चर्चा में जरूरी है भूगोल जानना

जम्मू-कश्मीर आजकल फिर चर्चा में है। जिस प्रकार बिहार लालू प्रसाद यादव के कारण चर्चा में रहता है, उसी प्रकार जम्मू-कश्मीर आमतौर पर अब्दुल्ला परिवार के कारण चर्चा में रहता है। अब्दुल्ला परिवार का वंश-वृक्ष तो पुराना ही होगा, लेकिन इस परिवार के जो सज्जन चर्चित हुए वे शेख अब्दुल्ला थे। बकौल शेख अब्दुल्ला, वे गोत्र से कौल हैं, लेकिन अरसा पहले नाम के साथ कौल लिखना छोड़ दिया। अब यह परिवार फैल गया है, इसलिए जम्मू-कश्मीर की चर्चा भी फैल गयी है। अरसा पहले जब फारूख अब्दुल्ला ने अपने पिता शेख अब्दुल्ला की मुख्यमंत्री की गद्दी विरासत में सम्भाली थी तो वे शबाना आजमी को श्रीनगर में मोटर साइकिल पर घुमाकर राज्य को चर्चा में बनाये रखते थे। लेकिन चर्चा के वे तरीके अब पुराने हो गये हैं। इसलिए परिवार ने नये तरीके खोजे हैं।

फारूख अब्दुल्ला के भाई मुस्तफा कमाल जब कभी बोलते हैं तो कमाल करते हैं। हर बार नयी चर्चा को जन्म देते हैं। फारूख के बेटे उमर आजकल जम्मू-कश्मीर राज्य के मुख्यमन्त्री है, वे भी इस चर्चा को आगे बढ़ाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लेकिन उनका यह सब कुछ करने का अपना तरीका है। वे निश्चित अवधि के बाद राज्य की विधानसभा में रोते हैं। इस बार वे फिर रोये। रोने का यह अवसर उन्हें अफजल गुरु की मौत ने प्रदान किया। ‘अफजल साहिब’ की मौत पर नेशनल कान्फ्रेंस के कुछ और लोग भी उत्तेजित हुए, लेकिन वे रोने की सीमा तक नहीं गये। यह उत्तरदायित्व केवल मुख्यमंत्री ने निभाया। नेशनल कान्फ्रेंस के महासचिव, जिन मुस्तफा कमाल की हमने चर्चा की है, उन्होंने ‘अफजल साहिब’ की मृत्यु पर अपनी उत्तेजना कुछ दूसरे ढंग से व्यक्त की। वे अपने पुश्तैनी घर से पुराना वाद्य यंत्र उठा लाये और उस पर अपना खानदानी ‘जनमत संग्रह’ का गीत बजाना शुरू कर दिया। इस गीत की रचना और इसे लय से संवारने का काम उनके पिता शेख अब्दुल्ला ने आधी शताब्दी से भी पहले किया था। तब उनके मित्र पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इसकी धुन बनायी थी। इसे भी जम्मू-कश्मीर का संयोग ही कहना होगा कि पंडित नेहरू भी शेख अब्दुल्ला की तरह कश्मीर के कौल ही थे। लेकिन जम्मू-कश्मीर विधानसभा ने जब रियासत के भारत में विलय का अनुमोदन कर दिया तो नेहरू भी इस महत्वपूर्ण प्रश्न पर लोगों की राय से आत्मसंतुष्ट हुए और उन्होंने इस गीत की धुन बजाना बन्द कर दिया था। लेकिन अब्दुल्ला परिवार को पुरानी चीजों का मोह ज्यादा है, इसलिए उनके परिवार का कोई न कोई सदस्य इस गीत को बीच-बीच में बजा कर राज्य के लोगों को पुरानी यादों में ले जाने का प्रयास करता रहता है। लेकिन आश्चर्य है उन्हें कभी अपने कौल वंश की याद नहीं आती, जबकि वह भी उनके परिवार की पुरानी निशानी है। शायद इसलिए कि इससे उन्हें कोई राजनैतिक लाभ नहीं हो सकता। एक वक्त था जब शेख अब्दुल्ला अपने आप को कश्मीरी अवाम का पर्यायवाची मानते थे और पंडित नेहरू इस धारणा को देश भर में फैलाने का काम करते थे। खुदा का शुक्र है कि अब उनके वंशज कम से कम यह वहम नहीं पालते। जब कमाल पुराना गीत गाते हैं और उनके भतीजे रोते हैं तो देश का मीडिया ‘आदमी ने कुत्ते को काटा’ के स्वभाव के कारण इसे कश्मीर समस्या कहकर उमर के रोने की आवाज से भी ज्यादा ऊंचे स्वर में क्रन्दन करता सुनायी पड़ता है, ऐसी स्थिति में जम्मू-कश्मीर का आम आदमी इस पूरे घटनाक्रम को देख कर सिर धुनता है, क्योंकि राज्य के जिस आम आदमी के नाम पर यह सब कुछ किया जा रहा है, उसमें राज्य का वह आम आदमी कहीं है ही नहीं। यही इस पहेली का रहस्य है। यह रहस्य जम्मू-कश्मीर राज्य की सबसे बड़ी समस्या है। ‘बूझो तो जानो’ की तर्ज पर जब इसको बूझ लिया जाएगा तभी समस्या का अन्त भी हो जाएगा। यह पहेली बूझने के लिए राज्य का भूगोल समझना जरूरी है।

