स्वामी रामदेव, आंशिक रूप से एलोपैथिक उपचार और दवाओं के ख़िलाफ़ आलोचनात्मक रहे हैं लेकिन, यह समझना होगा कि उसका कारण सिर्फ एलोपैथिक लॉबी द्वारा आयुर्वेद और योग की उपचारात्मक पद्धतियों की उपेक्षा करना रहा है। आज के समय में दोनों को एक दूसरे का पूरक मानते हुए साथ में उपचार का एक समग्र तरीका विकसित करने से भारतीय उपचार पद्धतियां और लाभकारी व ताकतवर हो सकती हैं।
आयुर्वेद प्राकृतिक विज्ञान पर आधारित है। आयुर्वेदिक दवाइयों में प्राकृतिक जड़ी-बूटियों, अर्क और पौधों का उपयोग होता है॥ एलोपैथी की तुलना में आयुर्वेद के लाभों में सबसे महत्वपूर्ण यह है कि जिन जड़ी-बूटियों और पौधों का आयुर्वेद में उपयोग किया जाता है, उनके दुष्प्रभाव नहीं होते हैं। एलोपैथिक दवाइयां प्रयोगशालाओं में बनाई जाती हैं और हर एलोपैथिक दवा के साईड इफेक्ट होते हैं जो हल्के से लेकर गंभीर तक हो सकते हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सा में, ऐसा नहीं है क्योंकि सभी उपचार प्राकृतिक अवयवों से बने होते हैं जो आपके स्वास्थ्य पर विनाशकारी प्रभाव नहीं डालते हैं। आयुर्वेद प्राकृतिक उपचार प्रक्रिया में विश्वास करता है और धीमी गति से काम करता है, लेकिन, बीमारियों को जड़ से ख़त्म करने में मदद करता है। आयुर्वेद न केवल रोगसूचक राहत का लक्ष्य रखता है बल्कि व्यक्ति के पूरे शरीर को अच्छे स्वास्थ्य के साथ संरेखित करने में भी मदद करता है। आयुर्वेद मानता है कि किसी व्यक्ति का वातावरण, आदतें, भावनाएं और सोचने के तरीके उसे स्वस्थ रखने के लिए महत्वपूर्ण हैं। यह प्राचीन समग्र विज्ञान एक व्यक्ति को उसके भोजन, नींद और जीवन जीने की शैली को प्रकृति की लय के साथ समायोजित करने में मदद करता है। आयुर्वेदिक औषधियां प्राकृतिक है। इनकी प्राकृतिक संरचना शरीर में रोगों के विकास को रोकती हैं तथा शरीर में दोष के स्तर को नियंत्रण में रखने में मदद करती हैं। स्वामी रामदेव ने भारत को विश्व की आध्यात्मिक और आर्थिक महाशक्ति के रूप में आगे लाने के लिए योग और आयुर्वेद को उच्च स्तर पर बढ़ावा दिया। स्वामी रामदेव ने भारत के आम जन के लिए प्राणायाम के रहस्य की खोज की। लोगों ने प्राणायाम के द्वारा वास्तविक विज्ञान का अनुभव किया। स्वामी रामदेव का उद्देश्य योग और आयुर्वेद का प्रचार करना, भारत को सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक स्तर पर सुधारना था। उन्होंने पतंजलि योग को घर-घर तक पहुंचाया। उन्होंने योग को हर इंसान के लिए दैनिक अभ्यास और जीवन शैली के रूप में विकसित भी किया। योग की उनकी शिक्षाओं में आठ प्राणायाम व कुछ व्यायाम शामिल हैं, उन्होंने विभिन्न बीमारियों के लिए आयुर्वेदिक दवाओं के साथ कुछ विशिष्ट आसन संयुक्त करके कई असाध्य रोगों के उपचार का प्राकृतिक उपचार का तरीका विकसित किया। दूसरी ओर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन आधुनिक वैज्ञानिक