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हमेशा विवादों से घिरी रही हैं अंजलि इला मेनन

हमेशा विवादों से घिरी रही हैं अंजलि इला मेनन

by मनमोहन सरल
in अवांतर
1

कुछ वर्ष पहले आज की बहुचर्चित और विवादास्पद चित्रकार अंजलि इला मेनन एक बार इसलिए चर्चा में आयी थीं कि उनके यहां काम करने वाले व्यक्ति ने उनके कुछ चित्रों की नकल करके बेचने की कोशिश की थी, जिसमें मुंबई की एक गैलरी भी आरोप के घेरे में आ गयी थी । इस घटना ने मुंबई में ही नहीं, पूरे कला जगत में तहलका मचा दिया था । उस गैलरी और उस चित्रकार पर मुकदमा भी चला था । तब से वे अपनी पेंटिंग पर होलो ग्रम का इस्तेमाल करने लगी हैं, जिससे असली और नकली की पहचान हो सके ।

नकली चित्र बनाने की यह पहली घटना नहीं थी । इससे पहले और आज तक कई लोकप्रिय और ऊंचे दामों में बिकने वाले चित्रों के बनाने वाले आर्टिस्टों के कामों की नकलें होती रही हैं । अपने देश में ही नहीं, विश्व भर में अप्रमाणित और नकली चित्रों का व्यापार धड़ल्ले से चलता रहा है । इन नकलचियों ने पिकासो, वॉन गाग, मातीस जैसे जगत विख्यात चित्रकारों को भी नहीं बख्शा तो अंजलि इला मेनन कैसे बच पातीं, क्योंकि उनके काम की बराबर मांग रहती है और वे लाखों में बिकते हैं ?

उनके चित्रों में नारी की दारुण दशा चित्रित होती है, जिसके कारण अक्सर अंजलि को वूमेन एक्टिविस्ट के रूप मेंं उद्धृत किया जाता है, किन्तु वे नारीवादी होने से इंकार करती हैं । ‘‘हां, मैं भारतीय नारी की त्रासदी से, समाज में उनकी स्थिति से, उनकी यातना, उनकी पी़डा और उन पर किये जा रहे दुराचारों से अवश्य सहानुभूति रखती हूं’’, कहती हैं अंजलि ।

चित्रकार अंजलि इला मेनन की कार्यस्थली 1974-78 में मुंबई ही रही है । उनके चित्रों में अक्सर कौओं का समावेश होता रहा है । एक तरह से वे उनके चित्रों के प्रमुख आइकॉन ही बन गये हैं । उन्होंने बताया कि कौए मुंबई की ही देन हैं । जब वे यहां रहती थीं, उन्होंने फ्लैट को ही अपना स्टूडियो बना लिया था, जिसके एक ओर बाल्कनी हुआ करती थी । जब वे पेंट करतीं तब अदबदा कर एक-दो कौए मुंडेर पर आ बैठा करते थे । ‘‘ये ही मेरे अकेलेपन के साथी हुआ करते थे’’, बताया है उन्होंने ।

अंजलि ने कला की शिक्षा की श्ाुरुआत तो विख्यात जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट से ही की, किन्तु छह महीने में ही वहां की प़ढाई से उनका मोहभंग हो गया । वहां तब रोमन, ग्रीक और बिटिश कला को वरीयता दी जाती थी, जैसे कि वही विश्व भर में कला का आदर्श हो । पर मुंबई के ही विवादास्पद चित्रकार हुसेन की बोल्ड और सघन काली रेखाओं ने उन्हें इस कदर प्रभावित किया कि वे उनकी मुरीद बन गयीं । मोहन सामंत के एब्स्ट्रैक्ट चित्रों का ट्रीटमेन्ट भी बहुत मोहक लगा । पर बाद में प्रसिद्ध चित्रकार अमृता शेरगिल ही उनकी आदर्श बनीं, खासकर उनकी कला में भारतीय देहातों के परिवेश की जीवंतता को अंजलि ने भी अपनाया ।

लॉरेंस के लवडेल स्कूल से आरम्भिक शिक्षा पायी और जे.जे. को छोड़ने के बाद दिल्ली के प्रसिद्ध मिरांडा हाउस से अंग्रेजी साहित्य में स्नातक बनीं । परिवार चाहता था कि वे डॉक्टर बनें पर उन्हें तो चित्रकार बनना था, सो 1960 में पेरिस चली गयीं और प्रसिद्ध इकोल द बू आर से फ्रेस्को का प्रशिक्षण लिया । फ्रेस्को यानी भित्ति चित्रों जैसा इफेक्ट उनकी पेंटिंगों में इसी कारण आता है ।

