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हरियाणवी सिनेमा के बढ़ते कदम

हरियाणवी सिनेमा के बढ़ते कदम

by राजेश चुग
in अगस्त -२०१६, फिल्म
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हरियाणवी फिल्म ‘चंद्रावल’ ने सफलता व प्रसिद्धि का जो इतिहास रचा है, उसे कोई अन्य हरियाणवी फिल्म दोहरा नहीं पाई। अब ‘पडी-द ऑनर’ फिल्म को दो राष्ट्रीय व पांच अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार एवं ‘सतरी’ फिल्म को भी ‘बेस्ट हरियाणवी फिल्म’ का पुरस्कार मिलने से हरियाणवी सिनेमा के सुनहरे दिन आने की उम्मीद जगी है।

मनुष्य जीवन के आशा और निराशा जैसे अननित पहलू हैं और ये सभी किसी न किसी तरह सिनेमा के रुपहले पर्दे पर साकार होते हैं। सिनेमा ही ऐसा सशक्त माध्यम है जिससे पुरातन संस्कृति, परंपराएं, आस्थाएं व कलाएं दर्शकों तक पहुंचती और संरक्षित रह सकती हैं। हरियाणा प्रदेश तो ॠषि-मुनियों की तपोस्थली रहा है। इसी धरा पर सृष्टि को कर्म व धर्म का संदेश दिया था। यहां की संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने एवं आने वाली पीढ़ियों को इससे रूबरू करवाने के लिए सिनेमा से श्रेष्ठ साधन और क्या हो सकता है। जिस तरह मानव जीवन में कभी पतझड़ तो कभी बसंती बयार बहती है, ठीक उसी भांति हरियाणवी सिनेमा ने भी थपेड़े झेलते हुए अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं।

‘बीरा शेरा’ से हुई शुरूआत

वर्ष 1973 में निर्मित फिल्म ‘बीरा शेरा’ एवं वर्ष 1974 में प्रदर्शित ‘चौधरी हरफूल सिंह-जाट जुलाणी वाला’ को हरियाणवी सिनेमा की शुरूआती फिल्मों में से माना जाता है। हालांकि ये दोनों फिल्में दर्शकों पर अपनी कोई छाप नहीं छोड़ पाईं, लेकिन इससे हरियाणवी फिल्म निर्माण का सिलसिला शुरू हो गया। प्रसिद्ध कथक नृत्यागंना उषा शर्मा व कई कला पारखियों ने मिल कर एक समिति का गठन किया और विख्यात लेखक देवीशंकर प्रभाकर की कलम से निकली पटकथा पर ‘बहूराणी’ फिल्म का निर्माण शुरू हुआ। इस फिल्म में सुमित्रा हुड्डा नायिका थीं, वहीं राकेश बेदी ने बतौर नायक काम किया; लेकिन नायक-नायिका की भावनात्मक अदाकारी भीड़ नहीं जुटा पाई। बेशक यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कोई कमाल नहीं दिखा पाई, लेकिन इससे जगत जाखड़ व प्रशांत शुक्ला जैसे हरियाणा के कई नवोदित कलाकारों के लिए अभिनय के द्वार खुल गए। वर्ष 1983 में प्रदर्शित ‘बहूराणी’ फिल्म ने हरियाणवी सिनेमा के लिए जिस धरातल का निर्माण किया उसी का फायदा ‘चंद्रावल’ फिल्म को मिला।

‘चंद्रावल’ ने गाडे सफलता के झंड़े

‘बहूराणी’ फिल्म से पर्यात अनुभव मिलने के बाद देवीशंकर प्रभाकर ने हरियाणवी संस्कृति में रची-बसी ‘चंद्रावल’ फिल्म की पटकथा लिखी। इस फिल्म के निर्देशन का कार्यभार उनके पुत्र जयंत प्रभाकर ने संभाला। वर्ष 1984 में प्रदर्शित हुई इस फिल्म ने हरियाणवी सिनेमा के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। इस फिल्म की प्रसिद्धि का ये आलम था कि दर्शक इस फिल्म के नायक जगत जाखड को ‘सूरज’ व नायिका उषा शर्मा को ‘चंद्रो’ के नाम से पुकारने लगे। इस फिल्म ने एक सिनेमाघर में स्वर्ण जयंती व दस स्थानों पर रजत जयंती मनाई। इस फिल्म के गीत ‘मैं सूरज तू चंद्रावल’, ‘जीजा तूं काला मैं गोरी राणी’, ‘मेरा चूंदड मांदे हो नणदी के बीरा’ एवं ‘गड्डे आली जबण छोरी’ बच्चेे-बच्चे की जुबान पर चढ़ गए। इस फिल्म के गीत गाकर जहां भाल सिंह गायक के रूप में छा गए, वहीं नसीब सिंह व दरियाव सिंह ‘रूंडा’ व ‘खुंडा’ के किरदारों को जीवंत करके हास्य अभिनेता के रूप में स्थापित हो गए।

