भारत का गौरव है बिहार

हमारे देश में जिस प्रकार उत्तर प्रदेश धर्म के विषय में, महाराष्ट्र संतों के लिए, बंगाल सुधार एवं संस्कृति के दृष्टिकोण के लिए, शौर्य के लिए पंजाब उसी प्रकार इतिहास के दृष्टिकोण से बिहार का स्थान है। ‘बिहार के इतिहास वही स्थान है, जो यूनान के इतिहास में ‘एथेन्स’ का, बिट्रेन में ‘बेसेक्य’ का तथा जर्मनी के इतिहास में ‘प्रशा’ का है। राजनीति एवं कूटनीति के जनक ऐतिहासिक पुरुष ‘चाणक्य’ (विष्णुगुप्त) की जन्म स्थली एवं कर्मस्थली बिहार ही है। चाणक्य के पूर्वज मगध का निरंकुश अंहकारी राजा ‘धर्मानंद’ ने विष्णुगुप्त के पिता आचार्य चणक को अपने अंहकार की तृष्टि के लिए ‘प्राणदंड’ प्रदान किया, जिससे क्षुब्ध होकर बालक विष्णुगुप्त ने नंद वंश को जड़मूल से नष्ट करने की प्रतिज्ञा ली और चन्द्रगुप्त मौर्य को माध्यम बनाकर अपनी प्रतिज्ञा को साकार किया। चन्द्रगुप्त मौर्य को राजनीति का प्रथम पाठ पढ़ाने वाले तक्षशिला विश्वविद्यालय के शिल्पी आचार्य ‘चाणक्य’ नीतिशास्त्र के प्रकांड पंडित थे। उनके शरीर में देशभक्ति का रक्तसंचार होता था। जब यूनानी आक्रमणकारी ‘सिकन्दर’(अलेकजेन्डर) ने विश्व के अनेक भागों को अपने घोड़ों की टापों से रौंदते हुए सम्पूर्ण विश्व में अपनी ध्वजा फहराने हेतु विश्व विजय के लिए कूच की तो भारत में चाणक्य ने अपनी कूटनीति से उसे परास्त किया। चाणक्य की नीति के कारण ही सिकन्दर की विशाल सेना में ‘मौर्य’ का भय व्याप्त हुआ। उन्हीं की नीति के फलस्वरूप सिकन्दर की सेना में विद्रोह हुआ व चाणक्य के कूटनीतिक प्रयासों से ही सिकन्दर की सेना में महामारी प्लेग का प्रकोप हुआ और सिकन्दर को भारत भूमि छोड़नी पड़ी व वह मृृत्यु को प्राप्त हुआ। आचार्य चाणक्य कुशल राजनीतिज्ञ, युध्दकौशल के प्रकांड ज्ञाता, विद्वान दार्शनिक एवं अर्थशास्त्री थे। उन्होंने कौटिल्य के नाम से ‘अर्थशास्त्र’ की रचना की जो विश्वविख्यात है। चाणक्य ने शारीरिक विज्ञान पर आधारित ‘वात्सायन’ के नाम से ‘कामसूत्र’ की रचना की जो अपने आप में अतुलनीय है। चाणक्य विदेश नीति में भी दूरदर्शी थे। उन्होंने सिकन्दर के सेनापति ‘सुकस’ की विदूषी रुपवती कन्या का विवाह सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य से कराया एवं ‘मेगस्थानिज’ नामक राजदूत को चन्द्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य में सम्मानजनक पद प्रदान किया। ‘मेगस्थानिज’ ने अपने लेखों में तत्कालीन साम्राज्य की मुक्त कंठ से प्रशंसा की है। चन्द्रगुप्त मौर्य का शासन कार्य भारत के इतिहास में ‘स्वर्णयुग’ के रूप में जाना जाता है। ‘चाणक्य’ के अलावा ‘राक्षस’ ‘कामन्दक’, ‘पुण्यमित्र’ ‘महामात्य शकटार’ जैसे नीतिकार बिहार की भूमि पर उदीयमान हुए। इसके अतिरिक्त दर्शनाचार्य ‘वाचस्पति मिश्र- तर्कशास्त्री ‘पक्षधर मिश्र’, मंडन मिश्र, कविवर ‘गोविंदाचार्य’, कविरत्न ‘वररुचि मिश्र’, कवि कोकिल ‘विद्यापति ठाकुर’ जैसे महादिग्गज, रचनाकारों के अतिरिक्त, ‘गार्गी’, ‘मैत्रेयी’, ‘भारती’, ‘सुभद्रा’, ‘मरुलवणा’, और ‘भवदेवी’ आदि विदुषी नारियों ने भी बिहार की शोभा बढाने में निसंदेह उत्कृृष्ठ योगदान दिया है। संस्कृत के गौरव ग्रंथ ‘कादम्बरी, और ‘हर्षचरित’ के स्रष्टा ‘बाणभट्ट’ व पंचतंत्र के प्रणेता एवं हितोपदेश के लेखक विष्णु शर्मा भी बिहार के विभूति हैं। बिहार राजनिति के साथ ही सांस्कृतिक दृष्टि से भी अग्रगण्य रहा। ज्ञान-विज्ञान और सभ्यता के क्षेत्र में तो इसने पुरातन युग में समूचे भारत का नेतृत्व किया, साथ ही शिक्षा एवं संस्कृति की किरणें भी विकीर्ण होकर यही से सम्पूर्ण भारतवर्ष में प्रवाहित हो रही थीं। नालन्दा विश्वविद्यालय, तक्षशिला गुरुकुल, पाटलीपुत्र में विक्रम विश्वविद्यालय शिक्षा के प्रख्यात केन्द्र थे जो देश में ही नहीं विदेशों में भी ख्याति अर्जित कर रहे थे। इनमें शिक्षा ग्रहण करने वाले विदेशी विद्यार्थियों में से हेवन सोग, फाह्यान इत्यादि प्रमुख थे। शिक्षा के साथ ही चक्रवर्ती सम्राटों, दिग्विजयी सेनापतियों और प्रबल पराक्रमी योध्दाओं की जन्मभूमि बिहार रही है। इसे धर्म प्रचारकों को पैदा करने का भी सौभाग्य प्राप्त है। बिहार को गुरुगोविन्द सिंह की जन्मस्थली होने का गर्व भी प्राप्त है, जिन्होंने मानव जाति के कल्याण के युध्द कौशल, जीवन दर्शन और नीति -ज्ञान प्रदान किया। बौध्द सम्प्रदाय की तीर्थस्थली ‘गया’ एवं ‘राजगृह’, जैन सम्प्रदाय की पावन भूमि ‘पावापुरी’ यही विद्यमान हैं, जहां ये पंथ फले-फूले व यही से जययात्रा प्रारम्भ कर विश्वविख्यात हुए।