उनके काम पर यूरोप के प्रभाव का आरोप लगता रहा है । हालांकि उनके पिता बंगाली थे, पर उनकी मां अमेरिकी थीं, जो कम उम्र में ही उन्हें छोड़ गयीं। नानी ने पाला, जो बच्चों को यूरोप के गिरजाघरों, म्यूजियमों और संगीत के कंसर्टों में ले जाती थीं । पेरिस जाने से पहले ही पश्चिमी संस्कृति और अंग्रेजी साहित्य का प्रभाव उन पर पड़ चुका था । पेरिस में वह और गाढ़ा हो गया और वॉन गाग, मोदलियानी जैसे प्रभाववादी चित्रकारों के चित्रों तथा इंगमार बर्गमैन और अंतोनियो जैसे फिल्मकारों की फिल्मों ने भी उन पर गहरा असर डाला । वहीं उन्होंने गिरजाघरों के स्टेनलास के रंगों और वर्जिन मेरी या बाल ईश्ाू को स्तनपान कराती मेडोना के चित्रों को भी आत्मसात किया । एक बार किशोरवय में अमेरिका भी गयी थीं और न्यू यॉर्क की अफीकी बस्ती हरलेम में रही थीं । सम्पन्नता से लबरेज अमेरिका में विपन्न जैसे रहते काले लोगों की बिडम्बना ने उन्हें द्रवित कर दिया। इस भावना से प्रेरित होकर उन्होंने वहीं पहली बार वाटर कलर में चित्र बनाये, जिनकी प्रदर्शनी बाद में दिल्ली में हुई ।

विवाह बचपन के हमजोली राजा मेनन ( वे अब एडमिरल के पद से रिटायर हो चुके हैं ) से किया जो नौ सेना में थे, सो अक्सर विदेश में रहना होता था । ग्रीस, इटली, यरुस्लम, सीरिया और टर्की भी गयीं । इन सब संस्कृतियों का असर तो पड़ना ही था । बाद में तो विश्व भर के अनेक देशों में जाना हुआ, जिनका मिला-जुला असर उनके काम पर चाहे-अनचाहे पड़ता ही रहा।

बच्चे होने के बाद ज्यादातर पिता के पास कोलकाता रहीं, वे बह्मसमाजी थे । तब यूरोप का प्रभाव तिरोहित होने लगा । पर बेटा होने के बाद बाइजेंटाइन आर्ट की तरह स्तन खोल कर पुत्र को दूध पिलाती मेडोना जैसे चित्र बनने लगे । पेंटिंगों में निर्वसनाएं और फूल-पत्ती के डिजाइन आने लगे, जिन्हें समीक्षकों ने पश्चिम का प्रभाव करार दे दिया । अंजलि की पेंटिगों पर आज भी यह लांछन लगता ही रहता है, जिसका वे कितना भी प्रतिकार करें, वह बरकरार ही रहता है, और रहेगा ही ।

उनकी एक प्रसिद्ध चित्र-शृंखला है विंडो-समाहित पेंटिंगों की। इस शृंखला का आगाज बंगलौर में हुआ था, जब वे वहां अपना घर बनवा रही थीं । एक कबाड़ी के यहां पुराने ख़िडकी-दरवाजे और उन पर उकेरी गयी कला देख कर वे चकित रह गयीं। उनका उपयोग अपने घर में तो किया ही, वे उनकी नयी चित्र-शृंखला का विषय भी बने । इन चित्रों का शो पहली बार दिल्ली में हुआ । पहले के चित्रों में ये चित्र के विभाजन की ग्रिड के रूप में पेंट किये गए पर बाद में खिड़कियों-दरवाजों को चित्र फलक पर ही चिपका कर इस्तेमाल किया अंजलि ने ।

अंजलि 1940 में जन्मीं और आज भारत की बहुत प्रमुख चित्रकारों में उनका श्ाुमार होता है । पद्मश्री से सम्मानित की जा चुकी हैं और उनके कामों की विश्वभर में प्रदर्शनियां हो चुकी हैं जबकि पहली सोलो प्रदर्शनी 15 सल की उम्र में ही हुई थी, जो काफी सराही गयी थी ।

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Tags: avantarextrahindi vivekhindi vivek magazinenewsothersubject

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Comments 1

  1. Anonymous says:
    2 years ago

    Good 👍

    Reply

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