बर्दवान विस्फोट ने जाहिर कर दिया कि पश्चिम बंगाल अब मजबही आतंकवाद का मुख्य केंद्र बन गया है। बांग्लादेश के आतंकवादी संगठनों की शह पर अनगिनत मदरसे चल रहे हैं और आतंकी प्रशिक्षण दिया जा रहा है। वामपंथियों ने वोट बैंक के खातिर जिस तरह मुस्लिम उग्रवादियों और घुसपैठियों को पनाह दी थी, उसी तरह ममता बैनर्जी की सरकार ने भी उन्हें अभयदान दिया है। यह खतरे की घंटी है।
कहा जाता है कि ‘बंगाल आज जो सोचता है, शेष भारत वही बात कल सोचेगा।’ यह उक्ति शायद बंगाल की स्वाभाविक मेधा और वहां के लोगों की बुद्धिमत्ता दिखाने के लिए गढ़ी गई। अतीत में बंगाल ने जीवन के हर क्षेत्र में अनेक बार शेष भारत से बढ़त ली और उसे राह भी दिखाई। लेकिन 2 अक्टूबर को बर्दवान जिले के एक अनजान गांव के मकान में ‘गलती से हुए’ विस्फोट के बाद हो रहे खुलासों को बंगाल की ‘मेधा’ मानकर शेष भारत में उसका अनुकरण होने लगे तो सोचिए कि देश का क्या होगा?
बर्दवाद जिला मुख्यालय से लगभग 40 किमी दूर बसे हिंदू- लगभग बराबर- आबादी वाले सिमुलिया कस्बे के एक मदरसे और उसीके नजदीक के गांव खडकगढ़, जहां सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के एक नेता के घर में वह विस्फोट हुआ और जिसमें एक बांग्लादेशी आतंकी समेत एक अन्य व्यक्ति मारा गया, इससे जिस आतंकी नेटवर्क का खुलासा हो रहा है वह इतना व्यापक है कि अभी खुफिया एजेंसियों को बांग्लादेश से लेकर भारत में असम, मेघालय, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली से लेकर कर्नाटक और आंध्र प्रदेश तक उसके निशान मिल रहे हैं। तृणमूल कांग्रेस की सर्वेसर्वा ममता बनर्जी के नेतृत्व वाला पश्चिम बंगाल इसका केंद्र बनकर उभरा है। इस आतंकी नेटवर्क का मुख्य सूत्रधार आतंकी संगठन ‘जमातेमुजाहिदीन बांग्लादेश’ (जेएमबी) है, जो बांग्लादेश की जमाते इस्लामी की उग्रवादी इकाई है और बांग्लादेश में प्रतिबंधित है।
ये जेएमबी के ही आतंकी थे जो सिमुलिया कस्बे का कुख्यात लेकिन ममता बनर्जी की सरकार से मान्यताप्राप्त मदरसा चला रहे थे और खडकगढ़ के उस घर में विस्फोटक बना रहे थे। सिमुलिया का मदरसा बांग्लादेश और भारत भर के गरीब और अनपढ़ या अल्पशिक्षित युवाओं को हथियारों, विस्फोटकों तथा सैनिक कार्रवाइयों की आंतकी ट्रेनिंग देने के प्रमुख केंद्र के रूप में सामने आया। खुफिया एजेंसियों का मानना है कि सिमुलिया के इस मदरसे में दोनों देशों के 150-250 युवाओं को आतंकी बनाया गया। अब खुफिया एजेंसियां उत्तर-से लेकर दक्षिण तक पूरे देश में उनकी तलाश कर रही है। जेएमबी संचालित मुर्शिदाबाद का सरकारी मान्यताप्राप्त मदरसा युवा मुस्लिम औरतों को आतंकी प्रशिक्षण देने का केंद्र था। यहां 35-40 मुस्लिम महिलाओं को हथियार चलाने, बम बनाने से लेकर आतंकी कार्रवाइयां करने की तालीम दी गई। खडक़गढ विस्फोट में मारे गए बांग्लादेशी आतंकी शकील अहमद गाज़ी की पत्नी रूमी रज़िया बीबी और उसी विस्फोट में घायल अब्दुल हकीम साहेब की बीवी अकलिमा अमीना बीबी इसी प्रशिक्षित महिला आतंकी दस्ते की सदस्य मानी जाती है। खुफिया एजेंसियों ने पता लगाया है कि बर्दवान और मुर्शिदाबाद के अलावा नदिया और बीरभूम