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सिफारिश बम

सिफारिश बम

by राजेंद्र परदेसी
in जुलाई -२०१३, साहित्य
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पढ़ाई समाप्त करते ही मेरे सामने मुसीबतों का पहाड़ गिर पड़ेगा, काश! यह जानता तो शायद हर वर्ष परीक्षा में सफलता प्राप्त करने के लिए भागीरथ प्रयास न करता लेकिन, अब तो सिर ओखल में गिर ही पड़ा है, तो मूसल भी सहना ही पड़ेगा।

आज मैं करूँ भी तो क्या, क्योंकि आज के परमाणु युग में, जहाँ हमारे प्रतिद्वंद्वी बड़े‡बड़े सिफारिशी बमों का प्रयोग करते हैं, वहाँ मेरे जैसा प्राणी मात्र कागज और कलम की सहायता से विजय पाने की कामना करता है। परिणाम वही निकलता है, जो अब तक निकलता आया है। मैं हर बार अपनी बेकारी दूर करने में असफल रहता हूँ। बार‡बार की मेरी इस असफलता को देखकर एक दिन हमारे एक शुभचिन्तक को दया आ गयी। बोले‡तुम जिन्दगी भर आवेदन‡पत्र और परीक्षा शुल्क भेजते रहोगे, फिर भी एम.ए. पास करने के पश्चात लिपिक कौन कहे, चपरासी की जगह हाथ नहीं आयेगी। मित्र की बात सुनकर जब मैंने उनसे समाधान पूछा, तो बोले‡कोई सिफारिश‡उफारिश ढूंढ़ो तो काम बनेगा। आजकल बिना सिफारिश के कुछ होने को नहीं।

आखिर, अपने मित्र के निर्देशन में अपने ही शहर के सदाबहार नेता श्री चरणदास जी के दरबार में एक दिन सुबह‡ही‡सुबह उपस्थित हो गया।

नेताजी किस दल के उत्पाद हैं, इसे मैं क्या, मेरे पुरखे भी नहीं बता सकते थे। लेकिन, जहाँ तक मुझे उनके दरबार के लोगों से जानकारी मिली, उसका आशय यह था कि आप इनका उपयोग जहाँ भी चाहे, जिस समय भी चाहें कर सकते हैं, क्योंकि यह गिरगिट की तरह रंग बदलने में महारथ हासिल कर चुके हैं। अंधे को क्या चाहिए‡एक लाठी का सहारा। मेरे दादा जी भी कहा करते थे‡बेटा, समय पड़ने पर गदहा को भी बाप बनाना पड़ता है, तभी काम बनता है। दादाजी की इसी सीख को क्रियान्वित किया। तुरन्त झुककर नेताजी का चरण‡स्पर्श किया। प्रभाव होना था, हुआ। चरणदास जी ने उठाकर अपने बगल में बैठाया और मेरी समस्या को सुनकर सहानुभूति दर्शाते हुए बोले‡बेटा तुम्हारा काम यहाँ से तो होगा नहीं, राजधानी चलना पड़ेगा। यहाँ किसी मंत्री से कह दूँगा। वह आदेश कर देंगे। तुम्हें नौकरी मिल जायेगी।
मैंने सोचा, शुभ काम मे देरी क्यों? तुरन्त राजधानी चलने का कार्यक्रम बना डाला।

पिताश्री को पहली तारीख को वेतन मिला तो पैसे लेकर दूसरी तारीख को नेताजी के साथ राजधानी के लिए प्रस्थान कर दिया। गाड़ी में भीड़ बहुत थी। कहीं कोई जगह खाली नहीं थी। किसी तरह एक सज्जन से अनुरोध करके नेताजी को बैठाया और स्वयं अपने साथ उनका सामान लेकर किसी तरह सीधा‡टेढ़ा खड़ा हो गया।

