हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
भीम-मीम की राजनीति

भीम-मीम की राजनीति

by प्रवीण गुगनानी
in अप्रैल -२०२१, व्यक्तित्व
0

पाकिस्तान जाने का दुख उन्हें सालता रहा। पाकिस्तान के बहुसंख्यक मुस्लिमों के हाथों लाखों दलितों के नरसंहार का पश्चाताप उन्हें कचोटता रहा। पश्चाताप इसलिए, क्योंकि इनमें से बहुत से दलित परिवार उन्हीं की अपील पर पाकिस्तान का हिस्सा बनने को तैयार हुए थे।

भारतीय दलित राजनीति वर्तमान समय में सर्वाधिक दिग्भ्रमित दौर में है। दुर्भाग्य से वर्तमान समय ही इतिहास का वह संधिकाल या संक्रमणकाल है जबकि दलित राजनीति को एक दिशा की सर्वाधिक आवश्यकता है। भीम मीम के नाम का सामाजिक जहर बाबासाहेब अम्बेडकर के समूचे चिंतन को लील रहा है।भीम मीम के इतिहास को देखना, पढ़ना व समझना आज के अनसुचित जाति समाज की सबसे बड़ी आवश्यकता हो गई है ।

स्वतंत्र भारत की राजनीति व समाज को जिन दो व्यक्तियों ने सर्वाधिक प्रभावित किया है वे हैं पहले गांधी जी व दूजे भीमराव रामजी अंबेडकर यानि बाबासाहेब। इनमें से बाबासाहेब की भारतीय राजनीति में बाबासाहेब की कांग्रेस द्वारा घोर उपेक्षा के बाद भी उनकी स्थापना का इतिहास पढ़ना हो तो एक और व्यक्ति का उल्लेख आवश्यक हो जाता है। वह व्यक्ति है दलित नेता जोगेंद्रनाथ मंडल। कांग्रेस की घनघोर और अटाटूट उपेक्षा के शिकार जोगेंद्रनाथ मंडल ने यदि स्वतंत्रता पूर्व की भारतीय राजनीति में बाबासाहेब को सफलतापूर्वक स्थापित न किया होता तो आज भारत में दलित चिंतन का स्वरूप आमूलचूल भिन्न होता। इसके आगे आज यदि हम नागरिकता संशोधन कानून के सामाजिक मंथन का अध्ययन, मनन करें तो दो व्यक्तित्वों का स्मरण आवश्यक हो जाता है पहले जोगेंद्रनाथ मंडल और दूजे बाबासाहेब। इन दोनों महानुभावों ने नागरिकता संशोधन कानून व पाकिस्तान में बसे अल्पसंख्यक हिंदुओं को भारतीय नागरिकता देने के कानून के महत्व व आवश्यकता को दशकों पूर्व पहचान लिया था।

