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झंडा ऊंचा रहे हमारा

झंडा ऊंचा रहे हमारा

by नरेंद्र कोहली
in जनवरी -२०१४, साहित्य
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प्रधानमंत्री काफी घबराए हुए से थे।
उनकी पत्नी ने पति के मुरझाए हुए चेहरे को देखा तो पूछे बिना नहीं रह सकीं, “क्या हुआ? इतने विचलित से क्यों दिख रहे हैं?”
“विचलित। अरे यहां तो चलित की वेला आ गई लगती है।” प्रधानमंत्री के कंठ से घुटा-घुटा सा स्वर निकला, “आज तो यहां बैठे हैं, कल जाने कहां होंगे।”
“किंतु प्रधानमंत्री का तो ट्रांस्फर नहीं होता।”उनकी पत्नी ने कहा।
“मैं बड़े ट्रांस्फर की बात कर रहा हूं।”
“घर बदलना पड़ेगा क्या?” पत्नी बोली, “मैंने तो अपनी कुछ सहेलियों को यहां खाने पर बुला रखा है।”
“अरे मैं वह सब नहीं कह रहा हूं।” प्रधानमंत्री खीज कर बोले, “मुझे तो यह सोच-सोच कर घबराहट हो रही है कि कल लाल किले पर मुझे तिरंगा झंडा लहराना है।”
“तो क्या हुआ? उसमें घबराने की क्या बात है? क्या सोनिया जी से पूछा नहीं है?”
“मुझे चिढ़ाने की बातें मत करो।” प्रधानमंत्री बोले, “तुमने पढ़ा नहीं कि सुषमा स्वराज, अरुण जेतली और अनन्त कुमार लाल चौक पर तिरंगा झंडा लहराने गए थे तो उमर अब्दुल्ला ने उन्हें बंदी बना लिया।”
“अच्छा। बंदी बना लिया। मारा-पीटा तो नहीं?”
“नहीं, उन्हें तो नहीं मारा; किंतु उनके कुछ कार्यकर्ताओं को जम्मू-कश्मीर की पुलिस ने पीट-पीट कर अस्पताल में डाल रखा है।”
“हां, पुलिस ने मारा होगा। उनका तो काम ही है मार-पीट का। जब देखो, लाठी भांजते रहते हैं। अब्दुल्ला ने तो नहीं मारा न। अब्दुल्ला परिवार, गांधी जी के समान अहिंसावादी है। वह किसी को मारता-पीटता नहीं। बस कारागार में डाल देता है।”
“शुक्र है भगवान का कि वे लोग कारागार से जीवित बाहर आ गए। नेहरू जी और शेख अब्दुल्ला की टीम होती तो जाने क्या होता।”
“क्या होता? किसी को कारागार में बंदी बना कर सदा के लिए तो नहीं रखा जाता। अंतत: तो छोड़ना ही पड़ता है।”
“हां, छोड़ना तो पड़ता ही है। श्यामाप्रसाद मुकर्जी को भी छोड़ ही दिया था। वे भी कश्मीर के कारागार से बाहर आ गए थे, बस उस समय तक वे जीवित नहीं थे।” प्रधानमंत्री बोले।
“तो आप किस बात से डर रहे हैं। आपको कौन सा कश्मीर जाना है।”
“अरे कश्मीर तो नहीं जाना, किंतु तिरंगा झंडा तो लहराना है न।” प्रधानमंत्री बोले।
“तो?”
“जहां मुझे झंडा लहराना है न,” प्रधानमंत्री पूरी रहस्यात्मकता से बोले, “वह लाल चौक नहीं है, किंतु लाल किला तो है न। कहीं उमर अब्दुल्ला नाराज हो गया तो?”
“अरे वह क्यों नाराज होगा।” पत्नी का मनोबल काफी ऊंचा था, “यदि बात केवल लाल की है तो पाकिस्तान में जब लोग लाल मसजिद पर पाकिस्तानी झंडा लहराते हैं, तब तो वह नाराज नहीं होता।”
“हां, पाकिस्तानी झंडा लहराने से वह नाराज नहीं होता। अरे वह तो क्या, कोई भी नाराज नहीं होता।” प्रधानमंत्री बोले, “यदि मैं लाल किले पर पाकिस्तान का झंडा लहरा दूं तो वह निश्चित रूप से नाराज नहीं होगा। हां भारतीय जनता पार्टी अवश्य नाराज होगी।”
“कांग्रेस नाराज नहीं होगी?” पत्नी ने पूछा।