जिले में ऐसी प्रशिक्षित 20-25 महिलाओं के जत्थे तैयार किए गए थे। जेएमबी सैंतिया क्षेत्र के अमुआ गांव में भी एक मदरसा चला रही थी जिसे एजेंसियों ने अब अपने कब्जे में ले लिया है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी को जेएमबी के ही मार्गदर्शन और मदद से झारखंड के पहाड़ी जिले साहेबगंज में चल रहे दो मदरसों का पता चला जहां गरीब और अनपढ़ मुसलमानों का ब्रेनवॉश कर उन्हें आतंकी बनाया जा रहा था।
जेएमबी को बांग्लादेश तथा पश्चिम बंगाल और शेष भारत में आतंकी कार्रवाइयां करने के लिए के बांग्लादेश के जिन छोटे लेकिन खूंखार आतंकी समूहों से सहयोग और समर्थन मिल रहा है उनमें अंसारूल बांग्ला, जमीयतुल मुसलमीन, हेपजात इस्लाम और तंजीम तमीरूद्दीन के नाम भारतीय खुफिया एजेंसियों ने बांग्लादेश को दिए हैं। इस आतंकी कुनबे में बर्मा के रोहंगिया मुस्लिमों की भी भूमिका बताई जा रही है। भारत ने बांग्लादेश को बताया है कि ये समूह किस तरह वृहत बांग्लादेश बनाने की अपनी योजना ‘बंगाल से बगदाद-जिहाद, अल जिहाद’ पर काम कर रहे हैं। ‘खिलाफत’ कायम करने का उनका सपना सिर्फ बांग्लादेश तक सीमित नहीं है, भारत भी उसका अभिन्न हिस्सा है। बांग्लादेश के इन तत्वों में 1971 में बांग्लादेश में अवामी लीग के प्रधान मंत्री मुजीबुर रहमान की हत्या का षड्यंत्र रचने वाले गुटों से जुड़े उग्रवादी और युद्ध अपराधी, जमाते इस्लामी और इस्लामी छात्र शिबिर के मज़हबी जेहादी भी हैं। पश्चिम बंगाल में तीन दशकों से अधिक के वामपंथी शासन, जब माकपा के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु सीमा पार से घुसपैठ करने वाले बांग्लादेशियों को ‘बंगाली सिनेमा देखने के लिए आने वाले मेहमान’ कहकर खारिज कर देते थे, से लेकर वामपंथी शासन को उखाड़ फेंकने वाली तृणमूल कांग्रेस के राज तक सीमावर्ती जिलों की राजनैतिक-सामाजिक परिस्थितियों का लाभ उठाकर बांग्लादेश के इन आतंकी संगठनों ने अपने पैर पक्के तौर पर जमा लिए।
वामपंथियों ने जहां पक्का वोट बैंक बनाने के लिए बांग्लादेशियों की पश्चिम बंगाल में भारी घुसपैठ और वहां के आतंकी संगठनों के पश्चिम बंगाल में अपना आधार बनाने को नजरअंदाज किया, वहीं ममता बनर्जी भी सत्ता मिलने पर वामपंथियों की ही लीक पर चलीं। समूचे पश्चिम बंगाल में जो उग्रवादी और अपराधी तत्व वामपंथियों का झंडा उठाए घूमते थे, उन्होंने रातोरात तृणमूल के हरे झंडे उठा लिए। सीमावर्ती क्षेत्रों के ग्रामीण अंचल में हर घर पर तृणमूल के झंडे लहराते देखे जा सकते हैं। वामपंथियों की ही तरह ममता बनर्जी की सरकार ने भी मुस्लिम उग्रवादियों को पूरा अभयदान दे रखा है। उनके लोग तृणमूल कांग्रेस के न केवल नेता हैं, बल्कि कई तो निर्वाचित स्थानीय जनप्रतिनिधि भी बन गए हैं। इन अवैध घुसपैठियों को सरकार के समर्थन से वोटर आइकार्ड, राशन कार्ड जैसे जरूरी दस्तावेज हासिल करने में ज्यादा मुश्किल नहीं आई। अब खुफिया एजेंसियों ने केंद्र सरकार को सलाह दी है कि समूचे सीमावर्ती क्षेत्र में हरेक नागरिक की पहचान की पुष्टि का अभियान चलाने की योजना बनाई जानी चाहिए।
सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस से जुड़े इन तत्वों की हर हरकत से पुलिस को जैसे आंखें मूंदे रखने का अलिखित आदेश मिला हुआ है। और वामपंथियों की ही तरह तृणमूल नेताओं का भी आतंक इतना अधिक है कि कोई भलामानुस उनके बारे में एक शब्द भी नहीं कहता। इसका सबसे बड़ा प्रमाण तब मिला जब एनआइए के दल ने विस्फोट वाले खडकगढ गांव और सिमुलिया कस्बे का दौरा किया। सिमुलिया में तो लोगों ने वहां ऐसा कोई मदरसा होने की जानकारी होने से ही इनकार कर दिया। यहां तक कि राष्ट्रीय मीडिया के रिपोर्टरों को भी उन कस्बों में लोगों से यही जवाब मिले। जब एनआइए ने भारी मात्रा में विस्फोटक, आतंकी साहित्य बरामद कर लिया, कई आतंकियों को असम और देश को दूसरे हिस्सों से गिरफ्तार किया और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोबाल समेत बड़े खुफिया अधिकारियों ने क्षेत्र का दौरा कर लिया तब जाकर स्थानीय लोग सामने आने लगे और आतंकी नेटवर्क की जानकारी मिलने लगी। पूरे पश्चिम बंगाल में खुफिया एजेंसियों को 3,000 से अधिक अवैध मदरसों का पता चला है। अकेले बर्दवान में ही 70 नाजायज मदरसे मिले जिनमें से कई में बांग्लादेशी शिक्षक हैं। अब गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने ऐसे मदरसों को बंद करने की कार्रवाई करने की घोषणा की है लेकिन यह इतना सरल नहीं है क्योंकि ये मदरसे राज्य सरकारों के अधिकार-में आते हैं। अधिकतर अवैध मदरसे सरकारी जमीन पर कब्जा करके या अनुसूचित जातियों को आवंटित जमीन और खेती की जमीन की खरीद करके बनाए गए हैं। इन मदरसों में पड़ोसी बिहार, झारखंड, असम और मेघालय के भी गरीब मुस्लिम लडक़ों को- उनके पालकों को बहलाकर- लाया जाता है।
पश्चिम बंगाल की 2,216 किमी लंबी लगभग अरक्षित सीमा बांग्लादेश से आतंकियों के भारत में प्रवेश के लिए सबसे सरल है। सीमा के आठ जिलों में सघन रूप से और समूचे पश्चिम बंगाल में सर्वत्र फैली मुस्लिम आबादी इन तत्वों को पुलिस और खुफिया एजेंसियों की खोजी नज़रों से दूर रहने का मौका देती है। सीमावर्ती क्षेत्रों से आतंकी नेटवर्क चलाने वाले इन समूहों के बनाए बमों का प्रयोग चेन्नई और पटना के गांधी मैदान में किए जाने के प्रमाण एनआइए को मिले हैं।
सीमा से बेखटके आतंकी तंत्र चलाने वालों के आर्थिक स्रोतों के बारे में भी खुफिया इकाइयों ने अहम और चौंकाने वाली जानकारी जुटाई है। पश्चिम बंगाल और झारखंड में मदरसे चलाने के लिए जेएमबी को बांग्लादेश के अलावा सऊदी अरब के वहाबी ट्रस्टों और एनजीओ से रकम मिल रही थी। संदेह है कि पश्चिम बंगाल के कुख्यात शारदा चिटफंड घोटाले, जिसमें मुख्यत: गरीबों को झांसा देकर उनसे पैसा जमा किया गया, की बड़ी रकम हवाला के जरिए बांग्लादेश के आतंकी नेटवर्क तक पहुंचाई गई। माना जाता है कि 2011 के विधान सभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को बांग्लादेश और सीमावर्ती क्षेत्र में सक्रिय आतंकी संगठनों से भारी मात्रा में जो आर्थिक मदद मिली, उसीकी भरपाई करने के लिए चिटफंड घोटाले की रकम उन तक पहुंचाई गई। प्रवर्तन निदेशालय की जांच के जो तथ्य सामने आए हैं उनसे पता चलता है कि 2009 से 2012 के बीच चिटफंड घोटाले के लगभग 900 करोड़ रु.