हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
कन्नूर के पांच खूनी दशक-  जे़ नंदकुमार

कन्नूर के पांच खूनी दशक- जे़ नंदकुमार

by हिंदी विवेक
in जून २०१६, साक्षात्कार, सामाजिक
0

केरल लम्बे समय से मार्क्सवादी आतंकवाद की छाया में रहा है। जिस तरह रूस में स्तालिन के कार्यकाल में हत्या की राजनीति का जोर था, उसका प्रतिरूप कन्नूर में दिखा, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर इस बारे में कभी बहस नहीं सुनी गई। दिल्ली में हम असहिष्णुता पर बहस सुन चुके हैं, लेकिन पांच लम्बे, खूनी दशकों के दौरान कन्नूर में जैसी हिंसा दिखी है, उससे असहिष्णुता का असली रूप चरितार्थ हुआ। हालांकि, इस दौरान रा.स्व.संघ को ‘असहिष्णु, अल्पसंख्यक विरोधी और उग्र संस्था के तौर पर प्रचारित’ करने के भरसक प्रयास हुए। कन्नूर की इस अनकही रक्तरंजित कहानी में रा. स्व. संघ और उसके स्वयंसेवक ‘लाल आतंक’ के सबसे बड़े शिकार रहे हैं। इसी मुद्दे पर ऑर्गनाइजर के सम्पादक प्रफुल्ल केतकर ने रा.स्व.संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख श्री जे़ नंदकुमार को कुछ प्रश्न भेजे। प्रस्तुत हैं साक्षात्कार के मुख्य अंश:

केरल के कन्नूर जिले में हत्या की राजनीति पर बात होती रही है। सच क्या है?

सच यह है कि केरल में ऐसी हत्याओं का लम्बा इतिहास है, जिसमें रा.स्व.संघ स्वयंसेवकों को निशाना बनाया गया। पहली हत्या 1969 में एक निर्धन दलित वदासिल रामकृष्णन की थी जिसकी जघन्यता से सब सकते में आ गए थे। इसके बाद हत्याओं का सिलसिला जारी हुआ जिसे माकपा हलकों में ‘कन्नूर मॉडल’ की संज्ञा दी गई। इसे असहमति रोकने और राजनीतिक शक्ति बनाए रखने के असरकारी मॉडल के तौर पर माना गया। पिछले 50 वर्षों में अभी तक केरल में 267 स्वयंसेवकों और संघ समर्थकों को मारा गया है। इनमें माकपा ने 232 को मारा है और शेष को इस्लामिक उग्रपंथियों ने। कन्नूर के छोटे से क्षेत्र में बेहिसाब हादसे हुए हैं। घायलों के मामले तो हत्याओं से भी छह गुना अधिक हैं। पुलिस अत्याचार झूठे मामले और प्रताड़नाएं यहां आम हैं। यह अधिकांशत: माकपा/एल डी एफ के राज में हुआ।

इस हिंसक राजनीति के पीछे क्या कारण रहा है? क्या इसकी कोई निश्चित योजना लगती है?

माकपा से संघ परिवार की ओर कार्यकर्ताओं का आ जुड़ना, रा.स्व.संघ और भाजपा पर हमले का मुख्य कारण रहा है। हमारे अधिकांश स्वयंसेवक और कार्यकर्ता उत्तरी केरल के कन्नूर से आते हैं। वह पहले माकपा से जुड़े रहे थे। माकपा को अपने गढ़ कन्नूर में संघ का असर बढ़ना और आतंक के आगे उसका न झुकना मंजूर नहीं है।

इस्लामिक समुदाय के वोट बटोरने के लालच में भी माकपा ने संघ के खिलाफ हिंसा का यह मोर्चा खोले रखा। इन मतों को बटोरने के लिए माकपा खुलेआम ‘गोमांस उत्सवों’ में अपने हमलों के बारे में बढ़-चढ़कर बयानबाजी करती रही है।
माकपा ने कांग्रेस, आईयूएमएल और अपने गठबंधन साथियों – आरएसपी और भाकपा पर भी हमले बोले हैं। पिछले महीने भाजपा कार्यकर्ताओं पर तिरुवनंतपुरम में बड़ा हमला हुआ था, एक कांग्रेस कार्यकर्ता (जो पहले माकपा में था) की अलेप्पी में मौत हुई। माकपा द्वारा एक बम हमले में नादपुरम में मुस्लिम लीग के 3 कार्यकर्ता मारे गए थे।
जहां तक हिंसात्मक विचारधारा को लागू करने का प्रश्न है तो माकपा किसी में भेदभाव नहीं करती।

क्या इसका चुनावी राजनीति से कोई सम्बंध है?

