संकल्प शक्ति से चरैवेति-चरैवेति

स्त्री परिवार रथ का एक पहिया नहीं है अपितु रथ की सारथी है। सारथी की कुशलता, दायित्वबोध तथा सुरक्षा, दक्षता और आत्मविश्वास के आधार पर ही ‘रथी’ अपने मार्ग पर आगे बढ़ सकता है, अपने कार्य में यशस्वी होता है। यह स्त्री विषयक दृष्टिकोण वं. मौसीजी ने समाज के सम्मुख रखा।

वं. मौसीजी अर्थात् लक्ष्मीबाई केलकर, राष्ट्र सेविका समिति की संस्थापिका तथा आद्य प्रमुख संचालिका। 1936 में राष्ट्र सेविका समिति की नींव रखकर उन्होंने स्त्री जीवन को एक सशक्त दिशा दी। अपना जीवन व परिवार के साथ राष्ट्र धर्म के लिए समर्पित करने की प्रेरणा दी। वं. मौसीजी एक अभूतपूर्व व्यक्तित्व- दृढ़ संकल्प, असीम ईश्वरभक्ति के बल पर व्यक्ति कैसे बढ़ता जाता है इसका साक्षात प्रमाण। अनंत दु:ख, आघातों को झेलते-पचाते हुए वह दृढ़ता से खड़ी रहीं। उन्होंने अपने लिए एक प्रशस्त मार्ग बनाया और संगठन के शुभारंभ से अनेकों स्त्रियों के जीवन का मार्ग प्रशस्त किया। वं. मौसीजी की यह दृढ़ धारणा थी कि सामाजिक समरसता या परिवर्तन व्याख्यान, प्रवचन, आंदोलन या अभियान के विषय नहीं है, उन्हें जीवन में उतारना चाहिए। इसे उन्होंने केवल सोचा या कहा नहीं अपितु अपने जीवन का अविभाज्य अंग बनाया।

आयु के 14वें वर्ष में विवाह हुआ पर बिना दहेज के क्या समझौता करना पड़ा कमल को? वर्धा के सुप्रसिद्ध वकील श्री पुरुषोत्तमराव केलकर के पत्नीपद के साथ-साथ दो बेटियों का मातृपद भी स्वीकारना पड़ा। उन्होंने परिवार में स्थान बनाते हुए घर में आनेवाली चीनी (शक्कर), कपड़ा आदि विदेशी चीजों को बंद किया। उनके आग्रह से स्वदेशी वस्तुएं घर में आने लगीं। स्वप्रेरणा से, श्रद्धा से यह परिवर्तन हुआ, जबरदस्ती से नहीं।

उन दिनों छुआछूत की कट्टर कल्पनाओं के कारण घरेलू सहायक के नाते अन्य समाज के व्यक्ति को अपने घर में रखना समाजमान्य नहीं था परंतु, वं. मौसीजी ने अपने घर मे ऐसे घरेलू सहायक रखे। आग्रह केवल इसका रखा कि वे ईमानदार हों और स्वच्छता रखें।

वं. मौसीजी उन दिनों की पद्धति के अनुसार क्लब, महिला मंडल में जाने लगीं परंतु, उनके साथ साधारण मनोरंजन में न बहते हुऐ कुशलता से वहां अपने राष्ट्रीय कर्तव्य के प्रति बोध जगाने का संकल्प किया। समिति कार्य का ढांचा बाह्यतः: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्य जैसा दिखाई देता है। परंतु, ध्येयनीति के प्रस्तुतिकरण का विवरण अलग है। हिंदू स्त्री की मानसिकता का, उसकी प्रकृति का, स्थायी वृत्ति का चिंतन करते हुए वं. मौसीजी ने अपनी स्वयंप्रज्ञा व प्रतिभा से यथेष्ट परिवर्तन किया है।