बिहार में ही राजा मनु के पौत्र ‘राजा निमि’ ने मिथिला के गौरवशाली राज्य की स्थापना की थी। रामायण काल में भी बिहार के गौरव का जयघोष बराबर सुनाई पड़ता है। यही पर वह ‘वाल्मिकि’ नगर है जहां की धूल-मिट्टी में आदि कवि वाल्मीकि ने अपने शिशु काल में घुटनों के बल सरक-सरक कर खड़ा होना सीखा था। उनके द्वारा रचित ‘रामायण’ आज भी जन-जन के कंठ का हार और प्राण है। यहीं के गौरवशाली मगध साम्राज्य की राजकुमारी ‘सुमित्रा’ आयोध्या के महाराजा ‘दशरथ’ की सम्राज्ञी थी। मिथिला के नरेश ‘जनक’ अपने समय की अतुलनीय विभूति थे। इनकी सुपुत्री ‘सीता’ का विवाह अयोध्या के राजा दशरथ के सुपुत्र श्रीरामचन्द्र से हुआ। यही नहीं राजा दशरथ के चारों पुत्रों- राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न- का विवाह राजा जनक की चार कन्याओं से हुआ। ‘महर्षि याज्ञवल्क्य’ भी मिथिला निवासी थे। दरभंगा जिले में गौतम कुंड और अहिल्या स्थान आज भी महर्षि गौतम और अहिल्या की कथा को साकार करते हैं। बक्सर आश्रम भगवान श्रीराम की वह जयगाथा गाता सुनाई पड़ता है, जहां पर उन्होंने ऋषियों की सहायता से विश्वामित्र के आदेश पर ‘ताड़का राक्षसी’ का वध किया था। रामरेखा घाट पर विश्वामित्र की विशाल प्रतिमा आज भी देश-विदेश के पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है। इसी रामायण काल में वर्तमान भागलपुर बसाया गया था। इसका प्राचीन नाम ‘अंगदेश’ के राजा रोमपाद के प्रपौत्र ‘चम्पा’ द्वारा बसाये जाने पर ‘चम्पानगर’ पड़ा था। इन्हीं के वंश में ‘अधिरथ’ हुए जिन्होंने कुन्ती पुत्र कर्ण को पोष्यपुत्र बनाया। कर्ण भी अंगदेश के राजा थे। उस युग का सूमचा भारत उनकी शक्ति का लोहा मानता था। वे न केवल अचूक धर्नुधारी थे, अपितु इनकी दानशीलता भी प्रख्यात थी। ‘मुंगेर’ इसी वीर सम्राट का राज नगर था। आज भी ‘मुंगेर’ और ‘भागलपुर’ जिलों में उनके किलों और गढ़ों के कई अवशेष ऊंचे टीलों के रूप में उनके साम्राज्य के कथा का जयगान करते दिखाई पड़ते हैं।

