
‘मेट्रो मैन’ नाम से विख्यात ई श्रीधरन की काबिलियत से देश का करीब हर नागरिक परिचित है और उनके इस जज़्बे को सलाम भी करता है। 12 जून 1932 को केरल में जन्मे श्रीधरन पेशे से सिविल इंजीनियर है हांलाकि श्रीधरन देश के कोई पहले सिविल इंजिनियिर नही है जिसके लिए इनकी तारीफ की जाए लेकिन इस दौरान उन्होने देश को कुछ विशेष सेवाएं दी है जिससे वह कुछ चुनिंदा लोगों की श्रेणी में आते है। मेट्रो मैन की प्रसिद्धि कोंकण रेलवे से जानी जाती है कोंकण रेलवे का काम करना लगभग नामुमकिन था लेकिन श्रीधरन ने उसे भी मुमकिन कर दिया और खुद का नाम इतिहास में दर्ज करवा दिया।

श्रीधरन के नाम कोंकण रेलवे और दिल्ली मेट्रो का खिताब दर्ज है जो बहुत ही सराहनीय कार्य रहा है लेकिन इससे पहले जब दुनिया श्रीधरन को नहीं जानती थी तब भी उन्होने कई हैरतअंगेज़ कारनामों को अंजाम दिया है। श्रीधरन जब मात्र 32 साल के थे तब भी उन्हे रामेस्वरम से धनुषकोटि के बीच पंबन रेलवे पुल के मरम्मत का काम दिया गया था इस तीन महीने के काम को श्रीधरन की टीम ने मात्र डेढ़ महीने में खत्म कर सभी को अपनी प्रतिभा से चौंका दिया। दरअसल 15 दिसंबर 1964 को एक भयंकर सुनामी ने दस्तक दी थी जिसमें रामेश्वरम से धनुषकोटि के लिए जाने वाली पसेंजर ट्रेन के 6 डिब्बे और उसमें सवार करीब 180 यात्री समुद्र में समा गये। सुनामी इतनी तेज थी कि पटरी पर खड़ी ट्रेन को एक ही लहर में समुद्र में गिरा दिया और सभी रेलवे स्टॉफ सहित सभी यात्री समुद्र की लहरों में समा गये। इस सुनामी से करीब 2 किमी लंबा रेलवे पुल पूरी तरह से टूट गया जिसके बाद सरकार ने इसकी मरम्मत की ज़िम्मेदारी उस समय के युवा सिविल इंजीनियर श्रीधरन को दी और कहा कि यह पुल तीन महीने के अंदर तैयार हो जाना चाहिए। श्रीधरन ने कड़ी और दिन रात मेहनत की और पुल को मात्र 45 दिन में ही तैयार कर दिया। श्रीधरन के इस कार्य के बाद से वह प्रतिभावान इंजीनियरों की लिस्ट में आ गये।
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