प्रारंभ से ही दलित चिंतन को उपेक्षा की दृष्टि से देखने वाली कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति ने स्वभावतः ही प्रारंभ में दलित नेता जोगेंद्रनाथ मंडल व बाबा साहेब अंबेडकर की घोर उपेक्षा की थी। कांग्रेस ने जब बाबासाहेब के प्रति बेहद अपमानजनक रवैया अपनाते हुये संविधान सभा में भेजे गए प्रारंभिक 296 सदस्यों में अंबेडकर को जगह नहीं दी थी तब जोगेंद्रनाथ मंडल ने अंबेडकर जी को संविधान सभा में सम्मिलित करने की भूमिका बनाई थी। जब कांग्रेस ने संविधान सभा में अंबेडकर जी को जाने से रोकने के लिये तमाम प्रकार के प्रपंच करना प्रारंभ किये तब मंडल ने बंगाल के खुलना-जैसोर से अपनी सीट खाली करके बाबा साहब को चुनाव जितवाकर संविधान सभा के लिए निर्वाचित कराया था और समूची कांग्रेस को चौंकाते छकाते हुये भारतीय राजनीति में एक नया अध्याय प्रारंभ किया था। विभाजन के विषय में यह तय हुआ था कि जिन क्षेत्रों में हिंदू जनसंख्या 51% से अधिक है वे क्षेत्र भारत में सम्मिलित किये जायेंगे। इसके बाद भी कांग्रेस ने तब हद दर्जे की गलती करते हुये बाबा साहेब को संविधान सभा में अप्रासंगिक करने हेतु बंगाल के खुलना-जैसोर को 71% हिंदू बहुल वाला क्षेत्र होने के बाद भी पाकिस्तान को सौंप दिया और तब बाबासाहेब तकनीकी तौर पर पाकिस्तानी  संविधान सभा के सदस्य माने गये थे। बाबासाहेब ने इसका विरोध किया, जिसके बाद ब्रिटिश प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप से बाबासाहेब बंबई राज्य से एमएस जयकर द्वारा खाली की गई सीट से चुनकर भारतीय संविधान सभा में पहुंच पाये थे। बाबासाहेब प्रारंभ से ही अखंड भारत के पक्ष में थे। उन्होंने बंटवारे के लिए तैयार महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के साथ जिन्ना का भी पुरजोर विरोध किया। उनकी पुस्तक थॉट्स ऑन पाकिस्तान में इसका पूरा विवरण है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति के चलते कांग्रेस ने देश का बंटवारा कर डाला। बाबासाहेब का यह स्पष्ट मानना था कि जब धार्मिक आधार पर बंटवारा हो चुका है, तब पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं को भारत आ जाना चाहिए। उन्होंने यह यह भी आशंका जताई थी कि धर्म के आधार पर देश के बंटवारे से हिंदुओं को गंभीर क्षति पहुंचेगी और ऐसा हुआ भी। जोगेंद्रनाथ मंडल ने तब पाकिस्तानी सरकार से अपने त्यागपत्र में विस्तृत तौर पर लिखा था कि मंत्री रहते हुए भी वे पाकिस्तान में दलितों को मुस्लिमों के अत्याचार से नहीं बचा पाए। बंटवारे के बाद पाकिस्तान में बचे ज्यादातर दलित या तो मार दिए गए या फिर मजबूरी में उन्होंने धर्म परिवर्तन कर लिया। अपनी ही हुकूमत में वह चीखते-चिल्लाते रहे, लेकिन पाकिस्तान सरकार न तो दलित हिंदुओं की मदद के लिए आई, न ही अन्य अल्पसंख्यक हिंदुओं की सुरक्षा हेतु उसने कोई कदम उठाया। इस प्रकार देश में प्रथम मुस्लिम-दलित राजनीति का प्रयोग हुआ जो कि बेहद असफल व निराशाजनक रहा किंतु यह प्रयोग अब भी यदा कदा यहां-वहां प्रयुक्त होता रहता है। अपने ही हाथों बनाई गई इस्लामिक सरकार में मंडल ने जब पाकिस्तान के मुसलमानों के हाथों निशाना बनाकर दलितों की निर्ममतापूर्वक हत्याएं, बलात् धर्म-परिवर्तन और दलित बहन-बेटियों की आबरू लुटते देखी, तो वह सब कुछ छोड़कर भारत वापस लौट आए और गुमनामी के अंधेरे में ही उनकी मौत हो गई। अपने अंतिम क्षणों में वह इस प्रयोग पर पछताते रहे, पाकिस्तान जाने का दुख उन्हें सालता रहा। पाकिस्तान के बहुसंख्यक मुस्लिमों के हाथों लाखों दलितों के नरसंहार का पश्चाताप उन्हें कचोटता रहा। पश्चाताप इसलिए, क्योंकि इनमें से बहुत से दलित परिवार उन्हीं की अपील पर पाकिस्तान का हिस्सा बनने को तैयार हुए थे।

2013 में डॉ. मनमोहन सिंह की कांग्रेस सरकार ने डॉ. बाबा साहब आंबेडकर राइटिंग्स एंड स्पीचेस नाम से उनके सभी भाषणों एवं लेखन को प्रकाशित किया था। इस पुस्तक के 17वें खंड के पृष्ठ संख्या 366 से 369 बड़े ही उल्लेखनीय हैं। 27 नवंबर, 1947 को बाबासाहेब ने लिखा कि ‘मुझे पाकिस्तान और हैदराबाद की अनुसूचित जातियों के लोगों की ओर से असंख्य शिकायतें मिल रही हैं और अनुरोध किया जा रहा है कि उनको दुख और परेशानी से निकालने के लिए मैं कुछ करूं। पाकिस्तान से उन्हें आने नहीं दिया जा रहा है और जबरन उन्हें इस्लाम में परिवर्तित किया जा रहा है। हैदराबाद में भी उन्हें जबरन मुसलमान बनाया जा रहा है, ताकि मुस्लिम आबादी की ताकत बढ़ाई जाए।’ आंबेडकर ने लिखा, अनुसूचित जातियों के लिए जैसी स्थिति भारत में है वैसी ही पाकिस्तान में है, वह आगे लिखते हैं, ‘मैं यही कर सकता हूं कि उन सभी को भारत आने के लिए आमंत्रित करूँ। पृष्ठ 368 पर बाबासाहेब लिखते हैं कि ‘जिन्हें हिंसा के द्वारा इस्लाम धर्म में परिवर्तित कर दिया गया है, मैं उनसे कहता हूं कि आप अपने बारे में यह मत सोचिए कि आप हमारे समुदाय से बाहर हो गए हैं। मैं वादा करता हूं कि यदि वे वापस आते हैं तो उनको अपने समुदाय में सम्मिलित करेंगे और वे उसी तरह हमारे भाई माने जाएंगे जैसे धर्म परिवर्तन के पहले माने जाते थे। बाबासाहेब ने 18 दिसंबर, 1947 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को एक पत्र में लिखा था कि पाकिस्तान सरकार अनुसूचित जाति के लोगों को भारत आ आने से रोकने के लिए हर हथकंडे अपना रही है। मेरी नजर में इसका कारण यह है कि वह उनसे निम्न स्तर का काम कराने के साथ यह भी चाहती है कि वे भूमिहीन श्रमिकों के रूप में उनकी जमीनों पर काम करें। नेहरू जी से उन्होंने अनुरोध किया कि वह पाकिस्तान सरकार से कहें कि भारत आने के इच्छुक लोगों को भारत आने में कोई रुकावट पैदा न करे।