राज्य का भूगोल

जम्मू-कश्मीर राज्य में भौगोलिक लिहाज से पांच अलग-अलग समूह हैं जिनका आपस में केवल इतना ही सम्बन्ध है कि उनको महाराजा गुलाब सिंह ने एक रियासत का हिस्सा बना दिया था, ऐतिहासिक दृष्टि से डोगरा राजवंश इन पांच अलग-अलग भौगोलिक खण्डों को आपस में एक राज्य में बने रहने का आधारभूत एकता सूत्र था। इन पांचों खण्डों की भाषायी व सांस्कृतिक पहचान एक-दूसरे से भिन्न है। जम्मू अथवा डुग्गर प्रदेश-जम्मू कश्मीर राज्य का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा जम्मू कहलाता है, जिसे पुराने ग्रन्थों में डुग्गर प्रदेश भी कहा जाता है। राज्य में आम बोल-चाल में इसे जम्मू सम्भाग या जम्मू प्रान्त अथवा जम्मू प्रदेश के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। राज्य की सर्दियों की राजधानी जम्मू नगर ही है और इन दिनों सरकार का मुख्यालय भी जम्मू स्थानान्तरित हो जाता है। जम्मू प्रदेश में कुल दस जिले हैं। जम्मू, सांबा, कठुआ, उधमपुर, डोडा, पुंछ, राजौरी, रियासी, रामबन और किश्तबाड़। जम्मू क्षेत्र का कुल क्षेत्रफल 36315 वर्ग किलोमीटर है। लेकिन इसके लगभग 13297 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल पर पाकिस्तान ने बलपूर्वक कब्जा किया है। यह कब्जा उसने 1947-48 की लड़ाई में ही कर लिया था। जम्मू का मीरपुर पाकिस्तान के कब्जे में है। इसी प्रकार पुंछ शहर को छोड़कर बाकी सारी पुंछ जागीर पाक के कब्जे में ही है। मुज्जफराबाद भी सारा पाक के कब्जे में है। इसमें कश्मीरी बोलने वाले बहुत कम मिलेंगे। यहां या तो गुज्जर हैं या फिर पंजाबी भाषी लोग मिलेंगे।

