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मिसाइल क्षेत्र में सफलता की महागाथा लिखता भारत

मिसाइल क्षेत्र में सफलता की महागाथा लिखता भारत

by प्रमोद भार्गव
in तकनीक, विज्ञान, विशेष
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भारत ने अपनी सैन्य-शक्ति में वृद्धि करते हुए मिसाइल निर्माण के क्षेत्र में अग्नि-पांच का सफल परीक्षण किया है। सटीक निशाना दागने में सक्षम इस मिसाइल की मारक क्षमता पांच हजार किमी है। ओड़ीसा के एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप से इस प्रक्षेपास्त्र को एक निश्चित निशाने पर दागा गया। रक्षा मंत्रालय ने संक्षिप्त बयान में
कहा, अग्नि-5 का सफल परीक्षण भारत की उस प्रामाणिक न्यूनतम प्रतिरोध वाली नीति के अनुरूप है, जो पहले उपयोग नहीं करने की प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है। परमाणु क्षमता से युक्त अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल अग्नि-5 पर काम पिछले एक दशक से चल रहा है। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य चीन के विरुद्ध
भारत की परमाणु क्षमता को बढ़ाना है। चीन के पास डोंगफोंग-41 जैसे प्रक्षेपास्त्र हैं। इनकी मारक क्षमता 12000 से 15000 किमी तक प्रहार करने की है। रक्षा एवं अनुसंधान संगठन (डीआरडीओ) द्वारा निर्मित इस प्रक्षेपास्त्र का सफल परीक्षण ऐसे समय किया गया है, जब भारत की पूर्वी लद्दाख एवं अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर चीन गतिरोध की स्थिति बनाए हुए है। साफ है, यह परीक्षण चीन को भारत की युद्ध के लिए तैयार रहने की प्रतीकात्मक चूनौती भी है।

मिसाइल के क्षेत्र में भारत इस परीक्षण के पहले से ही 5 हजार से 55 हजार किमी की दूरी तक मार करने की मिसाइल क्षमता वाले वैश्विक समूह में शामिल है। इसके पहले यह ताकत रूस, अमेरिका, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन के पास थी। हालांकि लंबी दूरी की मारक क्षमता वाली मिसाइल अग्नि-5 का यह सतवां प्रायोगिक परीक्षण है।
पहला परीक्षण 19 अप्रैल 2012, दूसरा 15 सितंबर 2013, तीसरा 10 सितंबर 2016, चैथा 26 दिसंबर 2016, पांचवां परीक्षण 18 जनवरी 2018 और छठा परीक्षण 3 जून 2018 को किया गया था। इस मिसाइल की मारक क्षमता 5000 से 8000 किमी से भी अधिक दूरी पर स्थित लक्ष्य को भेदने की है। नई अग्नि-5, मिसाइल पचास टन वजनी है। 17.5 मीटर लंबी यह मिसाइल तीन भागों में विभाजित है। यह अपने साथ एक टन भार का विस्फोटक ले जाने में समर्थ है।

20 मिनट में 5 हजार किलोमीटर की दूरी तक का अचूक निशाना साधने वाली बैलेस्टिक मिसाइल का परीक्षण देश के लिए सामरिक दृष्टि से तो महत्वपूर्ण हैं ही, सेना एवं जनता का मनोबल मजबूत करने की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। क्योंकि हमें यह कामयाबी आशंकाओ के उस संक्रमण काल में मिली है, जब मिसाइल के क्षेत्र में भारत के चीन से पिछड़ने के दावे किए जाते हैं। ऐसी विरोधावासी अटकलों में 85 प्रतिशत स्वदेशी तकनीक से निर्मित अग्नि 5 का सातवां परीक्षण यह उम्मीद जगाती है कि हम देशज ज्ञान, स्थानीय संसाधन और बिना किसी बाहरी पूंजी के वैज्ञानिक उपलब्धियां हासिल करने में सक्षम हैं। वैसे भी पश्चिमी देशों ने भारत को मिसाइल तकनीक देने पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। इस लिहाज से यह उपलब्धि पश्चिमी देशों के लिए भी आईना दिखाना है।

