पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजीत सिंह का निधन, बेटे ने लिखा भावुक संदेश

पूर्व केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय लोकदल के प्रमुख चौधरी अजीत सिंह का कोरोना संक्रमण की वजह से निधन हो गया उन्होने ने 82 वर्ष की उम्र में आखिरी सांस ली। चौधरी अजीत सिंह की 20 अप्रैल को कोरोना की रिपोर्ट पॉजिटिव आयी थी जिसके बाद उन्हे गुरुग्राम के एक हास्पिटल में भर्ती कराया गया था इलाज के बाद भी फेफड़ों का संक्रमण लगातार बढ़ता चला गया और 6 मई सुबह को उनका निधन हो गया।

चौधरी अजीत सिंह के निधन की जानकारी उनके बेटे जयंत चौधरी ने दी और पिता की एक फोटो के साथ संदेश भी साझा किया। जयंत चौधरी ने लिखा, चौधरी अजीत सिंह जी 20 अप्रैल को कोरोना संक्रमित पाये गये थे और आज प्रातः 6 मई को उन्होंने अंतिम सांस ली। असीम दुखः की घड़ी है। अंतिम समय तक चौधरी साहब संघर्ष करते रहे। जीवन पथ पर चलते हुए चौधरी साहब को बहुत लोगों को साथ मिला। ये रिश्ते चौधरी साहब के लिए हमेशा प्रिय थे। चौधरी साहब ने आप सब को अपना परिवार माना और आप ही के लिए हमेशा चिंता की। आज इस दुख और महामारी के काल में हमारी आप से प्रार्थना है कि अपना पूरा ध्यान रहें। संभव हो तो घर पर रहें और सावधानी जरूर बरतें। इससे देश की सेवा कर रहे डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मचारियों को भी मदद मिलेगी और यह ही चौधरी साहब को आप की सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

चौधरी अजीत सिंह के निधन के बाद राजनीति जगत से भी सोशल मीडिया पर श्रद्धांजली दी गयी। प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हे किसानों के हित का नेता बताते हुए कहा कि अजीत सिंह ने केंद्र में भी बड़ी जिम्मेदारी निभायी है। शोक की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके प्रशंसकों और परिवारजनों के साथ है।

कांग्रेस पार्टी के सांसद राहुल गांधी ने भी चौधरी अजीत सिंह के निधन पर शोक व्यक्त किया और कहा कि अजीत सिंह का असमय जाना राजनीति जगत के लिए बड़ा दुखद है। राष्ट्रीय लोक दल प्रमुख के निधन पर मेरी संवेदनाएं उनके प्रियजनों के साथ है।

पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के इकलौते पुत्र अजीत सिंह अपने राजनीतिक सफर को पिता जी की ऊंचाइयों तक नहीं पहुंचा सके बल्कि जब से बीजेपी ने केंद्र की सत्ता संभाली तब से उनका राजनीतिक सफर हर दिन सिमटता ही चला गया। 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार सत्यपाल सिंह ने उन्हे हरा दिया और यहीं से उनका बुरा समय भी शुरू हो गया। सन 1989 से लगातार वह बागपत से सांसद बने रहे सिर्फ 1999 में वह चुनाव हारे थे और फिर 2014 के बाद से चुनाव हार रहे थे। लोकसभा में हार के बाद उनकी पार्टी पर विलय का भी दबाव बढ़ने लगा। 1960 के दशक तक चौधरी चरण सिंह जाटों के एकमात्र नेता थे और उन्होंने मुसलमानों, गुर्जर और राजपूतों को मिलाकर राजनीति की थी लेकिन उनकी मृत्यु के बाद चौधरी अजीत सिंह अपने पिता के राजनीतिक विरासत को बचाने में कामयाब नहीं हुए और धीरे धीरे सब बिखरता गया। अजीत सिंह भी अपने पिता की तरह पाला बदलकर सभी सरकारों में मंत्री रहे चाहे वह किसी की भी सरकार रही हो।

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