कुल मिलाकर जम्मू प्रान्त के भिम्बर, कोटली, मीरपुर, पुंछ, हवेली, बाग, सुधान्ती, मुज्जफराबाद, हट्टिया और हवेली जिले पाकिस्तान के कब्जे में हैं। भाषा-संस्कृति साम्य से हमने मुज्जफराबाद को जम्मू प्रान्त में रखा है। पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू प्रान्त के हिस्से में डोगरी और पंजाबी भाषा बोली जाती है। मुज्जफराबाद में लहंदी पंजाबी व गुजरी बोलते हैं। पाकिस्तान जम्मू के इसी कब्जा किये गए हिस्से को आजाद कश्मीर कहता है। यहां यह भ्रम हो सकता है कि पुंछ जिला पाकिस्तान के कब्ज्जे में भी है और भारतीय जम्मू प्रान्त में भी है। दरअसल पाकिस्तान ने पुंछ जागीर के अधिकांश हिस्से पर कब्जा किया हुआ है, अतः वह भी उसे पुंछ जिला का ही नाम देता है। शेष बचे पुंछ को जम्मू-कश्मीर सरकार भी पुंछ जिले का नाम देती है। मुज्जफराबाद को मिला कर पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू प्रान्त के हिस्से की जनसंख्या 1998 में 2972501 घोषित की गयी थी।

जम्मू प्रान्त की भाषा डोगरी है और यहां के रहने वालों को डोगरा कहा जाता है। यह क्षेत्र सांस्कृतिक दृष्टि से पंजाब व हिमाचल प्रदेश के ज्यादा नजदीक है। विवाह, शादियां भी पंजाब हिमाचल में होती रहती हैं। कई बार जम्मू को पंजाब-हिमाचल का विस्तार भी कहा जाता है। शायद यही कारण है कि सन 1947 के भारत विभाजन में जब कश्मीर प्रायः शान्त था तो जम्मू पंजाब की ही तरह दंगों की आग में झुलस रहा था। पंजाब में पठानकोट में रावी नदी के दूसरे किनारे से शुरू हुआ जम्मू का क्षेत्र पीरपंचाल की पहाड़ियों तक फैला हुआ है। जम्मू प्रान्त की जनसंख्या सन 2011 की जनगणना के अनुसार 5350811 है। जम्मू प्रान्त की हिंदू समाज के दलितों को राज्य सरकार अन्य राज्यों में दी जाने वाली सुविधाएं नहीं देती। शेष 33 प्रतिशत जनसंख्या में मुसलमान, गुज्जर, पहाड़ी इत्यादि शामिल हैं। मुसलमानों में भी राजपूत मुसलमानों की जनसंख्या काफी है। गुज्जर जनजाति समाज का हिस्सा हैं। इनकी पूजा-पद्धति में इस्लाम, शैव प्रकृति, इत्यादि कई तत्वों का मिश्रण देखा जा सकता है। राजनैतिक दृष्टि से जम्मू सम्भाग में भारतीय जनता पार्टी और सोनिया कांग्रेस प्रमुख राजनैतिक दल हैं। लेकिन नेेशनल कान्फ्रेंस और पी. डी. पी. का भी सीमित प्रभाव है। जम्मू सम्भाग मोटे तौर पर पाकिस्तान से कोई जुड़ाव महसूस नहीं करता।

