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समर्पित स्वयंसेवक अटल जी

समर्पित स्वयंसेवक अटल जी

by प्रा. रविन्द्र भुसारी
in अनंत अटलजी विशेषांक - अक्टूबर २०१८, व्यक्तित्व
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अटल जी चाहे बाल स्वयंसेवक हों, प्रांत प्रचारक हों, जनसंघ या भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हो या प्रधानमंत्री हों- हर रूप में उनका संघ स्वयंसेवक रूप सदा बरकरार रहा। बड़े से बड़ा पद भी उनके बीच के स्वयंसेवक को मोहित नहीं कर पाया।

भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के प्रधानमंत्री बने। वर्ष 1998 में पोखरण में अणु विस्फोट करने का साहसिक निर्णय उन्होंने लिया। यह विस्फोट याने भारत के आण्विक सामर्थ्य की गर्जना थी। अण्वास्त्र क्षमता याने देश के सामरिक सामर्थ्य की निर्णायक क्षमता थी। भारत की सामरिक क्षमता विश्व को दिखाने का यह निर्णय था। अटल जी के प्रधानमंत्रित्व काल में देश की अर्थव्यवस्था को एक नया मोड़ मिला। देश ने वैश्विक आर्थिक ताकत बनने की दिशा में मजबूती से कदम बढ़ाए थे। सत्ता के इतने बड़े पद पर पहुंचने वाले अटल जी निस्सीम स्वयंसेवक थे। उन्होंने राजनिति में अपार सफलता प्राप्त की, जनसंघ को बढ़ाया और भारतीय जनता पार्टी को सफल किया, फिर भी उनका मूल स्वयंसेवक का ही रहा।

1937 से 1943 के काल में ग्वालियर में प्रचारक के रूप में काम करने वाले नारायणराव तर्टे उन्हें संघ के संपर्क में लाए। नारायणराव जी के प्रयत्नों के कारण अटल जी अपने भाई के साथ संघ की शाखा में जाने लगे और अटल जी संघ के निष्ठावान स्वयंसेवक बने। अटल जी के व्यक्तित्व के अनेक पहलू हैं और इसलिए विभिन्न क्षेत्रों के लोगों को वे अपने लगते हैं। इसका कारण वे मूलत: स्वयंसेवक थे, ऐसा मुझे अनुभव होता है।

यह प्रसंग 70 के दशक का है। अटल जी उस समय जनसंघ के अध्यक्ष थे। मैं उस समय आठवीं कक्षा में था। अटल जी नागपुर के शिवाजी नगर में जनसंघ के नाते से मिलने घर आए थे। सायंकाल का समय था। उस समय नागपुर जनसंघ के पास जीप थी। उस जीप से वे आए थे। जीप के चालक हमारी गांधीनगर संघ शाखा में आए। प्रार्थना के बाद हम बाल-किशोर स्वयंसेवकों के पास आए एवं पूछा कि क्या आप लोगों को अटल बिहारी वाजपेयी से मिलना है? हमने ‘हां’ कहा। हममें से आठ-दस जनों को उन्होंने चुना तथा अपने साथ ले गए। घर के बाहर जीप खड़ी थी वहां हमें खड़ा कर दिया। वे स्वयं अंदर गए एवं तुरंत बाहर आए और हमसे कहा कि जीप को धक्का लगाओ। लंबी दूरी तक जाने के बाद जीप शुरू हुई। पुन: घर के बाहर लाकर चालू हालत में जीप खड़ी की और वे अंदर चले गए। जीप स्टार्ट करने की चालक की तरकीब अनोखी थी। चालक के साथ श्री अटल जी बाहर आए। अटल जी को देखकर हमें बहुत आनंद हुआ। चालक ने उन्हें बताया कि ये गांधीनगर शाखा के स्वयंसेवक हैं। प्रत्येक का नाम पूछा। बड़ा-छोटा इस प्रकार का भेद न कर जिस प्रकार संघ स्वयंसेवक सभी स्वयंसेवकों के साथ अपनत्व का व्यवहार करता है, उसी अपनत्व से अटल जी ने हमसे पूछताछ की। किशोर वय का वह अनुभव आज भी मेरे स्मरण में जैसा का तैसा है।

