राष्ट्रीय उद्यान काजीरंगा

गुवाहाटी से २१७ कि.मी. पर काजीरंगा एक सींग वाले गेंडे के लिए मशहूर हैं, यह एशिया का एकमात्र राष्ट्रीय उद्यान है। …गेंड़े और अन्य वन्य पशु तो दिखाई देंगे ही, विविध रंगों के बादलों से सजी वह संध्या, वह शांति, वह वनश्री, वह सूर्यास्त कभी भुलाया नहीं जा सकता।

काजीरंगा यह विचित्र नाम सुनकर २५-२६    साल हो गए। जैसे किसी कपड़े पर लगा दाग लाख कोशिश करने पर नहीं मिटता वैसे ही काजीरंगा मेरे मन में घर कर गया।

यह स्थान असम में है। मुझे पता था कि वहां एक सींग वाला गेंडा पाया जाता हैं। हम समझते हैं कि सफर में बहुत पैसा खर्च होता है। पर अनुभव हमारी गलतफहमी दूर करता है। गुजरात, राजस्थान और तमिलनाडु की तुलना में मुंबई, पुणे में बहुत महँगाई है। मन को लुभानेवाली प्रकृति और अलग संस्कृति से सजे पूर्वोत्तर में अनेकों लोग जाने लगे हैं। बड़ी तादाद में लोग वहां जाएं। इससे उस भूभाग के साथ भारतवर्ष का गहरा प्रेम और भाईचारा स्थापित हो जाएगा। आप रहने और खाना खाने के लिए महंगे भोजनालय में जाए अथवा मुसाफिरखाने में। गाड़ी किराए से लीजिए या बस से सफर करें। खरीदारी करें या न करें? प्रकृति की सुंदरता वही रहेगी। गेंडे भी सब को एक जैसा दर्शन देंगे। वहां पर अभी तक कोई बालाजी नहीं हुआ। जोरहाट से बस पश्चिम की ओर सौ कि.मी.की दूरी पर काजीरंगा की तरफ चल पड़ी। सड़क के दोनों तरफ हरे-भरे वृक्ष बांस के वन और कालीन की तरह दूर तक फैले हुए चाय के बागान आंखों में प्रसन्नता भरकर इस हरे रंग को देख लीजिए।

लोगों को गेंडे देखने काजीरंगा जाना पड़ता है, पर हमने उन्हें सहजता से सामने देख लिया। बस स्थानीय लोग होने के कारण जगह-जगह रुकती थी। स्टॉप आने पर कुछ गेंडे धक्कमधक्की करते हुए चढ़ते-उतरते थे। गेंडों के साथ रहने का यह असर होगा।

काजीरंगा की तारीफ पर्यटक भले ही करें, स्थानीय लोगों को उनसे क्या लेना-देना। सही स्थान आने पर बताइए ऐसा कइयों से कहा, पर उन्होंने अनसुना कर दिया। अंत में मैंने ही ध्यान रखा।

हिमालय हो या राजस्थान, तमिलनाडु, मौसम के अनुसार लोगों का आना-जाना लगा रहता है। मौसम कभी अनुकूल कभी प्रतिकूल होता है। काजीरंगा अभयारण्य मई से अक्टूबर तक बंद रहता है। भारी बारिश और ब्रह्मपुत्र नदी में आने वाली बाढ़ के कारण काजीरंगा अभयारण्य बंद हो जाता है। नवंबर से अप्रैल मौसम अनुकूल है। काफी जानकारी लेने के बाद भी अगले पडाव के संदर्भ में स्थानीय व्यक्ति की मदद लें, चर्चा करें। कुछ कमी हो या बदलाव हो तो सुधार करें। काजी और रंगा अलग-अलग जनजातियों के थे और उन्होंने विवाह कर लिया। बिरादरीवालों को यह विवाह मंजूर नहीं था, सो उनकी हत्या हुई। उनके प्रेम की यादगार में इस स्थान का नाम काजीरंगा पड़ा।

काजीरंगा के भव्य प्रवेश द्वार पर हम उतरे। पास खड़े व्यक्ति ने दूसरे दिन हाथी पर बैठ कर गेंडे दिखाने का आश्वासन दिया। उसी के हाथी को पर्यटन विभाग किराए पर लेता है। कैसे विश्वास करें? उसने हमारे मन की बात भांप ली, वह हमें डेढ़ कि.मी. अंदर पर्यटन निवास की तरफ ले गया। उसका कहना सच था।

महानगरों में जैसे चालाकी या ठगी होती है, वैसी पूर्वोत्तर में नहीं होती। सबसे पहले कमरा और हाथी की सवारी तय की। आम आदमी चुका सके ऐसे ही दाम हैं। निवास स्थान के नाम भी सुयोग्य हैं। जैसे अरण्य लॉज, बोनानी (बनानी) बोनोश्री (वनश्री) कुंजबन।

विविध रंगों के बादलों से सजी वह संध्या, वह शांति, वह वनश्री, वह सूर्यास्त कभी भुलाया नहीं जा सकता।