जेएमबी ने बैंक के जरिए बांग्लादेश में जमा किए और फिर कुवैत तथा सऊदी अरब के दो एनजीओ के माध्यम से हवाला मार्ग से यह रकम आतंकी कार्रवाइयों में लगाने के लिए बंगाल और असम में पहुंचाई गई। कोलकाता के एक दैनिक ने अपनी खबर में चिटफंड की रकम का एक हिस्सा बोरियों में भरकर सीमापार बांग्लादेश पहुंचाने का संदेह तृणमूल के एक मुस्लिम सांसद पर जताया। इसके अलावा नकली भारतीय मुद्रा का प्रसार, दुधारू पशुओं और मादक पदार्थों की तस्करी और भारतीय बैंकों में डकैतियों से जुटाई गई राशि जैसे स्रोतों का पता खुफिया एजेंसियों को लगा है।
सीमावर्ती क्षेत्र में राज्य पुलिस का जासूसी तंत्र इतना बेदम है कि कहा जाता है कि मधुमेह, ह्रदयरोग और रक्तचाप जैसी बीमारियों और मोटापे से ग्रस्त उन पुलिसवालों को गुप्तचर इकाइयों में लगा दिया गया है जो नियमित पुलिस की दौड़भाग नहीं कर सकते। यह उस बंगाल का हाल है जो कभी गुप्तचरी में भारत भर में सर्वश्रेष्ठ था। राज्य सरकार से पर्याप्त खुफिया जानकारी न मिलने की गंभीर शिकायत एनआइए ने ममता बनर्जी से कोलकाता में की। अब केंद्रीय गृह मंत्रालय इस चूक के लिए राज्य सरकार को फटकार लगा रहा है। खुफिया एजेंसियों का मानना है कि बांग्लादेश के इन आतंकी समूहों का अल कायदा की पाकिस्तान स्थित इकाई से जीवंत संपर्क है जिसका साहित्य बर्दवान विस्फोट के गुर्गों के घरों से बरामद हुआ है।
खुफिया एजेंसियों ने भारत में इंडियन मुजाहिदीन, जिसे प्रतिबंधित आतंकी संगठन सिमी का अवतार माना जाता है, बांग्लादेशी आतंकी संगठनों की सहयोगी के रूप में पहचान की है। इस तथ्य से भारत में देसी आतंक का खतरा अधिक गहरा हो जाता है। पूरे देश में फैली अवैध बांग्लादेशियों बड़ी आबादी के कारण इन तत्वों को भारत भर में कहीं भी आतंकी कार्रवाइयां करने के लिए गुर्गे आसानी से मिलते रहे हैं और अगर यह नेटवर्क चलता रहता, ‘गलती से’ विस्फोट न होता, दो आतंकी उसमें न मरते तो अंदाज लगाया जा सकता है कि यह भारत की आंतरिक सुरक्षा को किस सीमा तक खोखला कर देता।
मुश्किल यह है कि बर्दवान जांच के लिए केंद्रीय जांच एजेंसियों को पहले मना करने वाली ममता बनर्जी वामपंथियों के बनाए, पक्के मुस्लिम वोट बैंक को पकड़े रखने के लिए न केवल पश्चिम बंगाल, बल्कि समूचे भारत की सुरक्षा और शांति से खिलवाड़ करने को तैयार हैं। ये वही ममता बनर्जी हैं जिन्हें 35 वर्ष के हिंसक और ‘अत्याचारी’ वामपंथी शासन से मुक्ति पाने के लिए बंगाल ने सिर-बिठाया था। लोगों को उम्मीद थी कि ममता बंगाल को गर्त से निकालकर शांति और विकास के पथ पर ले जाएंगी। तब वे बंगाल की राष्ट्रीय विचारदृष्टि और सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि बनकर उभरी थीं। लेकिन जल्द ही वे, उनकी पार्टी और उनके कार्यकर्ता वामपंथियों की भद्दी कार्बन कॉपी बन गए और पश्चिम बंगाल विकास तथा शांति की राह पर आगे बढ़ने की बजाए और भी कई दशक पीछे हो गया। और बर्दवान विस्फोट ने जाहिर कर दिया कि पश्चिम बंगाल अब आतंकवाद का मुख्य केंद्र भी बन गया है। अगर भारत को विश्व भर में फिर से धधक रही मज़हबी आतंकवाद की आग से बचाना है तो पहले बंगाल को बचाना होगा।
———