एक और प्रसंग मुझे याद आता है जो अटल जी की संघ से आत्मीयता को दर्शाता है। 1985 का वर्ष था। अकोला में भाजपा की आमसभा थी। उसके लिए अटल जी आए थे। संघ के अ.भा.व्यवस्था प्रमुख स्व. लक्ष्मणराव इनामदार के नाम से लक्ष्मण स्मृति यह नामकरण संघ कार्यालय का हो एवं उनके फोटो का अनावरण हो ऐसे दोनों कार्यक्रम अटल जी के करकमलों से हो ऐसी सभी स्वयंसेवकों की इच्छा थी। अकोला नगर संचालक श्री शंकरलाल जी खंडेलवाल ने डॉ.प्रमिलाताई टोपले के मार्फत वह विषय अटल जी तक पहुंचाया। व्यस्त कार्यक्रम होते हुए भी उन्होंने कहा, वकील साहब के इस कार्यक्रम के लिए हमको समय निकालना ही होगा। लक्ष्मणराव इनामदार जी को गुजरात में वकील साहब कहते थे। अटल जी ने इस कार्यक्रम के लिए तीस मिनट का समय दिया। अकोला के संघ कार्यालय का हॉल खचाखच भरा था। बाहर स्पीकर भी लगाए गए थे। वह संपूर्ण परिसर लोगों से भर गया था। स्थिति ऐसी थी कि बाहर पैर रखने को जगह नहीं बची थी। अटल जी दोपहर ठीक तीन बजे कार्यक्रम स्थल पर आए। फोटो के अनावरण के बाद वे पच्चीस मिनट मा. वकीलसाहब के बारे में बोले। वकील साहब का जन्म ऋषि-पंचमी का था, वे सही अर्थों में ऋषि थे ऐसा उद्बोधक वर्णन अटल जी ने किया। साढ़े तीन बजे वे अगले कार्यक्रम हेतु निकल गए। उस समय मैं संघ के अकोला विभाग प्रचारक के नाते इस कार्यक्रम का साक्षी था। देखा जाए तो सन 1984 के लोकसभा चुनाव में भाजपा का दारूण पराभव हुआ था। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाते अटल जी नए सिरे से पार्टी को पुन: खड़ा करने में लगे थे। फिर भी संघ का कार्यक्रम होने के कारण अपने व्यस्ततम कार्यक्रम में से समय निकालकर वे संघ कार्यालय में आए, एक निष्ठावान स्वयंसेवक की तरह।