आगे बढ़ने लगा कारवां

‘चंद्रावल’ की लोकप्रियता देख कर ऐसा प्रतीत होने लगा कि अब हरियाणवी सिनेमा अपनी जड़ें जमा लेगा। लेकिन ‘चंद्रावल’ के बाद प्रदर्शित हुई फिल्म ‘के सुपणे का जिकर’ बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरने से सभी कयासों पर विराम लग गया। गायक भाल सिंह ने ‘चंद्रावल’ की लोकप्रियता से प्रभावित होकर ‘छैल गैल्यां जीं’ फिल्म का निर्माण किया। अरविंद स्वामी के निर्देशन में वेदपाल के संगीत से सजी यह फिल्म बेशक ‘चंद्रावल’ का इतिहास नहीं दोहरा पाई लेकिन औसत बिजनेस करने में सफल रही। फिल्म का शीर्षक गीत ‘छैल गैल्यां जागी बाजण दे मेरा नाडा’ काफी लोकप्रिय हुआ। इस फिल्म में जनार्दन शर्मा ने हास्य अभिनेता के रूप में काफी नाम कमाया।

इसके बाद तो अगले पांच वर्षों तक हरियाणवी फिल्मों की बाढ़ सी आई रही। ‘सांझी’, ‘लीलो चमन’, ‘लाड्डो-बसंती’, ‘प्रेमी रामफल’, ‘रामायण’, ‘पनाट’, ‘भंवर-चमेली’, ‘चंद्रकिरण’, ‘छैल गबरू’, ‘बटेऊ’, ‘हारा पीहर सासरा’, ‘छोरा जाट का’, ‘गुलाबो’, ‘फूलबदन’, ‘हारी गारती हारी मां’, ‘छोटी साली’,‘भाभी का आशीर्वाद’, ‘छोरी सपेले की’, ‘गान पराया’, ‘चंद्रो’, ‘झणकदार कंगना’, ‘बैरी’, ‘फाण आया रे’, ‘छोरा हरियाणे का’, ‘लंबरदार’, ‘ये माटी हरयाणे की’, ‘छद्बनो’, ‘ट की फटकार’, ‘खानदानी सरपंच’, ‘जर, जोरू और जमीन’ व ‘पिंला भरथरी’ आदि हरियाणवी फिल्में प्रदर्शित हुईं।

‘चंद्रावल’ से प्रसिद्ध हुए जगत जाखड़ एक बार फिर ‘चंद्रकिरण’ में दिखाई दिए परंतु दिलावर सिंह के निर्देशन में बनी इस फिल्म में जगत का जादू चल नहीं पाया लेकिन जयंत प्रभाकर द्वारा निर्देशित फिल्में ‘लाड्डो-बसंती’, ‘गुलाबो’ व ‘फूलबदन’ कुछ हद तक दर्शकों को बांधने में सफल रहीं। चंद्रावल के बाद उषा शर्मा ‘लाड्डो-बसंती’ में अनूप लाठर के साथ एवं ‘फूलबदन’ में शशि रंजन के साथ दिखाई दीं। ‘लाड्डो-बसंती’ का ‘मेरा नौ डांडी का बीजणा’ गीत ने खूब ख्याति अर्जित की और यह लोगों की जुबान पर चढ़ गया। इसके बाद ‘जाटणी’, ‘यारी’, ‘झूल सामण की’, ‘जाट’, ‘मुकलावा’, ‘जनेती’ ‘छोरी नट की’ व ‘छबीली’ आदि फिल्मों के माध्यम से कुछ कदम आगे बढ़ने के बाद हरियाणवी सिनेमा की गति मंथर पड गई।

