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बदला लेना ही होगा

बदला लेना ही होगा

by विशेष प्रतिनिधि
in जून -२०१३, सामाजिक
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सरबजीत सिंह की 2 मई 2013 को लाहौर के जिन्ना अस्पताल में मृत्यु हो गयी। 26 अप्रैल 2013 को कोट लखपत कारावास में 6 मुस्लिम कैदियों ने उन पर प्राण घातक हमला किया। इस हमले के कारण सरबजीत सिंह कोमा में चले गये, जिसके कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। पाकिस्तानी चिकित्सकों ने उपचार करने का ढोंग करते हुए सरबजीत सिंह को मरने दिया।

सन 1990 से सरबजीत सिंह पाकिस्तान के कारावास में थे। उन पर लाहौर और फैसलाबाद में बम धमाके करने का आरोप था। इन धमाकों में 15 पाकिस्तानी मारे गये थे। सन 1991 में पाकिस्तानी कोर्ट ने सरबजीत सिंह को फांसी की सजा सुनायी थी। सरबजीत सिंह भारतीय नागरिक थे और बाघा सीमा के पास के एक गांव में वे रहते थे। शराब के नशे में उन्होंने सीमा पार कर ली। पाकिस्तान के सीमा रक्षकों ने उन्हें पकड़ लिया और फिर उन पर लाहौर बम धमाके करने का आरोप लगाया गया। उन्हें फांसी की सजा सुनायी गई। उनकी जब मृत्यु हुई तब वे 49 साल के थे।

सरबजीत सिंह के द्वारा पाकिस्तान के कारावास में बिताये गए 22 साल नरक में बिताये गए 22 वर्षों के समान थे। इन वर्षों में उनकी क्या हालत हुई होगी, यह वही व्यक्ति जान सकता है जो पाकिस्तान का इतिहास जानता है। सरबजीत सिंह की रिहाई के लिए भारत ने जो भी प्रयास किये वे नाकाफी रहे। स्वयं सरबजीत सिंह ने पांच बार दया याचना की पर उसे भी नामंजूर कर दिया गया। 26 जून 2012 को पाकिस्तान के राष्ट्राध्यक्ष ने सरबजीत सिंह की दया याचना मंजूर की, परन्तु दुर्भाग्य से मुल्ला‡मौलवियों के दबाव के कारण 5 घण्टे के भीतर ही उन्हें यह निर्णय वापस लेना पड़ा। बाद में खुलासा किया गया कि सुरजीत सिंह की दया याचना मंजूर की गयी थी, सरबजीत की नहीं।

एक निष्पाप हिंदू किसान की, एक भारतीय नागरिक की पाकिस्तान के कारावास में हत्या कर दी गयी। जिन पाकिस्तानी मुसलमान कैदियों ने सरबजीत पर हमला किया उन पर 2 मई तक कोई भी कार्रवाई नहीं की गयी थी। प्रशासन अर्थात पुलिस, कारावास अधिकारी, न्यायालय और राजनेता इत्यादि सभी ने मिलकर एक भारतीय की जान ले ली।

यह केवल एक व्यक्ति की मृत्यु का प्रश्न नहीं है। भारत में अलग‡अलग दुर्घटनाओं में रोज सैकड़ों लोगों की मृत्यु होती है। ऐसे समय में रास्ते की सुरक्षा, वाहन चालक की जिम्मेदारी, दुर्घटना के बाद की अत्यावश्यक सेवा इत्यादि विषयों पर चर्चा होती हैं। मृत्यु सदैव ही एक दुखद घटना है। दुर्घटनाओं में जिन लोगों की मृत्यु होती है वे अपने परिवार पर दुखों के बोझ छोड़ जाते हैं। ऐसे समय में सभी मानवीय संवेदनाओं के कारण द्रवित हो जाते हैं।

सरबजीत सिंह की मृत्यु के कारण उनके परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। उनके परिवार में उनकी पत्नी सुखप्रीत कौर, दो बेटियां स्वप्नदीप और पूनम कौर तथा बहिन दलबीर कौर हैं। ये सभी अब दुख में डूबे हुए हैं। ये सभी हमारे देशबन्धु हैं, धर्मबन्धु हैं, अत: इनका दुख हमारा दुख है, उनकी पीड़ा हमारी प़ीडा है और उनका क्रोध हमारा क्रोध है।

सरबजीत सिंह की मृत्यु किसी एक व्यक्ति की मृत्यु नहीं बल्कि यह हमारे देश को पाकिस्तान द्वारा दिया गया, गहरा घाव है। अगर किसी दुर्घटना में सरबजीत की मृत्यु हुई होती तो वह उनके परिवार के लिए दुख का विषय होता। परन्तु ऐसा नहीं है। अत: यह राष्ट्रीय दुख का विषय है, राष्ट्रीय सम्मान का विषय है।

