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सामाजिक व्यवस्था से बड़ा कोई नहीं

सामाजिक व्यवस्था से बड़ा कोई नहीं

by अमोल पेडणेकर
in मई २०१३, संपादकीय
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अपने देश और समाज में दिल को दहला देने वाली अनेक प्रकार की घटनाएं होती रहती हैैं। कभी आतंकवादियों द्वारा बम विस्फोट तो कभी महिलाओं के साथ दुराचार की घटना पर समाज की तीव्र और असंतोषजनक प्रतिक्रिया होती है, किन्तु समाज की स्मरण शक्ति अत्यन्त क्षीण है। कुछ समय बीतने के साथ ही वह घटना भुला दी जाती है और घटना के समय समाज में उत्पन्न असंतोष बहुत अधिक दिनों तक टिक नहीं पाता। वर्ष 1993 में मुंबई में हुए शृंखलाबद्ध बम विस्फोटों में मुस्लिम समाज के आतंकियोंको दोषी पाया गया। इस घटना में फिल्म अभिनेता संजय दत्त भी अपराधी थे। पिछले माह इस घटना के अपराधियों को न्यायालय द्वारा सजा सुनायी गई। संजय दत्त को भी पांच वर्ष के कारावास की सजा दी गयी। अपराधियोें को दी गयी सजा पर समाज ने सन्तोष व्यक्त किया, किन्तु संजय दत्त के मामले में अलग ही मांग उठने लगी। समाज के कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी, भारतीय सिनेमा के कलाकार, कुछ मानवाधिकारवादी लोग मांग करने लगे कि संजय दत्त की सजा माफ की जाये।

चेहरे पर रंग-रोगन लगाकर मनोरंजन करने वाले किसी व्यक्ति के ग्ाुनाहों की सजा को क्या माफ करना चाहिए? वस्तुत: संजय दत्त द्वारा किया गया अपराध राष्ट्रघाती है, फिर इस अपराध के लिए संजय दत्त को मिली सजा को माफ करने की मांग कैसे उचित ठहरायी जा सकती है? ऐसी मांग करने वालों की नियति पता करने की आवश्यकता है। उनकी मानसिकता को समझने की जरूरत है । एक अभिनेता और अभिजात्य वर्ग के लिए ही उन महानुभावों के मन में करुणा क्यों उत्पन्न होती है?

नासिक जिले के मालेगांव बम विस्फोट में एक स्कूटर के टुकड़े मिले। वह स्कूटर किसी समय में एक महिला के पास थी। वह महिला साध्वी हैैं और भगवा वस्त्र धारण करती हैं । इस एक कारण के चलते देश भर के हिंदुओं को बदनाम करने की मुहिम छेड़ दी गयी थी। हिंदू संगठनों और उनके अनुयायियों के मुंह बन्द करने के उद्देश्य से उस साध्वी को गिरफ्तार किया गया । संजय दत्त को दी गयी सजा से अधिक समय से साध्वी को कारावास में रखकर भयानक यातनाएं दी जा रही हैं। पांच वर्ष से अधिक समय बीत जाने पर भी सरकार और प्ाुलिस प्रशासन साध्वी के खिलाफ आरोप पत्र तक न्यायालय में दाखिल नहीं कर सके। यहां तक कि एक भी प्ाुष्ट आरोप न होने पर भी कैंसर रोग से पीड़ित साध्वी को जमानत पर नहीं छोड़ा जा रहा है। यह खेदजनक घटना संजय दत्त के समर्थन में उठ खड़े हुए नेताओं, कलाकारों और मानवाधिकारवादियों को क्यों उद्वेलित नहीं करती? वस्तुत: एकजुट होकर ऐसी मांग करना इस मण्डली की वैचारिक दुष्टता है। यह व्यवहार हिंदुओं का तिरस्कार करते हुए स्वयं को सेकुलर बताने वाला है। जो अपराध देश के लिए घातक हो और न्यायालय में सिद्ध हो गया हो, न्यायालय द्वारा सजा भी दे दी गयी हो, वे संजय दत्त और जिस साध्वी के खिलाफ अब तक कोई आरोप सिद्ध तक न हो सका हो, ऐसे मामलों में इन बुद्धिजीवियों, कलाकारों और मानवाधिकारों की न्याय भावना अलग-अलग क्यों है, यह विचारणीय तथ्य है। साध्वी के प्रति उनके मन में खलबली क्यों नहीं मचती?

