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जलशुद्धिकरण का ब्रह्मास्त्र ’सी टेक’

जलशुद्धिकरण का ब्रह्मास्त्र ’सी टेक’

by मुकेश गुप्ता
in पर्यावरण, सितंबर २०१९
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केवल जल का संरक्षण ही नहीं बल्कि उपयोग किए गए जल का शुद्धिकरण कर उसे पुनः प्रयोग में लाकर जल संकट को काफी हद तक कम किया जा सकता है। जल संकट पर मात करने के लिए ’सी टेक’ तकनीक ब्रह्मास्त्र साबित होगी।

भारत की ब़़ढ़ती जनसंख्या, अनियोजित शहरीकरण, औद्योगीकरण, अकाल, अत्यधिक भूजल दोहन एवं जल प्रदूषण के चलते देश के सामने पानी का विक राल संकट खड़ा है। यूरोपियन संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार अंधाधुंध शहरीकरण के कारण आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और दिल्ली जैसेे प्रदेश इस समय सर्वाधिक पानी की कमी से जुझ रहे हैं। नीति आयोग ने भी अपनी पिछली रिपोर्ट में इस भयावह स्थिति को लेकर चेताया था। लेकिन भारत के अधिकतर राज्यों ने इसे नजरअंदाज कर दिया। पानी के प्रति हमारी संवेदनहीनता एवं शासन व प्रशासन की उदासीनता के कारण वर्तमान और भविष्य जल संकट की मार से बहुत ही प्रभावित होने वाला है। जल संकट की गंभीरता को देखते हुए स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ’मन की बात’ कार्यक्रम के माध्यम से कहा था कि स्वच्छता अभियान की तरह जन-जन की सक्रिय सहभागिता के साथ जलसंरक्षण अभियान चलाया जाना चाहिए।

केवल जल का संरक्षण ही नहीं बल्कि उपयोग किए गए जल का शुद्धिकरण कर उसे पुनः प्रयोग में लाकर जल संकट को काफी हद तक कम किया जा सकता है। जल संकट पर मात करने के लिए ’सी टेक’ तकनीक ब्रह्मास्त्र साबित होगी। एसएफसी एनवायमेंटल टेक्नॉलॉजी प्रा. लि. कंपनी ने अत्याधुनिक हायटेक तकनीक से लैस ’सी टेक’ के माध्यम से दूषित से दूषित जल का शुद्धिकरण कर पेयजल के रूप में उपयोग किया जा सकता है।

माॉनसून की कमी से मुंबई जैसे महानगर में पानी कटौती करनी पड़ती है। यदि दूषित व बेकार जल का शुद्धिकरण किया जाए तो मुंबईकरों को पानी की कटौती से जूझना नहीं पड़ेगा। ’सी टेक’ तकनीक सस्ती होने के कारण भारत में बेहद लोकप्रिय होती जा रही है। मुंबई, महाराष्ट्र सहित देश के सभी राज्यों व शहरों में सैकड़ों की संख्या में प्लांट लगाए गए हैं। नवी मुंबई मनपा एवं सिडको ने अनेक क्षेत्र मे प्लांट लगाए हैं। दुनिया में यह प्रकल्प आदर्श माना जाता है। अनेक देशों के लोग प्रकल्प देखने के लिए आते रहते हैं। प्रकल्प को प्रधानमंत्री द्वारा पुरस्कृत किया गया है। सरकारी मान्यता प्राप्त कंपनी होने के साथ आयआयटी ने भी प्रमाणपत्र दिया है। नेरूल के प्लांट को महाराष्ट्र सरकार द्वारा ‘वसुंधरा पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है।

