नवाब मिर्जा खान “दाग”
हम चाहे कितनी भी कोशिश कर लें, कितने भी प्रयोग कर लें परंतु एक बार बिग़डी हुई किस्मत को फिर से संवारा नहीं जा सकता। नसीब में जो लिखा है उसे भुगतना ही प़डता है। न जाने क्यों ऐसा लगता है कि जब नसीब दुखों की पराकाष्ठा करता है तभी शायरी में निखार आता है।