
सुखेत मॉडल को अपनाकर गंदगी और प्रदूषण मुक्त हो रहा मछदी गांव :
कृषि विज्ञान केंद्र सुखेत से संबद्ध इस यूनिट के शुरू हो जाने से गांव में गंदगी व प्रदूषण कम हो रहा है। कचरे से कंचन योजना की शुरुआत के लिए मछदी गांव को चिन्हित कर तीन कट्टा जमीन को किसान से लीज पर लिया गया। उसके बाद यहां के किसानों को प्रेरित कर गोबर इस यूनिट को देने को कहा गया। शुरुआत में कुछ कम किसान ही इस यूनिट से जुड़े। वर्तमान में 44 किसान इस योजना से जुड़े हैं। सभी को 60 दिन तक केवल 20 किलो गोबर व कचरा देना होता है। इसके बदले में इन्हें 60 दिन के बाद गैस सिलेंडर दी गई है। 12 सौ किलो पूरा होने के बाद सिलेंडर उपलब्ध करा दिया जाता है।

अब मछदी गांव में नहीं रहता है कचरा :
रेखा देवी, रानी देवी, लालू देवी, मुन्नी देवी, ललिता देवी, सिंदुर देवी आदि ने कहा कि इस योजना की शुरुआत से पहले गांव की स्थिति कचरे व गोबर से पटा रहता था। पहले गोबर को सड़कों पर ही फेंक दिया जाता है। कचरे का अंबार इस गांव में लगा रहता था। लेकिन, इस योजना की शुरुआत के बाद अब गांव की सड़कों पर अब कचरा नहीं रहता है और न ही गोबर का ढेर दिखता है।
एक सौ किसानों को जोड़ने का लक्ष्य :
सुखेत मॉडल पर दो यूनिट लगाये गये हैं। इसमें 14-14 पक्का वर्मी बेड लगाया गया है, जिससे गोबर व कचरा को दिलाकर वर्मी कंपोस्ट बनाया जाता है। इसकी कीमत एक क्विंटल की 600 होती है। कृषि विज्ञान केंद्र के वरीय शोधकर्ता आशुतोष यादव ने कहा कि 100 किसान को जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है। अभी 44 महिला किसानों को इसमें जोड़ा गया है। कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक इसे देखते रहते हैं। योजना की सफलता के बाद डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय इसकी शुरुआत पटना के मोकामा और सुपौल में करने जा रहा है। मोकामा प्रखंड के औटा गांव में इस तकनीक को आगे बढ़ाने के लिए मोकामा घाट ट्रस्ट को जिम्मेदारी दी गई है। वहां पांच दर्जन से अधिक परिवार जुड़ गए हैं।