सामरिक महत्व के हथियार यदि हम अपने ही बूते बनाएंगे तो हमारी गोपनीयता भंग होने का खतरा भी नही रहेगा ?भारत मे रक्षा उपकरणों की उपलब्धता की दृष्टि से प्रक्षेपास्त्र श्रृंखला प्रणाली की अहम भूमिका है। अब तक इस कड़ी में देश के पास पृथ्वी से वायु में और समुद्री सतह से दागी जा सकने वाली मिसाइलें ही उपलब्ध थीं,
लेकिन अग्नि 5 ऐसी अद्भुत मिसाइल है, जो सड़क और रेलमार्ग पर चलते हुए भी दुश्मन पर हमला बोल सकती है। इस श्रृंखला में अग्नि-1 की मारक क्षमता 700 किमी, अग्नि-2 की 2000 किमी, अग्नि-3 की 3000 किमी, अग्नि-4 की 3500 किमी और अग्नि-5 की 5000 किमी है, अग्नि-6 मिसाइल की मारक क्षमता आठ हजार किमी तक है। यह जमीन से जमीन पर मार करने वाली मिसाइल है। भारत ने अग्नि-1,2,3 मिसाइलों के परीक्षण पाकिस्तान को आंख दिखाने की दृष्टि से किए है, जबकि अग्नि-4,5 6 एवं 7 के परीक्षण चीन को ध्यान में रखकर किए गए है। भारत से चीन की 3488 किमी लंबी सीमा जुड़ी है, जो अधिकांश जगह विवादित है। अब इन मिसाइलों की जद में संपूर्ण एशिया और अफ्रीका महाद्वीप के साथ यूरोप का भी बड़ा हिस्सा आ गया है। यह मिसाइल एक बार छोड़ने के बाद रोकी नहीं जा सकती है। इसे सड़क के रास्ते कहीं भी पहुंचाया जा सकता है। इस खूबी के कारण इस मिसाइल को दुश्मन के उपग्रह की निगाहों से भी बचाया जा सकता है। आठ हजार किमी दूरी तक का निशाना साधने वाली मिसाइल से हम दुश्मन देश के उपग्रह भी नष्ट करने में सक्षम हो गए हैं। अग्नि-6 चीन की डोंगपोंग मिसाइल का जबाव देने में भी सक्षम है।

हमारा जन्मजात दुश्मन देश पाकिस्तान भी मिसाइल निर्माण के क्षेत्र में लगातार प्रगति कर रहा है। उसके पास शाहीन-एक, 700 किमी, शाहीन-दो, 2000 किमी और शाहीन-तीन, 2750 किमी मारक क्षमता की मिसाइलें तैयार हैं। वह तैमूर नाम से 5000 किमी तक की मारक क्षमता वाली मिसाइल तैयार करने में भी लगा है।इन मिसाइलों के निर्माण में कैनेस्तर तकनीक का इस्तेमाल किए जाने से इनकी खूबी यह भी है कि जासूसी उपकरण और उपग्रह भी यह मालूम नहीं कर पाएंगे कि इसे कहां से दागा गया है और यह किस दिशा में उड़ान भर रही है। क्योंकि यह तीन चरणों में 800 किमी तक की उचांई पर उड़ान भरने में सक्षम है। इसलिए दुश्मन देश
को इसे बीच में ही नष्ट करना नामुमकिन होगा। इसकी खासियत यह भी है कि इसे एक बार छोड़ने के बाद लक्ष्य साधने वाले सैनिक व वैज्ञानिक भी रोक नहीं पाएंगे। 50 टन वजनी इस मिसाइल में एक हजार किलोग्राम परमाणु हथियार ले जाने की क्षमता है। इसकी लंबाई 17.5 मीटर और चैड़ाई 2 मीटर है। अमेरिका को छोड़ संपूर्ण यूरोप,एश्यिा और अफ्रीका इसकी मारक क्षमता के दायरे में होंगे।