‘लाडो’ से जागी नई उम्मीद

वर्ष 2000 में सुप्रसिद्ध निर्देशक अश्वनी चौधरी ने हिंदी फिल्मों के प्रसिद्ध कलाकार आशुतोष राणा व अरूंधती को लेकर ‘लाडो’ फिल्म का निर्माण किया। ललित जैन के संगीत से सजी और तकनीकी रूप से सशक्त होने के बावजूद अवैध संबंधों पर आधारित पटकथा होने के कारण दर्शक इस फिल्म को पचा नहीं पाए। हालांकि इसे ‘स्वर्ण कमल पुरस्कार’ भी मिला परंतु आशुतोष राणा व अरूंधती अपेक्षा के अनुरूप दर्शकों को सिनेमाघर तक खींच पाने में सफल नहीं हो सके। इसके बावजूद ‘पाणी आली पाणी यादे’ रानी खूब चर्चा में रही। इसके बाद वर्ष 2001 में ‘चांद-चकोरी’ और ‘पिया’ फिल्में प्रदर्शित हुईं। ये फिल्में भी कोई करिश्मा नहीं दिखा पाईं। इसके बाद एक बार फिर हरियाणवी सिनेमा में खामोशी छा गई और यह खामोशी वर्ष 2006 में ‘पीहर की चुंदडी’ के प्रदर्शन से टूटी। रेवाड़ी के फषि सिंहल द्वारा निर्मित ‘पीहर की चुंदड़ी’ फिल्म में प्रसिद्ध रंगकर्मी विजय भटोटिया ने जहां नायिका के पिता की भूमिका निभाकर खूब वाहवाही लूटी, वहीं नायिका अनुराधा भी भावों की अभिव्यति में कामयाब रहीं। इस फिल्म के अपेक्षा के अनुरूप व्यवसाय न करने के कारण हरियाणवी सिनेमा के कदम एक बार फिर थम गए। वर्ष 2010 में फिल्म ‘शनीचर’ प्रदर्शित हुई और वर्ष 2011 में हरियाणवी फिल्म ‘मुठभेड-ए लांड एनकाउंटर’ प्रदर्शित हुई। संजय शर्मा द्वारा निर्मित ‘मुठभेड-ए लांड एनकाउंटर’ फिल्म में जहां ‘चाइना गेट’, ‘अपहरण’ व ‘गंगाजल’ सहित कई हिंदी फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवा चुके मुकेश तिवारी ने अपने सशक्त अभिनय की बानगी प्रस्तुत की, वहीं पूनम झांवर ने नायिका के रूप में अपने किरदार से पूरा न्याय किया। निर्माता संजय शर्मा भी इसी फिल्म के माध्यम से खलनायक के रूप में अलग छवि बनाने में कामयाब हुए लेकिन विडंबना यह रही कि यह फिल्म भी हरियाणवी सिनेमा को दिशा नहीं दे सकी। इसके बाद ‘आठवां वचन-एक प्रतिज्ञा’ फिल्म प्रदर्शित हुई।