बिहार के ‘राजगीर’ के प्रतापी राजा ‘ जरासन्ध’ की शक्ति के आगे तो तत्कालीन समस्त भारत नतमस्तक था। अनेक छोटे-छोटे राज्यों मे विभक्त भारत को एक छत के नीचे लाने का महान कार्य सर्वप्रथम सम्राट जरासंध ने ही किया था।

बिहार में उन दिनों वैशाली, विदेह, अंग और मगध नामक चार प्रमुख राज्य थे। वैशाली की स्थापना ईक्ष्वाकु वंश के राजा विशाल ने की थी। उन्हीं के नाम पर इस नगर का नाम वैशाली पड़ा। इस राज्य में हुई गणराज्य की स्थापना भारत में ही नहीं, अपितु समूचे विश्व में जनतंत्र का सर्वप्रथम उदाहरण है। बिम्बिसार के समय में मगध साम्राज्य का उदय हुआ और उनके पुत्र अजातशत्रु ने लिच्छवियों को पराजित कर वैशाली पर अधिकार प्राप्त कर लिया। तत्पश्चात महापद्मनन्द मगध के महाप्रतापी सम्राट हुए। उनके शासन काल में मगध राज्य की सीमा वर्तमान बिहार के अलावा अन्य राज्यों तक विस्तारित थी।

विश्व के महान सम्राटोंं मे चन्द्रगुप्त के पौत्र अशोक का नाम सर्वप्रथम लिया जाता है। वे चक्रवर्ती सम्राट थे, शक्ति के शिरोमणि थे। परंतु कलिंग के महायुध्द में विजय के उपरान्त उनका हृदय ऐसा परिवर्तित हुआ कि उन्होंने बौद्ध धर्म अंगीकार कर लिया। युध्द एवं हिंसा से विरक्त हो गये। अहिंसक बनकर अपना सम्पूर्ण जीवन बौद्ध धर्म को अर्पित कर दिया एवं उसके प्रचार-प्रसार में लग गये। उन्होंने बौद्ध धर्म को लंका, तिब्बत, चीन, जापान तक प्रसारित किया। उन्होंने अपने पुत्र महेन्द्र व पुत्री संघमित्रा को धर्म प्रचार के लिए विदेशों में भेजा। देश के अनेक स्थानों पर उन्होंने स्तम्भ बनवाये। हमारे देश का राष्ट्रीय प्रतीक ‘अशोक चक्र’ उन्हीं के स्तम्भ से लिया गया धर्म चक्र है।

