लाला लाजपत राय ने 7 निवेशकों के साथ कैसे शुरु की थी PNB बैंक?

देश की आजादी में अपने प्राणों को न्यौछावर करने वालों की एक बड़ी लिस्ट है जिसमें एक नाम लाला लाजपत राय का भी है जिन्होने देश प्रेम में अपना सब कुछ लुटा दिया। 28 जनवरी 1865 को पंजाब में जन्में लाला लाजपत राय एक अच्छे वकील, राजनेता और लेखक थे। देश की आजादी में उन्होने अपनी सभी खूबियों का बखूबी इस्तेमाल किया। लाला लाजपत राय की देश भक्ति और सेवा की वजह से ही उन्हे ‘पंजाब केसरी’ नाम भी दिया गया था। नवंबर 1928 में अंग्रेजो के खिलाफ जब वह एक रैली को संबोधित कर रहे थे तभी पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया जिसमें वह बुरी तरह से घायल हो गये और उनकी मृत्यु हो गयी। 
पंजाब नेशनल बैंक की स्थापना
देश की आजादी के साथ साथ लाला लाजपत राय ने देश की अर्थव्यवस्था को भी आगे बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभायी थी। देश की पहली स्वदेशी बैंक की स्थापना भी लाला लाजपत राय के द्वारा की गयी थी जो आज देश की प्रमुख बैंको में से एक है। लाला लाजपत राय के मार्ग दर्शन में 19 मई 1894 में पंजाब नेशनल बैंक की स्थापना की गयी थी। उस समय बैंक के पास मात्र 7 निवेशक और 14 शेयरधारक थे। देश अपनी गुलामी के दौर से गुजर रहा था ऐसे समय में एक पूर्ण रुप से स्वदेशी बैंक की परिकल्पना करना भी बहुत कठिन काम था लेकिन लाला लाजपत राय ने ना सिर्फ स्वदेशी बैंक के बारे में सोचा बल्कि इसे पूरी तरह से बाजार में भी उतार दिया। पंजाब नेशनल बैंक भारत का पहला बैंक था जो पूर्ण रुप से स्वदेशी था और इसमें सिर्फ भारतीयों की पूंजी लगी थी। 12 अप्रैल 1895 को बैशाखी त्यौहार से ठीक एक दिन पहले ही बैंक को कामकाज के लिए खोल दिया गया था। 
 
लाला लाजपत राय का जन्म पंजाब के मोगा जिले में 28 जनवरी 1865 को हुआ था उन्होने अपनी शिक्षा रोहतक और हिसार से पूरी की थी। वकालत करने के बाद लालाजी रोजगार के साथ साथ देश सेवा की तरफ तेजी से झुकते चले गये और एक के बाद एक नये आंदोलन में शामिल होने लगे। लालाजी पूरा जीवन देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते रहे और अंत में भी स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। 1888 में मात्र 23 वर्ष की अवस्था में ही लालाजी ने कांग्रेस के सम्मेलन में भाग लिया था। लाला लाजपत राय महात्मा गांधी से काफी प्रभावित थे और यही कारण था कि उन्होने अपने व्यवसाय को पूरी तरह से बंद कर दिया और देश की आजादी की लड़ाई में वह पूरी तरह से कूद गये। गांधी जी के बताए मार्ग पर वह हमेशा चलते रहे और अंग्रेजी सरकार का विरोध किया। लाला जी एक कुशल वकील थे जिससे वह अंग्रेजी सरकार पर दबाव बनाने में सफल हो रहे थे और यह मांग कर रहे थे कि अब उनके देश को आजाद कर दिया जाए। लाला जी के लगातार दबाव के बाद अंग्रेजी सरकार ने उन्हे 1907 में उन्हे बर्मा की जेल में बंद कर दिया लेकिन जेल से वापस लौटने के बाद लालाजी का संकल्प और दृढ़ हो गया और वह गांधी जी के साथ मिलकर इस आंदोलन को और तेजी के साथ शुरु कर दिया। 
 
अंग्रेजी सरकार ने 1926 में साइमन कमीशन की नियुक्ति की थी लेकिन इसे भारत में 1928 में भेजा गया इस दौरान देश में स्वतंत्रता आंदोलन तेजी पर था जिससे इसका विरोध शुरु होगा। देश में अलग अलग जगहों पर साइमन कमीशन का विरोध होने लगा। इसी दौरान लाहौर में लाला लाजपत राय भी एक विशाल रैली को संबोधित कर रहे थे जो साइमन कमीशन के लिए विरोध में हो रही थी। पुलिस ने रैली पर लाठी चार्ज कर दिया जिससे हजारो कार्यकर्ता घायल हो गये और लाला लाजपत राय को भी गंभीर चोटें आयी। लालाजी का कुछ समय तक इलाज चला लेकिन वह नहीं बचे और देश की स्वतंत्रता के लिए अपनी जान गवां दी। 
लालाजी की हत्या के बाद पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन और तेज हो गया। देश में अलग अलग स्थानों पर आगजनी की घटना होने लगी और अंग्रेजो के खिलाफ हमले बढ़ने लगे लेकिन कांग्रेस नेताओं ने अपने प्रयासों से इसे रोक दिया। देश के कुछ सच्चे देश भक्तों को यह रास नहीं आया और उन्होने लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने की ठान ली। महान क्रांतिकारी भगत सिह, सुखदेव और राजगुरु ने अंग्रेज पुलिस अधिकारी साडर्स को 17 दिसंबर 1928 को गोली मार दी और लालाजी का बदला ले लिया। हालांकि बाद में इन तीनों क्रांतिकारियों को फांसी दे दी गयी। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की फांसी के बाद विद्रोह और तेज हो गया। अंग्रेजों ने यह विद्रोह दबाने की बहुत कोशिश की थी लेकिन वह विफल रहे और उन्हे भारत को छोड़ना पड़ा। 
 
लालाजी देश प्रेम के साथ साथ हिदुत्व के भी बहुत प्रेमी थे। वह हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना हमेशा करते थे और यह चाहते थे कि भारत एक हिन्दू राष्ट्र बने। हिन्दुत्व की ताकत से वह देश को आगे बढ़ाना चाहते थे और शांति लाना चाहते थे। लाला लाजपत राय सभी से यह कहते थे कि हिन्दुओं को आपस में मिलजुल कर रहना चाहिए और कोई बैर नहीं रखना चाहिए। वह हिन्दुओं के बीच जाति और भेद भाव के खिलाफ थे और इसे खत्म करना चाहते थे लेकिन उसमें वह पूर्ण रुप से सफल नहीं हुए। हालांकि हिन्दुओं को आपस में जोड़ने में उन्होने बड़ी भूमिका निभायी थी।  

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