सिंधी समाज के सांस्कृतिक दूत प्रो. राम पंजवानी

प्रो. राम पंजवानी जी दादा राम पंजवानी के रूप में आदरपूर्वक उल्लेख किया जाता है। दादा राम पंजवानी का जन्म सिंध के लारकाना में 20 नवम्बर ???? को वहां के एक मशहूर जमींदार परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम दीवान प्रतापराय पंजवानी था। यह परिवार सिंध की संस्कृति से गहरा नाता रखता था। इसलिए परिवार का वातावरण इस बालक को सिंधी संस्कृति एवं साहित्य के बारे में विशिष्ट दृष्टि विकसित करने में अनुकूल साबित हुआ। जमींदार परिवार का हिस्सा होने के कारण अपनी प्राचीन विरासत के बारे में उनको जल्द ही जानकारी प्राप्त हुई और सिंधी समाज तथा सिंध की आध्यात्मिक विचारधारा एवं वैभवशाली परम्परा की रक्षा करने की चाहत मन में पैदा हो गई।

प्रो. राम पंजवानी बहुत अच्छे लेखक और सिंधी संस्कृति एवं साहित्य के सच्चे उपासक थे। अपनीे मातृभाषा के साथ साथ उन्हें पर्शियन, हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू तथा पंजाबी भाषा की भी अच्छी जानकारी थी। 1934 में मुंबई विश्वविद्यालय से बी.ए. की डिग्री हासिल करने के पश्चात् वे कराची के डी. जे. सिंध कॉलेज में अध्यापक के नाते सेवा करने लगे।

विभाजन के बाद उनका परिवार सिंध छोड़ कर मुंबई में आकर बस गया और सिंधी विभाग के प्रमुख के रूप में वे जय हिंद कालेज से जुड़ गए। वे शीघ ही मुंबई विश्वविद्यालय के प्रथम प्रपाठक बन गए। बाद में सिंधी विभाग के प्रमुख के रूप में सेवा करने लगे (15-06-1974 से 19-11-1976)।

वे बहुत अच्छे गायक भी थे। उनकी मीठी आवाज सुननेवालों को मोहित कर देती थी। श्रोता अपनेआप को भूल जाते थे। सिंधी लोकगीत और संगीत को उन्होंने नये आयाम दिए हैं, इसलिए उनका सदा स्मरण किया जाएगा। उन्होंने मटकी अर्थात मिट्टी के बर्तन से संगीत का निर्माण किया। वे एक अच्छे कथाकार भी थे।

एक लेखक के रूप मेंउन्होंने अपना सफर 1939 में शुरू किया। इस साल उनका प्रथम उपन्यास पद्मा का प्रकाशित हुआ था। कैदी, शर्मिला, असांजो घर, अहे ना अहे, शाल धियारू ना जनम, आदि उनकी अन्य साहित्य कृतियों के नाम हैं।
राम पंजवानी जी ऐसे एकमात्र सिंधी हैं कि जिन्होंने विभाजन के 50 साल की अवधि में मानपत्र, सम्मानचिह्न, पदक, रजतचिह्न आदि अनेक पुरस्कार प्राप्त किए है।

इन में से कुछ उल्लेखनीय पुेरस्कार निम्न हैं –

1.‘दादा के अनोखा अज्मूदा’ इस उपन्यास के लिए उन्हें 1964 में साहित्य अकादमी का पुरस्कार मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से दिया गया।

2.सिंधीयत को जिंदा रखने के लिए उनके मौलिक योगदान के लिए उन्हेें 1965 में मुंबई नगरी में हुए शानदार समारोह में डॉ. चोइथराम गिडवानी पुरस्कार दिया गया।

3.जयपुर में राजस्थान सिंधी अकादमी की ओर से 1970 में सिंधी भाषा एवं साहित्य के लिए उल्लेखनीय योगदान के लिए सिंधुरत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

4.प्रो. पंजवानी ने सिंधी समाज तथा अन्य भारतवासीयों के लिए अपने सेवाभाव से जो योगदान दिया है उसे देखते हुए भारत सरकार द्वारा 1981 में उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

दादा को महात्मा गांधी, पं. जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, मोरारजीभाई आदि महान नेताओं के सामने सिंधी कलाम और भजन प्रस्तुत करने का सौभाग्यशाली अवसर प्रापत हुआ है। उन्होंने भारत के सभी उन स्थानों का प्रवास किया जहां सिंधी बंधु जाकर बसे हैं और उनके मन में आशा जगाई तथा अपनी महान भाषा एवं परम्परा को जिंदा रखने की प्रेरणा दी। सिंधी तथा गैरसिंधी जनता के सामने सिंधी सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए।

सिंधी संस्कृति का संवर्धन और प्रसार करने हेतु दादा ने मुंबई के सांताक्रुज उपनगर में सीता सिंधु भवन का निर्माण किया और वहां अनेक नाटकों का दिग्दर्शन किया जिनमें सिंध के मशहूर लेखक शाह अब्दुल लतीफ के मुमल रानो तथा उमर मारवी नाटकों का समावेश था। प्रो. पंजवानी ने झूलेलाल, लाडली, होजमालो और शाल धियारू ना जमान (यह उनके अपने उपन्यास पर आधारित था) नामक सिंधी फिल्मों में अभिनय भी किया।

प्रो. पंजवानी ने इस भौतिक दुनिया का 1987 में त्याग किया मगर सिंधी समाज के सांस्कृतिक राजदूत के रूप में उनके योगदान का सदा स्मरण रहेगा।
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