हरियाणा के मनोरम स्थल

हरियाणा पौराणिक, पुरातात्विक एवं ऐतिहासिल धरोहरों को समेटे हुए हैं। कौरव-पांडवों की युद्धस्थली कुरुक्षेत्र को कौन भूल सकता है? किसे याद नहीं होगा कि कृष्ण ने यहीं अर्जुन को उपदेश के रूप में हमें महान ग्रंथ गीता का सार्वदेशिक उपहार दिया है। लुप्तप्राय सरस्वती तो यहीं से होकर गुजरती है। अरावली पहाड़ियों की खिलती हरितिमा यहीं है। जरा बैग उठाए और निकल पड़े इस अद्भुत दृश्य को…

खेत-खलिहान व खिलाड़ियों के कारण विश्व पटल पर अपनी अलग पहचान बनाने वाले हरियाले प्रदेश हरियाणा के मनोरम पर्यटन स्थल रोमांचित कर देते हैं। दरअसल हरियाणा में विविधताओं में एकता के दर्शन होते हैं। यहां पहाड़ी इलाका है तो मैदानी व रेतीले क्षेत्र भी सहज ही देखे जा सकते हैं। हरियाणा की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पंजाब व दिल्ली सीमावर्ती राज्य हैं। यमुना व घग्घर नदियां यहां के खलिहानों की पोषक हैं। यहां पर पंजाबी, राजस्थानी व ब्रज संस्कृति का प्रभाव झलकता है। देखा जाए तो वनस्पतियों व हरियाली के लिए प्रसिद्ध रहे हरियाणा को ‘हरिणनिका’ ‘हरियाला’ व ‘हरित-आरण्यक’ नाम से भी जाना जाता है। दरअसल विभिन्न नामों के साथ-साथ दूध-दही की बहार वाले हरियाले प्रदेश हरियाणा की विशिष्ट सभ्यता व संस्कृति के साथ-साथ यहां के विभिन्न स्थलों की आभा भी निराली है। यही कारण है कि 1 नवम्बर 1966 को अलग राज्य के रूप में स्थापित हुए हरियाणा के धार्मिक व ऐतिहासिक स्थलों को घूम-घूमकर देखते हुए सैलानी अभिभूत हो जाते हैं।

विदेशियों को भी लुभाए कर्म व धर्म नगरी

कौरवों व पांडवों के बीच महाभारत का युद्ध हरियाणा के प्रसिद्ध जिले कुरुक्षेत्र की धरा पर लड़ा गया। यही वह स्थान है जहां सुदर्शन चक्रधारी श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान देकर समस्त विश्व को धर्म व कर्म का मर्म समझाया। धर्मनगरी कुरुक्षेत्र की पावन भूमि पर अनगिनत ऐसे धार्मिक व ऐतिहासिक स्थल हैं जिन्हें देखने के लिए पर्यटक खिंचे चले आते हैं।

कुरुक्षेत्र में हर वर्ष आयोजित होने वाले ‘गीता जयंती समारोह’ में देश-विदेश से लाखों पर्यटक आते हैं। यहां आने वाले पर्यटक जहां ‘ब्रह्मसरोवर’ व ‘सन्निहित सरोवर’ के शीतल जल में स्नान करके शांति की अनुभूति करते हैं, वहीं वे गीता स्थली ‘ज्योतिसर’ का अवलोकन करना नहीं भूलते। कुरुक्षेत्र में स्थापित ‘श्रीकृष्ण संग्रहालय’ में विविध माध्यमों से सुदर्शन चक्रधारी श्रीकृष्ण व महाभारत की सम्पूर्ण जानकारी तो सैलानियों को मिलती ही है, साथ ही संग्रहालय से सटे ‘पैनोरमा’ में उन्हें वैज्ञानिक आधार पर तथ्यों को परखने का अवसर भी मिलता है।

शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में स्थापित ‘धरोहर संग्रहालय’ में हरियाणा की कला-संस्कृति के अलावा लुप्तप्राय वस्तुओं को देख कर सैलानियों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहता। कुरुक्षेत्र में ही स्थित ‘देवीकूप भद्रकाली शक्तिपीठ’ का नजारा अद्भुत होता है। कर्म व धर्म नगरी कुरुक्षेत्र में पहुंच कर ‘कल्पना चावला तारामंडल’ देखने का अनुभव तो किसी दूसरे लोक की यात्रा करने से कम नहीं है।