सम्पूर्ण देश बौद्धमय और अहिंसक बन गया, जिसके परिणामस्वरूप युद्ध का परित्याग कर दिया गया। सेना लगभग मृतप्राय हो गयी। लोग हथियार चलाना बिसर गये। सम्पूर्ण देश में शिथिलता आ गयी। विदेशी आक्रांता एवं लुटेरे प्रभावी होने लगे। भारत का राजनैतिक अध्याय कुछ समय के लिए अवश्य धूमिल पड़ गया था; परन्तु इतिहास के अंधःकार को भेदकर लुप्त सूर्य बिहार में तब पुन: प्रकट हुआ जब चन्द्रगुप्त एवं उनके पुत्र समुद्रगुप्त ने सम्पूर्ण भारत को अपने अधीन कर लिया। पाटलीपुत्र का गौरव बढ़ा। तत्पश्चात यही पर चन्द्रगुप्त द्वितीय अर्थात विक्रमादित्य हुए जिनका नाम आज भी भारतीय लोक-कथाओं में अपने न्याय के लिए विख्यात है। इस गुप्तकाल को इतिहास में स्वर्ण युग के रूप में जाना जाता है।

कालान्तर में बिहार के इतिहास ने फिर करवट ली। बौद्ध धर्म पुन: प्रभावी हो गया। परिणामस्वरूप विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारियों ने यहां के शिथिल सम्राटों को पराजित कर इस्लाम का साम्राज्य स्थापित कर दिया। दिल्ली के साथ ही बिहार में भी गुलाम वंश, तुगलक का प्रभुत्व रहा, परन्तु खिलजी वंश जब दिल्ली में सत्तारूढ हुआ तो बख्तियार अली खिलजी ने बिहार पर आक्रमण कर दिया। बख्तियार अली खिलजी की सेना से कोई युद्ध करने वाला ही नहीं था। राजगृह के राजपुत जो यद्ध कला में पारंगत थे, जिनकी वीरता की गाथायें प्रसिद्ध थीं, वे बौद्ध धर्म के प्रभाव के कारण युद्ध कौशल ही भूल गये थे। उन्होंने अपने हथियार नष्ट कर दिये थे। बख्तियार अली खिलजी की छोटी सी सैन्य टुकड़ी ने बिहार में भयंकर नरसंहार किया। लोग गाजर-मूली की भांति कटते रहे। प्रतिकार नहीं कर सके। बिहार के कई भागों कों तो हिन्दूविहीन कर दिया गया। उसने भारत की सभ्यता एवं संस्कृति को नष्ट करने के लिए मंदिरों को ध्वस्त कर दिया। गुरुकुल, बौद्ध विहार, मठ एवं शिक्षा केन्द्रों को अग्नि की भेंट चढ़ा दिया गया। विश्वविख्यात नालंदा विश्वविद्यालय 1193 में ध्वस्त कर समस्त शिक्षाशास्त्रियों, अध्यापकों, वैज्ञानिकों, धर्माचार्यों की नृशंस हत्या कर दी गई। विश्वविद्यालय की पुस्तकों को आग में समर्पित कर दिया गया। कहते हैं कि नालंदा विश्वविद्यालय में पुस्तकों का इतना विशाल भंडार था कि, छह महीनों तक पुस्तकालय जलता रहा। बख्तियार अली खिलजी ने सब कुछ नष्ट कर दिया। आश्चर्य तो इस बात का है कि बिहार में उस आतताई के नाम पर बख्तियारपुर नामक रेल्वे स्टेशन है। जो वहॉ की कायर जनता का परिहास कर रहा है।