संजय दत्त की सजा इसलिए कम कर दी जाये या माफ कर दी जाये, क्योंकि वे एक सिने कलाकार हैं। उन्होंने देश के करोड़ों लोगों का मनोरंजन किया है। मुन्नाभाई एमबीबीएस जैसी फिल्म में काम करना इन कलाकारों का व्यवसाय है। कल पैसा मिलने पर संजय दत्त ओसामा बिन लादेन की भूमिका भी कर सकते हैं। फिल्म कलाकारों, खिलाड़ियों, विशेषकर क्रिकेट और ओलम्पिक के खिलाड़ियों को इस देश में विशेष सम्मान मिलता रहा है। आज का युग बाजार का युग है। आज के अभिनेता और खिलाड़ी सदैव होनेवाली स्पर्धा और रियालिटी शो तथा विज्ञापनों में हमेशा दिखायी देते रहते हैं। परिणामत: वे समाज के बीच में एक आकर्षण का केन्द्र बने रहते हैं। आज फिल्म, टी.वी. धारावाहिक और खेल प्रतियोगिताएं केवल मनोरंजन के लिए नहीं, अपितु ’लार्जर दैन लाइफ’ के स्वरूप में देखे जाते हैं, परिणामस्वरूप जो मनोरंजन करता है, वह हमारा नियंता है, ऐसा ही विचार समाज में व्याप्त है। हमारे मन में इन मनोरंजनकर्ताओं के प्रति दुर्भावना आती ही नहीं। कई बार अच्छे-बुरे का विवेक न होने और बाजारू प्रवृत्ति बढ़ने के कारण कुछ अभिनेता और खिलाड़ी अपनी प्रसिद्धि और सामाजिक जिम्मेदारी भूलकर अशोभनीय कार्य कर बैठते हैं। अधिक से अधिक पैसा कमाने की उनकी मंशा निरन्तर बढ़ती ही जाती है। यही कारण है कि कई बार ये लोग गलत मार्ग पर चल पड़ते हैं।

कई अभिनेता और खिलाड़ी खूब लोकप्रिय हैं। यह बात सही है कि आज की युवा पीढ़ी उनपर फिदा है। अत: इन अभिनेता एवं खिलाड़ियों की सामाजिक जिम्मेदारी बड़ी होती है। ये लोग लोकप्रिय नहीं होते। समाज उन्हें लोकप्रिय बनाता है, इसलिए उन्हें स्वयं को सामाजिक व्यवस्था से बड़ा नहीं बनाना चाहिए। देश का एक नागरिक होने के कारण उन्हें अपनी जिम्मेदारी और मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए। नायक को महानायक नहीं बनाना चाहिए।

किसी भी देश व समाज की स्थिरता उसके नागरिकों का नियम-कानून पर विश्वास करने पर निर्भर होता है। प्रत्येक नागरिक को अपने देश की व्यवस्था पर विश्वास होना ही चाहिए। इतिहास साक्षी है, ऐसा होने पर ही आराजकता नियन्त्रित रहती है, इसीलिए किसी अपराधी का खुलेआम समर्थन करना देश के साथ विद्रोह करने जैसा ही है, इससे अपराधियों का महिमा मण्डन होता है। संजय दत्त के समर्थकों के कृत्य से देश की जनता के मन में न्यायालय के प्रति सन्देह उत्पन्न होता है, इसका भान भी उन्हें होना चाहिए। संजय दत्त जैसे लोगों का समर्थन करना न्याय प्रक्रिया को नकारने के समान है। इस पर गम्भीरता प्ाूर्वक विचार करने की आवश्यकता है।

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