समिति द्वारा किस प्रकार की हिंदू स्त्री का निर्माण करना है, कौन से गुण उसमें विकसित होने चाहिए, इस पर चिंतन हुआ। केवल स्त्री के निसर्गदत्त गुणों का विकास होने से काम नहीं चलेगा। स्त्री को स्वयं हिन्दूभाव की अभिमानी, सदाचारिणी, स्वधर्म श्रद्धावान, राष्ट्रभक्त बनाना जितना आवश्यक है उतना ही दूसरों को इन गुणों की प्रेरणा देने की शक्ति भी स्वयं प्राप्त करना आवश्यक है, इसका विचार हुआ। संगठन की सर्वांगीण प्रगति करने की द़ृष्टि से वं. मौसीजी का चिंतन चल रहा था। शारीरिक स्वास्थ्य, स्वसंरक्षण क्षमता, प्रतिकारशक्ति आदि की दृष्टि से शारीरिक शिक्षा पाठ्यक्रम की रचना आवश्यक थी। साथ-साथ स्त्री के शरीर की रचना में नैसर्गिक होने वाले परिवर्तन का ध्यान रखते हुए शारीरिक शिक्षा का विचार किया गया। अनेक तज्ञ डॉक्टरों से इस संबंध मे विचार-परामर्श हेतू वे मिलीं, उनके साथ चर्चा की और पाठ्यक्रम में आवश्यक परिवर्तन करने का निर्णय लिया गया। स्त्री के साहित्यिक गुणों के उचित विकास के लिए तथा समिति के विचार समाज मे पहुंचाने के लिये ‘सेविका’ वार्षिक पत्रिका, प्रथम मराठी में तथा 1953 से ‘राष्ट्र सेविका’ नाम से उसका प्रकाशन 62 वर्ष से नियमित रूप से हो रहा है। अब हिंदी और गुजराती भाषाओं में भी यह प्रकाशन हो रहा है तथा ‘सेविका प्रकाशन’ द्वारा भारत की विविध भाषाओं मे संस्कारक्षम पुस्तकें प्रकाशित की जा रहीं हैं।

स्त्री परिवार रथ का एक पहिया नहीं है अपितु रथ की सारथी है। सारथी की कुशलता, दायित्वबोध तथा सुरक्षा, दक्षता और आत्मविश्वास के आधार पर ही ‘रथी’ अपने मार्ग पर आगे बढ़ सकता है, अपने कार्य में यशस्वी होता है। यह स्त्री विषयक दृष्टिकोण उन्होंने समाज के सम्मुख रखा।

स्त्री विशेषत: भक्तिभाव प्रधान व संगीतप्रेमी होती है। यह ध्यान में रखते हुए भजन-मंडलियों की रचना वं. मौसीजी ने की। व्याख्यान प्रवचनों से अधिक परिणाम चित्र का होता है। जन-जन पर सत्संस्कार करने की दृष्टि से विविध संस्कारक्षम विषयों पर प्रदर्शनी का आयोजन 1958 से वं. मौसीजी की प्रेरणा से होना आरंभ हुआ। संस्कार प्रदान करने के अनेक माध्यम होते है। गीत, नाट्य, चित्र जैसे कला माध्यमों को वं. मौसीजी ने प्रोत्साहित किया। राष्ट्रीय-वृत्ति निर्माण करने में इनका बहुत योगदान है। विविध पर्वों के समय ध्वजस्थान के सुशोभन की प्रेरणा और संस्कार का आग्रह वं. मौसीजी रखतीं थीं। ‘तेजस्वी हिंदू राष्ट्र पुर्ननिर्माण करना’ यह लक्ष्य वं. मौसीजी ने सेविकाओं के सम्मुख रखा है। इसके लिए स्त्री जीवन का राष्ट्रजीवन के लिए विकास करना महत्वपूर्ण है। स्त्री परिवार की आधारशिला तथा राष्ट्र की प्रेरक शक्ति होती है। उसे जागृत करने से ही समाज की प्रगति निश्चित हो सकती है, यह उनकी दृढ़ भावना ही नहीं थी, वरन् यह उनका दृढ़ विश्वास था। इस द़ृष्टि से क्या-क्या करना चाहिए इसकी योजना उनके मन में निश्चित होती गई और उन्हें धीरे-धीरे प्रत्यक्ष रूप में साकार करने का प्रयास होता गया। आज वं. मौसीजी के प्रेरणा से राष्ट्र को तेजस्वी बनाने के लिए तथा समय के अनुसार समाज की आवश्यकतानुसार नये आयाम शुरु किए गये हैं। अपने समाज के दुर्बल, पीड़ित, वंचित समाज को संगठन की कड़ी में जोड़ने हेतु ‘सेवा विभाग’ का प्रारंभ हुआ। इस विभाग द्वारा सेविका बहनों में सेवा करने की द़ृष्टि से, सेवा करने का स्वभाव एवं सेवा का संस्कार जो मूलत: उनमें होता ही है, उसे सक्रिय करने का प्रयास किया गया है। साथ ही उनके मन में यह भावना भरी जाती है कि सभी हिंदू अपने समाज के ही अंग है। समाज में छूआछूत, अस्पृश्यता, ऊंच-नीच का भाव रखना पाप है। अत: सामाजिक समरसता निर्माण करने के लिए उपेक्षित, वंचित महिलाओं में जाकर सेवा कार्य प्रारंभ करना और समाज का जीवन स्तर उठाने मे अपना सहयोग देना यह हमारा कर्तव्य है। समिति के सेवा विभाग द्वारा दो प्रकार के सेवा कार्य चलाये जाते है। शाखा द्वारा चलाये जानेवाले सेवा कार्य और न्यास द्वारा चलाये जाने वाले सेवाकार्य। सेवाकार्य निम्न आयामों में चलाए जाते हैं।