चिकित्सा प्रणाली के डॉक्टरों का स्वैच्छिक संगठन है, जो डॉक्टरों के हित के साथ-साथ डॉक्टर समुदाय की अधिकारों की रक्षा भी देखता है। एसोसिएशन की शुरुआत 1928 में कलकत्ता में हुई थी और इसका प्रधान कार्यालय नई दिल्ली में है। भारतीय चिकित्सा संघ की स्थापना के मुख्य उद्देश्य चिकित्सा और संबद्ध विज्ञान की सभी विभिन्न शाखाओं में प्रचार और उन्नति के प्रयास करना, भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा में सुधार के साथ-साथ चिकित्सा पेशे के सम्मान तथा उनके अधिकारों की रक्षा करना है। स्वामी रामदेव और आईएमए के बीच हालिया विवाद ने उपचार के दो तरीकों के बीच सदियों पुरानी बहस को फिर से जन्म दिया है। आयुर्वेदिक गुट, एलोपैथी का मुख्य रूप से विरोध करता है क्योंकि दवाओं की खुराक के दुष्प्रभाव रोगियों पर होते हैं। जबकि एलोपैथिक डॉक्टरों ने आयुर्वेद के ईलाज़ के तरीके को झोलाछाप बताते हुए वैज्ञानिक प्रमाणों के अभाव का आरोप लगाते हुए खारिज़ कर दिया है। पिछले दिनों जब स्वामी रामदेव ने एलोपैथी विधा को लोगों का शोषण करने वाली खोखली विधा बताते हुए इस पर टिपण्णी की तब इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने उनकी टिप्पणी पर कड़ी आपत्ति जताते हुए और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा स्वामी रामदेव की टिप्पणी पर संज्ञान नहीं लेने पर अदालत जाने की धमकी देते हुए मैदान में छलांग लगा दी।
स्वामी रामदेव ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन को संबोधित अपने पत्र में कहा कि एलोपैथी के डॉक्टरों ने भी आयुर्वेद और योग को ’विज्ञान’ क़रार देकर आहत किया है और यह भी करोड़ों लोगों की भावनाओं को आहत करता है। स्वामी रामदेव और आईएमए के बीच टकराव ने अनिवार्य रूप से एक बहस को जन्म दिया है। एलोपैथी और आयुर्वेद के बीच का संघर्ष सदियों पुराना है। यह व्यापक रूप से माना जाता है कि भारत में आधुनिक चिकित्सा का उपयोग 16वीं शताब्दी में शुरू हुआ था। उस समय और उससे पहले, शायद ही योग्य चिकित्सक थे और रोगियों का ईलाज़ सदियों पुरानी आयुर्वेदिक विधियों से किया जाता था। आयुर्वेद और योग को नीम हक़ीम के रूप में बदनाम करना अनुचित है, यह देखते हुए कि सदियों से इन तरीकों का इस्तेमाल हमारे पूर्वजों द्वारा रोगग्रस्त लोगों के ईलाज़ और लोगों को लंबा जीवन जीने में मदद करने के लिए किया जाता था। वास्तव में, वही आयुर्वेद और योग, जो भारत में एलोपैथिक डॉक्टरों द्वारा तिरस्कृत हैं, अब पश्चिमी देशों में सम्मान प्राप्त कर रहे हैं। भारत में जहां आयुर्वेद का उपहास किया जाता है, वहीं पश्चिमी दवा कंपनियां मरीजों के ईलाज़ के लिए इसके तरीकों और दवाओं का पेटेंट कराने की तैयारी कर रही हैं। आज जब कि भारत कोरोनावायरस के प्रकोप से जूझ रहा है, आयुर्वेद और एलोपैथी चिकित्सकों और समर्थकों दोनों को यह महसूस करने की आवश्यकता है कि दोनों उपचार एक साथ हो सकते हैं, बिना दूसरे को बदनाम किए। आयुर्वेद और एलोपैथी दोनों में अनूठी विशेषताएं हैं जो एक को दूसरे से अलग करती हैं। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि एक उपचार की दूसरे पर सर्वोच्चता पर बहस होनी चाहिए। उनमें से प्रत्येक रोगियों के ईलाज़ में फ़ायदेमंद साबित हुआ है और इसलिए वे दोनों अपने आप में अस्तित्व के लायक हैं।
