20 – 20 ओवर का एक क्रिकेट मैच अगर देश की विजय और पराजय का पर्याय बन जाए, इसमें राजनीति मजहब,विचारधारा सब कुछ शामिल हो जाए तो मान लीजिए हम खतरनाक दौड़ में हैं। टी20 को तो क्रिकेट के गंभीर जानकार क्रिकेट भी नहीं मानते। हालांकि यह अलग बहस का विषय है। पाकिस्तान की जीत और भारत की हार के बाद जो दृश्य बना हुआ है निश्चित रूप से वह भयभीत करता है। किसी भी टीम की जीत पर उसको बधाई देना, तालियां बजाना सभ्य मानवीय व्यवहार की श्रेणी में आएगा। पाकिस्तान की विजय के बाद जश्न मनाने का समर्थन करने वाले यही तर्क दे रहे हैं कि खेल को खेल भावना से लिया जाना चाहिए। बिल्कुल सही। खेल खेल है और जो टीम जीता उसे शाबासी मिलनी चाहिए। यह कोई युद्ध थोड़े है कि हम दूसरे देश की जीत पर दुख प्रकट करने लगे। क्या टी 20 विश्व कप में भारत के विरुद्ध पाकिस्तान की विजय पर मनाने वाले जश्न की तस्वीरें खेल भावना से दी गई शाबाशी के ही द्योतक हैं? हम सच नहीं देखना चाहते तो अलग बात है अन्यथा सब कुछ सामने है। एक भी तस्वीर इसमें खेल भावना से शाबाशी देने वाली नहीं है। खेल भावना से किसी की विजय पर शाबाशी देने में पटाखे नहीं तोड़े जाते ,पाकिस्तान जिंदाबाद के उन्मादित नारे नहीं लगते ,टेबल पर चढ़कर रूमाल उछाल कर कूदा नहीं जाता…। तो फिर इसे क्या माना जाए?
हमारे देश की समस्या है कि बहुत कुछ देखते हुए भी हम आंखें मूंदे रहते हैं या सच बोलने से बचते हैं। किसी गलत प्रवृत्ति पर चुप रहने या उसका विरोध नहीं करने से धीरे-धीरे वह भयानक समस्या में परिणत हो जाती है और तब उसे संभालना ज्यादा करना कठिन हो जाता है। सच यही है कि जिन क्षेत्रों में पाकिस्तान की जीत के जश्न मनाए गए उनमें भारत की जीत के बाद शायद ही कभी ऐसे दृश्य दिखे हों। आप में से किसी ने देखा हो तो निश्चित रूप से सामने लाएं। अगर यह खेल भावना का समर्थन है तो भारत इसके पहले कई टीमों से हारा है लेकिन तब तो कभी एहसास जश्न नहीं मनाया गया। बांग्लादेश से ही भारत हारा है जो यह मुस्लिम बहुल देश है। तब ऐसा जश्न क्यों नहीं मनाया गया? वास्तव में पाकिस्तान की विजय पर मना रहे जश्न के वीडियो में साफ तौर पर एक उन्माद दिखाई देता है। सोशल मीडिया पर भी यह उन्माद साफ दिखाई देता है। उन्माद किस चीज का हो सकता है इसका विश्लेषण आप करिए। कश्मीर में पाकिस्तान समर्थक हैं यह कोई छिपा रहस्य नहीं है। धारा 370 हटाने तथा उसके पूर्व और बाद में की गई सुरक्षा व्यवस्था से वे तत्काल पस्त हुए हैं पर खत्म नहीं हुए। वे निराश हैं कि न पाकिस्तान कश्मीर में पहले की तरह दखल दे पा रहा और न उन्हें खुलकर भारत विरोधी गतिविधियों में भाग लेने का अवसर मिल रहा है। इसमें उन्हें पाकिस्तान की भारत को पराजित कर देने जैसा संतोष मिल रहा है तो उनकी बुद्धि पर तरस ही आनी चाहिए।
इस पर विचार करने के पहले पाकिस्तान के गृह मंत्री शेख रशीद की प्रतिक्रिया को जरूर याद रखिए। उन्होंने इस विजय को पाकिस्तान ही नहीं संपूर्ण दुनिया और भारत के मुस्लिम कौम की भी जीत घोषित कर दिया है। उन्होंने कहा है कि हमारे लिए यही फाइनल था। वे समूची मुस्लिम कौम को बधाई दे रहे हैं और भारत के मुसलमानों का नाम लेकर अलग से। क्या इसका मतलब बताने की आवश्यकता है? एक पाकिस्तानी कॉमेंटेटर कुकुर की हार बता रहा है। पाकिस्तान का गृह मंत्री टी 20 जैसे सामान्य क्रिकेट के खेल को अगर मजहबी रूप देता है और इसकी जीत हार को मजहब की जीत हार बना देता है तो फिर इसका असर होना है। पाकिस्तान के साथ दुनिया और भारत में भी उसे इस रूप में लेने वाले लोग हैं। जब उन्मादी आतंकवाद के लिए मजहब के नाम पर जान न्यौछावर करने के लक्ष्य से सैकड़ों, हजारों आतंकवादी बनने को तैयार हो जाते हैं तो फिर यह मानने का कोई कारण नहीं है कि शेख राशिद की तरह इसे मजहब की या कौम की जीत हार मानने वाले भी होंगे। ये हर जगह होंगे। भारत इससे अछूता नहीं हो सकता। भारत-पाकिस्तान के क्रिकेट मैच में हमारे देश में भी अलग किस्म की भावना रही है। यह गलत है लेकिन कहीं इसमें मजहब या कौम की जीत हार की ऐसी घृणित भावना नहीं रही है। पाकिस्तान के विरुद्धआक्रामक राष्ट्रवाद का भाव रहता है और उससे क्रिकेट भी अछूता नहीं रहा।
