दिल्ली का ‘संकेत’ पहचानें

भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में चुनाव एक महत्वपूर्ण कर्मकांड है। राष्ट्रीय कर्तव्यपूर्ति के उत्सव के रूप में भी उसे संबोधित किया जाता है। भारत के पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों का उत्सव हाल ही में संपन्न हुआ है। सवा सौ सालों की परंपरा का दावा करनेवाली कांग्रेस को दिल्ली, राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्यों में दयनीय पराजय का ही सामना करना पड़ा। इसे उसके अस्त की शुरूआत कहा जा सकता है। महंगाई, भ्रष्टाचार, असुरक्षा आदि मुद्दों पर देश की जनता कांग्रेस पर बहुत नाराज है। वह अब एक सक्षम विकल्प के रूप में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्ववाली भारतीय जनता पार्टी की ओर देख रही है। लोकसभा चुनावों का ‘सेमीफाइनल’ समझे जानेवाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों से यह स्पष्ट हो गया है।

जनलोकपाल विधेयक की मांग करनेवाले अण्णा, भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आंदोलन करनेवाले बाबा रामदेव जैसे लोगों का अपमान करने में भी कांग्रेस ने कोई कसर नहीं छोड़ी। सभी लोग प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के ‘मौन’ पर असंतुष्ट हैं। उनके जैसा विश्वप्रसिद्ध अर्थशास्त्री भारत का प्रधानमंत्री होते हुए भी रुपये के अवमूल्यन और महंगाई ने सारी सीमाएं लांघ ली हैं। इसके साथ ही दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी ने नरेन्द्र मोदी जैसे कर्तव्यनिष्ठ नेता को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करके देश की जनता में एक नवचैतन्य जगाया है। नरेन्द्र मोदी ने चारों राज्यों में जो चुनाव प्रचार किया उसमें उन्होंने महंगाई, भ्रष्टाचार, युवाओं की समस्या, देश का विकास, सुरक्षा आदि मुद्दों पर मतदाताओं का ध्यान आकर्षित किया। युवाओं की प्रतिष्ठा और क्षमता का विचार सामने रखते समय उन्होंने युवाओं से मतदान करने का आवाहन भी किया। इन सभी का एकत्रित परिणाम ही चार राज्यों में भाजपा को मिली विजय है। राजस्थान में तीन चौथाई बहुमत, मध्यप्रदेश में दो तिहाई बहुमत, छत्तीसगढ़ में स्पष्ट बहुमत और दिल्ली में फिसलती हुई जीत भाजपा को मिली।

विधानसभा चुनावों का प्रत्येक राज्य के अनुसार विचार किया जाये तो राजस्थान में जनता के लिये किये गये काम शून्य और चुनावों के समय जनता को बांटी गई निशुल्क सुविधाओं की खैरात यह गहलोत सरकार की जमींदारी प्रवृत्ति को दर्शाती है। यह लोकतंत्र प्रेरित नहीं है। इस वजह से जनता का हित करने में असमर्थ रहे अशोक गहलोत को जनता ने उनकी जगह दिखा दी और श्रीमती वसुंधरा राजे सिंधिया की झोली में तीन चौथाई बहुमत डाल दिया। कांग्रेस के लिये यह बहुत ही दयनीय हार है। मध्यप्रदेश में लगातार तीसरी बार शिवराज सिंह चौहान शालीनता और कर्मठता की अपनी प्रतिमा को कायम रखने में सफल रहे। उन्होंने सदैव ही स्वयं को अनावश्यक विवादों से दूर रखा है। अत्यंत साधारण रहन-सहन और जनता की समस्याओं को सुलझाने की लगनशील कार्यपद्धति के कारण मतदाताओं ने शिवराज सिंह के विकास कार्यों को मत दिये।