विधान सभा चुनावों की घोषणा के बाद संघ और उसके साथी संगठनों के खिलाफ हमले तेज हो गए। इतिहास में पहली बार भाजपा की अगुवाई में केरल में बनाया गया एक गठबंधन है, जिसका चुनावों पर गहरा असर पड़ सकता है। माकपा इस सच से वाकिफ है और उसे किसी भी तरह से तोड़ना चाहती है। हिंसा इसके लिए सबसे आसान रास्ता है।

इतनी हिंसा और खूनखराबे के बाद, हमें इसके खिलाफ कोई विरोध नहीं सुनाई देता। इसका क्या कारण है?

विरोध है पर उसकी आवाज दबी हुई है। इसके कई कारण हैं। पहला कारण है मीडिया (कुछ अपवादों को छोड़कर) जो अधिकांशत: वामपंथियों के हाथ में है। उदाहरण के लिए केरल का बड़ा टीवी नेटवर्क एशियानेट न्यूज जिसमें ऊपर से नीचे तक मार्क्सवादी काबिज हैं। जिस ‘सांस्कृतिक वर्ग’ को आमजन की ओर से आवाज उठाने के लिए सामने आना चाहिए, वह भी मार्क्सवादी उग्रवाद से डरा हुआ है।

इन घटनाओं के दौरान और बाद में पुलिस व प्रशासन की भूमिका क्या रही?

कन्नूर राजनीति के जर्जर माहौल में, केरल पुलिस की बेचारगी पर केवल हंसा ही जा सकता है। उदाहरण के लिए-कन्नूर जिले के हमारे शारीरिक प्रमुख मनोज की हत्या करने वाले गैंग लीडर ’विक्रमन’ की पहचान पहले भाजपा नेता जयकृष्णन मास्टर के हत्यारे के तौर पर हो चुकी है। यह सूचना तब सामने आई जब पुलिस माकपा नेता टी़पी़ चंद्रशेखरन की हत्या की छानबीन कर रही थी, जिन्होंने असहमति के बाद माकपा छोड़ी थी। इसके बाद पुलिस ने विक्रमन को पूछताछ के लिए बुलाया तो उसने सहयोग नहीं किया। लिहाजा, पुलिस ने केस ही बंद कर दिया! पुलिस तंत्र में भी माकपा कैडर की घुसपैठ है। इसके अलावा हर पांच साल बाद सत्ता में वापसी करने वाले और बदला लेने वाले दल के विरुद्ध कार्रवाई से पुलिस हिचकती है। पार्टी की पहुंच जेलों तक भी है जहां बंद माकपा कार्यकर्ताओं को तमाम सुख-सुविधाएं मिलती हैं। विधान सभा चुनावों में जीत के बाद राज्य माकपा का नेतृत्व कन्नूर जेल के ब्लॉक-8 का दौरा करता है। जहां सीपीएम अपराधियों को रखा जाता है। एलडीएफ राज में पार्टी से संबद्ध बंदियों को छोड़ा गया। मौजूदा सत्तासीन कांग्रेस पार्टी को माकपा की इन गतिविधियों की पूरी जानकारी है, लेकिन वह कुछ नहीं कहती; क्योंकि भाजपा उसे अपनी प्रमुख प्रतिद्वंद्वी के तौर पर दिखती है।

आप खुद केरल में रा. स्व. संघ में नीचे से ऊपर तक आए हैं। वहां काम करने का आपका क्या अनुभव रहा?