कश्मीर सम्भाग

जम्मू सम्भाग या प्रान्त पीर पंचाल की पर्वत श्रंखला पर आकर समाप्त हो जाता है। पीर पंचाल के दूसरी ओर कश्मीर शुरू होता है। पहले इन दोनों सम्भागों का सम्बन्ध गर्मियों में ही जुड़ता था। सर्दियों में बर्फ के कारण दोनों सम्भाग कटे रहते थे। लेकिन अब पीर पंचाल पर्वत श्रंखला के नीचे से बनीहाल सुरंग का निर्माण हो जाने से दोनों सम्भाग बारह महीने जुड़े रहते हैं। कश्मीर का क्षेत्रफल लगभग सोलह हजार वर्ग किलोमीटर है और इसके भी दस जिले, श्रीनगर, बड़गाम, कुलगाम, पुलवामा, अनन्तनाग, कुपबड़ा, बारामुला, शोपियां, गन्दरबल, बांडीपुरा हैं। कश्मीर सम्भाग की जनसंख्या 2011 की जनगणना के हिसाब से 6907622 है। कश्मीर सम्भाग या प्रान्त में कश्मीर घाटी के अतिरिक्त बहुत बड़ा पर्वतीय इलाका है, जिसमें पहाड़ी और गुज्जर रहते हैं। मजहब के लिहाज से कश्मीर सम्भाग मुस्लिम बहुसंख्यक है। लेकिन शिया लोगों की भी महत्वपूर्ण संख्या है। पर्वतीय इलाकों में गुज्जरों की बहुत बड़ी जनसंख्या है। गुज्जरों की ही एक शाखा को यहां बक्करबाल भी कहा जाता है। कश्मीरी भाषा केवल घाटी के हिंदू या मुसलमान बोलते हैं। पर्वतीय इलाकों में गोजरी और पहाड़ी भाषा बोली जाती है। कश्मीर घाटी के मुसलमान आमतौर पर सुन्नी हैं। बहावी और अहमदिया भी हैं, लेकिन सुन्नी मुसलमान अहमदिया को मुसलमान मानने को तैयार नहीं हैं। सुन्नी होने के बावजूद कश्मीर का इस्लाम सूफी सम्प्रदाय से प्रभावित है और उसकी व्यवहार में मैदानी इलाकों के मुसलमानों से भिन्नता दिखायी देती है। कश्मीर घाटी का मुसलमान आमतौर पर कश्मीर घाटी से बाहर, खास कर मैदानी इलाकों के मुसलमानों से विवाह शादी नहीं करते। आतंकवाद का प्रभाव कश्मीर घाटी के कश्मीरी बोलने वाले सुन्नी मुसलमानों तक ही सिमटा हुआ है। कश्मीर के पहाड़ी क्षेत्र के गुज्जर/बक्करबाल और पहाड़ी लोग, शिया और जनजाति समाज के लोग इस में संलिप्त नहीं हैं। राजनैतिक लिहाज से कश्मीर सम्भाग में नेशनल कान्फ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, नाम के दो क्षेत्रीय दल हैं, जिनकी चुनावों में जबरदस्त भिड़ंत होती है। सोनिया कांग्रेस की भी कुछ पॉकेट्स कही जा सकती हैं। कश्मीर सम्भाग में सुन्नी मुसलमान के एक हिस्से को छोड़ कर कोई पाकिस्तान के साथ लगाव महसूस नहीं करता। शिया, गुज्जर और पहाड़ी तो उसके विरोधी है।

लद्दाख सम्भाग- लद्दाख का क्षेत्रफल 82665 वर्ग किलोमीटर है लेकिन इसमें से 37555 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र चीन ने बलपूर्वक दबा रखा है। लेह जिला का क्षेत्रफल 45110 वर्ग किलोमीटर है और इसकी जनसंख्या 147104 है। लेह में अधिकांश जनसंख्या भगवान बुद्ध के वचनों को मानने वाली है। लद्दाख को हिमालय की पर्वतमालाएं कश्मीर से अलग करती हैं। यहां की भाषा भोटी है।

प्रशासनिक लिहाज से लद्दाख की दूसरी तहसील कारगिल है, जिसकी जनसंख्या 143388 और क्षेत्रफल 14036 वर्ग किलोमीटर है। लेकिन वास्तव में कारगिल बल्तीस्तान का हिस्सा है। कारगिल जिला को छोड़ कर शेष सारा बल्तीस्तान पाकिस्तान के कब्जे में है। कारगिल में अधिकांश आबादी शिया लोगों की है और ये बल्ती जनजाति के लोग हैं। कारगिल की जंस्कार घाटी में बुद्धमत को मानने वाले लोग हैं। सन्1947 के पाक युद्ध में लद्दाख स्काऊटस ने ही पाक सेना का बहादुरी से मुकाबला किया था।