हालांकि विवेकशील लोग हमेशा ऐसी भावनाओं पर काबू रखने तथा खेल को खेल की भावना से लेने की वकालत करते रहे हैं और भारत में ऐसा व्यवहार करने वालों की संख्या बहुत ज्यादा है। पाकिस्तान की स्थिति इसके उलट है। अंदरूनी राजनीति में इमरान खान और और उनकी सरकार के लोग कई कारणों से इस समय परेशान हैं। यहां तक कि जिस सेना ने उन्हें प्रधानमंत्री पद पर बिठाया उसकी भी उनसे नाराजगी की बात सामने आ रही है। पाकिस्तान को लेकर ऐसी कोई घटना नहीं हो रही जिसे इमरान सरकार अपनी उपलब्धि के तौर पर बता कर लोगों की विरोधी भावनाओं को कमजोर करने की कोशिश करे। उसमें क्रिकेट में भारत पर पाकिस्तान की विजय उनके लिए शायद एक बड़ा अवसर बन गया है। शेख राशिद वैसे भी बड़बोले नेता है पर उन्हें इमरान ने गृह मंत्री बनाया है तो जाहिर है उनके इस गुण को सही माना है। इमरान या दूसरे नेता क्रिकेट को मुसलमान कौम की विजय नहीं मानते तो निश्चित रूप से वे इसका खंडन करते। जाहिर है, यह समूची पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान की सोच है जिसे शेख राशिद ने अभिव्यक्त किया है। पहले इंग्लैंड और बाद में न्यूजीलैंड ने सुरक्षा का हवाला देते हुए जब पाकिस्तान के साथ खेलने से इनकार कर दिया और निर्धारित श्रृंखलाएं रद्द हो गई तब भी शेख राशिद और पाकिस्तान के बड़े-बड़े नेता क्रिकेटर सब इसके लिए भारत को जिम्मेदार ठहराने लगे थे।
इमरान सरकार के लिए अपमानजनक स्थिति थी और देखा जाए तो यह राष्ट्र के लिए भी अपमान की बात थी। विरोधियों ने इसे बड़ा मुद्दा बना दिया। इमरान निश्चित रूप से चाहते होंगे कि देश इन घटनाओं को भूल जाए। इसलिए इमरान सरकार ने योजनाबद्ध तरीके से क्रिकेट विजय को को मजहबी और भारत राष्ट्र पर विजय के रूप में परिणत करने की कुचेष्टा की है। जिस देश में दुनिया की कोई क्रिकेट टीम जाने के लिए बरसों से तैयार नहीं है उस देश की जहिलियत पर तरस खाने की जरूरत है। न भारत की ऐसी स्थिति है और न ही यहां के मुसलमानों के बारे में शेख राशिद या पाकिस्तान जो कुछ बोलते हैं वह सच ही है। भारत के मुसलमानों के लिए यह मानने का कोई कारण नहीं है कि पाकिस्तान की विजय उनकी विजय है। हमारे देश के बहुसंख्यक मुसलमान ऐसा मान भी नहीं सकते। किंतु एक समूह ऐसा है तभी तो इस तरह का जश्न सामने आया मानो भारत की पराजय से इनको कोई मुंह मांगी मुराद मिल गई हो। इसका हर स्तर पर विरोध होना चाहिए, क्योंकि इसमें भारत विरोध या भारत के अपमानित होने का भाव पूरी तरह निहित है।
कुछ लोग निश्चित रूप से इसे मजहबी जीत के रूप में भी ले रहे होंगे । ऐसे तत्वों को हतोत्साहित किया ही जाना चाहिए। दुख और चिंता की बात यह है कि टीवी डिबेट या विमर्श में इसको हतोत्साहित करने की बजाय अजीब ढंग के कुतर्क दिए जा रहे हैं। मसलन ,पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेला ही क्यों गया? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मैच को रद्द क्यों नहीं करवाया? अगर मैच रद्द नहीं कराया गया तो भी पाकिस्तान की जीत का जश्न मनाना सही कैसे हो सकता है? सबसे खतरनाक कुछ राजनीतिक दलों का रवैया है। भारत की राजनीति किस तरह के आत्मघाती भ्रम की गिरफ्त में है यह कुछ पार्टी के प्रवक्ताओं द्वारा सोशल मीडिया से टीवी पर दी जा रही प्रतिक्रियाओं से पता चलता है। वे ऐसी भयानक प्रवृत्ति की दो टूक निंदा और विरोध की बजाय सरकार को ही आरोपित करने में लगे हैं। इनसे यही कहना होगा कि राजनीति करिए किंतु इस तरह देश विरोध और मजहबी उन्माद की भावना से एक खेल की जीत हार को लेकर पाकिस्तान के समर्थन में जश्न मनाने का खुलकर विरोध करना आपका भी दायित्व है। ऐसा न करने से इस तरह के अतिवादियों को प्रोत्साहन मिलता है और फिर यह कभी भयावह रूप में सामने आ सकता है।