सूरजकुंड से बढा रीदाबाद का महत्व

औद्योगिक नगरी फरीदाबाद में स्थित ‘सूरजकुंड पर्यटन स्थल’ कला व संस्कृति के संवाहक की भूमिका निभा रहा है। सूरजकुंड पर हर वर्ष लगने वाले हस्तशिल्प मेले में न केवल देशभर से बल्कि विदेशों से भी हजारों सैलानी शिरकत करते हैैं। अरावली की मनोरम पहाडियों के बीच तोमर राजा सूरजमल द्वारा बनवाए गए सूर्य के आकार के विशाल कुंड ‘सूरजकुंड’ के पास लगने वाले मेले में लाखों पर्यटक जहां विभिन्न संंस्कृतियों से रूबरू होते हैं, वहीं वे हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश व दक्षिण भारत के स्वादिष्ट व्यंजनों का जायका लेने से भी नहीं चूकते। भारत की राजधानी दिल्ली से 18 किलोमीटर दूर स्थित सूरजकुंड में हर वर्ष फरवरी महीने के प्रथम पखवाड़े में आयोजित किए जाने वाले मेले में एक राज्य को थीम बना कर उसकी कला व संस्कृति को विशेष रूप से उजागर किया जाता है। सूरजकुंड मेले की प्रसिद्धि का आलम यह है कि यहां हर वर्ष देशभर के पर्यटकों के अतिरिक्त ब्रिटेन, कनाडा, अमेरिका, जापान, रूस, भूटान व कोरिया सहित अनेक देशों से सैलानी हस्त शिल्पियों की कलाकृतियां देखने आते हैं। मेले के दौरान बंचारी के कलाकार जब नगाड़े पर थाप देते हैं तो विदेशी भी नृत्य करने से अपने-आप को रोक नहीं पाते। औद्योगिक नगरी फरीदाबाद में ‘सती का स्थान’ एवं बल्लभगढ में ‘राजा नाहर सिंह का किला’, ‘तालाब’ व ‘छतरी’ भी देखने लायक हैं। फरीदाबाद में स्थित ‘ब ्रखल झील’ भी देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।

पुरातत्वविदों के लिए आकर्षण का केंद्र

अनेक उतार-चढाव देखने वाले हरि के प्रदेश हरियाणा में स्थित विभिन्न टीलों और दुर्गों के उत्खनन से पुरातात्विक महत्व की बेशुमार सामग्री मिली है। चाहे रोहतक के गिरावड, परमाना व मदीना गांव हों या फतेहाबाद का गांव बनावली व भिरडाना हो, भिवानी में मिताथल हो या फिर हांसी का किला एवं अग्रोहा के टीले के अतिरिक्त गांव राखीगढ़ी के टीले हों हर जगह उत्खनन से मिले बेशकीमती अवशेषों से पुरातन सभ्यता को समझने का मौका मिला है। पाकिस्तान में स्थित हडप्पा व मोहनजोदडो की भांति हिसार के गांव राखीगड़ी से मिले अवशेषों के आधार पर इसे देश भर का सब से महत्वपूर्ण हडप्पाकालीन स्थल माना जाता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राखीगढ़ी का पुरातात्विक महत्व देखते हुए इसे वर्ल्ड हेरिटेज में भी शामिल किया गया है। गांव राखीगढी सहित हरियाणा के तमाम पुरातात्विक स्थलों के निरीक्षण के लिए देशभर से ही नहीं विदेशों से भी सैलानी आते हैं।