खिलजी वंश के उपरांत लोदी वंश आया। इस्लामीकरण अनवरत जारी रहा। लोदी वंश को मुगलों ने परास्त किया और हिन्दुस्थान के सिंहासन पर आरूढ़ हो गये। प्रथम मुगल सम्राट बाबर के पुत्र हुमायूं को शेरशाह सूरी ने 1537 ई. में युद्ध में पराजित कर मुगलों को भारत छोड़ने के लिए विवश किया। उन्होंने अपनी राजधानी सहसाराम को बनाया। वहां पर आज भी शेर शाह सूरी का किला विद्यमान है। शेरशाह सूरी ने अनेक जनहितार्थ कार्य किए, जिनमें डाक व्यवस्था, सड़क परियोजना, भूमि सुधार (चकबंदी) उन्हीं की देन है। सुधारवादी शासकों में शेरशाह सूरी का नाम अग्रिम पंक्ति में आता है। हुमायूं ने पूर्ण तैयारी कर सन् 1540 में शेरशाह सूरी को पराजित कर पुन: सत्ता प्राप्त कर ली। हुमायूं का पुत्र जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर जब सिंहासनारूढ़ हुआ तो उसने अपने रणकौशल से सम्पूर्ण बिहार में अपना अधिपत्य स्थापित किया। अकबर ने प्रेमपूर्वक या प्रलोभन द्वारा हिन्दू संस्कृति का इस्लामीकरण किया। इनके शासन काल में बिहार में इस्लामिक संस्कृति खूब फली फूली। धीरे-धीरे सत्रहवीं शताब्दी तक बिहार बंगाल के नबाब के अधीन आ गया। इसी दौरान अंग्रेजों, फ्रेंचों एवं डचों ने पटना में व्यापारिक केन्द्रों की स्थापना की। बिहार के ही बक्सर नामक स्थान पर अंग्रेजों, फ्रेंचों एवं डचों में प्लासी का युद्ध सन् 1756 से 1763 तक चला जिसमें अंग्रेज विजयी हुए। फलस्वरूप उत्तरी पूर्वी भारत पर अग्रेजों का एकछत्र शासन हो गया। 1857 में भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में आरा के ठाकुर कुंवर सिंह के नेतृत्व में स्वतंत्रता प्राप्ति के लक्ष्य वाला टिमटिमाता दीपक तेल पाकर फिर भड़क उठा। स्वतंत्रता संग्राम की लौ प्रज्वलित होने से बिहार की जनता फिर से खड़ी हो देश के शत्रु के लिए मौत का पैगाम बन बैठी। अस्सी वर्षीय वीर कुंवर सिंह के लिए तो सुभद्रा कुमारी चौहान की ये पक्तियां उनकी मर्दानगी के लिए उपयुक्त हैं –

‘उधर खड़ी थी लक्ष्मीबाई और पेशवा नाना था।
इधर बिहारी वीर बांकुड़ा, खड़ा हुआ मस्ताना था।
अस्सी वर्षीय उन हडि्डयों में, जागा जोश पुराना था।
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था।’

यह ऐसा अवसर था जब हरवर्ग के असंख्य नौनिहालों ने मां-बाप, भाई-बहन सभी का मोह त्यागकर स्वतंत्रता की बलिवेदी पर अपने प्राणों की आहुति दे दी।

महात्मा गांधी द्वारा चलाये गये असहयोग आन्दोलन में भी बिहार ही सब से आगे था और चम्पारन में शुरू हुए सत्याग्रह में स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद थे। वे राष्ट्रवादी एवं भारतीय संस्कृति के संरक्षक थे। उन्होंने भारत के आराध्य देव भगवान शिव के विदेशी आक्रमणकारी गजनी द्वारा ध्वस्त किये मंदिर सोमनाथ का जीर्णोधार कराया। वे तो राम जन्म भूमि व कृष्ण जन्म भूमि को मुक्त कराके भव्य मंदिर का निर्माण करना चाहते थे। परन्तु पं. जवाहरलाल नेहरू के कारण उनकी यह अभिलाषा पूर्ण न हो सकी।
बिहार के ही सर्वोदयी लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा लादे गए आपातकाल का विरोध कर जनक्रांति की शुरुआत बिहार से आरम्भ कर सम्पूर्ण देश के जन-जन तक इसे प्रज्वलित किया और एवं भारत में प्रथम गैर-कांग्रेसी सरकार की स्थापना कर इतिहास रचा।