कई अनुभव हैं। मैं उत्तरी कन्नूर के पय्यानूर का जिक्र करूंगा जहां में जिला प्रचारक रहा। यह 1990 की बात है। उस दौरान वहां के अधिकांश इलाकों में मार्क्सवादी वर्चस्व था जिन्हें पार्टी ग्राम कहा जाता था। उस दौरान जिला कार्यालय के निकट एक कॉलेज में पढ़ने वाले कुछ छात्रों ने मुझसे संपर्क साधा था। एक दिन उन्होंने मुझे गांव कुनियन में बुलाया और शाखा लगाने को कहा। मैं राजनैतिक स्थितियां समझे बिना तुरंत उनके कहने पर अमल करने को तैयार हो गया था। नियत दिन 30-35 छात्र इकट्ठा हुए और वे सभी शाखा का हिस्सा बनने पर खासे उत्साहित थे। मैंने खुद शाखा संचालित करने का फैसला लिया, लेकिन मैं तब हैरान रह गया जब हथियारों और पत्थरों से लैस करीब 250 लोगों ने हमें घेर लिया। मैंने उनसे बात करनी चाही लेकिन वे कुछ सुनने को तैयार नहीं थे। उनका व्यवहार उग्र होता जा रहा था। मैंने पूछा कि दिक्कत क्या है? जवाब में मिले उनके शब्द आज तक मेरे कानों में गूंजते हैं। उन्होंने कहा, ‘यह लाल भूमि है। माकपा हमारी संस्था है और किसी अन्य पार्टी या विचारधारा के लिए यहां कोई स्थान नहीं है। इसलिए यहां से जाओ नहीं तो नतीजा भुगतने को तैयार रहो।’ उनमें से एक ने मेरी गर्दन पर कुल्हाड़ी रख दी और दूसरा मुझे जमीन पर गिराने लगा था। बस स्टैंड वहां से 5 किमी दूर था और पूरे रास्ते उन्होंने मेरा पीछा नहीं छोड़ा। उनकी धक्का-मुक्की कभी भी हिंसा में बदल सकती थी और मेरी गर्दन पर रखी गई कुल्हाड़ी अपना काम कर सकती थी। ऐसा अनुभव किसी भी उस व्यक्ति को हो सकता था जो शाखा शुरू करने की हिम्मत करता या किसी पार्टी ग्राम में अन्य विचारधारा के साथ प्रवेश करता।

क्या केरल में काम करने की संघ की कोई अलग रणनीति है? केरल में संघ के विस्तार के पीछे क्या रहस्य है?

केरल में रा.स्व.संघ का शाखा तंत्र बेहद मजबूत है। मुझे नहीं लगता कि यहां के लिए अलग से कोई योजना बनाई गई है। केरल में संघ के शुरुआती दिनों से हम समाज के सभी वर्गों को शाखा लाने में सफल रहे हैं। जामोरिन्स किले के निकट आर्चवट्टम के निकट पहली शाखा शुरू की गई थी। कहना न होगा कि पहली खेप के अधिकांश स्वयंसेवक शाही परिवार से थे। उसी दौरान कोझिकोड के तटवर्ती गांव में भी एक शाखा शुरू की गई थी। उसमें अधिकांश शामिल होने वाले मछुआरे थे।

एक अन्य कारण, केरल में अधिकांश कार्यकर्ता संघ कार्य के लिए अधिक समय देते हैं। मंडल स्तर तक व्यापक फैलाव वाला हमारा जीवंत और अपने बूते खड़ा सांगठनिक ढांचा भी एक कारण है। अंतिम कारण है मंडल स्तर पर न्यूनतम गतिविधियां कराना। मंडल में कार्यकर्ता साप्ताहिक रूप से मिलते हैं। मंडल या तहसील स्तर पर कार्यकर्ताओं को मासिक तौर पर शारीरिक और बौद्घिक प्रशिक्षण उपलब्ध कराना। यह सब संगठन के बुनियादी कार्य हैं और इनमें कुछ भी नया नहीं है। लेकिन हां, केरल में गतिविधियों को अमल में लाए जाने का प्रतिशत बेशक कुछ अधिक है।

हिंदी विवेक

Next Post
मजदूर का संकल्प

मजदूर का संकल्प

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0