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सभी संप्रदायों में परस्पर प्रेम और सौहार्द्र

सभी संप्रदायों में परस्पर प्रेम और सौहार्द्र

by कृष्ण्मोहन झा
in विशेष, संघ
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहनजी  भागवत  ने हाल में ही गाज़ियाबाद में आयोजित मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के एक समारोह में जो व्याख्यान दिया उसकी देश भर में बहुत चर्चा हो रही है। सरसंघचालक ने इस कार्यक्रम  में मुख्य अतिथि की आसंदी से अपने संबोधन में कहा था कि भारत में रहने वाले सभी लोगों का डीएनए 40 हजार साल पूर्व से  एक ही है और  हम समान पूर्वजों के वंशज हैं । इसके साथ ही  मोहनजी भागवत ने यह भी कहा था कि आज  हिंदू मुस्लिम एकता की बात की जाती है परन्तु यह सवाल तो तब उठता है जब कि दोनों अलग अलग हों। केवल पूजा पद्धति अलग अलग अलग होने से उनमें भेद करना ग़लत है ।  भागवत ने इस कार्यक्रम में अपने संबोधन में लिंचिंग  को भी ग़लत ठहराया था। भागवतजी  ने उक्त कार्यक्रम में जो सारगर्भित विचार व्यक्त किए उसके लिए वे  निःसंदेह साधुवाद पाने के  हकदार हैं परन्तु आश्चर्य की बात तो यह है कि  भागवतजी  के धीर गंभीर संबोधन में भी छिद्रान्वेषण का सिलसिला शुरू हो गया है। अनेक विपक्षी राजनीतिक दलों के नेता भागवतजी  के इस संबोधन को उत्तर प्रदेश विधानसभा के आगामी चुनावों में भाजपा की जीत की संभावनाओं को बलवती बनाने के लिए सोची समझी रणनीति के रूप में देख रहे हैं लेकिन उन विपक्षी नेताओं को शायद यह स्मरण नहीं है कि  भागवतजी  ने गाज़ियाबाद के कार्यक्रम में जो बातें  कही हैं उनमें ऐसा कुछ भी नहीं है जो उन्होंने पहली बार कहा हो भागवत के उक्त संबोधन को उत्तर प्रदेश विधानसभा के आगामी चुनावों से जोड़ कर देखना भी उचित नहीं होगा। यहां यह भी विशेष उल्लेखनीय है कि उन्होंने 2015 में संपन्न विधानसभा चुनावों के दौरान आरक्षण को लेकर एक ऐसा बयान दिया था जिसके कारण भाजपा को असहज स्थिति का सामना करने के लिए विवश होना पड़ा था । इसलिए मैं  भागवतजी  के ताजे बयान को भी राजनीतिक नफा-नुकसान की दृष्टि से  देखने का पक्षधर नहीं हूं।  स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक पद की बागडोर संभालने के बाद से ही भागवतजी  पूरी बेबाकी से ज्वलंत मुद्दों पर अपनी  राय देते रहे हैं और  एक बार वे जो कुछ कह देते हैं उस पर  हमेशा अडिग रहते हैं। उनके बयानों को लेकर उन पर निशाना साधने वाले नेताओं पर पलटवार करते हुए भी उन्हें कभी नहीं सुना गया है।
            संघ प्रमुख को संभवतः इस बात का पहले से ही आभास  हो चुका था कि उनके इस संबोधन पर कुछ विपक्षी दलों के नेता टीका टिप्पणी करने में कोई संकोच नहीं करेंगे इसलिए उन्होंने  अपने इस संबोधन में यह भी स्पष्ट कर दिया था कि उनका यह संबोधन इमेज मेकओवर की एक्सरसाइज नहीं है , न ही यह अगले चुनावों में मुसलमानों के वोट पाने का प्रयास है क्योंकि  उस राजनीति का हिस्सा बनने में संघ की कोई रुचि नहीं है।संघ का संकल्प पवित्र है इसलिए संघ इमेज की परवाह नहीं करता। संघ का काम लोगों को जोड़ना है और संघ अपने संकल्प की पूर्ति में समर्पित भाव से जुटा हुआ है। भागवतजी  का यह संबोधन उनकी साफगोई को प्रमाणित कर रहा था इसीलिए उन्होंने मुस्लिम राष्ट्रीय मंच  के इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि की आसंदी से जो कुछ भी कहा उसमें कहीं कोई लाग-लपेट का लहजा नहीं था। दो टूक लहजे में उन्होंने सभी ज्वलंत मुद्दों पर अपने विचार बेबाकी से सबके सामने रखे। संघ प्रमुख को आलोचनाओं से परहेज़ नहीं रहा परंतु वे अपने आलोचकों से यह अपेक्षा अवश्य रखते हैं कि संघ को समझने के लिए उन्हें संघ के निकट आना होगा तभी वे संघ के विचारों और उसकी कार्यप्रणाली को भली भांति समझ पाएंगे। भागवतजी  यह बात बार बार कहते रहे हैं । इसलिए संघ अपने महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में देश की उन दिग्गज विभूतियों को भी आमंत्रित करता रहा है जिनका अतीत में  संघ परिवार से कभी नाता नहीं रहा। मैं तो यह मानता हूं कि भागवतजी  के संबोधनों में छिद्रान्वेषण करने के बजाय उस पर  गंभीरता से चिंतन और सार्थक विमर्श किए जाने की आवश्यकता है ।
