मुगलों के सामने कभी नहीं झुकने वाले महाराणा प्रताप को शत शत नमन

महाराणा प्रताप का नाम भारत के उन वीर सपूतों में लिया जाता है जिन्होने अपने देश और धर्म के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर दिया। उस समय के बाकी राजाओं ने डर कर इस्लाम धर्म अपना लिया या फिर मुगल शासकों की गुलामी स्वीकार कर ली लेकिन महाराणा प्रताप ने कभी भी मुगलों के आगे सिर नहीं झुकाया और अंत समय तक लड़ते रहे। महाराणा प्रताप के इस बलिदान की वजह से ही आज हिन्दू धर्म जिंदा है और लोग खुद हिन्दू होने पर गर्व करते है। वीर योद्धा महाराणा प्रताप को उनकी जयंती पर हम फिर से नमन करते है। महाराणा प्रताप का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल की तृतीया तिथि को हुआ था जो अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 9 मई 1540 होता था लेकिन देश का एक बड़ा दल इस वीर पुरुष का जन्मदिन हिन्दी कैलेंडर के अनुसार मनाता है जो इस बार 13 जून 2021 को पड़ रहा है। हिन्दू पंचांग के अनुसार इस बार महाराणा प्रताप की 481वीं जयंती होगी। 
महाराणा प्रताप की वीरता हमने सुनी है उन्होने मुगल शासक अकबर को रण क्षेत्र में कड़ी टक्कर दी जिसका लोहा अकबर ने भी माना था। पूरे परिवार के साथ जंगलों में रहे और घास की रोटी तक खाई लेकिन कभी मुगलों से सामने अपना शीश नहीं छुकाया। महाराणा प्रताप और अकबर के बीच सन 1576 में युद्ध हुआ था। अकबर के पास लाखो की सेना थी तमाम हिन्दू राजा भी उसके साथ थे जो महाराणा प्रताप को हराने में अकबर की मदद कर रहे थे जबकि महाराणा प्रताप के पास बहुत ही कम सेना थी लेकिन उनके पास विश्वास और वीरता थी जिसके बल पर उन्होने अकबर को भी लोहा दे दिया। कहा जाता है कि राणा प्रताप ने युद्ध कला अपनी मां से सीखा था। 
हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप और अकबर के बीच भीषण युद्ध हुआ था। अकबर के पास करीब 85 हजार की सेना थी जबकि महाराणा प्रताप के पास मात्र 20 हजार सैनिक थे लेकिन फिर भी अकबर यह युद्ध नहीं जीत सका। अकबर लाख कोशिश के बाद कभी भी महाराणा प्रताप को अपना गुलाम नहीं बना सका। महाराणा प्रताप का घोड़ा और भाला दोनों ही मशहूर थे उनके भाले का वजन करीब 81 किलो था और छाती पर बांधने वाले कवच का वजन 72 किलो था। बताते हैं कि जब महाराणा प्रताप युद्ध के लिए निकलते थे तब उनके सभी अस्त्रों और शस्त्रों का कुल वजन करीब 208 किलो होता था। महाराणा प्रताप की तरह उनका घोड़ा चेतक भी बहुत वीर था जो युद्ध में उनका बहुत साथ देता था। चेतक की वीरता कविताओं में भी लिखी गयी है। चेतक की मौत के बाद उसकी समाधि हल्दीघाटी में बनाई गयी है जो उसकी वीरता को बयां करती है।
दिल्ली में मुगल सम्राट अकबर का शासन था वह देश के ज्यादातर राजाओं और महाराजाओं को अपने अधीन कर चुका था। अकबर पूरे देश में मुगल साम्राज्य की स्थापना कर इस्लामिक परचम लहराना चाहता था लेकिन उसके यह मंसूबे महाराणा प्रताप ने नाकाम कर दिये। मुगल शासक अकबर जब यह समझ गया कि वह महाराणा प्रताप को कभी भी नहीं जीत सकता तब उसने समझौते का प्रस्ताव भी भेजा लेकिन महाराणा प्रताप ने उसे ठुकरा दिया क्योंकि सच्चा राजपूत राजा कभी समझौता नहीं करता वह धर्म और राष्ट्र की रक्षा करता है या फिर बलिदान देता है। महाराणा प्रताप ने भी ऐसा ही किया उन्होंने कभी भी अकबर के सामने शीश नहीं झुकाया।
राजस्थान के कुंभलगढ़ में जन्में महाराणा प्रताप की वीरता की कहानी तो हमने किताबों में बहुत पढ़ी है लेकिन हम उसे अपने जीवन में नहीं उतार पा रहे है या फिर यह कहें कि समय के चक्र में हम पूरी तरह से फंस चुके है जिससे हमारा सारा समय नौकरी और परिवार के साथ ही खत्म हो जाता है और अगर कुछ समय बचता है तो वह मोबाइल और सोशल मीडिया पर चला जाता है। दरअसल 15वीं सदी और 21वीं सदी के बीच में बहुत बड़ा अंतर हो चुका है और अब दोनों के बीच में समानता देखना बड़ा मुश्किल है। 15वीं सदी में राष्ट्र और धर्म को सबसे अधिक महत्व दिया जाता था। राजा अपनी प्रजा और धर्म के लिए अपनी जान देने से भी पीछे नहीं हटते थे और हर हाल में राष्ट्र और धर्म की रक्षा करते थे जबकि वर्तमान समय में राष्ट्र को नेताओं के भरोसे छोड़ दिया गया है और धर्म को धीरे धीरे खत्म किया जा रहा है और लोग तेजी से पाश्चात्य सभ्यता की तरफ बढ़ रहे है। 

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