इस सफल परिक्षण के बाद चीन समेत कई विकसित देशों ने यह आशंका जताई हैं कि इस परीक्षण के बाद एशियाई परिक्षेत्र में हथियारों का भण्डारण करने की होड़ लगेगी। हालांकि यह सच्चाई नहीं है। पाकिस्तान ईरान व कोरिया पहले से ही मिसाइलों के निर्माण और उनके परीक्षण में लगे हैं। विकसित व घातक हथिायारों के कारोबार में लगे देश भी अपने हथियारों को बेचने के लिए कई देशों को उकसाने में लगे रहते हैं। पूरी दुनिया को भस्मासुर साबित हो रहे इस्लामिक आंतकवादियों को हथियार मुहैया कराने का काम यूरोपीय देशों ने अपने हथियार खपाने के लिए ही किया था। पाकिस्तान पोषित कश्मीर में आतंकवाद और ओड़ीसा व छत्तीसगढ़ में पसरा चीन द्वारा पोषित माओवादी उग्रवाद ऐसी ही बदनीयति का विस्तार हैं।

भारत में मिसाइलों का विकास – भारत में एकीकृत विकास कार्यक्रम की शुरूआत 1983 में इंदिरा गांधी के कार्यकाल में हुई थी। इसका मुख्य रूप से उद्देश्य देशज तकनीक व स्थानीय संसाधनों के आधार पर मिसाइल के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करना था। इस परियोजना के अंतर्गत ही अग्नि, पृथ्वी, आकाश और त्रिशूल मिसाइलों का निर्माण किया गया। टैंको को नष्ट करने वाली मिसाइल नाग भी इसी कार्यक्रम का हिस्सा है। पश्चिमी देशों को चुनौती देते हुए यह देशज तकनीक भारतीय वैज्ञानिकों ने इंदिरा गांधी के प्रोत्साहन से इसलिए विकसित की थी, क्योंकि सभी यूरोपीय देशों ने भारत को मिसाइल तकनीक देने से इंकार कर दिया था। भारत द्वारा पोखरण में किए गए पहले परमाणु विस्फोट के बाद रूस ने भी उस आरएलजी तकनीक को देने से मना कर दिया था, जो एक समय तक मिलती रही थी। किंतु एपीजे अब्दुल कलाम की प्रतिभा और सतत सक्रियता से हम मिसाइल क्षेत्र में मजबूती से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते रहे हैं। अब्दुल कलाम की सेवानिवृत्ति और मृत्यु के बाद इस काम को गति महिला वैज्ञानिक टेसी थॉंमस ने दी हुई है।

श्रीमती थॉंमस आईजीएमडीपी में अग्नि 5 अनुसंधान की परियोजना निदेशक हैं। उन्हें भारतीय प्रक्षेपास्त्र परियोजना की पहली महिला निदेशक होने का भी श्रेय हासिल है। 30 साल पहले टीसी थॉंमस ने एक वैज्ञानिक की हैसियत से इस परियोजना में नौकरी की शुरूआत की थी। अग्नि-5 श्रृंखला की मिसाइलें विकसित करने से पहले उनका सुरक्षा के क्षेत्र में प्रमुख अनुसांधन ’री एंट्री व्हीकल सिस्टम’ विकसित करना था। इस प्रणाली की विशिष्टता है कि जब मिसाइल वायुमण्डल में दोबारा प्रवेश करती है तो अत्याधिक तापमान 3000 डिग्र्री सेल्सियस तक पैदा हो जाता है। इस तापमान को मिसाइल सहन नहीं कर पाती और वह लक्ष्य भेदने से पहले ही जलकर खाक हो जाती है। आरवीएस तकनीक बढ़ते तापमान को नियंत्रण में रखती है, फलस्वरुप मिसाइल बीच में नष्ट नहीं होती। इस उपलब्धि को हसिल करने के बाद से ही टेसी थॉंमस को ’मिसाइल लेडी’ अर्थात् ’अग्नि – पुत्री’ कहा जाने लगा। श्रीमती थॉंमस को रक्षा उपकारणों के अनुसांधन पर इतना नाज है कि उन्होंने अपने बेटे तक का नाम लड़ाकू विमान ’तेजस’ के नाम पर तेजस थॉंमस रखा है।

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