनमें से अनेक वनस्पतियों में औषधि गुण होता है। इन औषधियों की विश्वस्तर पर माँग होती है। इन वनस्पतियों का उचित उपयोग हो, इसके बारे में सभी को गंभीरता से सोचना होगा।
पर्यावरण संवर्धन के बारे में गंभीरता से चिंतन करने वालो की संख्या बहुत कम है। वर्तमान में विश्व के कई देशों में पर्यावरण संरक्षण को लेकर जो गंभीरता देखी जा रही, वैसी गंभीरता भारत में नहीं हैं। अगर पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से जागरुक देशों की कतार में भारत को भी खड़ा किया गया तो भारत पर्यावरण की दृष्टि से सजग राष्ट्र बन जाएगा। भारत में वन संपदा, खनिज संपदा, वनस्पति संपदा इतनी प्रचूर मात्रा में है कि उससे प्रकृति को अनेक लाभ प्रदान किए जा सकते हैं, पर पर्यावरण की ओर अनदेखी करने के कारण पर्यावरण संरक्षण नहीं हो पा रहा है।

यूनेस्को जैसी विश्वस्तरीय संस्था पर पश्चिमात्य विकसित देशों की सत्ता चलती है, यह हुआ सत्य है। इसलिए पश्चिम घाट को लेकर यूनेस्को की जो रिपोर्ट सामने आई है, वह भारत को कम उन देशों को ज्यादा फायदा पहुँचाने वाली होगी।

गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रीकर ने भी पश्चिम घाट के संबंध में यूनोस्को की ओर तैयार की गई रिपोर्ट को गोवा, महाराष्ट्र के साथ-साथ इस क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले अन्य क्षेत्रों के लिए नुकसानदायक करार दे दिया है। उनका कहना है कि अगर यूनेस्को की ओर से प्रस्तुत की गई रिपोर्ट को अमल में लाया गया तो स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर खत्म हो जाएंगे, यहां की वन-संपदा, वनस्पति तथा उद्योगों पर भी व्यापक असर पड़ेगा। इसलिए पश्चिम घाट को पर्यावरण की दृष्टि से अच्छा रखना होगा, जो बातें पर्यावरण संरक्षण के खिलाफ हैं, उसका हर कीमत पर विरोध किया जाए और जो पर्यावरण के लिए लाभदायक है, उसके लिए सभी को एकजुट होना चाहिए। पर्रिकर का कहना है कि मैं पिछले 18 साल से राजनीति से जुड़ा हूं और इस कालावधि में मैं मुख्यमंत्री भी रहा और विपक्ष में भी रहा। विधानसभा सभा के सदस्य के तौर पर भी मैंने काम किया है, इस दौरान मैंने गोवा के विकास के लिए जो भी संभव हो सका किया है और भविष्य में भी करता रहूंगा। पर्रिकर के अनुसार कहा कि मैं गोवा के लोगों के विकास के प्रति सचेत हूं और गोवा की प्राकृतिक सुंदरता बनी रहे और पर्यावरण अच्छा बना रहे इसकी पूरी की कोशिश की जाएगी।
——–

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: biodivercityecofriendlyforestgogreenhindi vivekhindi vivek magazinehomesaveearthtraveltravelblogtravelblogger

सुधीर जोशी

Next Post
विद्यालय, ग्राम मौसम वेधशाला

विद्यालय, ग्राम मौसम वेधशाला

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

- Select Visibility -

    No Result
    View All Result
    • परिचय
    • संपादकीय
    • पूर्वांक
    • ग्रंथ
    • पुस्तक
    • संघ
    • देश-विदेश
    • पर्यावरण
    • संपर्क
    • पंजीकरण

    © 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

    0