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पद्मश्री हुंडराज दुखयाल

पद्मश्री हुंडराज दुखयाल

by परसराम वछेला
in अगस्त-२०१४, व्यक्तित्व
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हुंडराज लीलाराम माणिक का जन्म 16 जनवरी 1910 में सिंध के लारकाना प्रांत में हुआ। उनके पिता लीलाराम अत्यंत साधु आदमी थे और उनका हुंडराज पर गहरा प्रभाव था। बाद में आधुनिक सिंधी कविता के जनक और उनके गुरु कवि किशनचंद बेवास का भी उन पर ब़डा प्रभाव था। केवल 13 वर्ष की आयु में ही उनके पहले कविता संग्रह ‘कृष्ण भजनावली’ का प्रकाशन हुआ था।

महात्मा गांधी ने जब असहयोग आंदोलन की शुरुआत की तब हुंडराज ने 1921 में स्कूल छो़ड दिया। महात्मा गांधी ने 1921 में सिंध में प्रवास किया तब हुंडराज के मन पर उनकी मोहिनी च़ढ गई। जब 1928 में साइमन कमीशन भारत आया, तब हुंडराज ने कांग्रेस में प्रवेश किया। जब 1930 में नमक के लिए सत्याग्रह हुआ तब हुंडराज ने वानर सेना और स्वराज सेना का गठन किया। उस समय उन्होंने शराब और विदेशी वस्त्रों की दुकानों के सामने सत्याग्रह किया। उन्होंने ‘हनुमान’ नामक साप्ताहिक पत्रिका का संपादन भी शुरू किया। उन्होंने एक छापखाना भी शुरू किया और ‘दुखयाल’ नामक साप्ताहिक पत्रिका का आरंभ किया जिसे वे 1949 तक चलाते रहे।

लारकाना से करीब 18 मील की दूरी पर रातोदेरो ग्राम में उन्होंने 1941 में गांधी सेवा आश्रम की स्थापना की। इस आश्रम द्वारा चरखा और हाथ से बने कागज का निर्माण होता था। 1942 में ‘भारत छो़डो आंदोलन‘ के बाद उन्हें दो बार कारावास भुगतना प़डा। ‘प्लेज टू इंडिपेंडेंस’ नामक किताब पढ़ने के कारण 26 जनवरी 1945 में उनको फिर से गिरफ्तार किया गया।
दुखयाल ने इस कालावधि में सिंधी समाज में मुख्यत: युवाओं में जो जनजागरण किया, वही उनका सबसे ब़डा योगदान माना जाएगा। उनके ‘वनु ऐन कुहाडो’ (पे़ड और कुल्हा़डी), ‘गांधीजी तुहिंजे ऐत जो आवाज’, ‘मुहिंजे सिंधरिया जा गोद वासन’, आदि गीत हजारों अनुयायियों के साथ प्रभात फेरी निकालकर वे खंजिरी पर गाते थे। प्रसिद्ध ग्रामोफोन कंपनी ‘हिज मास्टर्स वॉइस’ ने उनके गीत ध्वनि मुद्रित किए थे। ‘नरसी मेहता’, ‘अलादिन पद्मिनी’, ‘उमर मारई’, आदि कई नाटक उन्होंने लिखे थे। ‘संगीत अंजली’, ‘संगीत वरखा’, ‘लाहोटी लहर’, ‘कौमी ललकार’, ‘परलो’, ‘धरती जा गीत’ यह उनके कविता संग्रहों के कुछ नाम हैं।

सन1948 में जब वे सिंध में थे तब नवनिर्मित पाकिस्तानी सरकार को सत्ता से हटाने की गुप्त योजना बनाने के झूठे आरोप में उन्हें हिरासत में लिया गया। गांधी सेवा आश्रम को सरकार ने जब्त कर लिया और 1949 में उनको जबरन देश निकाला दिया गया।

दुखयाल पहले उल्हासनगर में आए और बाद में भाई प्रताब दियालदास के आग्रह पर गांधीधाम चले गए। कच्छ में सिंधियों की पुनर्वास योजना का दायित्व उन्होंने अपने ऊपर ले लिया। गांधी ग्राम मित्र मंडल नामक नूतन संस्था के माध्यम से अनेक शैक्षणिक, सांस्कृतिक और सामाजिक संस्थाओं की स्थापना में उन्होंने भाई प्रताब को सहयोग किया। भूदान और ग्रामदान आंदोलन का संदेश देश में पहुंचाने के लिए उन्होंने गांधीग्राम समाचार तथा धरती माता नामक अखबारों का आरंभ किया। 1951 में दुखयाल विनोबा भावे जी की पदयात्रा में शामिल हो गए। वे बारह साल तक गीतों के माध्यम से इस आंदोलन का प्रचार-प्रसार करते रहे। स्वतंत्रता सेनानी के रूप में उत्तम कार्य करने के सम्मान में भारत सरकार ने उन्हेें ताम्रपत्र प्रदान किया। परंतु उन्होंने कोई भी पेंशन, मुफ्त रेल यात्रा, कोई सरकारी पद अथवा सरकारी नौकरी जैसी स्वतंत्रता सेनानियों को दी जाने वाली किसी भी सुविधा को लेना अस्वीकार कर दिया।

दुखयाल को 1983 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री पुरस्कार प्रदान किया गया तथा विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी संगठनों से उन्हें विविध नकद पुरस्कार भी प्राप्त हुए। सिंधी अकादमी द्वारा ग्यारह लाख का धनादेश उन्हें ‘मिलेनियम अवॉर्ड’ के रूप में दिया गया। मगर दुखयाल ने अपने सारे पुरस्कारों की राशि गांधीधाम मित्र मंडल को विभिन्न शैक्षणिक, सांस्कृतिक और सामाजिक कार्य करने के लिए सौंप दी।

93 वर्ष की आयु में 21 नवंबर 2003 का दुखयाल ने अंतिम सांस ली। उनके जेड-13 बंगले के अहाते में उनकी समाधि भी बनाई गई और एसआरसी लिमिटेड ने उनका पूर्णाकृति पुतला भी स्थापित किया। गांधीधाम में बसाए गए नए शहर आदिपुर में उनकी स्मृति चिरंतन रखने हेतु उनके नाम पर एक बी.एड. कॉलेज खोला गया है।
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Tags: hindi vivekhindi vivek magazinepersonapersonal growthpersonal trainingpersonalize

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