राजधानी पहुंचने के पश्चात नेताजी के सुझाव पर एक होटल में कैम्प डाला और उन्हीं के आदेशानुसार तुरन्त काग़ज‡कलम निकाल कर एक आवेदन‡पत्र तैयार कर डाला। पत्र किसके नाम सम्बोधित किया जायेगा, इसका निर्णय नेताजी के ऊपर था, इसलिए स्थान रिक्त छोड़ दिया। उन्होंने कहा भी था, जो भी मिल जायेगा, उसी का नाम भर दूँगा। मुझे क्या एतराज था। नेताजी और आवेदन‡पत्र के साथ सचिवालय पहुँच गया। वहाँ नेताजी पहले कई घंटे इधर‡उधर घूमकर व्यूह रचते रहे। अन्त मेंएक मंत्रीजी के कमरे में प्रवेश कर गये। मैं बाहर खड़ा उनकी प्रतीक्षा करता रहा। लगभग दो घंटे बाद नेताजी प्रसन्न मुद्रा में प्रकट हुए। उनकी मुद्रा देखकर पहले तो समझा कि किला फतह हो गया, लेकिन बाद में ज्ञात हुआ कि पूर्ण सफलता तो नहीं मिली, हाँ, मंत्रीजी से आवेदन‡पत्र पर इतना लिखवा लिया कि‡ ‘इस पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करें।’

काग़ज अब मंत्रीजी के कार्यालय द्वारा ही निदेशक महोदय के पास जाना था। इस कारण वह मुझे साथ लेकर सचिवालय से बाहर आये। इतनी सफलता देखकर मैंने सोचा‡चलो दुर्ग का फाटक खुल ही गया है। विजय आज नहीं तो कल मिलेगी ही।
नियुक्ति‡पत्र की प्रतीक्षा में एक महीने तक मौन बैठा रहा। जब खुशियाँ मातम में बदलने लगीं तो पुन: नेताजी के दरबार में हाजिर हुआ और उनके सम्मुख अपने हृदय की वेदना स्पष्ट की, तो नेताजी ने तुरन्त प्रस्ताव रख दिया कि एक बार फिर राजधानी चलो, देखूँ क्या बात है।
नेताजी के आदेश पर पिताजी को फिर कष्ट दिया और राजधानी पहुँच कर फिर उन्हीं क्रियाओं की पुनरावृत्ति कर डाली। परिणाम यह निकला कि इस बार आवेदन‡पत्र पर यह टिप्पणी टंकित कर दी गयी कि‡‘अगर स्थान रिक्त हो तो इन्हें नियमानुसार कार्य करने का अवसर दिया जाय’ और नीचे मंत्रीजी के हस्ताक्षर।

इस बार मैंने निश्चय किया कि स्वयं ही विजय‡पताका लेकर आगे बढूँगा। इस कारण, टिप्पणी टंकित आवेदन‡पत्र के साथ अधिकारी के पास पहुँचा। पर अधिकारी महोदय पुराने खिलाड़ी थे। ऐसी भाषा वह खूब समझते थे। इसी कारण मेरे हाथ से पत्र लेकर बोल‡‘इस समय तो कोई स्थान रिक्त नहीं है। हाँ, शीघ्र ही रिक्त होने वाला है। तब आपको अवश्य ही बुलाया जायेगा।

पर ढाक के तीन पात की तरह मैं भी जहाँ था, वहीं पड़ा रहा, क्योंकि उनका शीघ्र मेरे लिए बहुत दीर्घ हो गया था। इस कारण सिर पर हाथ रखकर चिन्तामग्न था कि मेरे एक मित्र घर पर उपस्थित हुए और मुझे ही इसके लिए जिम्मेदार ठहराया। उनकी दृष्टि में मैं जिन नेताजी का सहारा ले रहा था, उनकी औकात कुछ भी नहीं है। मेरे मित्र के शब्दों में ही‡ ‘अब पउआ का जमाना गया, अब किलों का जमाना है’। वैसे मैं आपको स्पष्ट कर दूँ, यह पउआ या किलो साग‡सब्जी तौलने की ईकाई नहीं, बन्कि सिफारिशी‡बम की क्षमता की इकाई है, जैसा कि मेरे मित्रों ने स्पष्ट किया है।

हाँ, अभी‡अभी ताजा समाचार के अनुसार हमारे एक शुभचिन्तक ने मुझे बताया है कि अगर आपको सिफारिश लगानी ही है तो क्विंटल का प्रयोग करे। अब पउआ या किलो का जमाना गया।

इसलिए आप सभी से अनुरोध है कि कृपया अगर किसी के पास इस क्षमता का सिफारिशी‡बम हो तो हमें सूचित करें। हम हर शर्त पर आपसे संधि करने को तैयार हैं, क्योंकि अवसर आने पर जब अमरीका और चीन समझौता कर सकते हैं, तो हम‡आप क्यों नहीं? विश्वास है, आप मेरे प्रस्ताव पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करेंगे और मेरे लिए किसी आफिस में एक कुर्सी सुरक्षित हो सकेगी, भले ही गद्दी वाली न हों?

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