बिहार की भाषा हिन्दी है, परंतु यहां अनेक उपभाषाएं व बोलियां प्रचलित हैं जैसे प्राकृत पाली, मागधी, मैथिली, सौताली, मुठांरी, खड़िया तथा भोजपुरी, संस्कृत इत्यादि। उनमें गद्य एवं पद्य की रचनाएं हुई हैं और अतुलनीय साहित्य उपलब्ध है। कला के क्षेत्र में शिल्पकला में मौर्य एवं गुप्तकला का जन्म मगध में होकर राष्ट्रीय स्तर तक विख्यात रही। चित्रकला में पटना कलम (ब्रश) का उद्भव इस भूमि पर हुआ। रंगमंच में बिहारी ठाकुर (भिखारी ठाकुर) के ‘विदेशियो’ को कौन भूल सकता है? आज भी नाट्य, नृत्य ,फिल्म एवं टीवी जगत अनेक उत्कृष्ठ एवं प्रख्यात सितारे बिहार के हैं। संगीत एवं नृत्य कला में दरभंगा की नाटक मंडली संम्पूर्ण देश में विख्यात है। ये देश के अलग-अलग शहरों में अपनी कला का प्रदर्शन करते है। ये रामलीला, कृष्णलीला एवं अनेक धार्मिक एवं सामाजिक विषयों पर नाटक खेलते हैं। भागलपुर का संगीत विश्व विख्यात है। रवीन्द्र संगीत में प्रवीण संगीत गुरू राजला शर्मा वहां विख्यात संगीतज्ञ हैं। कई हिन्दी व भोजपुरी फिल्मों को भी अपने संगीत से सुसज्जित किया है। आरा, छपरा व पश्चिमी ठाकुर की धूम हैं। लोग उनके लिखे व गाये गीतों को गाते हैं –

हंसि-हंसि, पनवां खिईले बेइमनवां,
अपुना बसैला परदेश।
कोरी रे चुनरिया में दगिया, लगाय गईला
अपुना बसैला परदेश।

बिहार में प्रत्येक मौसम व प्रत्येक महीने के अलग-अलग गीत है। उनका संगीत भी एक दूसरे से भिन्न है। एक प्रकार से सम्पूर्ण बिहार संगीतमय है।

बिहार प्रदेश का नाम बौद्ध विहारों के कारण पड़ा हैं। पहले बिहार में बंगाल व उडीसा समाहित थे। 1912 में बिहार और उड़ीसा को बंगाल से अलग कर दिया गया। 1937 में बिहार को उड़ीसा राज्य से भी पृथक कर दिया गया। 15 नवम्बर सन् 2000 को बिहार को विभक्त कर एक नये राज्य झारखंड का गठन किया गया।

देश के प्रत्येक भाग में बिहार के मूल निवासी निवास करते हैं। प्रत्येक महानगर, नगर एवं छोटे शहरों में बिहारी अवश्य मिल जायेंगे। मुबंई के उद्योग-धंधों में, आयकर विभाग, कस्टम विभाग में बिहारी हैं। बड़े अधिकारी अधिकतर बिहार के ही मिलेगे। पंजाब की कृषि बिहार के श्रमिकों ने ही संभाल रखा है। देश क्या विदेशों में भी बिहार मूल के लोग विद्यमान हैं। मॉरिशस, फिजी, बाली दीप, हालैण्ड, त्रिनिदाद, मलेशिया, कोरिया, केनिया, इंडोनेशिया, नीदरलैंड इत्यादी देशों में बिहारी उपस्थित हैं। ब्रिटेन, अमेरिका व यूरोप के अनेक देशों में बिहार के डॉक्टर एवं इंजीनियर कार्यरत हैं। नासा में अनेक वैज्ञानिक बिहार के हैं। अपने देश में भी सबसे अधिक आई.ए.एस. अधिकारी बिहार के ही हैं।
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