सरबजीत सिंह भारतीय नागरिक थे। प्रत्येक नागरिक की जान‡माल की सुरक्षा करना देश का प्राथमिक कर्तव्य है। जब आन्तरिक सुरक्षा का प्रश्न होता है तो कानून और देश की दण्ड देने की शक्ति के द्वारा प्रत्येक नागरिक को इस सुरक्षा का विश्वास दिलाया जाता है। जब अन्तरराष्ट्रीय समस्या सामने आती है तब अन्तरराष्ट्रीय कानूनों और देश की अन्तरराष्ट्रीय शक्ति की मदद लेनी पड़ती है। यह वस्तु स्थिति है कि हमारी सरकार को इसमें सफलता नहीं मिल पायी।

इटली के दो सैनिकों को भारतीय मछुआरों के खून के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। इटली सरकार ने भारतीय सरकार पर दबाव बनाकर उन दोनों को पंचतारांकित कारावास सुविधाएं उपलब्ध करवायीं। आगे के 1‡2 सालों में इटली इन दोनों को सुरक्षित वापस ले जाएगा। पश्चिम बंगाल के उरुलिया में हवाई जहाज से शस्त्र गिराये गए थे। शस्त्र गिराने वाले 3 विदेशी नागरिकों को मुंबई हवाई अड्डे पर गिरफ्तार किया गया था। कुछ वर्ष वे कारावास में रहे और फिर उन देशों ने अपने इन नागरिकों को सुरक्षित वापस निकाल लिया। यह भारत का क्षोभनीय अपयश ही कहा जाएगा कि सरबजीत के सन्दर्भ में हम कुछ नहीं कर पाये। पाकिस्तान ने भारत के एक नागरिक को 22 वर्ष कारावास में रखा। उस पर झूठा मुकदमा चलाया। पाकिस्तान कोर्ट किसी प्रकार से यह सिद्ध नहीं कर पाया कि सरबजीत सिंह ने बम विस्फोट किया है। बम विस्फोट होने के बाद वैज्ञानिक जांच के बाद सबूत पेश किये जाते हैं। ऐसे भी कोई सबूत पेश नहीं किये गए। मुकदमें का सारा कामकाज अंग्रेजी में किया गया। सरबजीत सिंह अंग्रेजी नहीं जानते थे। कारावास में सरबजीत सिंह की दुर्दशा हो गयी थी। गवाहों ने अपनी गवाही बदल दी थी। इन सभी का आशय यही है कि पाकिस्तान ने यह तय कर लिया था कि सरबजीत को कारावास में सड़ाया जाये और फिर उसे मार डाला जाये।

पाकिस्तान शायद हमें यह सन्देश देना चाह रहा है कि वह हमारे नागरिकों को कुछ नहीं समझता। वह अपना मनमाना व्यवहार नहीं बदलेगा और न ही भारत उसका कुछ बिगाड़ सकेगा। ऐसा नहीं है कि सरबजीत की हत्या करके उसने यह सन्देश दिया है, वह तो पिछले 67 वर्षों यह सन्देश देता आ रहा है। पिछले साल हमारे दो सैनिकों को पाकिस्तान भगाकर ले गया और उसमें से 1 का सिर काट दिया। जिस तरह कोई कसाई बकरा काटता है उस तरह पाकिस्तान ने यह कृत्य किया है। पाकिस्तान के नापाक कृत्य अब सहनशक्ति की सीमा से परे हो चुके हैं। पाकिस्तान कभी भी भारत में आतंकवादी भेज देता है। वे लोग कभी लोकल ट्रेन में, कभी बस में, कभी बाजारों में बम विस्फोट कर देते हैं और हम केवल शव गिनते रह जाते हैं। पाकिस्तानी आतंकवादियों ने संसद पर हमला किया, मुंबई में हमला किया, परन्तु हम चुप रहे। हमारे शरद पवार, दिग्विजय सिंह जैसे नेता कहते हैं कि आतंकवादी केवल मुसलमान नहीं हैं। कुछ हिंदू भी आतंकवादी हैं। यही कहकर उन्होंने कुछ हिंदुओं को आतंकवादी के रूप में पकड़ रखा है। हमारे गृहमन्त्री कहते हैं संघ शिविरों में आतंकवाद का प्रशिक्षण दिया जाता है।
पाकिस्तान को मसलने की जगह हमारे शासनकर्ता उन्हें कुछ इस प्रकार का सन्देश देते हैं कि तुम भी आतंकवादी हो और हमारे यहां के हिंदू भी आतंकवादी हैं। दूसरी भाषा में इसका अर्थ यह है राजनेता पाकिस्तान से कहते हैं कि आप कुछ भी करें हम सब सहन करेंगे। अपनी जनता को उपदेश देंगे और भगवा आतंकवाद का भूत दिखाकर डराएंगे। इसी के कारण पाकिस्तान अनियंत्रित हो गया है। उसे भारत से डर नहीं लगता। वह सोचता है कि सरबजीत सिंह को मार डालने के बाद भी भारत क्या कर लेगा? अर्थात भारत सरकार क्या कर लेगी? शब्दों के बुलबुले उगलने के अलावा भारत सरकार कुछ नहीं कर सकती। कुछ करने की हिम्मत यदि किसी में थी तो वह थीं इन्दिरा गांधी। अब वे तो नहीं रहीं, बचे हैं केवल बड़बड़ गांधी।