गेंडे सिर्फ दो गुटों में सुबह के समय ५.३० और ६.३० बजे दिखाए जाते हैं। हाथी अड्डा निवास स्थान से १५ कि.मी. की दूरी पर हैं। वहां तक जीप से ले जाया जाता है। गुवाहाटी से २१७ कि.मी. पर काजीरंगा एक सींग वाले गेंडे के लिए मशहूर हैं, यह एशिया का एकमात्र राष्ट्रीय उद्यान है। उसे वर्ल्ड हेरिटेज नेचरल साइट जैसा दर्जा प्राप्त है। यह पार्क १९२६ में जंगली पशु अभयारण्य और १९७४ से राष्ट्रीय उद्यान माना गया है। यह ४३० चौ.कि.मी. क्षेत्र पर फैला है। ब्रह्मपुत्र नदी यहां से केवल आठ कि.मी. पर है। जगह-जगह जलाशय और दलदल की जमीन होने के कारण वह गेंडा, हाथी और जंगली भैंसा जैसे पशुओं के लिए सुखमय है। यह पूरा जिला हरी-भरी वनश्री, बांबू के पेड़ और ऊंची हाथी-घास से व्याप्त है। १९०४ में सिर्फ १०-१२ गेंड़े बचे थे। सही इलाज करने के बाद १९७८ में उनकी संख्या १००० तक पहंची। इसकी सारणीर कॉफी हाऊस मचान के नीचे लगाई है। इतिहास पूर्व काल के जो पशु बाकी हैं, उसमें है एक सींग वाला गेंडा। कभी पार्क के पास होने वाले राष्ट्रीय महामार्ग पर गेंड़ा या हाथी देखा जा सकता है। उसका सींग यह प्रत्यक्ष सींग न होकर केराटिन और बालों में होनेवाले प्रोटीन्स से बनता है। सारांश यह उसके सींग का जटाभार हैं।

सुबह ५.३० बजे तैयार होकर जीप की राह देख रहा था। पाश्चिमात्य लोग अनुशासप्रिय होते हैं। समय से पहले ही उपस्थित हो जाते हैं। भारतीय अपना स्वभाव नहीं छोड़ते, खास कर महिलाएं १५ मिनट में हाथी अड्डे पर पहुंचे। एक दूसरे से सट कर हाथी पर चार लोग बैठते हैं। कोई किसी से बात नहीं करता। मोबाइल फोन स्वीच ऑफ कर देते हैं। माहूत इशारा करके गेंडे और दूसरे प्राणी दिखाता है।

जंगल में जहां ऊंची-ऊंची घास थी, वहां तक जाकर देखा, गेंडे का कहीं अतापता नहीं था।

मन निराशा होने लगा। गेंडे दिखाई देंगे ही इस बात का भरोसा नहीं। बहुत जल्द सामने एक विशालकाय प्रियतम बैठे थे। माहूत का मन उधर ही आकृष्ट हो रहा था। उसने हाथी घुमाया। गेंडा उनके सामने व हमारे पीछे था। फोटो खींचते समय कभी षोडशा स्त्री के खुले केश या कभी उसके प्रियतम की पीठ बीच में आ रही थी। हाथी बार-बार हिल-डुल रहा था।

अब हमारी किस्मत जोरों पर थी और दो बड़े-बड़े गेंडे दिखाई पड़े।

थोडी देर बाद एक मादा गेंडा और उसका छोटा बच्चा १०-१५ फुट की दूरी पर शांति से चर रहे थे।

मैं बिल्कुल नज़दीक होकर यह देखूंगा इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा था। मेरी कल्पना ने साकार रूप ले लिया था। गेंडे की चमड़ी कितनी सख्त होती है, यह सब को पता है। आज ऐसे कई गेंड़े देख रहा था। वन अधिकारी और आर.टी.ओ. या पुलिस इन्स्पेक्टर की नियुक्ति करते समय गेंडे की चमड़ी की कोशिकाएं और इन्स्पेक्टर की चमड़ी की कोशिकाओं को मिलाकर समानता देखी जाती है ऐसा कहा जाता है – ये सच है या झूठ इसका पता नहीं। शायद यह व्यंग्यात्मक टिप्पणी हो। गेंडा शाकाहारी, मटमैले रंग का, १२ से १४ फुट लंबा और ६ से ६.५० फुट ऊंचा होता है। वजन ३ से लेकर ५ टन होता है। नज़र कमज़ोर और नाक से सूंघने की क्षमता तीव्र होती है।

अब तक अनेकों गेंडे दूर से और नज़दीक जाकर देख लिए। कीचड़ में सने जंगली भैसों का झुण्ड, कभी हिरन, जंगली सूअर जैसे पशु भी बीच-बीच में दिखाई देते थे। हाथी बीच-बीच में पेड़ों की टहनियां और घास खाकर नाश्ता कर लेता था, पर माहूत ३ से ऑन ड्यूटी रहने के लिए अर्थात काम करने के लिए जागता रहता था। घंटा-ड़ेढ़ घंटा हाथी पर सवारी करने के बाद कॉफी हाऊस के पास आए। ऊपर मचान, सामने ब्रह्मपुत्र के किनारे भारी तादाद में गेंडे। चाय की चुस्कियां लेते हुए यह मनोहर दृश्य देखता रहा सुबह जिस जीप से निकले थे उसी जीप से हाथी अड्डे पर वापस आए। यहां पर एक वाटिका और चाय की दुकान है। पेड़ पर बड़े सींग वाले जंगली भैंसे की खोपड़ी बांध रखी थी। उसके सामने सिर रख कर मेरी फोटो खींची, जैसे मुझे ही सींग उग आए हो।

प्रकृति अनंत और संवेदना भी अनंत, प्रकृति की विशालता का थोड़ा सा भी अनुभव हुआ तो जीवन की समाप्ति का डर और अवास्तव मोह निकल जाता है। प्रकृति को अनुभव करने का यह पौर्वात्य तरीका सुनकर आश्चर्यचकित हुए।

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