‘चंद्रावल-2’ जुटा न सकी भीड़

हरियाणवी सिनेमा के बुरे दौर के बीच वर्ष 2012 में उषा शर्मा द्वारा ‘चंद्रावल-2’ फिल्म का निर्माण करना रेगिस्तान में बारिश की बौछार से कम नहीं था। सिनेमा प्रेमियों व समीक्षकों का मानना था कि यदि ‘चंद्रावल-2’ फिल्म 1984 में निर्मित फिल्म ‘चंद्रावल’ का इतिहास दोहराने में कामयाब रही तो फिर हरियाणवी सिनेमा के सुनहरे दिन आ जाएंगे लेकिन यह फिल्म दर्शकों का विश्वास जीत नहीं पाई। ‘चंद्रावल-2’ फिल्म बेशक सफलता के झंड़ न गाड़ सकी हो लेकिन इसके बाद हरियाणवी फिल्म निर्माण का सिलसिला एक बार फिर शुरू हो गया। इसी वर्ष आधुनिक परिवेश पर आधारित फिल्म ‘तेरा मेरा वादा’ भी प्रदर्शित हुई। नए प्रयोग करने के बावजूद यह फिल्म दर्शकों को सिनेमाघर तक खींच कर नहीं ला सकी। वर्ष 2013 में ‘माडर्न गर्ल देसी छोरी’ प्रदर्शित हुई और वर्ष 2014 में कर्नल जितेंद्र सिंह ने ‘माटी करै पुकार’ फिल्म का निर्माण किया। इसी वर्ष जसबीर चौधरी ने ‘कुणबा’ फिल्म बनाने का साहस दिखाया। हरियाणवी फिल्म ‘कुणबा’ मेें संयुक्त परिवार की सार्थकता और उसके विघटन को बड़ी संजीदगी से उद्घाटित किया गया। कई हिंदी फिल्मों व धारावाहिकों में निर्देशन का लोहा मनवा चुके यश चौहान के निर्देशन से सजी ‘कुणबा’ फिल्म की कथा-पटकथा हरियाणा के प्रसिद्ध कलाकार विजय भाटोटिया ने लिखी। प्रसिद्ध अभिनेता कादर खान के अभिनय की बानगी जहां ‘कुणबा’ फिल्म में दिखाई दी, वहीं विजय भाटोटिया, मुस्ताक खान, उार कुमार, कविता जोशी, डॉ. उमाशंकर, फषि सिंहल व खूबराम सैनी ने अपने अभिनय से दर्शकों को बांधने की कोशिश की।

‘पडी-द ऑनर’ से बंधी उम्मीद

अप्रैल 2016 में रिलीज हुई हरियाणवी फिल्म ‘पडी-द ऑनर’ हरियाणा में ऑनर किलिंग के खिलाफ सशक्त विचारधारा की पोषक बन कर उभरी है। ‘कुसुम’, ‘कसौटी’, ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ व ‘हिटलर दीदी’ सरीखे बहुत से प्रसिद्ध धारावाहिकों का निर्देशन करने वाले राजीव भाटिया को हरियाणा में ऑनर किलिंग के समाचार कचोटते थे। आखिरकार उन्होंने तय किया कि वे इस नासूर के खिलाफ हरियाणवी पृष्ठभूमि पर आधारित फिल्म ‘पडी’ बनाएंगे। इसके लिए राजीव ने लेखन कार्य शुरू किया और पिता अशोक भाटिया, माता शकुंतला भाटिया एवं पत्नी वंदना भाटिया ने निर्माण में सहयोग देने का वादा किया तो उनका उत्साह बढ़ गया। सतत् प्रयासों व अथक मेहनत के बाद राजीव भाटिया ‘पडी-द ऑनर’ फिल्म को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार बनाने में कामयाब हो गए। खास बात है कि यह फिल्म दो नेशनल अवॉर्ड जीतने के साथ-साथ पांच अंतराष्ट्रीय पुरस्कारों से भी नवाजी जा चुकी है। ऑनर किलिंग के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाली फिल्म ‘पडी’ को ‘बेस्ट हरियाणवी फिल्म’ के पुरस्कार से राष्ट्रपति ने नवाजा है। यह भी उल्लेखनीय है कि बेहतरीन अभिनय के लिए हिसार की बलजिंद्र कौर शर्मा को ‘सर्वश्रेष्ठ सह अभिनेत्री’ एवं वंदना भाटिया को ‘सर्वश्रेष्ठ निर्मात्री’ के खिताब से नवाजा गया है। फिल्म की नायिका निधि महला को इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में ‘बेस्ट एट्रेस’ के खिताब से अलंकृत किया गया है। बॉलीवुड के प्रसिद्ध कलाकार यशपाल शर्मा ने ‘पडी’ में पुलिस अधिकारी की भूमिका निभाई है। यशपाल शर्मा कहते हैं कि हरियाणवी सिनेमा के प्रति दर्शकों का भरोसा जीतना सबसे बड़ी चुनौती है। हरियाणा सरकार भी हरियाणवी फिल्मों को प्रोत्साहित करने के लिए पॉलिसी बनाए तो सिनेमा को नई ऊर्जा मिल सकती है। चार और फिल्मों के प्रोजेक्ट पर काम कर रहे राजीव भाटिया का कहना है कि हरियाणा के फिल्मकार व कलाकार अच्छी फिल्म बनाने की क्षमता रखते हैं। सरकार प्रोत्साहित करें तो निश्चित रूप से बेहतर फिल्में बनाई जा सकती हैं।