ऐसे समय में जब एलोपैथिक डॉक्टर उजतखऊ-19 से जूझ रहे हैं हैं, आयुर्वेदिक उपचार के प्रति उदारता का भाव उन्हें इस महामारी से और सक्षम तरीके से निपटने मदद करेगा करेगा और देश को महामारी से अधिक प्रभावी ढंग से लड़ने में मदद करेगा।
स्वामी रामदेव, आंशिक रूप से एलोपैथिक उपचार और दवाओं के ख़िलाफ़ आलोचनात्मक रहे हैं लेकिन, यह समझना होगा कि उसका कारण सिर्फ एलोपैथिक लॉबी द्वारा आयुर्वेद और योग की उपचारात्मक पद्धतियों की उपेक्षा करना रहा है। आज के समय में दोनों को एक दूसरे का पूरक मानते हुए साथ में उपचार का एक समग्र तरीका विकसित करने से भारतीय उपचार पद्धतियां और लाभकारी व ताकतवर हो सकती हैं।आयुर्वेद हमें स्वस्थ जीवन का मार्ग सिखाता है। यह बीमारी के मूल कारण का ईलाज़ करता है और इसे ठीक करता है। आपातकालीन स्थितियों में एलोपैथी दवाएं मददगार होती हैं। एलोपैथी दवा से रोग के लक्षणों का ईलाज़ करती है। दूसरी ओर, आयुर्वेद एक समग्र स्वास्थ्य है। आयुर्वेद कहता है कि स्वस्थ रहने के लिए व्यक्ति के मन, शरीर और भावनाओं का संतुलित होना आवश्यक है। आयुर्वेद के अनुसार एक सक्रिय जीवन शैली, एक तनाव मुक्त दिमाग, अच्छी नींद, नियमित ताज़ा और स्वस्थ भोजन अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हैं। एलोपैथी पर आयुर्वेद के फायदों में से एक यह है कि एलोपैथिक दवा की तुलना में आयुर्वेदिक निदान ज्यादा सटीक है।
एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति में रोग को पहचानने व निदान हेतु कई प्रकार के परीक्षणों की आवश्यकता होती है जिसमे समय व धन दोनों की ही भरपूर आवश्यकता होती है जो रोगी को शारीरिक व मानसिक रूप से समय के साथ तोड़ता जाता है। आयुर्वेद पूरी तरह से अलग दृष्टिकोण अपनाता है और किसी भी रोग की जांच के लिए आपके दोषों को देखता है। जब आपका शरीर में कोई दोष असंतुलित होगा, तो बीमारियां होंगी। दोषों के असंतुलन के आधार पर रोग की स्थिति छोटी या बड़ी हो सकती है। एलोपैथिक दवा की तुलना में आयुर्वेद सटीक निदान करता है और सस्ता है। आयुर्वेद का उद्देश्य समस्या होने पर समाधान प्रदान करने तक ही सीमित नहीं है। आयुर्वेद उत्तम स्वास्थ्य के लिए उपचार प्रदान करने तथा रोगों से बचने की व स्वस्थ रहने के तरीके बताता है। आयुर्वेद इस सिद्धांत पर आधारित है कि रोकथाम ईलाज़ से बेहतर है। यह एलोपैथिक दवा के विपरीत है जो लक्षणों को कम करने और उनका इलाज़ करने पर केंद्रित है। यह वह जगह है जहां आयुर्वेद एक स्पष्ट विजेता है।