पंडित गोविंद बल्लभ पंत की राष्ट्र सेवा और जनसेवा की कहानी किसी से अनसुनी नहीं होगी उन्होंने पूरा जीवन देश के लिए बलिदान किया और खासकर जब भारत पाकिस्तान का विभाजन हुआ था। पंडित पंत ने पाकिस्तान से आये लोगों को भारत में बसाने में अहम भूमिका निभाई थी। पंडित गोविंद बल्लभ पंत का जन्म उत्तर प्रदेश के अल्मोड़ा (अब उत्तराखंड) जिले में 10 सितंबर को हुआ था वह राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री भी बने और देश के चौथे गृहमंत्री। हिन्दी को आगे बढ़ाने में भी पंत जी का बहुत ही बड़ा योगदान रहा है और उन्होंने हिन्दी को राजभाषा बनाने का भी बहुत प्रयास किया।
पंडित गोविंद बल्लभ जी ने अपनी मेहनत से उच्च शिक्षा प्राप्त की जिससे वह ब्रिटिश शासन को टक्कर देते थे। वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कोर्ट में वकालत शुरू कर दी और ऐसा कहा जाता है कि वह सिर्फ निर्दोष लोगों की लड़ाई लड़ते थे उन्होंने कभी किसी गुनहगार को नहीं बचाया। काकोरी कांड का मुकदमा उन्होंने ही लड़ा था जिससे उन्हें एक अलग पहचान मिली थी।
महात्मा गांधी भी देश की स्वतंत्रता में तेजी से आगे बढ़ रहे थे और गोविंद बल्लभ पंत भी उनसे बहुत प्रभावित थे उन्होंने गांधी जी के दिखाए रास्ते को अपनाया और देश की आजादी में बढ़चढ़ कर योगदान दिया। पंत जी एक अच्छे विचारक, मनीषी और समाजसुधारक थे जिसका फायदा उन्होंने समाज को भी पहुंचाया। समाज से ऊपर उठते हुए उन्होंने राजनीति में भी कदम रखा और देश के गृहमंत्री तक का सफर तय किया लेकिन वह आजकल के राजनेताओं से बिल्कुल अलग थे वह अपने ऊपर एक भी सरकारी पैसा नहीं खर्च करते थे। 1946 में वह पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और 1955 को देश के चौथे केंद्रीय गृह मंत्री बने। बल्लभ पंत के योगदान के लिए उन्हें भारत के सबसे सर्वोच्च पुरस्कार ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया। 26 जनवरी 1957 को गणतंत्रता दिवस के मौके पर पंडित जी को भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पंत जी कई बार जेल में गये थे लेकिन 1932 में जब वह बरेली व देहरादून की जेल में थे तब उनकी मुलाकात पंडित जवाहर लाल नेहरू से हुई इस दौरान दोनों लोगों की दोस्ती हो गयी और नेहरू इनसे बहुत प्रभावित हुए शायद इसलिए ही जब नेहरू ने सरकार बनायी तो पंडित बल्लभ पंत को याद किया और उन्हें अहम पद दिया।
गोविंद बल्लभ पंत के बेटे और पत्नी की मौत बहुत की कम समय में हो गयी जिसके बाद से वह काफी उदास रहने लगे और अपना ज्यादातर समय समाज और लोगों के बीच बिताने लगे। पंत की चिंता करते हुए परिवार वालों ने उनकी दूसरी शादी करवा दी लेकिन वह भी बहुत लम्बी नहीं चली और दूसरी पत्नी का भी निधन हो गया जिसके बाद उन्होंने करीब 30 की उम्र में तीसरी शादी की