“लगता तो नहीं। तिरंगा झंडा लहराने गए लोगो को जब उमर अब्दुल्ला ने बंदी कर लिया तो कांग्रेस ने उसका समर्थन ही किया।” प्रधानमंत्री बोले, “कांग्रेस की तो नीति ही है, देश को तोड़ने की। नेहरू जी ने सम्मानपूर्वक पाकिस्तान बनवा दिया। हरिसिंह से कश्मीर ले कर पाकिस्तान, चीन और कट्टरपंथी अलगाववादी मुसलमानों में बांट दिया। तिब्बत चीन को दे दिया। देना तो वे आसाम भी चाहते थे; किंतु चीन ही पीछे हट गया।”
“लो हद कर दी।” पत्नी ने कहा, “मैं तो सपना देख रही थी कि किसी दिन आप हरिसिंह नलवा बन कर काबुल पर भी तिरंगा लहराएंगे, आप तो लाल किले पर ही तिरंगा लहराने से डर गए। अंग्रेजो के समय तो छोटे-छोटे लड़के भी गोलियां खा कर सरकारी भवनों पर तिरंगा लहरा आते थे, चाहे प्राण ही क्यों न चले जाएं।”
“लो सुन लो इसकी बातें। काबुल पर तिरंगा।” प्रधानमंत्री सहमे हुए से स्वर में बोले, “न मैं नलवा हूं, और न कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर महाराणा रणजीत सिंह हैं। वहां बैठी हैं सोनिया गांधी।”
“वे क्या उमर अब्दुल्ला से डरती हैं?”
“वे तो गुलाम नबी आजाद से भी डरती हैं।”
“वह कैसे?”
“उसी ने तो कहा था कि अफजल गुरु को फांसी मत देना, नहीं तो में नाराज हो जाऊंगा; और सोनिया जी ने अफजल गुरु की फाइल को ही फांसी दे दी।”
“तो क्या अब कहीं भी तिरंगा नहीं लहराया जाएगा?”
“ऐसे प्रश्न मत पूछो, जिन से मेरी जान ही निकल जाए।”
“यदि उमर अब्दुल्ला देशद्रोही हो गया है, तो उसे उसके पद से हटा क्यों नहीं देते?” पत्नी ने पूछा।
प्रधानमंत्री ने भयभीत दृष्टि से अपने आसपास देखा, “क्या कह रही हो। कोई सुन लेगा तो मुझे संसार से ही हटा देगा। अरे उमर अब्दुल्ला कश्मीर से भारत की सेना को ही हटाने पर तुला हुआ है, तुम उसे उसके पद से हटाने की बात कर रही हो।”
“भारत की सेना है, उसका काम है भारत की सीमाओं की रक्षा करना।” पत्नी ने कहा, “अब्दुल्ला कौन होता है, उसे हटाने वाला; और वह उसे वहां से क्यों हटाना चाहता है?”
“ताकि पाकिस्तान की सेना आगे बढ़ सके।”
“तो आप उसकी बात क्यों मानते हैं? प्रधानमंत्री आप हैं, या वह है?”
“मैं कहां मानता हूं। वह स्वयं ही मनवा लेता है।” प्रधानमंत्री बोले, “मुझे तो लगता है कि यह सारा देश ही उसके साथ है।”
“ऐसा क्यों लगता है आपको?”
“देख लो, किसी ने तिरंगे झंडे के संदर्भ में उसका विरोध नहीं किया।”
“पर ऐसा क्यों है?”
“क्योंकि हमने ही सारे देश को समझा दिया है कि राष्ट्रीयता का अर्थ है सांप्रदायिकता और देशद्रोह का अर्थ है, धर्मनिरपेक्षता। अलगाववादियों को सारे देश में गोष्ठियां करने की सुविधा हमने ही तो दी थी। यहां धर्मनिरपेक्षता सबको बहुत प्यारी है।”
“आप लोगों ने ऐसा क्यों किया?”
“यह न किया होता तो अब तक कांग्रेस सत्ता में टिकी होती क्या।”
“सत्ता को बचाए रखने के लिए अब आप क्या करेंगे?”
“सोनिया जी से पूछूंगा।”
“अरे उनसे क्या पूछना है। वे उमर अब्दुल्ला से पूछेंगी।” पत्नी ने कहा, “अच्छा है कि सीधे उमर से ही पूछ लीजिए कि अब क्या करना है।”
“वह तो कहेगा कि लाल किले पर भी पाकिस्तान का झंडा लहरा दो।”
“अरे लाल किले मेंक्या रखा है।” पतनी ने कहा, “एक बार पक्का काम कर डालो। यदि वह इससे ही प्रसन्न होता है, तो एक बार सीधे संसद भवन पर ही पाकिस्तान का झंडा लहरा दो।”
“यह तुमने ठीक कहा।” प्रधानमंत्री प्रसन्न हो गए, “इससे न सोनिया जी का भय रहेगा, न उमर अब्दुल्ला का। और मैं लाइफलांग प्रधानमंत्री भी बन जाऊंगा”

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