देश के सर्व सामान्य नागरिक को लगता है कि पाकिस्तान नामक सिरदर्द हमेशा के लिए खत्म हो जाये, परन्तु पाकिस्तानी पैसों पर ऐश करने वाले बुद्धिजीवियों को ऐसा नहीं लगता। वे हमें उपदेश देते हैं कि पाकिस्तानी जनता हमारी शत्र्ाु नहीं है। वह हमसे मित्रता करना चाहती है। अभी भी वे लिख सकते हैं कि हमने अजमल कसाब और अफजल गुरु को फांसी देकर पाकिस्तान के गुस्से को भड़काया है। अत: पाकिस्तान ने सरबजीत को मरने दिया। वे यह भी लिख सकते हैं कि पाकिस्तान से मित्रता करने के लिए हमें सभी आतंकवादियों को छोड़ देना चाहिए। इन सभी ने संजय दत्त को रिहा करने की मुहिम तो चला ही रखी है। अब यह भी लिखने लगेंगे कि 1993 के बम विस्फोट के आरोपियों को भी छोड़ दिया जाये जिससे भारत‡पाकिस्तान के बीच का तनाव कम हो सकेगा।

पाकिस्तान का कुछ भी न बिगड़ सकने वाले हमारे नेता और उसका समर्थन करने वाले बुद्धिजीवी जिन्हें हम दूरदर्शन पर देखते हैं, इन दोनों के बीच आम जनता फंस गयी है। पाकिस्तान की कमर तोड़ सके, इतना मजबूत नेता भारत के राजनैतिक क्षितिज पर कोई दिखयी नहीं देता। हमारे राजनेता जाति की, प्रादेशिक भावनाओं की, भाषायी अस्मिता की, व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा की राजनीति करने में मग्न हैं। पाकिस्तान को पाठ पढ़ाने की शक्ति हमारी सेना में भी है और आम जनता में भी है। आवश्यकता है केवल समर्थ राजनैतिक नेता की।

सरबजीत सिंह की हत्या का बदला लिया जाना चाहिए। व्यक्तिगत स्तर पर क्षमा करना गुण है, परन्तु राष्ट्रीय स्तर पर क्षमा करना अवगुण है। राजनेताओं को क्षमा की नहीं बल्कि बदले की भाषा ही बोलनी चाहिए। जब सब लोग आक्रामक हो जायें तो शान्ति का पाठ पढ़ने से क्या फायदा। हमें भी आक्रामक होना होगा। जब कोई देश किसी देश से शत्र्ाुता निभाता है तो उसकी शत्र्ाुता किसी एक व्यक्ति या व्यक्ति समूह से नहीं, बल्कि उस देश की संस्कृति, धर्म और पूरी प्रजा से होती है। ऐसे समय में क्षमा की बात करना अपनी चिता स्वयं तैयार करने जैसा है। व्यर्थ क्षमा करने के हमारे इतिहास में अनेक उदाहरण हैं, उनकी पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए। सरबजीत सिंह को भारतीय प्रतिशोध का प्रतीक बनाना चाहिए। सरबजीत सिंह के खून की एक‡एक बूंद का बदला लेना चाहिए। व्यक्तिधर्म कहता है कि हिंसा का जवाब हिंसा नहीं होना चाहिए, परन्तु राष्ट्रधर्म कहता है कि हिंसा का जवाब प्रतिहिंसा ही होना चाहिए। ऐसा जवाब देना चाहिए जिससे शत्र्ाु के मन में खौफ निर्माण हो जाये।

भारत की सर्वसामान्य जनता भी यही चाहती है पर इसे पूरा कौन करेगा?

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Tags: atrocityhindi vivekhindi vivek magazinelaw and orderrevenge

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