नेहरू जी ने 25 दिसंबर, 1947 को इसके जवाब में लिखा कि ‘हम अपनी ओर से जितना हो सकता है, पाकिस्तान से अनुसूचित जातियों को निकालने की पूरी कोशिश कर रहे हैं, किंतु सत्य यही है कि जवाहरलाल नेहरू अपनी तुष्टिकरण की राजनीति के चलते पाकिस्तान में छूट गये हिंदुओं के संदर्भ में कभी भी गंभीर नहीं रहे। बाबासाहेब ने अपनी पुस्तक थॉट्स ऑन पाकिस्तान में भारत के धार्मिक आधार पर पूर्ण विभाजन के आशय से पृष्ठ 103 पर लिखा यह बात स्वीकार कर लेनी चाहिए कि पाकिस्तान बनने से हिंदुस्तान सांप्रदायिक समस्या से मुक्त नहीं हो जाएगा। सीमाओं का पुनर्निर्धारण करके पाकिस्तान को तो एक सजातीय देश बनाया जा सकता है, परंतु हिंदुस्तान तो एक मिश्रित देश बना ही रहेगा। वे स्वतंत्र विभाजित भारत में मुस्लिम समाज के रहने के खतरों का स्पष्ट आभास कर रहे थे व इसके प्रति देश को चेता भी रहे थे, उनकी अटल मान्यता थी कि जनसंख्या की धार्मिक आधार पर पूर्ण अदला-बदली के बिना भारत एक पूर्ण सजातीय देश नहीं बन सकता।

बाबासाहेब राइटिंग्स एंड स्पीचेस के पृष्ठ 367 पर लिखा है कि अनुसूचित जातियों के लिए चाहे वे पाकिस्तान में हों या हैदराबाद में उनका मुसलमानों तथा मुस्लिम लीग पर विश्वास करना घातक होगा। अनुसूचित जातियों का यह सामान्य व्यवहार हो गया है कि वे चूंकि हिंदुओं को नापसंद करते हैं, इसलिए मुस्लिमों को मित्र के रूप में देखने लगते हैं। यह गलत सोच है। मुसलमान एवं मुस्लिम लीग जितनी तेजी से हो सके अपने को शासक वर्ग बनाने के लिए तत्पर हैं, इसलिए वे कभी अनुसूचित जाति के दावों पर विचार नहीं करेंगे। यह मैं अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूं। जोगेंद्रनाथ मंडल की दलित-मुस्लिम राजनीतिक एकता के विश्वासघाती, असफल प्रयोग व उनके द्वारा खुद को कसूरवार समझे जाने और स्वयं को गहरे संताप व गुमनामी के आलम में झोंक देने के परिदृश्य को बाबासाहेब ने संपूर्णतः आत्मसात कर समझ लिया था और यही अध्याय उनके जीवन भर की राजनैतिक यात्रा में झलकता रहा था। दलित मुस्लिम एकता की राजनीति के पीछे छिपे हुये भारत पर शासन करने व कब्जा करने व यूज एंड थ्रो की नीति को जितना बाबासाहेब ने समझा व इस बात को अपने समुदाय को समझाने का प्रयास किया उतना स्वातंत्र्योत्तर भारत में कोई अन्य नहीं कर पाया।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: hindi vivekhindi vivek magazinesubject

प्रवीण गुगनानी

[email protected]

Next Post
आंबेडकर के विचारों को सही मायने और संदर्भों में आत्मसात करना ज़रूरी

आंबेडकर के विचारों को सही मायने और संदर्भों में आत्मसात करना ज़रूरी

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0