अटल जी जब प्रधानमंत्री थे तब उड़ान के लिए तैयार विमान को रोक कर उनके विभाग संघचालक से मिलने का भी एक अनोखा प्रसंग है। सन 2004 में अटल जी के प्रधानमंत्री थे और लोकसभा चुनाव की गहमागहमी चल रही थी। अकोला में उनकी आमसभा थी। शहर में आने के बाद वे सर्वप्रथम संघचालक जी के यहां जाएंगे, वहां चाय-पान का कार्यक्रम होगा एवं उसके बाद वे सभास्थान पर जाएंगे, ऐसा कार्यक्रम था। आमसभा की भीड़ की अपेक्षा संघचालक जी के निवास स्थान पर ही अटल जी से भेंट कर लें, ऐसा विचार प्र.ग. उर्फ भैयाजी सहस्रबुध्दे ने किया। वे अकोला विभाग संघचालक थे। उनकी विशेषता याने उन्होंने ग्वालियर में संघ प्रचारक के रूप में काम किया था एवं अटल जी पर कविता एवं लेखन के संस्कार उन्होंने ही किए थे। अटल जी को भैयाजी के विषय में अपार आदर था। उस दिन अटल जी लोकसभा चुनावों की गहमागहमी में विमान से अकोला आए एवं सीधे सभा स्थल पर चले गए। संघचालक जी के यहां जाने का कार्यक्रम रद्द कर दिया गया। भैयाजी सहस्रबुध्दे उनका इंतजार कर रहे थे; परंतु भेंट नहीं हुई। अटल जी वापस जाने के लिए हवाई अड्डे की ओर निकल गए। परंतु भैयाजी को तो अपने प्यारे शिष्य से मिलना ही था। वे भी हवाई अड्डे पर गए। वहां के सुरक्षा रक्षकों ने उन्हें आगे नहीं जाने दिया। इसलिए वे विदाई देने वाले लोगों में शामिल हो गए। विमान उड़ने हेतु तैयार था। विमान में प्रवेश करने से पूर्व अटल जी ने विदाई देने आए लोगों की तरफ देख कर हाथ हिलाया। उस समय उन्हें ध्यान में आया कि भीड़ में भैयाजी सहस्रबुद्धे भी हैं। उन्होंने साथ चल रहे लोकसभा सदस्य भाउसाहेब फुंडकर से पूछा, भैयाजी दिख रहे हैं? फुंडकर द्वारा स्वीकारोक्ति दिए जाने पर अटल जी तत्काल बोले, मुझे बताया नहीं गया कि भैयाजी आने वाले हैं। अटल जी तुरंत वापस लौटे, विदाई देने आए लोगों के पास पहुंचे, भैयाजी के पास गए, और उन्हें झुक कर नमस्कार किया। देश का प्रधानमंत्री विमान रोककर अस्सी साल के संघ प्रचारक से मिलने वापस आता है, यह देख कर सभी अवाक् रह गए। अटल जी ने भैयाजी से पूछताछ की, दस मिनट तक उनके साथ बात की एवं बाद में गए। देश के सर्वोच्च सत्ता पद पर पहुंच कर भी अटल जी की संघ स्वयंसेवक एवं प्रचारकों के प्रति आत्मीयता कायम थी।

सन 2004 में अटल जी प्रधानमंत्री पद से मुक्त हुए। उसके बाद वे बहुत ज्यादा कार्यक्रमों में नहीं जाते थे। सन 2006 में प.पू.गुरूजी का जन्मशताब्दी कार्यक्रम नागपुर में आयोजित था। इस कार्यक्रम के लिए अटल जी का आना निश्चित हुआ। मैं प्रांत प्रचारक होने के कारण स्वाभाविकत: कार्यक्रम की व्यवस्थाओं से जुड़ा था। कार्यक्रम समाप्ति के बाद अटल जी भोजन करके जायें ऐसा सब का आग्रह था। यह बात विलास जी फड़णवीस ने अटल जी के सहकारियों से की। सहकारियों ने बताया कि उन्हें तुरंत वापस लौटना है। विलास जी ने कहा कि कार्यक्रम के बाद पांच-छह लोगों की व्यवस्था अलग से की गई है एवं भोजन में अटल जी की पसंददीरा पूरनपोली है। ऐसा संदेश अटल जी तक पहुंचाया गया। अटल जी पूर्व प्रधानमंत्री होने के कारण उनकी विशेष सुरक्षा व्यवस्था थी। एक बड़ी टीम उनके साथ थी। पूज्य गुरूजी के विषय में आदरभाव होने का कारण वे विशेष रूप से इस कार्यक्रम में आए थे।बाद में सब के साथ वे भोजन के लिए रुकते हैं या नहीं इस विषय में शंका थी। परंतु उन्होंने भोजन के लिए हामी भरी। कार्यक्रम समाप्ति के बाद स्मृति भवन के स्वागत कक्ष में विशेष व्यवस्था की गई। अटल जी ने सबके साथ भोजन किया एवं पूरनपोली की तारीफ की। सभी को बहुत आनंद हुआ।

अटल जी जब सत्तर के दशक में बाल स्वयंसेवक एवं 2006 में प्रांत प्रचारक थे तब उनके स्वयंसेवक भाव का मुझे अनुभव हुआ। जनसंघ के अध्यक्ष रहते हुए, राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में भाजपा को खड़ा करते समय एवं प्रधानमंत्री का पद संभालने के बाद भी अटल जी में संघ के प्रति आत्मीय भाव था। वे अंत तक स्वयंसेवक ही रहे।

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