पक्षियों के नाम पर पर्यटक परिसर

प्रकृति व पक्षियों को समर्फित करते हुए हरियाणा के टूरिस्ट कॉम्प्लेक्स का नामकरण पक्षियों के नाम पर ही किया गया है। हिसार में ‘ब्लू बर्ड’ व ‘फ्लेमिंगो’ टूरिस्ट कॉम्लेक्स हैं तो भिवानी में ‘बया’ व कैथल में ‘कोयल’ पंछी के नाम पर पर्यटक परिसर बनाए गए हैं। इसी भांति अंबाला में ‘किंगफिशर’, फरीदाबाद में ‘मैगपाई’, झज्जर में ‘गोरैया’, रोहतक में ‘मैना’, फतेहाबाद में ‘पपीहा’, रेवाड़ी में ‘सैंडपाइपर’, गुड़गांव में ‘सारस’, पानीपत में ‘स्काईलॉर्क’, सूरजकुंड में ‘सनबर्ड’ एवं सिरसा में ‘सुर्खाब’ सहित और भी कई टूरिस्ट कॉम्प्लेक्स प्रकृति की सुंदरता में चार चांद लगाने वाले पंछियों पर आधारित हैं। दरअसल वर्ष 1974 में हरियाणा पर्यटन विभाग के तत्कालीन उच्च अधिकारियों ने बैठक करके सर्वसम्मति से निर्णय लिया कि राज्य के टूरिस्ट कॉम्पलेक्स का नामकरण पक्षियों के नाम पर किया जाए ताकि पर्यटकों को नाम से ही प्राकृतिक छटा का एहसास हो।

पंचकूला में सैलानी हो जाएं रोमांचित

फूलों के साथ-साथ कांटों से प्यार करने वाले पंचकूला के ‘कैक्टस गार्डन’ को देखने का मोह पर्यटक संवरण नहीं कर पाते। यहां कैक्टस की दुर्लभ प्रजातियों को एकसाथ सहज ही देखा जा सकता है। इसके साथ-साथ पंचकूला पहुंचने वाले पर्यटक ‘पिंजौर बाग’ के नाम से मशहूर ‘यादवेंद्रा गार्डन’ की आभा को निहारना भी नहीं भूलते। रात के समय कृत्रिम रोशनी के बीच बाग की छटा पूरे यौवन पर होती है। शिवालिक पर्वतों की सुरमई पृष्ठभूमि में बसे दिलकश और रोमांचकारी स्थल ‘मोरनी’ की जो एक बार यात्रा कर लेता है वह यहां बार-बार आना चाहता है। ‘मिनी शिमला’ के नाम से विख्यात मोरनी के झरने, सीढ़ीदार खेत व घुमावदार पगडंडियां आकर्षित करती हैं। यहां के ‘टिक्कर ताल’ खूब रोमाचिंत करते हैं।

विभिन्न क्षेत्र करते हैं आकर्षित

साइबर सिटी के नाम से मशहूर गुडगांव में ‘शीतला माता शक्तिपीठ’ की प्रसिद्धि चरम पर है तो गुडगांव के सोहना कस्बे में उपजे ‘गर्म जल स्रोत’ पर्यटकों को रहस्यमयी संसार की अनुभूति करवाते हैं। गुडगांव का ‘सुल्तानफुर पक्षी विहार’ एवं झज्जर में स्थित ‘भिंडावास बर्ड सेंचुरी’ वन्य प्राणियों से प्रेम करने वाले सैलानियों को खूब पसंद आते हैं।

तीन युद्धों की साक्षी पानीपत नगरी का ऐतिहासिक द़ृष्टि से काफी महत्व है। पानीपत में ‘काबुली बाग मस्जिद’ का निर्माण सुल्तान बाबर ने इब्राहिम लोधी पर विजय पाने के उपलक्ष्य में करवाया। पानीपत में ही स्थापित ‘इब्राहिम लोधी का मकबरा’ दोहरे सोपान वाले चबूतरे पर स्थित है। यहां स्थापित सूफी संत हजरत बू-अली शाह कलंदर की ऐतिहासिक दरगाह हिन्दू व मुसलमानों की एकता का प्रतीक है। तीन युद्धों की स्मृतियों को जीवंत रखने के लिए यहां ‘काला अम्ब’ व ‘पानीपत संग्रहालय’ भी स्थापित किया गया हैै।

गुजरी शहर के नाम से मशहूर हिसार में फिरोजशाह तुगलक द्वारा बनवाया गया ‘गुजरी महल’ तो है ही, साथ-साथ हांसी उपमंडल का ऐतिहासिक किला अपने अंदर अनगिनत रहस्य समेटे हुए हैं। अग्रोहा में स्थित ‘अग्रोहा धाम’ तो अब विश्व प्रसिद्ध हो चुका है। शरद पूर्णिमा को हर वर्ष अग्रोहा में लगने वाले मेले में देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु शिरकत करते हैं।

