गुरूजी: संघ और देश को दिया अपना जीवन


गुरूजी- जन्म, शिक्षा और संघ
माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर जी राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक और विचारक थे लेकिन इन्हे इनके नाम से ज्यादा लोग गुरु जी के नाम से जानते थे। देश में हिंदुत्व की विचार धारा का प्रचार प्रसार करने में इनका योगदान सराहनीय रहा है। गुरूजी का जन्म 19 फरवरी 1906 को महाराष्ट्र के रामटेक में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा महाराष्ट्र के हासिल करने के बाद गुरूजी उत्तर प्रदेश के बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से एमएसी की ड्रिग्री हासिल की उनकी प्रतिभा की वजह से उन्हे यहां पर पढ़ाने का भी मौका मिल गया और यहीं से उन्हे गुरूजी नाम दिया गया। माधवराव गोलवलकर जी ने अलग अलग कारणों से करीब पूरे भारत का भ्रमण किया लेकिन जब वह वापस नागपुर लौटे तो डाक्टर केशव बलिराम हेडगेवार जी ने उन्हे इस बात के लिए राजी कर लिया कि वह अब पूरा जीवन संघ को समर्पित कर देंगे और 1940 में डाक्टर जी के निधन के बाद गुरूजी ने सरसंघचालक का पदभार संभाल लिया और अपनी अंतिम सांस तक संघ को आगे बढ़ाने का काम किया।

सरसंघचालक गुरूजी
राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ की स्थापना 1925 में डाक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी और वह 1940 तक संघ के सरसंघचालक रहे लेकिन उनकी मृत्यु के बाद 1973 में गुरुजी को संघ का दायित्व दिया गया और माधवराव गोलवलकर जी संघ के दूसरे सरसंघचालक बनाए गये। गोलवलकर जी ने जब संघ का कार्यभार संभाला तो संघ अपनी धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था लेकिन इस दौरान उसके सामने कठिनाईयां बहुत थी। महात्मा गाधी की हत्या के बाद तो संघ पर प्रतिबंध ही लगा दिया गया था लेकिन गुरूजी के कुशल नेतृत्व ने ना सिर्फ संघ को इन तमाम परिस्थितियों से बाहर निकाला बल्कि इसे दूर तक लोगों के पास पहुंचाया। गुरूजी ने संघ को अलग अलग क्षेत्रों में भी विस्तारित किया जैसे हिन्दू धर्म को आगे बढ़ाने के लिए विश्व हिन्दू परिषद की स्थापना की गयी। देश के मजदूरों के लिए भारतीय मजदूर संघ की स्थापना की गयी, छात्रों के लिए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को शुरु किया गया। यह कहना गलत नहीं होगा कि गुरूजी के निधन के समय तक संघ का विस्तार पूरे भारत में हो चुका था और यह जरुरी सभी संगठनों तक पहुंच बना चुका था।

गांधी को संघ की ‘ना’
अगर कहीं पर भी डाक्टर जी या फिर गुरूजी का जिक्र होता है तो उनके साथ संघ का जिक्र होना आम बात है क्योंकि यह तीनों एक दूसरे से बंधे हुए है। देश में स्वतंत्रता की लड़ाई जोरो पर थी, अंग्रेजों के खिलाफ विरोध पूरे देश में देखने को मिल रहा था लेकिन इस बीच महात्मा गांधी और संघ के बीच मतभेद देखने को मिल रहा था। दरअसल महात्मा गांधी यह चाहते थे कि संघ पूरी तरह से उनके बताए रास्ते पर चले और देश को आजाद कराने में उनकी मदद करें। अंग्रेजों के खिलाफ गांधी की अहिंसा की लड़ाई जारी थी लेकिन वह उसे और बड़ा बनाना चाहते थे इसलिए सभी से सहयोग मांग रहे थे। वहीं देश के क्रांतिकारी भी देश को आजाद कराने के लिए अपनी जान की बाजी लगा रहे थे लेकिन महात्मा गांधी इससे खुश नही थे जबकि राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ का विषय पहले से ही साफ था कि यह धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए काम करेगा।

राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ पर प्रतिबंध
गुरूजी के लिए सबसे मुश्किल की घड़ी जनवरी 1948 की थी जब महात्मा गांधी की हत्या के बाद संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया और गुरूजी सहित संघ के लोगों को गिरफ्तार किया जाने लगा। कट्टर हिन्दू नाथूराम गोडसे हत्या से पहले संघ के कार्यकर्ता थे इसके आधार पर ही सरदार पटेल ने संघ पर प्रतिबंध लगा दिया था हालांकि गोडसे ने कोर्ट में अपने बयान में यह साफ कर दिया था कि उनका या फिर संघ का इस हत्या से कोई लेना देना नही है बावजूद इसके गुरूजी को तमाम लोगों से मुलाकात करनी पड़ी और ना जाने कितने पापड़ बेलने पड़े जिसके बाद जुलाई 1949 में संघ को प्रतिबंध से मुक्त कर दिया गया।

गुरूजी द्वारा जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय
भारत और पाकिस्तान का विभाजन हो चुका था लेकिन अभी भी कुछ रियासतें थी जो यह निश्चय नहीं कर पा रही थी कि उन्हे किस के साथ जाना है इसमें जम्मू-कश्मीर का नाम भी शामिल था। यह राज्य दोनों देशों के बीच में स्थित था इसलिए जम्मू-कश्मीर के राजा भी दुविधा में थे। तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री सरदार पटेल ने गुूरूजी से मुलाकात की और उन्हे जम्मू-कश्मीर के राजा श्री हरि सिंह से मिलने का आग्रह किया। 18 अक्टूबर 1947 को गुरूजी और कश्मीर नरेश श्री हरि सिंह की मुलाकात हुई। मुलाकात में राजा ने कहा कि उनका विचार पाकिस्तान के साथ जाने का है क्योंकि उनके राज्य की सड़क, रेल और हवाई यातायात की सुविधा पाकिस्तान के साथ पहले से तैयार दिख रही है जबकि भारत के साथ अभी ऐसी कोई सुविधा नहीं बनी है जिस पर गुरूजी ने बताया कि आप हिंदू राजा है आप का सिर्फ सड़को और रेल के लिए पाकिस्तान के साथ विलय करना एक गलत फैसला हो सकता है क्योंकि वहा आप को तमाम परेशानियों से गुजरना पड़ सकता है। कश्मीर नरेश और गुरूजी के बीच लंबी चली बैठक में आखिरकार जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय का फैसला हो गया।

गुरू जी पर पूर्व पीएम अटल जी के विचार
माधवराव गोलवलकर की एक शताब्दी वर्ष पर पूर्व पीएम अटल बिहारी बाजपेयी जी ने उन्हे याद करते हुए बताया कि सन 1940 में उनकी पहली मुलाकात हुई थी जब अटल जी 10वीं के छात्र थे और गुरू जी को लेने ग्वालियर स्टेशन आए हुए थे। अटल जी पहली मुलाकात में ही गुरू जी से इतने प्रभावित हुए कि उन्होने यह निश्चय कर लिया कि उन्हे ताउम्र राष्ट्र की सेवा करनी है। अटल जी ने कहा कि जिस तरह से हमारे बीच बातें हुई उससे यह बिल्कुल भी नहीं लगा कि यह पहली मुलाकात है।

 

पीएम मोदी ने अपनी किताब में गुरू जी की शिवाजी से की तुलना
सन 2008 में लिखी पीएम मोदी की किताब ज्योतिपुंज में भी माधवराव गोलवलकर जी का जिक्र किया गया है। वैसे तो इस किताब में संघ के उन 16 व्यक्तियों की जीवनी है जिनसे मोदी जी प्रभावित हुए है। मोदी ने अपनी किताब में गुरूजी की तुलना महात्मा बुद्ध, शिवाजी महाराज और स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक से की है। मोदी ने अपनी किताब में लिखा है कि हम गुरूजी को समझने में पूरी तरह से सक्षम नही है।

माधवराव गोलवलकर जी के जीवन की उपलब्धियाँ और बातें इतनी है कि उन्हे कागज के पन्नों में समेटना मुश्किल है। पीएम मोदी ने अपनी किताब में जिन लाइनों का जिक्र किया है कि गुरूजी को समझना मुश्किल है वह गलत नही है। गुरूजी का देश के प्रति और संघ के प्रति जो योगदान है वह हमेशा याद किया जायेगा और हमारी आने वाली पीढ़ी इससे सबक लेगी।

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