सर्वप्रथम गोवा में प्लांट की स्थापना की गई। उसके बाद तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब, जम्मू और कश्मीर सहित सभी राज्यों ने ‘सी टेक‘ को अपनाया है। महाराष्ट्र के शिर्डी, पंढरपुर, औरंगाबाद, वेंगुर्ला, शिरूर, पनवेल, पुणे, पिंपरी, चिंचवड आदि स्थानों पर प्लांट लगाया गया है। इसके अलावा विदेशों में भी कार्य विस्तार किया गया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जल संरक्षण अभियान में ‘सी टेक’ तकनीक ब्रह्मास्त्र की तरह देश में क्रांतिकारी भूमिका निभा सकती है। ‘सी टेक’ का पूरा नाम सीवेज ट्रीटमेंट एण्ड रिसायकल टेकनोलोॅजी है। यह तकनीक आधुनिक व तत्काल परिणामदायी है। दुनिया की सबसे बड़ी सीवेज ट्रीटमेंट टेक्नोलोॅजी कंपनियों में से यह एक है। इसकी सफलता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि आज देश के लगभग सभी राज्यों में कम अधिक मात्रा में ‘सी टेक’ के प्लांट लगाए गए हैं। पिछले 15 वर्षों में देश में कुल 650 एसटीपी लगाए गए हैं और सभी सक्रिय रूप से संचालित हो रहे हैं। ‘सी टेक’ तकनीक से गटरों- नालों, औद्योगिक क्षेत्रों व सीवेज से निकलने वाले गंदे से गंदे दूषित पानी आदि का आसानी से शुद्धिकरण किया जाता है और उसे निर्मल पीने लायक पेयजल बनाया जाता है। 12000 एमएलडी सीवेज ट्रीटमेंट क्षमता विकसित कर उत्कृष्ट गुणवत्ता का आउटलेट पानी रीसायकल, इन – बिल्ट न्यूट्रिएंट रिमूवल विशेषताओं के साथ ही ऊर्जा की कम खपत प्लांट में होती है। इसकी खास बात यह है कि यह तकनीक पूरी तरह से स्वचालित है और इसे लगाने के लिए बेहद कम क्षेत्र की आवश्यकता होती है। इसके अलावा देश की एक गंभीर समस्या यह भी है कि गटर – नालियों, औद्योगिक क्षेत्रों व सीवेज का गंदा खतरनाक पानी कचरों के साथ नदियों व समुद्र में छोड़ा जाता है. जिससे नदियां और समुद्र प्रदूषित हो रहे हैं। आलम यह है कि नदी के किनारे और समुद्री तटों पर गंदगी युक्त काला – काला पानी कचरों के साथ दिखाई देता है। जिससे वहां पर बदबूदार दुर्गंध फैलती रहती है। कमोबेश यही स्थिति भारत के अधिकतर नदियों व समुद्र की है। कहा जाता है कि भारत में पहले हजारों नदियों की निर्मल धारा बहा करती थी। लेकिन अधिकतर नदियां समय के साथ विलुप्त हो गईं और अनेक नदियां विलुप्त होने की कगार पर हैं, तो कई नदियां संकट के दौर से गुजर रही हैं। इसलिए सरकार से मेरा आग्रह है कि इस ओर ध्यान देकर उचित कदम उठाया जाए तथा प्रदूषित जल का शुद्धिकरण करने के बाद ही उसे नदियों व समुद्र में छोड़ा जाए। ताकि वर्तमान व भविष्य में कोई खतरा उत्पन्न न हों। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से ‘जल जीवन मिशन‘ का एलान किया। उन्होंने जल संकट से निपटने के लिए सा़ढ़े तीन लाख करोड़ रुपये से अधिक खर्च करने की बात कहीं। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि पानी के क्षेत्र में जो काम 70 वर्षों में नहीं हो पाया, उसे हमें 4 गुणा तेज गति से आगामी 5 वर्षों में करना है। देश के हर घर में पेयजल पहुंचाने के लिए हमारी सरकार प्रयासरत है। उम्मीद है कि आगामी समय में स्वछता अभियान की तर्ज पर ‘जल जीवन मिशन‘ आगे बढ़ेगा और जल संकट को समाप्त करने में सरकार उचित कदम उठाएंगी। इसके अलावा रेन वॉटर हारवेस्टिंग, विभिन्न तरीकों से जल संचयन, संरक्षण और पानी की बर्बादी न करना तथा देश में जल संकट व जल संरक्षण के प्रति जागरूकता पैदा करना बेहद जरूरी है।

आईआयटी खड़गपुर तथा कनाड़ा के एथाबास्का विश्वविद्यालय के संयुक्त अध्ययन से यह तथ्य सामने आया है कि भारत को हर साल केवल 3000 घन मीटर वर्षा जल की आवश्यकता होती है। और उसे हर वर्ष लगभग 4000 घनमीटर वर्षा जल प्राप्त होता है। याने जरूरत से अधिक मात्रा में हमें प्रकृति देती है। लेकिन हम इस वर्षा जल का केवल 8 फीसदी ही संचित कर रहे हैं। जलशोधन एवं पुन: उपयोग हेतु बनाने की अक्षमता के कारण विश्व में यह जल संचयन सबसे कम है। जबकि समुद्र के किनारे बसा इजराइल जैसा मरुस्थलीय देश उपयोग किए गए पानी का 100 फीसदी शोधन कर उसका लगभग 94 फीसदी वापस घरों में उपयोग हेतु भेज देता है। इजराइल समुद्री पानी के खारेपन को शोधित पेयजल में भी परिवर्तित करता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इजराइल यात्रा के दौरान वहां के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने इसके बारे में बताया था। नीति आयोग की 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत विश्व में सर्वाधिक भूजल उपयोग करने वाला देश है; जब कि चीन और अमेरिका तक में भारत से कम भूजल का उपयोग किया जाता है। भारत अनुमानत: भूजल का 85 फीसदी कृषि, 9 फीसदी घरेलू तथा 2 फीसदी उद्योग में व्यय करता है। शहरी आवश्यकताओं का 50 फीसदी से अधिक भूजल स्रोतों से खींचा जाता है। केंद्रीय भूजल बोर्ड की पिछली रिपोर्ट के अनुसार भूजल दोहन के कारण 2007-2017 के बीच देश के भूजल स्तर में 61 फीसदी तक की कमी आई है।

-संदीप परब
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