1) शिक्षा – शिक्षा के अंतर्गत विद्यालय, वाचनालय, संस्कार केंद्र, कन्या छात्रावास का समावेश होता है। जिसमें आज चलने वाले संस्कार केंद्रों की संख्या लगभग 236 है।
2) स्वास्थ्य – नि:शुल्क चिकित्सा केंद्र, योग केंद्र, रुग्णोपयोगी साहित्य सेवा केंद्र, रक्तदान शिविर, स्वास्थ्य शिविर लिए जाते हैं। आज 75 योग केंद्र चल रहे हैं।
3) स्वावलंबन – महिलाओं को स्वरोज़गार मिले, इसलिये सिलाई केंद्र, स्वदेशी वस्तु भंडार, उद्योग मंदिर, स्वयं सहायता समूह, व्यावसायिक महिलाओं के स:शुल्क छात्रावास चलाए जाते हैं। आज 34 सिलाई केंद्र तथा 13 उद्योग मंदिर चल रहे हैं।
4) धार्मिक कार्य – भजन मंडल, कीर्तन, प्रवचन, पुरोहित वर्ग, दीप पूजा, स्तोत्र पठन, धार्मिक यात्राएं आदि कार्यक्रम हो रहे हैं। 163 भजन कीर्तन वर्ग तथा 69 स्तोत्र पठन वर्ग चल रहे है। इन सभी केंद्रों के द्वारा सेवा बस्तियों में संपर्क होता है, उनसे आत्मीयता, समीपता, प्रेम निर्माण होने से वे हमारे साथ समरस बनकर राष्ट्रहित का विचार प्रारंभ करते हैं। ऐसी बस्तियों में रक्षाबंधन, मकर संक्रांति के कार्यक्रम द्वारा संपर्क और स्नेह बढ़ाने का प्रयास किया जाता है। वं. मौसीजी को जब भी कोई नमस्कार करता था तो वह ‘यशस्वी भव’ यह आशीर्वाद सबको देती थी। क्योंकि यश प्रयत्नपूर्वक, स्वकष्ट से और स्वपराक्रम से प्राप्त किया जाता है। इसलिए प्रयत्नशील रहो, कार्यरत रहो, यह उनकी भावना थी। वं. मौसीजी का जन्म दिन हम सब संकल्प दिन के रुप में मनाते है, इसका उद्देश्य ही यही है कि वं. मौसीजी के आदर्शों पर युगानुकुल संकल्प लेकर हम सब श्रद्धापूर्वक दृढ़ निश्चय से निरंतर कार्यरत रहें। चरैवेती-चैरवेती यही तो मंत्र है अपना।

Leave a Reply