छत्तीसगढ़ को डॉ. रमण सिंह ने जिस तरह शांत और सौम्य भाव से आगे बढ़ाया है उससे नक्सलवादियों से प्रभावित जनता भी उनकी मुरीद हो गई है। चुनावों के पहले कांग्रेस की रैली पर हुए नक्सली हमले और उसके बाद की राजनीति के कारण यह अनुमान लगाया जा रहा था कि भाजपा को छत्तीसगढ़ में दोबारा विजयश्री प्राप्त नहीं होगी। परंतु इसके विपरीत वहां की जनता ने भी डॉ. रमण सिंह के विकास कार्यों पर ही मुहर लगाई।

यह भारत का इतिहास है कि दिल्ली में जो घटना होती है उससे सारे देश को दिशा मिलती है। अत्यंत अल्पावधि में सामाजिक आंदोलन से राजनीतिक पार्टी तक की यात्रा करनेवाली आम आदमी पार्टी को दिल्ली में जो सफलता मिली उसे अनपेक्षित ही कहा जा सकता है। पदार्पण के साथ ही अपने 28 उम्मीदवारों को जीत दिलवाकर और दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित को पराजित कर अरविंद केजरीवाल ने एक अलग संदेश दिया है। यह संदेश सभी पार्टियों को मिली चेतावनी है। सामान्य आदमी प्रतिस्थापितों को उनकी जगह दिखा सकता है यह दिल्ली का इशारा है। कुछ पैमाने पर दिल्ली में सफलता प्राप्त करनेवाले इस प्रयोग की पुनरावृत्ति अगर पूरे भारत में हुई तो भारतीय राजनीतिक संस्कृति बदलने में समय नहीं लगेगा। आम आदमी पार्टी की असली परीक्षा अब प्रारंभ होगी। अभी तक आम आदमी पार्टी के पास खोने के लिये कुछ नहीं था। परंतु अब उसे हमेशा ही जनता की नजरों में रहना होगा। मतदाता अब उनसे चुनावों में किये गये वादों का हिसाब मांगेंगे। आम आदमी पार्टी ने भ्रष्ट व्यवस्था के अंदर जाकर उसे सुधारने का कठिन काम स्वीकार किया है। परंतु यही भ्रष्ट व्यवस्था ऐसे सुधार करने वालों को अपने में समाहित कर लेती है यही अभी तक का अनुभव रहा है। शायद इसी कारण से जनता द्वारा दी गयी जिम्मेदारी संभालने के बजाय ‘आप’ के केजरीवाल पलायन कर रहे हैं। उनके अडियल रुख के कारण सरकार बनने की स्थिति नहीं रही और दिल्ली पर राष्ट्रपति शासन लगाने की नौबत आ गयी है।

‘आप’ ने अपने पूरे चुनावी अभियान में कांग्रेस के कुशासन को उजागर किया। कांग्रेस की विचारधारा से अलग होने के कारण ही दिल्ली की जनता ने उसे चुना था और अब चुनाव के बाद ‘आप’ कांग्रेस के साथ ही गठबंधन कर रही है। इसका अर्थ साफ है कि वह अपने चुनावी मुद्दों से भटक रही है।

बेशुमार महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, गलत विदेश नीति, असुरक्षा जैसी अनेक समस्याएं मतदाताओं को प्रभावित कर रही हैं। इन पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के सेमीफाइनल से अगले 2014 में होनेवाले लोकसभा चुनावों का अंदाजा लगाया जा सकता है। क्योंकि यह सब अगले कुछ महीनों में होनेवाले लोकसभा चुनावों को निश्चित ही प्रभावित करेगा। देश में ‘मोदी लहर’ चल रही है और साथ ही ‘परिवर्तन की लहर’ भी है। मतदाताओं ने अपनी कृति से यह बता दिया है कि उन्हें कांग्रेस नहीं चाहिये। अत: भाजपा को विजय का उत्सव मनाने के साथ दिल्ली की ओर से मिले इशारे की ओर ध्यान देना भी उतना ही जरूरी है।

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