                 सरसंघचालक जी  ने गाज़ियाबाद के जिस कार्यक्रम में अपने उक्त विचार व्यक्त किए उसका आयोजन चूंकि मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के तत्वावधान में किया गया था इसलिए उन्होंने अपने  संबोधन में उन मुद्दों पर अपने विचारों को और साफगोई के साथ प्रस्तुत किया जिनके बारे में संघ की विचारधारा को लेकर जब तब  उंगलियां उठाई जाती हैं परंतु संघ प्रमुख ने दो टूक लहजे में यह कहने में भी कोई संकोच नहीं किया कि उनका संबोधन इमेज मेकओवर की एक्सरसाइज नहीं है और संघ इमेज की परवाह भी नहीं करता क्योंकि उसका संकल्प पवित्र है। जो भी राष्ट्रहित की बात करता है संघ उसके साथ है। संघ प्रमुख ने यह भी कहा कि राजनीति के माध्यम से जोड़ने का काम नहीं किया जा सकता। राजनीति इस काम को बिगाड़ने का औजार अवश्य बन सकती है । संघ प्रमुख के इस कथन में दरअसल उन राजनीतिक दलों के लिए भी एक संदेश छुपा हुआ है जो अपने राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिए नफरत की राजनीति करने से भी परहेज़ नहीं करते।
             संघ प्रमुख ने अपने संबोधन में लिंचिंग के मुद्दे का जिक्र करते हुए कहा कि गौमाता हम सबके लिए पूज्य है परंतु जो लोग लिंचिंग  जैसी वारदातों को अंजाम देते हैं वे आतताई हैं उनके विरुद्ध कानून सम्मत कार्रवाई होना चाहिए। संघ ऐसे तत्वों का पक्षधर  नहीं  है । मोहन भागवत ने अपने इस बहुचर्चित संबोधन में  इस बात पर विशेष जोर  दिया कि हिंदू अगर यह कहे कि मुसलमानों को इस देश से चला जाना चाहिए वह हिन्दू हिन्दू नहीं है । हम सब के पूर्वज समान हैं। यहां किसी को भी   हिंदू वर्चस्व अथवा मुस्लिम वर्चस्व की नहीं अपितु  भारत वर्चस्व की बात करना चाहिए।  यह विचार धारा संघ के संस्थापक डॉ हेडगेवार के समय से चली आ रही है । संघ प्रमुख ने कहा कि किसी के मन में डर पैदा करके उसे अपना नहीं बनाया जा सकता। यह काम केवल प्रेम के जरिए ही ‌‌‌‌‌‌हो‌ सकता है।
       गाजियाबाद में एक पुस्तक के विमोचन समारोह में संघ
प्रमुख ने अपने संबोधन में जो उदगार व्यक्त किए उनमें ऐसी कोई बात नहीं थी कि उसे संघ की विचारधारा में परिवर्तन के रूप में परिभाषित किया जाए। संघ प्रमुख ने लगभग तीन साल पहले नई दिल्ली में संघ द्वारा आयोजित भविष्य का भारत कार्यक्रम में भी इसी आशय के विचार व्यक्त किए थे । उस त्रिदिवसीय कार्यक्रम में संघ प्रमुख ने हिंदुत्व की विस्तार से व्याख्या करते हुए कहा था कि महात्मा गांधी  हिंदुत्व को सत्य की अनवरत खोज की प्रक्रिया मानते थे। मोहन भागवत ने विभिन्न अवसरों पर और विभिन्न मंचों से दिए गए अपने व्याख्यानों में   हमेशा ही सामाजिक समरसता , सौहार्द्र, सहिष्णुता और सद्भाव पर ही जोर दिया है। गाजियाबाद में भी उन्होंने अपने विचारों को और विस्तार के साथ प्रस्तुत किया। संघ प्रमुख अपने उक्त संबोधन के लिए निःसंदेह साधुवाद के हकदार हैं।
(लेखक IFWJ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और डिज़ियाना मीडिया समूह के सलाहकार है)

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Tags: mohanbhagvatrashtriyarsssanghभगवाध्वजभारतीय इतिहासहिंदुधर्महिंदुराष्ट्र

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