बलतीस्तान सम्भाग- कारगिल को छोड़ कर सारे का सारा बल्तीस्तान पाकिस्तान के कब्जे में है। इसका क्षेत्रफल लगभग बीस हजार वर्ग किलोमीटर है। बल्तीस्तान के लोगों ने अब अपने नामों के साथ पुराने वंश के नाम भी कहीं-कहीं लिखने शुरू कर दिये हैं।

गिलगित सम्भाग- यह सम्भाग पूरे का पूरा पाकिस्तान के कब्जे में है। इसका क्षेत्रफल लगभग 42 हजार वर्ग किलोमीटर है। गिलगित की लगभग पचपन सौ वर्ग किलोमीटर जमीन पाकिस्तान ने 1963 में चीन को दे दी। गिलगित की सीमा अफगानिस्तान, तजाकिस्तान और पूर्वी तुर्किस्तान से भी लगती है। यहां के लोग दर्द कहलाते हैं। यहां की भाषा भी दर्दी स्टॉक की है। यहां के लोग भी शिया हैं और उन्हें मुसलमानों की प्रताड़ना का शिकार होना पड़ रहा है।

कुल मिलाकर यह पूरे जम्मू कश्मीर की भौगोलिक व भाषायी सांस्कृतिक स्थिति है। इस पूरे परिदृश्य और विशाल भू-भाग में घाटी की हैसियत क्या है, इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। कश्मीरी और कश्मीरियों में भी सुन्नी मुसलमान पूरे राज्य की आबादी का एक लघु हिस्सा है। अफजल गुरु की मौत पर जम्मू सम्भाग में कहीं प्रतिक्रिया नहीं हुई। लेह और कारगिल शांत है। शिया, गुज्जर, बक्करबाल, पहाड़ियां सभी चुप हैं। पहले आमतौर पर, जब घाटी में कोई घटना होती थी तो पाक के कब्जे वाले जम्मू के इलाकों में भी उसके समर्थन में प्रतिक्रिया होती थी, लेकिन इस बार तो वहां भी सन्नाटा है। जब घाटी में किसी बात को लेकर प्रतिक्रिया होती है तो उसे सारे राज्य की आवाज मान लिया जाता है। जबकि यह आवाज पूरे राज्य के एक लघुखण्ड की आवाज होती है और घाटी के भी सभी लोग इस आवाज में शामिल हैं यह नहीं मान लेना चाहिए। लेकिन सरकार और मीडिया इसे सारे राज्य की आवाज का भ्रम फैलाने का काम करता है। इसलिए जम्मू-कश्मीर को लेकर भ्रम फैलते हैं जो राज्य के भूगोल और जनसांखियकी के यथार्थ पर आधारित नहीं होते। इस पूरे विवेचन में अफजल गुरु का किस्सा तो मात्र उदाहरण के लिए लिया गया है। जम्मू-कश्मीर राज्य में घटित हो रही घटनाओं के कारण और उसके प्रभाव को समझने के लिए राज्य के भूगोल के राह में से गुजरना लाजिमी है। इससे गुजरे बिना राज्य की पहेली को समझा नहीं जा सकता। लेकिन दुर्भाग्य से इस राज्य को लेकर जो एक्स्पर्ट ओपिनियन दी जाती है, वह भूगोल के इस मार्ग पर चलने की बात तो दूर इसे देखे बिना ही दी जाती है। यही कारण है कि पहेली का सही उत्तर मिल नहीं रहा, लेकिन जो चिल्ला-चिल्ला कर उत्तर दे रहे हैं, वे यह जिद भी पकड़े हुए हैं कि उनके उत्तर को ही सही घोषित किया जाए।

 

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