बॉलीवुड में हरियाणा

हरियाणा केवल खेत-खलिहान व खिलाडिखयों के लिए ही प्रसिद्ध नहीं है बल्कि यहां के गबरू बॉलीवुड में भी धाक जमाए हुए हैं। प्रसिद्ध फिल्म निर्माता-निर्देशक सतीश कौशिक के नाम से भला कौन अनजान होा। सतीश कौशिक ने बहुत सी प्रसिद्ध फिल्मों से नाम कमाया है। खास बात है कि वे हरियाणा से हैं। इसी भांति निर्माता-निर्देशक सुभाष घई की जन्मभूमि भी हरियाणा ही है। हरियाणा में जन्मे व यहां की मिट्टी में पले-बढ़े ओमपुरी, सुनील दा, रणदीप हुड्डा, यश टोंक, यशपाल शर्मा, जयदीप अहलावत, राजेंद्र गुप्ता, मोहित अहलावत, कमल वर्मा व राज चौहान सहित अनगिनत कलाकारोें ने बॉलीवुड में अपने अभिनय का झंडा बुलंद किया है। इसी भांति मल्लिका शेरावत, परिणीता चोपडा, मोना मलिक व बलजिंद्र कौर शर्मा सहित बहुत सी हरियाणा की बेटियों ने भी बॉलीवुड में हरियाणा का नाम चमकाया है। हरियाणा में जन्मे सोनू निगम ने जहां गायकी में अपना अलहदा मुकाम हासिल किया है, वहीं संग्राम सिंह, रोहित कौशिक, हरविंद्र मलिक, राजीव भाटिया, दीपक भाटिया, कृष्ण मानव व संदीप शर्मा सहित अनगिनत कलाकार व निर्देशक अपनी-अपनी जगह बनाने में कामयाब हुए हैं। बॉलीवुड में हरियाणा के कलाकारों का बढ़ता प्रभाव देखकर प्रसिद्ध कलाकार यशपाल शर्मा कहते हैं कि हरियाणा में प्रतिभा की कमी नहीं है। यहां के युवाओं को र्मादर्शन व प्रोत्साहन की आवश्यकता है।

बॉलीवुड में हरियाणा के कलाकारों के बढ़ते प्रभाव का ही यह असर है कि अब बहुत सी फिल्मों में हरियाणवी परिवेश व यहां की बोली झलकने लगी है। इतना ही नहीं बहुत सी फिल्में तो पूरी तरह हरियाणवी पृष्ठभूमि पर आधारित रही हैं। चाहे ‘मटरू की बिजली का मन डोला’, ‘तनु वेड्स मनु रिटर्रन’ हो या फिर ‘एन एच 10’ फिल्म हो। सलमान खान की प्रसिद्ध फिल्म ‘सुल्तान’ में भी हरियाणवी पृष्ठभूमि व यहां की बोली का खुलकर इस्तेमाल हुआ है। आमिर खान की फिल्म ‘दंगल’ तो हरियाणा की पहलवान बेटियों को ही समर्पित है। इस फिल्म के लिए आमिर खान ने बाकायदा हरियाणवी सीखी है। इसी तरह बहुत सी फिल्मों में हरियाणवी अंदाज सहज ही मुखर हुआ है।

‘पडी-द ऑनर’ की राह पर चलते हुए हरियाणवी फिल्म ‘सतरीं’ को भी ‘बेस्ट हरियाणवी फिल्म’ के पुरस्कार से राष्ट्रपति ने नवाजा है। पारिवारिक रिश्तों को मजबूती प्रदान करने वाली फिल्म ‘सतरी’ हरियाणवी संस्कृति से ओतप्रोत है और इसमें किसी तरह का फूहड़पन नहीं है। फिल्म का निर्देशन संदीप शर्मा ने किया है और इस फिल्म की निर्माता पूनम देशवाल शर्मा हैं। संदीप शर्मा का कहना है कि हरियाणवी सिनेमा अब एक नए दौर में है। अब हरियाणवी सिनेमा कदम आगे बढ़ा रहा है और उम्मीद है कि और निर्माता-निर्देशक भी हरियाणवी फिल्म बनाने का साहस दिखाएंगे।

Tags: actorsbollywooddirectiondirectorsdramafilmfilmmakinghindi vivekhindi vivek magazinemusicphotoscreenwritingscriptvideo

राजेश चुग

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