गौरवशाली अतीत के गवाह नारनौल शहर में ‘इब्राहिम सूरी का मकबरा’, ‘जल महल’, ‘बीरबल का छत्ता’, ‘पीर तुर्कमान का मकबरा’, ‘च्यवन ऋषि का प्राचीन मंदिर’, ‘चोर गुंबद’ एवं ‘बालमुकुंद दास का छत्ता’ सहित बहुत से ऐतिहासिक स्थल दर्शनीय हैं। रोहतक का ‘अस्थल बोहर मठ’, यमुनानगर का ‘कपालमोचन गुरुद्वारा’ व ‘आदिबद्री क्षेत्र’ भी हरियाणा के दर्शनीय स्थल हैं।

सैर-सपाटे के साथ जायका भी लें

‘देसां म्ह देस हरियाणा, जित्त दूध-दही का खाणा’ यह कहावत हरियाणा के लिए विशेष रूप से प्रचलित है। वास्तव में हरियाणा दूध-दही के मामले में सिरमौर बना हुआ है। यहां के ग्रामीण अंचल में देसी घी का चूरमा व छाछ खास प्रसिद्ध हैं। हरियाणा में भ्रमण करते हुए चूरमे व छाछ का आनंद तो आप ले ही सकते हैं, इसके साथ-साथ सोनीपत के कस्बे गोहाना की विशाल जलेबी का रसास्वादन करना मत भूलिएगा। दरअसल देसी घी से बनी ये जलेबियां इतनी बड़ी होती हैं कि तीन जलेबियों का वजन ही दो किलोग्राम हो जाता है। इसी भांति हिसार के ऐतिहासिक शहर हांसी के पेठे भी खूब मशहूर हैं। दिल्ली सड़क मार्ग पर हांसी स्थित है। इसलिए यहां से गुजरने वाले यात्री हांसी में रुक कर यहां के पेठों का आनंद अवश्य उठाते हैं। रोहतक की रेवड़ी भी दुनियाभर में मशहूर है। लोहड़ी व मकर संक्रांति के अवसर पर रोहतक की रेवड़ी व गज्जक की धूम देखने लायक होती है। तीन युद्धों के साक्षी पानीपत का पंचरंगा अचार भी विदेशियों को दीवाना बनाए हुए है। दरअसल पंचरंगा अचार पानीपत से देशभर के विभिन्न राज्यों के अलावा कई देशों में भी भेजा जाता है।

चंड़ीगढ़ भी कर दे दीवाना

हरियाणा व पंजाब राज्य की संयुक्त राजधानी चंड़ीगढ़ की खूबसूरती किसी भी सैलानी को दीवाना कर सकती है। दरअसल चंड़ीगढ़ के स्मारक तो पर्यटकों को आकर्षित करते ही हैं, इसके साथ-साथ यहां की सफाई व हरियाली सभी का मन मोह लेती है। कबाड़ से जुगाड़ करके बनाया गया ‘रॉक गार्डन’ देख कर कोई विरला ही होगा जो इसकी तारीफ न करे। अनगिनत फूलों की आभा समेटे हुए ‘रॉक गार्डन’ जीवन में नई महक का आगाज करता प्रतीत होता है। ‘सुखना लेक’ का नैसर्गिक सौंदर्य शायरी करने के लिए मजबूर कर देता है। चंड़ीगढ़ के पास ही स्थित ‘छतबीठ चिड़ियाघर’ बच्चों की पसंदीदा जगह है।
हरियाणा में अब ग्राम्य पर्यटन को विकसित करने के लिए ‘फार्म टूरिज्म’ को बढ़ावा दिया जा रहा है। ग्राम्य पृष्ठभूमि का एहसास करवाने के लिए हरियाणा के कई गांवों में स्थापित फार्म हाउस में पर्यटकों को देसी अंदाज में गांव के देसी भोजन का स्वाद चखने का अवसर मिलता है। इसी दिशा में यदि सरकार व प्रशासन और गंभीरता से कार्य करें तो निश्चित रूप से न केवल हरियाणा के ऐतिहासिक व धार्मिक स्थलों का महत्व बढ़ सकता है बल्कि हरियाणा का ग्राम्य जीवन भी अंतरराष्ट्रीय फलक पर अपनी जगह बनाने में कामयाब हो सकता है।

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